बुंदेलखंड में बनेगा केन बेतवा लिंक का विनाश कारी बाँध


बुंदेलखंड में बनेगा विनाश कारी बाँध


बुंदेलखंड की केन नदी का किनारा अप्रेल 2011 की गर्म हवाओ के थपेड़े ऐसे में तत्कालीन केंद्रीय वन एव पर्यावरण मंत्री जय राम रमेश केन नदी के निर्मल जल को निहार रहे थे । इसी दौरान उनसे एक सवाल केन बेतवा लिंक परियोजना पर पूंछा गया । उनका जबाब था कई सालों से चर्चा चल रही है मेने खुद सलमान खुर्शीद जो सिचाई मंत्री हें से चर्चाकि है ,मेने पी.एम्.. को पत्र लिखा है कि अगर ये केन बेतवा लिंक बनेगा तो ये सारा पन्नाटाइगर रिजर्व ख़त्म हो जाएगा , करीब ६० वर्ग कि.मी.एरिया जो शेरों के रहवास क्षेत्र का प्रमुखस्थान है इसका सत्यानाश हो जाएगा । , केन बेतवा लिंक परियोजना से पन्ना टाइगर रिजर्व कोख़तरा है हमारा मंत्रालय तो इसकी अनुमति नहीं देगा |

दरअसल जय राम रमेश देश में ऐसी कोई योजना नहीं चाहते थे की जिससे आज तो फायदा दिखे पर भविष्य बर्बाद हो जाए । विकाश की अंधी दौड़ में , देश के नेताओं को आज का विकाश दिख रहा है , भविष्य किसने देखा की मानसिकता से ग्रस्त ये नेता मानव और जीव कल्याण के विषय में सोच ही नहीं सकते ।

सरकार और इंजीनियरों की नजर में बुंदेलखंड के छतरपुर,पन्ना,टीकमगण ,झाँसी जिले के लोगों की तक़दीर और तस्वीर बदलने वाली है केन -बेतवालिंक परियोजना। अटल जी के प्रधानमंत्रित्व काल में जब देश की 37 नदियों को आपस मेंजोडने का फैसला लिया गया ,उनमे से एक यह भी थी | देश की इन 37 नदियों को आपस मेंजोडने पर 5 लख 60 हजार करोड़ रु .व्यय होने का अनुमान लगाया गया था | |यह देश की वहपरियोजना है जिसे सबसे पहले शुरू होना था | परियोजना के सर्वेक्षण कार्य पर 30 करोड़ रु,व्यय किये गए हें | 6 हजार करोड़ की इस परियोजना की लागत अब बाद कर 17 हजार 500 करोड़ रु हो गई है । इसका मुख्य बाँध पन्ना टाइगर रिजर्व के डोंदन गाँव में बनना है |बाँध वा नहरों के कारण सवा पांच हजार हेक्टेयर वन क्षेत्र नष्ट हो जाएगा ,छतरपुर जिले केदस गाँव डूब जायेंगे |

केन बेतवा लिंक परियोजना में चार बाँध बनाए जायेंगे | केन नदी पर ढोढन बाँधबनेगा 77 मी.ऊँचा वा 19633 वर्ग कि.मी. जलग्रहण छमता वाले इस मुख्य बाँधमें 2853 एम्.सी.एम्.पानी भंडारण कि छमता होगी| इस बाँध से दो बिजली घर बनेंगेजिससे 78 में.वा. बिजली बनेगी |इस बाँध के कारण पन्ना टाइगर रिजर्व कि 5258 हेक्टेयरजमीन सहित कुल 9 हजार हेक्टेयर जमीन डूब जाएगी | इस जमीन पर बसे सुकुवाहा ,भावरखुवा ,घुगारी ,वसोदा ,कुपी,शाहपुरा ,डोंदन ,पल्कोहा ,खरयानी,और मेनारी गाँव का अस्तित्वसमाप्त हो जाएगा | बाँध से 221 कि.मी.लम्बी मुख्य नहर उत्तर प्रदेश के बरुआ सागर में जाकरमिलेगी | इस नहर से 1074 एम्.सी.एम्. पानी प्रति वर्ष भेजा जाएगा ,जिसमेसे 659 एम्.सी.एम्. पानी बेतवा नदी में पहुंचेगा |

