(ARTICLE) जाड़ा बहुत लगता है, ओढ़ने के लिए रजाई नहीं है

यह आपकी भावनाओं के उद्दीपन के लिए किसी कहानीकार द्वारा लिखा गया कोई वाक्य नहीं है. यह पिंटू का इकबालिया बयान है और बुंदेलखण्ड की भयावह हकीकत भी. जब पिंटू से यह बातचीत हो रही थी उसी समय मायावती अपने जन्मदिन पर भारी-भरकम केक काट रही थीं. भरे पेट उन्होंने एक भारी-भरकम ऐलान भी कर दिया था कि बुंदेलखण्ड को एक अलग राज्य बनाया जाएगा लेकिन पिंटू को इन बातों से मतलब होना भी नहीं चाहिए, और है भी नहीं. उसे नहीं पता कि दिल्ली में कोई सरकार होती है जो कुछ योजनाएं वगैरह भी बनाती रहती है. उसे तो बस इतना ही पता है भैया दिल्ली गया है पैसा भेजेगा तो खाने का कुछ इंतजाम हो जाएगा.

उरई से राठ की तरफ निकलते ही भूखे-सूखे बुंदेलखण्ड की भयावह तस्वीर सामने आ जाती है. भूख, भुखमरी, खुदकुशी और पलायन यही यहां का यथार्थ है. महोबा स्टेशन पर जाईए और पता करिए तो आपको पता चलेगा कि पिछले महीने दूसरे दर्जे के डेढ़ लाख टिकट बिके हैं और वे सारे दिल्ली के हैं. यही हाल झांसी और उरई का है. अंदाजन हर महीने एक लाख किसान शहरों की ओर पलायन कर रहे हैं.

राठ से आगे बढ़ने पर जहां पिंटू मिला था उसी मोहाना गांव में उपेन्द्र मिला. आज वह स्कूल नहीं गया था इसलिए खाने को कुछ नहीं मिला. उसने बताया “सुबह से सिर्फ दो बिलावा (तिल के लड्डू) खाने को मिला है. स्कूल में आज छुट्टी है नहीं तो आधी रोटी मिल जाती. वहां कभी-कभी चावल और सब्जी भी मिलती है.” यह पूछने पर कि क्या उसका पेट भरता है वह इंकार में सिर हिला देता है. गांव के ज्यादातर घरों में स्थाई रूप से ताला लग गया है. जिगनी गांव की आबादी वैसे तो पांच हजार है लेकिन इस गांव में अब केवल बारह सौ लोग ही बचे हैं. लगातार लोग पलायन कर रहे हैं क्योंकि इंद्रदेव की नाराजगी और ठेकेदारों की वसूली दोनों ही उन्हें इसके लिए मजबूर कर रही है.

शाम होते ही वह भयभीत होने लगता है, क्योंकि ठंड से बचने के लिए उसके पास न ऊनी कपड़े हैं और न ही रजाई. जाड़े से निपटने के लिए उसने अरहर के डंठियों और भूसी पर बोरा बिछाकर बिस्तर तैयार कर लिया है.ऊपर से पालिथीन ओढ़ लेता है. जाड़ा कम लगे इसलिए उसने पोलीथीन में कपड़े ठूस रखे हैं. फिर भी बात बनती नहीं. पिंटू बताता है” जाड़ा बहुत लगता है लेकिन ओढ़ने के लिए रजाई नहीं है.”

कर्जों की वसूली के नाम पर खेत के खेत बंधक बनाए जा रहे हैं. सिकरी व्यास गांव में पूरे गांव की जमीन गिरवी है. रंजीत सिंह परिहार इसी गांव के निवासी हैं और 200 बीघे के काश्तकार हैं. दो सौ बीघे का काश्तकार यहां बड़ा जमींदार माना जाता है लेकिन उनकी हालत यह है कि कोई आ जाए तो चाय का जुगाड़ करना पड़ता है. दो सौ बीघे काश्तकार हैं और बड़े भाई नासिक में 2600 रूपये महीने पर मजदूरी करते हैं. भतीजा वाटर टैंकर का ड्राईवर है.

टिमरी गांव के शिवेन्द्र यादव ने कहा कि सब भगवान भरोसे है. पचास बीघा खेत है. पर फसल एक बीघे में भी नहीं होती. खेतों पर नजर डालें तो कहीं-कहीं पीले पड़ चुकी धान की फसलें नजर आती हैं जो महीना बीतने के साथ ही दम तोड़ देंगी. आखिर ऐसा क्या हो गया है बुंदेलखण्ड भूखे-सूखे का शिकार होता जा रहा है?

यहां पानी नहीं है
गरीबी अचानक नहीं आती. आने के पहले वह पृष्ठभूमि तैयार करती है. यहां भी ऐसा ही हुआ है. वर्षों से धीरे-धीरे पानी ने यहां का साथ छोड़ दिया है और पिछले चार साल से तो अकाल ने स्थाई डेरा बसा लिया है. केवल आदमी के पेट ही रसातल में नहीं धंसे हैं धरती का पेट भी रसातल को जा पहुंचा है. पानी आदमी की पहुंच से बाहर हो गया है. बेतवा भी आंसू की मानिंद सिसकते हुए बह रही है. लेकिन सरकार मानती है कि यहां बाढ़ आ सकती है. इसलिए बाढ़ पूर्वानुमान मुश्तैदी से काम कर रहा है. उसके दफ्तर में आधा दर्जन कर्मचारी हैं. प्रदेश सरकार का एक महकमा लघु सिचाईं विभाग अब बोरिंग करने नहीं होने देगा क्योंकि यह पैसे की बर्बादी होगी. आखिर कहां तक बोरिंग करें? पानी तो तलहटी में जा बैठा है.

सर्दियों का मौसम है और भूखे पेट सर्दी कुछ ज्यादा ही लगती है. पिंटू जाड़े को इन्ज्वाय करने की योजनाओं पर काम नहीं करता. वह तो शाम होते ही भयभीत होने लगता है, क्योंकि उसके पास न ऊनी कपड़े हैं और न ही रजाई. फिलहाल जाड़े से निपटने के लिए उसने जो इंतजाम किया है उससे बात बनती नहीं. अरहर के डंठियों और भूसी पर बोरा बिछाकर ऊपर से पालिथीन ओढ़ लेता है. जाड़ा कम लगे इसलिए उसने पोलीथीन में कपड़े ठूस रखे हैं. पिंटू बताता है” जाड़ा बहुत लगता है लेकिन ओढ़ने के लिए रजाई नहीं है.” विकास की हमारी बौद्धिक बहस के बीच फिलहाल पिंटू इस जाड़े में ठिठुरने को मजबूर है.

अंबरीश कुमार, बुंदेलखण्ड

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