(Article) बदलता भारत बिखरते गाँव ....? Arvind Buddha


(Article) बदलता भारत बिखरते गाँव ....? Arvind Buddha


"बुंदेलखंड का नाम आते ही जेहन में सूखा गरीबी , अक्षिक्षा , बेरोजगारी , किसान आत्महत्या , जैसी प्रचंड बाते आने लगती है | बुंदेलखंड में ग्रामीणों का पलायन भयावह परिद्रश्य प्रस्तुत करने वाला वाला है | बुंदेलखंड के परिद्रश्य को समझने के लिए बसपा सरकार को सर्वाधिक मंत्री दिए बाँदा जनपद को ,लिया गया है | जहाँ देश में पलायन की दर सर्वाधिक तेज हुई है | ग्रामीणों का यह पलायन न विस्थापन की श्रेणी में आता है न ही अवागमन की श्रेणी में आता है क्योकि इस जनपद के गाँव के गाँव अपने जीवन को बचाने के लिए और एक अदद जीविका कमाने के लिए अपने गाँव और प्रदेश से सुद्रढ़ क्षेत्रो में आये दिन पलायन करते रहते है | और यहाँ के युवाओ का शिक्षा से मोहभंग होता दिख रहा है स्कूल , कालेजो , से निरंतर छात्र संख्या गिर रही है जो की भयावह है ?

मनुष्य उन्नत जीवन की आशा में एक स्थान से दुसरे स्थान पर जाकर बसता है | इस तरह जनसख्या के प्रवास का इतिहास अत्यंत प्राचीन और विस्वव्यापी रहा है | यदि हम इतिहास पर द्रष्टि डाले तो स्पष्ट जानकारी प्राप्त होती है बहुत पहले आर्य मध्य एशिया से आकार भारत में बसे | मध्यकाल में अंग्रेज व फ़्रांसिसी उत्तरी अमेरिका तथा आस्ट्रेलिया को प्रवासित हुए | स्पेनी एवं पुर्तगाली दक्षिण अमेरिका में बसे | इस तरह विभिन्न देशी की इतिहास का इतिहास प्रवास की घटनाओं से भरा पड़ा है | यहाँ यह ध्यान देने वाली बात है की लम्बे समय से जाने को ही प्रवर्तन कहा जाता है |

जनम , मृत्यु , प्रवर्जन किसी देश की जनसँख्या को बुरी तरह से प्रभावित करते है | पलायन एक महत्वपूर्ण जनांकिकीय घटना है जनसँख्या के आकार वितरण और संरचना को शीघ्र प्रभावित करती है | जबकि प्रवास एक अचानक घटना है जिसमे किसी प्रकार की निश्चितता नहीं होती है तथा इसका मापन और अनुमान लगाना संभव नहीं होता है | गाँवो से ग्रामीणों का जीविका के लिए पलायन करना कोई नहीं बात नही है | लेकिन भारत के सन्दर्भ में जब हम यह देखते है ग्रामीणों का यह पलायन का यह आवागमन हमें यह विस्थापन लगता है और कहीं पलायन , और कहीं कहीं सामान्य आवागमन लगता है | विशेषज्ञों का अनुमान है की पल्याँ की यह मौजूदा गति जरी रही तो अगले २० -२५ सालो मे शहर और गाँव की आबादी बराबर हो सकती है भारत जैसे कृषि प्रधान देश में यह स्थिति हानिकारक और भयावह है | भारत गाँवो का देश है भारत की अर्थव्यवस्था कृषि आधारित है | ग्रामीण अंचलो और देश का विकास खेत – खलिहानों से होकर गुजरता है | देश के इस अति पिछड़े क्षेत्र बुन्देल् खंड पर केंदित किया गया है जिसमे उत्तर प्रदेश के 7 जिले तथा पद्य प्रदेश के 6 जिले आते है जहाँ बाँदा , हमीरपुर , महोबा , झाँसी ,उरई, जालौन , चित्रकूट आदि जिले आते है जिनमे से बाँदा जनपद को लिया गया है | यानि बुंदेलखंड को यदि एक अलग राष्ट्र घोषित कार दिया जय तो यह देश का 9 करोड़ की आबादी के साथ 5 वां सबसे प्राकृतिक संपदाओं से संपन्न प्रदेश होगा |

