(Article) आंखें थक गईं निहार - निहार कोऊ न आव
मित्रो एक गरीब ने एक सपना देखा है की अपने जैसे कई गरीब बदहाल और बेबस लोगो को जिनको अपने परिवार के होते हुए भी एक समय का भी भोजन नहीं मिल पाता है और वो ही लोग अपना सब कुछ अपने परिवार की लीये ही लूटा चुके है ऐसे ही लोगो का करवा बनाने की मुहीम में शामिल है मेरा ये अपना घर जिसका सपना हमने खुली आखो से सिर्फ आपके ही बदोलत देखा है, आप मेरा साथ देगे ना ! हमारा जीवन एक परवास है और अगर ये सार्थक हुआ तो हमारे जाने के बाद लाखो आखे मुबारक होकर आपको, मुझको एक बार फिर अपना घर में आने की दुआए देगी आइये इस क्क्यल को हकीकत का अमली जामा पहनाये....
आंखें थक गईं निहार - निहार कोऊ न आव
आशीष सागर, प्रवास ( बुंदेलखंड )
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