(Article) Kisan Aatamhatya Story Bundelkhand

Kisan aatamhatya story Bundelkhand

बेबस बुंदेलखण्ड

मै बुंदेलखण्ड हूं, बीते 5 अगस्त को मेरे गर्भ में हो रही किसान आत्म हत्याओं की संख्या बढकर 3262 हो गयी है। बैंक और साहूकारी से कर्ज लेकर मुसीबत में घिरते किसानों की फेहरिस्त में एक और युवा किसान ने आत्महत्या कर ली है।
पत्नी के साड़ी के पल्लू को दो हिस्सों में बांटकर एक टुकड़े से अपनी फिजां के सामने चांद यानी जनपद बांदा के विकास खण्ड बबेरू के ग्राम भदेहदू का 35 वर्षीय युवा किसान नरेन्द्र सिंह पटेल पुत्र जगदेव ने बीती रात 11 बजे फांसी लगा ली। चैतरफा कर्ज से घिरे नरेन्द्र पर बैंक का 1 लाख 60 हजार 110 रू0 ऋण बकाया था। इलाहाबाद यू0पी0 ग्रामीण बैंक भदेहदू से जुलाई 2009 में अपने हिस्से की जमीन गिरवी रखकर इस युवा किसान ने खेती के लिये कर्ज लिया था। साहूकारों का तीन लाख रू0 कर्ज नरेन्द्र के ऊपर बकाया था ऐसा गांव वालों का कहना है। हाल फिलहाल तहसीलदार एसएन0 त्रिपाठी ने पलायन के बाद घर वापस लौटे नरेन्द्र पर पत्नी से विवाद के चलते आत्महत्या करने का सरकारी ठप्पा लगा दिया। सरकार देश की आर्थिक रीढ़ कृषि को व्यवसाय का दर्जा देने से क्यूं बच रही है। यह रहस्य आज भी सरकारी मंत्रालयों के रहस्य की गर्त में छिपा है। समय पर किसान को खाद, बीज, पानी, कीटनाशको की उपलब्धता आवश्यकतानुसार सरकार की ओर से सुनिश्चित न करना सरकार की नियत में खोट को उजागर करता है। बुन्देलखण्ड में किसान रवि की फसल भी कर्ज लेकर बो रहा है । कीटनाशकों के भाव आसमान छू रहें है और डीजल की कीमत मजदूरीकश किसान की कमर तोड़ती जा रही है। बेलगाम बाजार सरकारी क्रय ऐजेन्सियां सरकार के नियन्त्रण से बाहर हैं, सब को पता है कि धान का समर्थन मूल्य 1050 से लेकर 1150 तक था । किसानो के साथ सरकारी क्रय ऐजिन्सियों की मनमानी और हफ्तों खरीद के लिए इन्तजार करने को लेकर जब किसान मजबूर हो कर खुले बाजार में गेंहू, धान आढ़तियों के यहां बेचने लगा तो उसे बमुश्किल 750 प्रति कुन्तल की दर से बेंचना पड़ा जबकि डी0ए0पी0 खाद का भाव 2000 रू0 प्रति कुन्तल था।
किसान असंगठित वर्ग है वह सिर्फ भीड़ है, 90 करोड़ की भीड़ जिसकी शक्ति को जातियों में बांट कर किसान का शोषण सरकार -व्यवसायी घराने व बाजार कर रहें हैं। आज सत्ता और समाज की ठेकेदारी का आधार सैद्धान्तिक रूप से जाति में ही बल्कि अंकगणित की दहाई की गिनती है लेकिन फिर भी राजनीति मे जाति की स्वीकार्यता है। यह व्यवस्था सिर्फ इसलिए है कि 90 करोंड़ किसानों, गांववासियों को जाति की घुट्टी देकर मुट्ठी भर शोषक बेबस किसान का शोषण करते रहे । किसान शोषण, गरीबी और कर्ज से तंग आकर जब आत्म हत्याएं करता है तब शोषक वर्ग अपने मिशन पर गौरन्वित होता है और उसके भरोसे को मजबूती मिलती है कि किसान आज नही तो कल खेती को या तो लीज मे देने लगेगा या फिर साहूकारों और बैंकों के बन्धुआ मजदूरों की जमात में शामिल हो जायेगा।
बुन्देलखण्ड में लगातार हो रही पिछले 11 सालों से किसानों की खुदकुशी का आंकड़ा तेजी से सूखे की तरह बढ़ रहा है । अप्रैल 2003 से अगस्त 2006 तक चित्रकूट मण्डल के बांदा, महोबा, चित्रकूट, हमीरपुर में 1040 किसानों ने आत्म हत्याए की हैं। किसानो की आत्म हत्याओं के इन आंकड़ों में कर्ज से 86, गरीबी से 122, दहेज से 12, गृहकलह से 449, अज्ञात कारणों से 371 आत्म हत्याए हुई हैं। वहीं वर्ष 2001 से 2006 तक 1275 किसानों की लाशों का पोस्टमार्टम कराये जाने का भी दावा किया गया है जो 2007 से 2010 तक 1351, वर्ष 2011 में 521 और वित्तीय वर्ष 2012 में 115 किसान अब तक कर्ज के चलते आत्म हत्या कर चुकें हैं जिसका कुल योग बीते 5 अगस्त तक 3262 है । आत्म हत्याओं की यह विकास दर बुन्देखण्ड के हालात और तस्वीर को साफ करने के लिए काफी है। 2 जून 2012 तक बैंकों से लिए गये तथ्यों के अनुसार उ0प्र0 व म0प्र0 के 16 लाख किसानो पर कर्ज का मकड़जाल है। इन पर बैंको ंका 9095 करोड़ रूपया अभी तक बकाया है। किसान बुन्देलखण्ड का हो या फिर विदर्भ की सूखी पट्टी का हाल दोनो ही तरफ एक से भयावह हैं । अलबत्ता बुन्देलखण्ड में बढ़ती हुयी किसानो की आत्म हत्यायें यहां के बनते बिगड़ते मानसून की तरह सुधरने का नाम नहीं ले रही है। वर्तमान समाजवादी सरकार ने चुनावी घोषणा पत्र में 50 हजार किसानों के कर्ज माफी की बात कही थी जिस पर अभी तक अमल नहीं हो सका है यह बात और है कि उ0प्र0 में बदलता हुआ विकास का आईना बसपा सरकार के मूर्ति-स्मारकों से हट कर इटावा, मैनपुरी, कन्नौज को चमकाने की जोर शोर से कवायद कर रहा है। चम्बल के बीहड़ो में मुख्य मंत्री अखिलेश यादव की लाॅइन सफारी भले ही दहाड़ मारती आगामी पांच वर्षाें में नजर आये मगर बुन्देलखण्ड के पाठा, मड़फा के बिहड़ में जरूर कोई ददुआ, मुफ्लिसी की तपिश में पान सिंह तोमर बनने को मजबूर होगा। बैंको का 873 करोड़ रूपये पहले ही एनपीए (नान परफारमिंग ऐसेट) के तहत डूब चुका है। बैंा ने जहां 4 के बजाय 13 फीसदी वसूली किये जाने की बात शुरू की है। वहीं दूसरी तरफ गाहे बगाहे बैंको की रिकवरी नोटिस किसानों को आत्महत्यायें करने के लिये साजिश रच रही है।
आशीष सागर, बांदा

Ashish Sagar Dixit