(Article) कर्ज - पलायन से सूखे बुन्देलखण्ड में दारू की बयार

कर्ज - पलायन से सूखे बुन्देलखण्ड में दारू की बयार

वर्षवार बुन्देलखण्ड में गुजरे हुए साल दर साल
वर्ष : 1887 1838 1868 1877 1896 1897 1906 1907 1978 1980 1990 1993 2002 2004 2005 2006 2009

पिछले पांच साल से सूखे से जूझ रहे किसानों को इस साल भी खरीफ की फसल ने मायूस किया। आषाढ़ में बारिष न होने से किसान ज्वार, बाजरा, मूंग, उर्द, अरहर आदि की बुआई नहीं कर पाये। पहली बार इसके बाद जिन किसानों ने अपने खेतांे में बुआई कर दी उनका बाद में बारिष न होने से बीज भी चला गया। नतीजे में किसानों के सामने रबी की जुताई, बुआई, सिंचाई और खाद खरीदने के लिये मुसीबत खड़ी हो गयी। मजबूर होकर उन्हे सहकारी समितियों और व्यवसायिक बैंकों के मकड़ जाल में उलझकर कर्ज लेना पड़ा। तहसीलों से खसरा-खतौनी की नकल, 12 साल रिपोर्ट, शपथ पत्र सहित अन्य औपचारिकताऐं पूरी करने के बाद बैंकों ने बमुष्किल उनकी पत्रावलियां कर्ज के बोझ को लादने के लिए स्वीकृत की। इस बीच तमाम किसानों ने बैंकांे के आला अफसरों पर रिष्वत खोरी के आरोप भी लगाये। इस समय किसान क्रेडिट कार्ड के जरिए मंडल के 56 हजार 65 किसान कर्जदार हो चुके हैं। इन्होेने बीस हजार से 2 लाख रूपये तक के कर्ज लिए हैं। इनमें सर्वाधिक कर्ज 22 हजार 275 किसान जनपद बांदा के हैं। हमीरपुर जिले में 15324, महोबा में 10943, और चित्रकूट जिले में 7123 किसान कर्जदार बने। क्रेडिट कार्ड के अलावा सहकारी समितियों और व्यवसायिक बैंकों से फसली ऋण लेने वालांे की भी कमी नहीं है।

चित्रकूट धाम मण्डल मंे ही कर्ज की यह रकम एक अरब पच्चीस करोड़ सैतालिस लाख है। फसली ऋण में महोबा के किसान सर्वाधिक कर्जदार हैं। यहां 50 करोड़ 81 लाख रूपये बदहाल किसानों के ऊपर कर्ज के रूप में दर्ज है। हमीरपुर में 36 करोड़ 10 लाख, बांदा में 28 करोड़ 56 लाख 10 हजार और चित्रकूट में 9 करोड़ 99 लाख 90 हजार रूपये गरीब किसानों ने फसली ऋण के फलस्वरूप कर्ज ले डाला है।

