(Article) विश्व गोरैया दिवस बीस मार्च

 विश्व गौरैया दिवस

प्रथम विश्व गौरैया दिवस, नेचर फ़ॉर एवर सोसाइटी द्वारा, एंव बाम्बे नेचुरल हिस्ट्री सोसायटी, कार्नेल लैब्स ऑफ़ आर्निथोलोजी (यू०एस०ए०), इकोसिस एक्शन फ़ाउन्डेशन (फ़्रांस), तथा एवन वाइल्ड-लाइफ़ ट्रस्ट, दुधवा लाइव के सहयोग से २० मार्च सन २०१० ई० को मनाया जाना तय हुआ है। इस पहले विश्व गौरैया दिवस विषय है "Help House Sparrow"

इस रोज केवल गौरैया या उसकी सुन्दरता आदि की बात नही होगी, बल्कि मानव आबादी में रहने वाली अन्य चिड़ियों और वहाँ की जैव-विविधिता के सरंक्षण पर भी विचार-विमर्श किये जायेंगे। इस वैश्विक कार्यक्रम का प्रचार-प्रसार "वर्ल्ड हाउस स्पैरो डे डाट आर्ग" नाम की वेबसाइट के द्वारा किया जायेगा, जोकि इस पूरे घटना क्रम की केन्द्र बिन्दु के रूप में रहेगी। सांगठिनिक व व्यक्तिगत तौर पर आप सभी अपने द्वारा किये गये प्रयासों को इस वेबसाइट पर दर्ज करा सकते हैं।

बेवसाइट के माध्यम से विभिन्न प्रकार के पोस्टर, लोगो, और प्रेस विज्ञप्ति आदि मौजूद हैं, जिन्हे डाउनलोड कर जागरूकता अभियान में इस्तेमाल किया जा सकता है, साथ ही २० मार्च को "वर्ल्ड हाउस स्पैरो डे" पर दुनिया भर में होने वाले कार्यक्रमों को इस वेबसाइट पर संकलित किया जायेगा, ताकि मीडिया इसका उपयोग कर सके और जनमानस में पक्षी सरंक्षण के महत्व का संदेश पहुंचे।

विश्व गौरैया दिवस के आयोजन का औचित्य मात्र ये नही है, कि उस रोज हम सिर्फ़ गौरैया की बात करे बल्कि रिहाइशी इलाकों में रहने वाली सभी सामान्य पक्षी प्रजातियों एंव वहाँ की जैव-विविधिता के सरंक्षण पर भी जोर दे।

२० मार्च को विश्व गौरैया दिवस मनाने के पीछे इन तमाम संगठनों की मन्शा है, वैज्ञानिकों, सरंक्षणवादियों व पर्यावरण व वन्य-जीवों के सरंक्षण में कार्य कर रहे संगठनों, जन-समूहों का एक विशाल नेटवर्क स्थापित करने की, ताकि इस गम्भीर मसले पर विचार-विमर्श कर, लुप्त हो रही प्रजातियों को बचाया जा सके।

कभी सामान्यत: दिखाई देने वाली गौरैया अब शहरों व गाँवों से नदारत हो रही, और इस प्रजाति के साथ भी कही ऐसा न हो जैसा गिद्धों के साथ हुआ, एक दशक पूर्व गिद्ध सामान्यत: दिखाई देते थे आज वह विलुप्ति के कगार पर हैं!

मनुष्य की बदलती जीवन-शैली ने गौरैया के आवास, भोजन व घोसलें, बनाने वाले स्थानों को नष्ट कर दिया, साथ ही पेस्टीसाइड के बेतहाशा इस्तेमाल से गौरैया ही नही, वरन मानव आबादी में रहने वाले सभी जीव-जन्तु बुरी तरह से प्रभावित हुए हैं। बिजली के तारों का फ़ैलता जाल, घरों में माइक्रोबेव वाले उपकरण और सेलुलर फ़ोन एंव उनके टॉवर, इन नन्हे जीवों को नष्ट करने में महती भूमिका अदा कर रहें हैं। यदि जल्दी ही मानव-समाज ने अपने अनियोजित विकास को गति देना बन्द नही किया तो यह कालान्तर में एक भयानक विभीषिका होगी मानव समाज के लिये! जिसे वह स्वंम तैयार कर रहा है।

क्या करे तो ये खूबसूरत परिन्दे आप के आस-पास रहें।

आधुनिक मकानों में कूछ खुली जगहों पर गढ़्ढे नुमा आकृतिया बनवायें, लकड़ी आदि बक्सों का इस्तेमाल भी कर सकते हैं, ताकि गौरैया उनमें अपना घोसला बना सके। बज़बज़ाती नालियों, सिंक व डस्टविन में बचे हुए अन्न को बहाने के बजाय खुली जगहों पर रखें, जिससे ये पक्षी अपनी भूख मिटा सके।

शहरीकरण में एक और भीषण बदलाव आया है, लॉन, बगीचों और गमलों से हमारी देशी प्रजातियों के पेड़-पौधे गायब हो गये और उनकी जगह ले ली, विदेशी प्रजातियों ने। नतीजा ये है, कि वे पौधे न तो ऐसे पुष्प देते है, जिनमें मीठा व रसीला मकरन्द हो, और न ही खाने योग्य फ़ल! ऐसी कटीली झाडि़यों व बिना घनी पत्तियों व डालों वाले पेड़ों से जिनमें न तो छाया है और न ही सुन्दरता, और न ही ऐसी टहनियां हैं जिन पर ये आसमान के बंजारे अपना घोसला बना सके, या यूँ कह ले कि कुछ पल ठहर कर सुस्ता सके। हाँलाकि आधुनिकता के इस बदलाव में बेचारे इन जीवों ने भी अपने आप को ढ़ालने की कोशिश तो कि जैसे हरी टहनियों के बजाय तारों पर बैठना सीख लिया, घास के छप्पर नही मिले तो छतों में टंगे पंखो के ऊपरी हिस्से में घोसला बना लिया, पर इन्हे वहाँ भी सुरक्षा नही मिली! आखिर अब ये क्या करे! ये एक सवाल है जिसका जबाव हम-आप ही दे सकते हैं और उसी जवाब में छुपा है, इन पक्षियों की बेहतरी का राज!

चलिए इसी बहाने कोई बेहतर कार्य किया जाय, क्योंकि जो जीवों से प्रेम करते हैं, ईश्वर उन्हे पसन्द करता है।

By : आशीष सागर