(Research) बेड़िया जनजाति : एक झलक; Bedia Tribes : A Glimpse

(Research) :बेड़िया जनजाति : एक झलक

Bedia Tribes: A Glimpse
 

 

 

भारत विभिन्न धर्म, जाती और समुदाय का देश माना जाता रहा है। संविधान की प्रस्तावना में भारत को धर्म निरपेक्ष देश कहा गया है। बी बी सी की रिपोर्ट के अनुसार भारत में जातियों को 3000 तथा उपजातियो को 25000 में उनके कार्यों  के अनुसार विभाजित किया गया है। इसी प्रकार से एक जाति समुदाय जिसे बेड़ियाजनजाति/ समुदाय के नाम से जाना जाता है, उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश के कुछ इलाको में निवास करता है। जो मुख्यतः बुंदेलखंड प्रान्त के अंतर्गत आते है। बेड़िया जनजाति सर्वप्रथम बिहार झारखण्ड और पश्चिम बंगाल के कुछ राज्यों में पाई गयी। यह माना  जाता है की ये समुदाय मोह्दिपहड़ में रहते थे तथा बेद्वंशी राजाओ के वंशज थे। ये लोग अपनी उत्पत्ति गंधर्वो से मानते है। इसी तरह से कई कहानियां  इनके उत्पत्ति को लेकर विख्यात है। परन्तु वास्तविकता से अभी भी सभी अनभिज्ञ है। इस जनजाति को कई नामों से जाना जाता है, जैसे मांझी , शेरशाहबेड़िया, भाटिया, माल्दाहिया और बेड़िया। बेड़िया शब्द हिंदी भाषा के बाहाडा से लिया गया है। जिसका अर्थ है जंगल में रहने वाले लोग या जंगली निवासी । 
2011 जनगणना के अनुसार इनको अनुसूचित जनजाति में नामित किया गया है। इनकी जनसँख्या 46775 है। यह एक  घुमक्कड जनजाति है, जिसको अपराधिक जनजाति अधिनियम के अंतर्गत अधिसूचित किया गया है।

 

 

 

बेड़िया जनजाति देश विदेश में अपने राइ नृत्य के कारण प्रसिद्ध है। बुन्देली लोक्न्रात्यो में इस जनजाति की स्त्रियां जिन्हें बेड्नी भी कहा जाता है, रेंगाड़ी, झमका, दापु , ढोलकी, मर्दंग, नगड़िया , झांझ और मीके जैसे बाध्य यंत्रो के साथ अपनी कला का प्रदर्शन करते है। कभी कभी राइ नृत्य 22-24 घंटो तक लगातार चलता है। पुराने समय में बड़े बड़े लोगों के यहाँ इस नृत्य के बिना शादियाँ या किसी भी बड़े कार्यक्रम की रस्मों को अधूरा माना जाता था। इसका आयोजन भी एक अलग प्रकार से होता है। लोग एक घेरा बनाके खड़े हो जाते है, बीच में ग्राम नर्तिकी ख्याल नामक गीत गाते हुए चक्राकार नाचती है। पुरुष ढोलकी बजाते है। राइ नृत्य मणिपुरी में जैगोई नृत्य के भांगी पारंग से काफी साम्य रखता है। इस प्रकार राइ शब्द राधिका से आया है। राधिका के नृत्य से राइ नृत्य बना, जिसमे केवल राधा ही कृष्ण को रिझाने के लिए नृत्य करती है। चूंकि यह नृत्य मशाल की रोशनी में होता था और मशाल को बुझने न देने के लिए इसमें राइ डाली जाती थी इसीलिए यह राइ नृत्य कहलाया।
सम्रद्ध परम्पराओं और रीतिरिवाजो को अपने में समेटे है बेड़िया जनजाति। यह है सिक्के का एक पहलु और सिक्के का दूसरा पहलु बेहद दुखद है। राइ नृत्य से जुड़े ये कलाकार आज बदहाली का शिकार है। इनमें से बहुत से लोग ऐसे हैं जो आज भी वैश्यावृत्ति के चंगुल से बाहर नहीं आ पा रहें है इन्हें यहाँ से बाहर निकालना शासन और प्रशासन के लिए एक समस्या का विषय बन गया है। 

 

बुंदेलखंड क्षेत्र के रनगाँव, पथरिया, विजावत,विदिशा, रायसेन, हबला, फतेहपुर, जैसे गाँवों में यह जनजाति मुख्यतः आज भी बड़ी संख्या में निवास करती है। इस जनजाति की स्त्रियों की सच्चाई रोंगटे खड़ी कर देने वाली है। रजस्वला होते ही युवा बेड़नी की नथ उतराई की रस्म होती है, इसके लिए 2000 से 5000 रुपयों की , कभी उससे भी ज्यादा की बोली लगायी जाती है। ललितपुर जिले के रनगाँव में रहने वाली दुलारी बताती है की 16 वर्ष की उम्र में एक 60 साल के आदमी द्वारा यह रस्म उनके साथ की गयी थी। इस रस्म को उत्सव के रूप में मनाया जाता है। बेड़िया जनजाति के अंतर्गत यदि किसी स्त्री का विवाह हो जाता है तो वह वेश्यावृत्ति नहीं करती।  तथा उसके परिवार में अविवाहित बेड़िया स्त्री पर निर्भर हो जाती है। अधिकतर बेड़िया जनजाति के आदमी किसी विशेष कार्य में संलग्न नहीं होते तथा आय के लिए उनके घर की स्त्रियों पर निर्भर करते है। एक प्रकार से देखा जाए तो बेड़िया समुदाय के लोगो  के घर के पालन पोषण का जिम्मा उस घर की अविवाहित स्त्रियों के कंधो पर रहता है। यही मुख्य कारण है की आज के समाज में जहाँ कन्या भ्रूण हत्या एक मुख्य समस्या बनी हुए है, वही इस समुदाय में लड़की के जन्म को एक त्यौहार की तरह मनाया जाता है।