बुन्देलखण्ड में रोजी रोटी की तलाष में परदेष पलायन करने वालांे की तदात पिछले पांच वर्षों में लगातार इजाफा करती चली आ रही है। शहर मुख्यालय से गुजरने वाली तुलसी एक्सप्रेस, महाकौषल एक्सप्रेस और सम्पर्क क्रान्ति को कभी भी मजदूर एक्सप्रेस के रूप मंे पलायन करती बदहाल जनसंख्या, गरीब परिवार के साथ देखा जा सकता है। खेत काटने के दिनों में भी घर द्वार छोड़कर बाहर चले गये लोगों को गांवों से महानगरों की ओर पलायन करते भुखमरी से आजिज किसानों की बानगी के रूप में पल्र्स पोलियो प्रतिरक्षण अभियान की रिपोर्ट ने खुलासा किया है। मनरेगा जैसी योजनाओं ने थोड़ी बहुत राहत भले ही सरकारी आंकड़ों के मुताबिक किसानों की दी हैं। बांदा जनपद मंे पलायन की पोल पोलियो ड्राप पिलाने वाली टीमें जो गांव-गांव, घर-घर दस्तक देती हंै ने की है। ताजा संरक्षण में यह बात स्पष्ट हुयी है कि पिछले महीनों में फसल कटाई और गर्मी के भीषण मौसम में भी हजारों परिवार घर छोड़कर शहर जा चुके हैं। बीते मई माह में 31 हजार 319 परिवार घर से बाहर हुये हैं। जबकि फरवरी माह में हुए सर्वेक्षण के अनुसार 18 हजार 875 पलायन करने वालों की संख्या थी। इन तीन महीनों में 24 हजार 44 परिवार बाहर कूंच कर चुके हैं। इनके अलावा 2499 मकानों में लटकते हुए ताले पल्स पोलिया अभियान को पंगु बनाने में अहम भूमिका के साथ आंगे आये हैं। नरैनी में 3600, बबेरू मंे 3007, जसपुरा में 1405, महुआ में 2135, जौरही में 2273, बिसण्डा 2708, कमासिन में 2078, तिन्दवारी में 1781, और शहर बांदा मंे 1799, कस्बा अतर्रा में 533 घरों की दरवाजे तालों की पैबन्द में गिरफ्त हैं।

गौरतलब है कि पांच सालों से सूखा क्या पड़ा जनपद बंादा में पियक्कड़ों की भरमार हो गयी। आमदनी भले ही कम हो लेकिन दारू पीने वालों के गले तर-बतर हैं। शराब की बिक्री के आंकड़ों पर नजर डालें तो हालात यही बयान करते हैं कि इस वित्तीय वर्ष मंे 15 लाख 67 हजार लीटर देषी ठर्रा बदहाल किसानों के गले को गीला कर चुका है। 9 लाख से ज्यादा विदेषी और बियर की बोतलें शहर में खपी हैं। सूखा और दैवीय आपदाओं से जनपद बंादा में आमदनी के ग्राफ में घटते हुए आंकड़े दारू पीने वालों के विपरीत हैं। 2005-06 में 12 लाख 48 हजार 472 लीटर देषी शराब पी गयी थी। साल दर साल इसकी खपत में बढ़ोत्तरी हुयी है। वर्ष 2009 में 15 लाख 67 हजार 112 लीटर शराब पी गयी है। 3 लाख 19 हजार 640 लीटर शराब ज्यादा बिकी है। 2005-06 में इसकी बिक्री 2 लाख 19 हजार 464 बोतल हुयी थी। अब की वित्तीय वर्ष में 5 लाख 11 हजार 30 बोतल गटकी गयी हैं। शहरी क्षेत्र में 2005-06 मंे 1 लाख 84 हजार 670 बियर की बोतलें बिकी थीं। इस वर्ष यह ग्राफ बढ़कर 3 लाख 89 हजार 900 बोतल पहंुच गया है। आबकारी विभाग एवं राजस्व के रूप में देषी और विदेषी शराब के कारोबार से इस वर्ष सर्वाधिक 33 करोड़ 67 लाख का राजस्व हासिल हुआ है। 2009 में 23 करोड़ 83 लाख, 2008 में 18 करोड़ 8 लाख राजस्व प्राप्त हुआ था। जनपद बंादा में 121 देषी, विदेषी 17 और बियर की 13 दुकानेें, एक माॅडल शाॅप है।

सरकारी योजनायें, नीतियां एवं गरीबी से जूझ रहे किसानांे के लिये आने वाली तमाम घोषणाएं भले ही बंजर बुन्देलखण्ड को खुषहाल बनाने की कवायद करने में जुटी हों लेकिन बिन पानी बुन्देलखण्ड में खुदकुषी के नाम पर सियासत और बैंकों के मकड़ जाल में फसंता हुआ किसान अगर मजबूरियों बस या बदहाली से डूबकर पेट की भूख को को शान्त करने के लिये सिरफिरे से हालात में दारू की बोतल से गला तर कर रहा हो तो हैरत की बात क्या है ?

आषीष सागर, प्रवास, बुन्देलखण्ड
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