Ashish Sagar Dixit's blog

(Article) बुंदेलखंड में राहुल गाँधी - आशीष सागर

 

कांग्रेस के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष / पार्टी के युवा सम्राट राहुल गाँधी एक बार फिर बुंदेलखंड के महोबा आ रहे है ! प्रदेश की कांग्रेस कैबनेट, साल भर से लापता स्थानीय विधायक विवेक सिंह सदर बाँदा,राष्ट्रीय प्रवक्ता रीता बहुगुणा, दलजीत सिंह- तिंदवारी विधायक सहित अन्य नेता गाँधीवादी प्रवचन के साथ चित्रकूट मंडल में जम चुके है ! जिला महोबा में पवा चौराहे से लाड़पुर तक राहुल गाँधी पदयात्रा करने जा रहे है ! पदयात्रा की वजह से हलके के नेता अंजान से है उनका कहना है कि ये इलाका छतरपुर की सीमा से लगा है ! यहाँ खेत बोये नही गए है यही कारण है राहुल की दिलचस्पी बाँदा की बनिस्बत महोबा है ! सदर विधायक बाँदा के विवेक सिंह तीन साल से गुमशुदा रहने के बाद अब राहुल गाँधी की अगुआई में मीडिया परेड के साथ मुस्तैद है ! उन्हें जीएसटी और बुंदेलखंड का सूखा सालने लगा है ! वे कहते है यहाँ बोरिंग,बिजली कमी और किसान आत्महत्या का दौर है ! मगर जनाब आज तक सड़क में क्यों नही आये ये अदद सवाल है ? तब जब इनकी विधायक निधि बीस से तीस % में एडवांस बेच दी जाती है !...आजकल विवेक सिंह की युवा मंडली विधायक दलजीत सिंह के साथ है क्योकि शहद विवेक सिंह में चूसा जा चुका है ! ...डूबती नांव में कौन सवार होगा ? चित्रकूट मंडल का मौसम ने ठण्ड की दस्तक बढा दी है ऐसे में राहुल का ये दौरा सियासी ताप बढ़ाएगा !

राहुल गाँधी से बुंदेलखंड के बेहाल किसानो यक्ष प्रश्न है कि बाँदा में बुंदेलखंड पैकेज से बनी चौधरी चरण सिंह रसिन बांध परियोजना ( कुल लागत 7635.80 लाख रूपये ) में किसान को आज तक पानी क्यों नही मिला ? बुंदेलखंड को रेगिस्तान बनाने वाली केन - बेतवा नदी गठजोड़ का आपने विपक्ष में रहकर डेढ़ साल से विरोध क्यों नही किया तब जब आपके पर्यावरण मंत्री जयराम रमेश ने इस पर एनओसी नही दिया था ? बुंदेलखंड पैकेज से बने डैम,कुँओं में पानी क्यों नही है ? पैकेज से वर्ष 2010 में बकरी पालन योजना साढ़े चार करोड़ में आई 11,890 बकरी कहाँ लापता हो गई है जो आजीवका के लिए थी ? साथ ही 31 मार्च 2015 को समाप्त बुन्देलखंड पैकेज का आवंटित हुआ बुंदेलखंड जल-प्रबंधन का 2940 करोड़ रुपया,जल स्रोत के लिए 1762 करोड़,कृषि के लिए 2050 करोड़,वन - पर्यावरण के लिए 314 करोड़ और पशुपालन - डेयरी के लिए आया 200 करोड़ रुपया बुंदेलखंड की तस्वीर क्यों नही बदल सका ?

' चिंगारी में सिकी '- घास की रोटी


' चिंगारी में सिकी '- घास की रोटी !


'' एक वो है जो रोटी बेलता है,
एक वो है जो रोटी सेंकता है !
एक वो है जो न बेलता है,न सेंकता है,सिर्फ रोटी से खेलता है !
मै पूछता हूँ वो कौन है ? योगेन्द्र यादव और संसद मौन है ! -