ढोंडन बाँध के अलावा तीन और बाँध भी मध्य प्रदेश कि जमीन पर बेतवा नदी पर बनेंगे |रायसेन , विदिशा जिले में बनने वाले मकोडिया बाँध से 5685 हेक्टेयर क्षेत्र में,बरारी बेराजसे 2500 हे.वा केसरी बेराज से 2880 हे. क्षेत्र में सिचाई होगी | लिंक नहर से मार्गोंमें 60294 हे. क्षेत्र सिंचित होगा ,इसमे मध्यप्रदेश के 46599 हे. वा उत्तर प्रदेशके 13695 हे.क्षेत्र में सिचाई होगी | ढोंडन बाँध से छतरपुर और पन्ना जिले कि 3.23 लाख हे.जमीन सिंचित होगी होने का दावा किया जा रहा है ।

इस परियोजना को केंद्र के केबिनेट से हरी झंडी मिलने के बाद केंद्रीय जल संसाधन मंत्री उमा भारती ने अगस्त 2015 में खजुराहो के होटल में बैठक कर डाली । बैठक में उन्होंने बताया था की सात साल में योजना पूर्ण कर ली जायेगी । बैठक के बाद जब उनसे इस बाँध के कारण होने वाली पर्यावरण की क्षति और जैव विविधता के होने वाले नुकशान का सवाल एक पत्रकार ने पूंछा था , तो वे नाराज भी हुई थी , और यह कह कर चलती बनी थी कि यहां के होकर इस महत्व पूर्ण योजना में अड़ंगा डाल रहे हो । पांच सितारा होटल से निकल कर वे ढोंडन गाँव भी गई थी । पन्ना टाइगर रिजर्व के अंदर बसे इस गाँव पर ही केन बेतवा लिंक का बाँध बनना है । गाँव में नेशनल वाटर डेवलपमेंट एजेंसी के डी जी मसूद हुसैन ने बताया था कि इस परियोजना से ५ लाख हेक्टेयर जमीन की सिचाई होगी । फर्स्ट फेज 15 हजार करोड़ रु और सेकेण्ड फेज में ढाई हजार करोड़ रु का खर्च आएगा । प्रोजेक्ट से छतरपुर ,पन्ना , टीकमगढ़ , रायसेन , विदिशा , महोबा ,बांदा और झाँसी जिले को लाभान्वित होने का दावा किया था ।

केन _बेतवा लिंक परियोजना को मुख्य मंत्री की अध्यक्षता वाले वन्य प्राणी बोर्ड ने सहमति दे दी है । जिसमे कहा गया है कि टाइगर रिजर्व के कोर एरिया के एवज में अन्य क्षेत्र को जोड़ा जाए । पार्क के अंदर के गाँवों का पुनर्स्थापन व पुनर्वास परियोजना व्यय से किया जाए । बाँध निर्माण के कार्य में लगने वाले श्रमिकों को पार्क से बाहर रखा जाए । निर्माण सामग्री भी बाहर ही लाइ जाए । गिद्ध रहवास पर होने असर का अध्यन किया जाए । केन नदी के इकोलॉजिकल प्रभाव को सुनिश्चित किया जाए । इस तरह की सात शर्तों के साथ प्रस्ताव राष्ट्रीय वन्य प्राणी बोर्ड को भेजा है ।

असर :
इस बाँध को बनाने के लिए सरकार 9 हजार हेक्टेयर भूमि का अधिग्रहण करेगी , इस भूमि में अकेले टाइगर रिजर्व की 52 58 हेक्टेयर भूमि जा रही है । जिसके कारण टाइगर रिजर्व के लगभग 13 लाख पेड़ डूब जाएंगे , मानव और वन्य जीव पर ख़तरा होगा सो अलग । जिन बाघों से इस इलाके का नाम दुनिया में रोशन हो रहा है उनके घर भी छिन जाएंगे । इस नदी पर बने केन घड़ियाल अभ्यारण्य के अस्तित्व पर ही संकट खड़ा हो जाएगा ।केन घड़ियाल अभ्यारण्य रनेह फाल पर स्थित है । बाँध बनने से पानी बाँध में ही रुक जाएगा जिसके चलते विदेशी सेलानियो के आकर्षण का केंद्र यह सुन्दर फाल जिसे लोग मिनी नियाग्रा फाल के नाम से भी सम्बोधित करते हैं समाप्त हो जाएगा । यहां रहने वाले जलचर घड़ियाल का तो भगवान ही मालिक होगा ।