देश के इस भूखंड में में ग्रामीणों को पलायन के लिए मजबूर करने वाली परिस्थितिया और वजह बहुत गंभीर है यहं से कोई साधारण पलायन नहीं हो रहा ही बल्कि यहाँ एक विशेष समय में तो गाँव के गाँव खाली हो जाते है , हजारो और लाखो की सख्या में ग्रामीण रोजी रोटी के जुगाड़ में बाहर निकल जाते है | बुंदेलखंड में यह पलायन बहुत सरे आयाम लिए हुए है जो गहन जाँच – पड़ताल की मांग करते है | २०११ की जनगणना में देश के मानचित्र में महोबा ऐसा जनपद उभरा जहाँ की जनसँख्या सबसे कम पाई गयी और ग्राफ निरंतर नीचे की तरफ जाता दिख रहा है | जिसका मूल कारन यहाँ के लोगो का पलायन ही है | जनपद बाँदा के तिंदवारी ब्लाक के २००९ में अम्बेद्कर गाँव रहा पिपरगंवा ग्राम पंचायत का है जहन ९ जुलाई २००९ को तत्कालीन मुख्यमंत्री मायावती ने दौरा किया था |

लेकिन वहां के आज हालत जर्जर हो चुके है हमने करीब एक सैकड़ा लोगो से मिलकर चर्चा की जिससे कुछ तथ्य निकाले जो चूमने वाले है | ग्रामीणों के अनुसार यहाँ एक समय ऐसा आता ही की पूरा गाँव ही खली हो जाता है , यहं के लोग नॉएडा , सूरत , दिल्ली , पंजाब , हरियाणा , मुंबई , और देश के अन्य बड़े शरो में जाते है | कई में यहाँ के लोगो की पीढ़ी दर पीढ़ी लोग जाने लगे है जिस कारण यहाँ हर परिवार का दूसरा सदस्य परदेश का वासी है | यहं के लोग बाहर जाते तो है लेकन वहां पर जो गाँव के ही पहले से रह रहे ठेकेदारों के अन्दर में काम करते है तो उनका खूब शोषण भी करते है और तो और मजदूरी भी नहीं देते है तथा खाने में निकल देते है | गाँव में बचाते है बच्चे और महिलाये जो वह भी गलत रास्ते पर चल पड़ते है | इस गाँव में एक प्राथमिक ,एक जूनियर विद्यालय है जहाँ की पढाई का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है की वहां के बच्चे बड़े बुजुर्गो के साथ जुवां खेलते दिख जाते है | गाँव में बेरोजगारी का इस कदर हाल है की हर गली मोहल्ले में ताश खेलते हुए लोगो के झुण्ड मिल जायेंगे जिसमे भाई – भाई , चाचा – भतीजा जैसे सगे सम्बन्धी भी आपस में खेल रहे होते है | हद तो तब हो जाती है जब मासूम बच्चो को स्कूल भेजने की बजाय गाँव के ही उच्च विरादारी वाले लोगो के यहाँ काम के लिए भेज दिया जाता है वो भी उन्हें दिहाड़ी की बजाय खाने मात्र को दिया जाता है | यहाँ पढ़े – लिखे स्नातक –परास्नातक युवाओं का यही हाल है जो अपनी प्रतिष्ठा को बचाते हुए या तो बाहर निकल जाते है या फिर अपराधिक प्रवित्ति (चित्रकूट के जन्गलो में ददुआ गिरोह ) या नशे की चपेट में आ जाते है | मासूम बच्चे नशे की चपेट में आ जाते है जिसके कारन उन का बचपन एक नशा बन जाता है दुसरे के लिए |