 

बुंदेलखंड के पथरिया गाँव की चम्पा वेन ने सर्वप्रथम इन बालिकाओं को शिक्षा देने का जिम्मा उठाया। इन्होनें  बेड़िया समुदाय की महिलाओं को शिक्षा की ओर प्रोत्साहित किया और उन्हें देह व्यापार जैसे अवैधानिक कार्यो से बाहर निकलने की सलाह दी। हमारे समाज के रीतिरिवाज, कुरीतियाँ तथा बुराई आज इन जैसे लोगों  को आगे नहीं बढने देती। कुछ गाँव का नाम सुनके ही लोगों के दिमाग में विचार आने लगता है की अगर कोई व्यक्ति वहां गया है तो सिर्फ एक ही कार्य के लिए गया होगा। आज हम हमारे आसपास स्कूलों, बड़े बड़े विश्विद्यालयो में इस जनजाति के कितने ही लोगो को शिक्षा प्राप्त करते पाते हैं? इनका विकास तथा उत्थान आज कहाँ है? हमारे समाज में आसपास के लोग ही इन्हें इज्जत की रोटी खाने का अवसर प्रदान नहीं करते और ओझी नजरो से देखते है। जब समाज खुद इन्हें कोई और कार्य करने की इज्जत से इजाज़त नहीं देता तो मजबूरन अपना पेट भरने के लिए इन्हें देह व्यापर जैसे कार्यो में संलग्न होना पड़ता है। यही कोई बाहरी व्यक्ति किसी बेड़िया समुदाय की स्त्री से विवाह कर लेता है तो उनके लिए विवाह की औपचारिता कागजों मात्र में सीमित होकर रह जाती है। क्या समाज इन्हें इज्ज़त की नज़रों से देखता है? क्या उस लड़के के घरवाले उसको स्वीकार करते हैं? क्या समाज के लिए उस लडके का नजरिया वही रहता है? ऐसे ही कई सवाल इस जाती की स्त्रियों की अस्मिता पर बार बार प्रहार करते हैं|

 

बेड़िया जनजाति के उत्थान और विकास के लिए अभ्युदया आश्रम नामक स्कूल का निर्माण किया गया। इस स्कूल को मुरेना (मध्य प्रदेश)  में 1992  में रामसनेही द्वारा बनवाया गया था। रामसनेही भी चम्पा वेन की तरह इस जनजाति के स्त्रियों के वेश्यावृत्ति जैसे कार्यों के खिलाफ थी। तथा उनके उज्जवल भविष्य की कल्पना करते हुए उन्होंने यह स्कूल बनवाया था। यह आश्रम ‘स्टेट ऑफ़ वीमेन एंड चाइल्ड’ द्वारा फंडेड है। इसनें लगभग 1000 बेड़िया जनजाति के विद्यार्थियों को एक नयी दिशा प्रदान की। यह आश्रम इस जनजाति के लोगों के विकास के लिए एक अच्छा प्रयास है, परन्तु इस समाज का एक छोटा सा तबका ही यहाँ तक पहुंच पाता है तथा इन लाभों को प्राप्त करने में सफल हो पाता है। बुंदेलखंड जैसा प्रान्त जहाँ लोगों के पास दो वक्त की रोटी मुश्किल से मिलती है वहां इस जनजाति के लोगों की हालत समझने लायक है। आधे से अधिक लोगों को इस बात की जानकारी तक नहीं होगी की उनके लिए अभ्युदया आश्रम जैसी भी कोई जगह है। यहाँ तो स्त्रियों को पैदा होते ही इस बात के लिए तैयार कर दिया जाता है की उन्हें आगे जाके क्या कार्य करने है जो की उनकी आय का एक जरिया होगा|

 

सरकार द्वारा इन कार्यों को रोकने के लिए कई तरह के प्रबंध किया गए व विशेष अधिकारीयों की नियुक्ति भी की गयी परन्तु वो सब केवल कागजों तक ही सीमित रहा। जहाँ प्रशासन व सरकार गरीब व असहाय परिवारकी लडकियों के उत्थान के लिए तरह तरह के कानून बनाती है उनके विवाह के लिए बड़े बड़े आयोजन करती है तो ऐसे में एक कोशिश बेड़िया समुदाय की लडकियों के लिए भी होनी चाहिए ताकि उन्हें इस धंधे से सही मायने में छुटकारा मिल सके।महिलाओं के विरुध अपराध चाहे शारीरिक हो या मानसिक पुरे विश्व में आम बात है। AMNESTY की एक रिपोर्ट के अनुसार हर 15 सेकंड में एक महिला जुल्म और सितम का शिकार होती है और इसी तरह हर साल करीब 7 लाख महिलाओं को बलात्कार जैसे अपराधों की उपजी पीड़ा का सामना करना पड़ता है। राज्य सरकार के साथ स्वयं सेवी संस्थाएं और सरकार में बैठे जन प्रितिनिधि एक नयी पहल के साथ इनकी जिन्दगी में कुछ बदलाव ला सकते हैं। 

 

सन्दर्भ ग्रन्थ 

1.    बेड़िया जनजाति, पुरुष बेटियों से कराते हैं जिस्मफरोशी, 
2.    तस्वीरों में देखिए, यहां लगती हैं क्वांरी लड़कियों की बोलियां. 
3.    बेड़िया समुदाय: जाति, यौनिकता और राष्ट्र–राज्य के पीड़ित, 
4.    बेडिया समाज का सच है राई नृत्य, 

Author & Courtesy: ANJANA RAJPOOT, JNU Delhi