सामाजिक संस्था सोशल मीडिया फाउंडेशन के उपाध्यक्ष और रिटायर्ड रेंजर आर. के. थापक खुद बात से हैरान हैं की वन जीवो और लगे लगाए वनो के विनाश की इस परियोजना को सरकार ने कैसे अनुमति दे दी । जब की इंदिरा गांधी के शासन काल में इसी तरह की एक योजना आई थी , केन बहुउद्देशीय सिचाई परियोजना । जो इससे काम नुकशान दायक थी किन्तु वन और पर्यावरण की समस्या और वन्य जीवों की बसाहट को देख कर यह योजना निरस्त कर दी गई थी ।

उजड़ेगा गिद्धों का घरौंदा भी _ इस परियोजना के बनने से पार्क के अंदर पाये जाने वाले 7प्रजातियो के गिद्ध का घरोंदा भी उजड़ जाएगा । बर्ष 2015 की गणना में यहां 1676 गिद्धपाये गये है। आंकड़ों पर यदि नजर डालें तो वर्ष 2011 मे 1340, 2012 मे 1797, 2013 मे 1347और 2014 मे 910 गिद्ध मिले थे । दरअसल दुनिया में और भारत में गिद्ध और बाघ तेजी से समाप्त हो रहे हैं, ऐसे में धरा की इस नस्लों को बचाने के लिए दुनिया भर प्रयास हो रहे हैं । दुनिया में भारत्त ही ऐसा देश होगा जहां इन नस्लों को नेस्तनाबूत करने की योजना सरकार ने बनाई है ।

सरकार और उसके नुमाइंदो को विकाश की और सिचाई वा पानी की बर्बादी रोकने की इतनी ही चिंता है तो सबसे पहले उसे बुंदेलखंड के भूगोल और भूगर्भ समझना होगा । बुंदेलखंड की टोपोग्राफी इतनी शानदार है की कम लागत में यहां के गाँव -गाँव में विशाल सरोवरों का निर्माण किया जा सकता है । जिससे यहां के किसानो की सिचाई का संकट दूर होगा साथ ही जलीय फसल और मछली उत्पादन का काम गाँव वालों को मिलेगा । इन तालाबों को बाढ़ वाली नदियों से चैन सिस्टम से भरा भी जा सकता है ।

जिस केन नदी पर इस विशाल बाँध को बनाया जा रहा है वह दरअसल बाढ़ वाली नदी नहीं कही जा सकती । कटनी जिले से निकल नदी बांदा जिले में यमुना में कर विलीन हो जाती है । एशिया की यह साफ़ सुथरी नदियों में गिनी जाती है । निर्मल प्रवाह से से टाइगर रिजर्व के जीवों की प्यास भी बुझती है ।
यही कारण है की इस बाँध को पर्यावरण विद उचित नहीं मानते हें , वे इसे प्रकृति के केनियमों के विपरीत वा विनाशकारी मानते हुए सरकार यह सब विदेशी कम्पनियों के इशारे परबुंदेलखंड कि जेव विभिद्द्ता को नष्ट करने कि साजिश कर रही हे | सरकार पानी पर से जनताके बुनियादी अधिकार को ख़त्म करना चाहती हे | केन और बेतवा के पानी के निजीकरण कीपहली सीडी है | इस परियोजना पर जितना पैसा लगाया जा रहा है यदि उसे गाँव का पानी गाँवमें रोकने पर खर्च किया जाए तो बुंदेलखंड के हर गाँव में खुशहाली छा जायेगी |

अब यहाँ सरकार को यह बात समझ में शायद नहीं आती की ,या वह समझना नहीं चाहती कीएक ओर पन्ना टाइगर रिजर्व हे , जिसको बचाए रखने का दावा सरकार करती रहती है | बाघोंको बचाने के लिए सरकार ने खजाना खोल रखा है " दूसरी ओर वही सरकार पार्क एरिया में बाँधबनाकर बाघों को भी विस्थापित करने पर आमादा है ।

By: (रवीन्द्र व्यास)