नरैनी / बाँदा 29 दिसंबर - बुंदेलखंड में इन दिनों चर्चित घास की रोटी अहम मुद्दा है.मीडिया से लेकर विधानसभा और आम लोगो के बीच नाचती ये घास की रोटी ने केंद्र सरकार और सूबे की समाजवादी सरकार के साथ स्थानीय आला कमान की नींद भी हराम कर रखी है ! इस घास की रोटी का ताना-बाना बुंदेलखंड की वीरांगना धरती झाँसी में गत 27 अक्टूबर को रचा गया था.आमआदमी पार्टी के पूर्व नेता और स्वराज्य के संयोजक योगेन्द्र यादव एवं उरई(जालौन) की संस्था परमार्थ के संजय सिंह के मध्य हुए सूखे के सर्वे आंकलन की परती जमीन में ! इस सर्वे के बाद 25 नवम्बर को दिल्ली से प्रेसवार्ता और सोशल मीडिया के माध्यम से योगेन्द्र यादव और प्रशांत भूषण ने विज्ञप्ति ज़ारी करते हुए बुंदेलखंड में अकाल की दस्तक के साथ सूखे की विषम स्थति को रखते हुए ललितपुर,झाँसी(तालबेहट क्षेत्र),उरई की हरदोई ग्राम पंचायत में इस सर्वे के आंकड़े परोसे यह अलग बात है कि इस सर्वे में उत्तर प्रदेश के बुंदेलखंड के सात जिलों में सर्वे की बाते सार्वजनिक रूप में कही गई है.कमोवेश संवाददाता इस सर्वे की बुनयादी बैठक में झाँसी में मौजूद था इसलिए यह दावे से यह कह सकता है कि सर्वे चित्रकूट मंडल के चार जिलों में हुआ ही नही था !

सर्वे के आंकड़े आने के बाद नेशनल और स्थानीय मीडिया में आये दिन फिकारा के साथ घास के निवाले और घास की रोटी को परोसा जा रहा है ! इस घास की रोटी कैम्पेन में कौन किसान ये रोटियां खा रहे है यह आज भी रहस्य ही है !

टीकमगढ़,तालबेहट के बाद अब यह घास की रोटी 19 दिसंबर को बाँदा के नरैनी तहसील के नौगवां ग्राम पंचायत (सुलखान का पुरवा) और घसराउट में भी खिला दी गई है!
उल्लेखनीय यह है कि अबकी बार यह घास की रोटी एनजीओ कंसलटेंट एवं सुप्रीम कोर्ट के पूर्व राष्ट्रीय सलाहकार सज्जाद हसन,हर्ष मंदर ने खाई है ! इस खबर से बिफरे अपर जिलाधिकारी बाँदा 24 दिसंबर इस गाँव पहुंचे जहाँ मोटे अनाज और छद्म घास का सच देखकर तमतमा गए ! उनके अपशब्दों पर इलेक्ट्रानिक मीडिया खाशकर ईटीवी के आनंद तिवारी ने सबसे पहले ये ट्रायल चलाया ! देखादेखी सारे और आईडी माईक हो -हल्ला मचाने लगे ! उधर नौगवां ग्राम पंचायत (सुलखान का पुरवा) में इस बार घास की रोटी को 'चिंगारी में सेंकने ' का काम इस इलाके में एक दशक से एक्शन एड,एड इट एक्शन,टाटा ट्रस्ट के फंड से काम कर रही संस्था विद्या धाम समिति (पूर्व नाम परागीलाल विद्या धाम समिति,अतर्रा,बाँदा) ने किया है !नौगवां ग्राम पंचायत में मुझे घुसते ही संता पटेल,रमापति हैण्डपम्प में गेंहूँ धुलते मिली ! तस्वीर लेने पर बोली ' भैया फोटू खीचत हा,कुछ मिलय का हवे ' ! वही गहबरा मजरे के बाबु नरेश सिंह और नौगवां के जगन्नाथ सिंह ने घास की रोटी का सच पूछने पर कहा कि साहेब इहाँ कोऊ घास नाही खात है,कहे तफरी लेत हो ! उनसे सवाल हुआ कि इसके पीछे क्या है ? तब बाबु नरेश सिंह और जगन्नाथ बेबाकी से कहते है कि ' राजाभैया यादव जादूगर है ! उन्होंने यहाँ न लिखने काबिल शब्द बोलते हुए कहा ( मै माफ़ी के साथ लिख रहा हूँ) कि वा दस ठा राण मेहरिया लेय फिरत हवे ! ' चक्कर म न पडे ! पगडण्डी में चलते हुए रस्ते में रजनू नाई और रज्जू शेख पुत्र शोकत शेख गेंहू पिसाने ले जाते हुए मिले उनका कहना था कि 'घास खाने के दिन अभी नही आये है ! हाँ गाँव में पशु चारे की किल्लत है,खेत में फसलें चौपट है मगर घास जानवर खाते है इंसान नही ! इतना सुनते ही कदम आगे बढे !