आजादी के 67 साल बीत जाने के बाद भी देश के विभिन्न हिस्सों से ग्रामीणों का पलायन चिंता का विषय है 21 सदी की नयी अर्थव्यवस्था के साथ भूमंडली करण के इस दौर में बुंदेलखंड में जीविका का संकट और उसके परिणाम स्वरुप उच्च स्टार पर ग्रामीणों का पलायन हमारे लोकतान्त्रिक व्यवस्था को भी कटघरे में खड़ा करता है |बुन्देल् खंड के गाँवो का का यह पलायन उस इतिहास को उलटा पलट रहा है जिसमे ये धरा कभी गौरवशाली और वैभववाला रहा है | बुन्देलखंड से यह पलायन कोई सामान्य घट्ना नही है यह एक सभ्यता के लिए गंभीर समस्या है प्राकृतिक सम्पदा से भरपूर यह भूखंड आज दाने –दाने को मोहताज है | और आजा इसका भविष्य अंधकार में दिख रहा है मेहनत – मजदूरी के लिए यहाँ की एक एक के बाद पीढ़ी पलायन कार रही है | पलायन बुन्देल्खंड के लोगो की नियत बन चूका है |

सुखा , भय , अशिक्षा , गरीबी , बेकारी , अन्धविसवास , इस भूक्षेत्र को निरंतर खाई में धकेलते नजर आ रहे है | बुंदेलखंड के महोबा जिले में देश के अन्य जनपदो से पलायन सर्वाधिक है इसलिए वहां यह जानना आवश्यक है की किन कारणों से यह दर बढ़ रही है या कौन से कारक है जो इसको बढा रहे है |

अशिक्षा ,गरीबी व बेरोजगारी ये तीन प्रमुख कारण है जो ग्रामीणों के पलायन का कारन बनाते है ? बुन्देखंड में परंपरागत जाती व्यवस्था का शिकंजा इतना मजबूत है की शासन और प्रशासन भी सामूहिक अन्याय का मुकाबला करने वालो के प्रति उदासीन बना रहता है ,जिसमें सड़ते व दबते रहने की बजाय लोग गाँव से पलायन करना पसंद करते है | युवाओं के लिए ये तो और बदतर है पढाई पूरी होने के बाद उनके घर परिवार से ताने मिलने शुरू हो जाते है जो पलायन का एक मजबूत कारन है | बुन्देल खंड में ग्रामीणों का रोजी रोटी के तलाश में कश्बों , शहरो , महानगरो में जाना मजबूरी हो गया है |निरंतर कृषि योग्य जमीन का घटना और कृषि की उपेक्षा तथा उस पर आधारित उद्योगों का विलोपन भी यहान के पलायन का मुख्या कारन है |

बुंदेलखंड में ग्रामीणों का पलायन से भयावह परिणाम सामने आ रहे है जिनमे गाँवो में सन्नाटा पसरा रहता है वाही सामाजिक रिश्ते भी प्रभावित हुए है , गाँवो में सिर्फ बच्चे व् बुजुर्ग ही दिखाई देते है ए तीज त्यौहार भी नहीं प्रभावी ढंग से मनाये जाते है | बच्चो की शिक्षा पर बहुत बुरा प्रभाव पडा है | गाँवो ड्राप आउट उच्च है , ग्रामीण महिलाये दोहरे शोषण का शिकार होती है परिवार में दोहरे कामो का बोझ और कार्यस्थल पर शोषण अलग | निष्कर्षतः पलायन से नकारात्मक ढंग से ग्रामीणों को प्रभावित करने वाले है ,सामाजिक राजनीतिक , आर्थिक सांस्क्रतिक जीवन तबाह करने वाले सिद्ध हो रहे है |

गाँवो में पलायन रोकने के किये समानता और न्याय पर आधारित सामाजिक व्यवस्था कायम करना उतना ही आवश्यक है जितना गाँवो को स्थिति में सुधर लाना | इसलिए कमजोर तबको को योजनाओं में परदर्शिता के साथ देनी होगी | वहां स्वयं सहयता समूह , सरकरी योजनायो का सही क्रियान्वयन , छात्रवृत्ति योजना , राष्ट्रीय परिवार लाभ योजना आदि कार्यक्रम चला कर वहां के लोगो को खुशहाल किया जा सकता है |

जिसके कारन देश भर में बदहाली के लिए मशहूर यह बुन्देलखंड अपने पुराने गौरव को वापस पा सकता है | अगर यहाँ नियमित रूप से कम मिलने लगा तो यहाँ बढती किसान हत्याओं को भी काबू में किया जा सकता है | और इसे समृधि की ओर विकास के रास्ते में लाया जा सकता है |

By:  अरविन्द बौद्ध"