बतलाते चले कि सुलखान का पुरवा अल्पसंख्यक बस्ती के करीब बीस घरों का टोला है ! दोआबा की पट्टी में बसा यह मजरा माउं सिंह का पुरवा,करौला पुरवा,छिन्गरिया पुरवा (पटेल बिरादरी), सुखारी का पुरवा से घिरा है. यहाँ से 5 किलोमीटर की दुरी पर चित्रकूट मंडल का प्रसिद्द गुढ़ाकला गाँव है जो निकले हुए हनुमान जी के मंदिर के चमत्कार के लिए चर्चित है ! मंगलवार को यहाँ दस से पंद्रह कुंटल के घी-वनस्पति के भंडारे-लंगर और आम दिनों में मेले सी रवायत सजी रहती है ! यानी कोई गरीब या संत-फ़कीर भूखा नही रह सकता है ! आसपास के गांवों में पेयजल के साधन सीमित है बाघे-रंज नदी के किनारे यह क्षेत्र बसा है.सुलखान के पुरवा में अमूनन हर घर में हैण्डपम्प,तीन से दो मुर्रा भैस और प्रत्येक परिवार में बकरी पशु धन के रूप में दिखलाई देती है ! कुछ घरो में शौचालय भी है खाशकर उन घर में जहाँ हर्षमंदर और सज्जाद हसन ने 'चिंगारी में सिकी घास की रोटी' खाई है !

''अन्नदाता की आखत ''- एक शाम किसान के नाम! - Charity Show for Farmers


''अन्नदाता की आखत ''- एक शाम किसान के नाम !


सम्मानित प्रबुद्ध जन / साथियों,
बुंदेलखंड में उन्नीसवें सूखे वर्ष 1887 से 2015 से टूटे कुछ मृतक आश्रित किसान परिवार,अनाथ बच्चो के लिए हम एक चैरटी लोककला शो एवं नृत्य महोत्सव करने जा रहे है। इसमे आप के माध्यम से की गई आर्थिक मदद उन किसान परिवारों तक सीधे तौर पर पहुचाने का कार्य किया जायेगा। इस पहल से अगर हम सब बाँदा के कुछ गरीब और जरूरतमंद किसान परिवार,उनकी बेटियों की मदद आपके सहयोग से कर पाए तो ये एक महायज्ञ जैसा ही फलीभूत होगा। आशा है आप हमारे सहभागी बनकर इस अभियान का हिस्सा बनेंगे।

आत्महत्या को क्यों मजबूर है किसान ?

मेरी राय में इसके उत्तर में सोचना चाहिए कि आत्महत्यायें विदर्भ और बुन्देलखण्ड जैसे इलाके में क्यों हुई ? यह भी सोचना चाहिए कि गुजरात और राजस्थान जैसे देश के सबसे कम पानी और अनावृष्टि वाले राज्यों में किसानांे ने कभी आत्महत्या क्यों नहीं की ?

मेरा अनुभव है कि किसानों द्वारा व्यापक आत्महत्यायें वहीं हुईं, जहां जंगल कटे, खनन की अति हुई, चारा नष्ट हुआ और मवेशी घटे। आत्महत्यायें पूरे बुंदेलखण्ड में नहीं हुई। वह सिर्फ खनन और वन माफिया का शिकार बने बांदा, महोबा और चित्रकूट मे ही हुई।

जहां भी पर्याप्त मवेशी और पर्याप्त चारा मौजूद हो, वहां किसानों ने व्यापक आत्महत्यायें के उदाहरण कहीं हो, तो बताइये ? जहां किसान, पहले अपनी घरेलु जरूरत की हर संभव फसल बोने के बाद ही कमर्शियल खेती की सोचता हो, वहां कोई आत्महत्या हुई हो, तो बताइये ?किसान आत्महत्या और सर्वाधिक जल संकट वाला क्षेत्र बुंदेलखंड में गत साल 2005 के बाद से किसानों की आत्महत्या में इजाफा हुआ। कारण परती होती जमीन,जल संकट और लगातार सूखा।आज किसी किसान के पास अपना देशी बीज नही बचा है। उन्हें नपुंसक बीजो के सहारे खेती करने के लिए सरकारी मिशनरी ने मजबूर कर दिया। आंकड़ो पर गौर करे तो यहाँ किसानो के अप्रैल वर्ष 2001 से अप्रैल 2003 तक 1275 किसान,2003 से अप्रैल 2006 तक 1040,2007 से 2010 तक 1351 पोस्टमार्टम हुए जिन्हें खुदकुशी के संदेह में लिया गया। 2011 में 521 आत्महत्याओ की पुष्टि की गई। वही वर्ष 2012 में 300 किसान मरे। नेशनल क्राइम रिकार्ड ब्यूरों के अनुसार वर्ष 2009 में यहां 568, 2010 में 583, 2011 में 519, 2012 में 745, 2013 में 750 और दिसंबर 2014 तक 58 किसान आत्महत्या किए हैं। मौत की फसल अपनी रफ्तार से पक रही है। बीते माह मार्च के बाद से अक्टूबर 2015 तक बुंदेलखंड के सात जिलों में करीब आधा सैकड़ा किसान मरे है सूखती खेती से दुखी होकर! हो सकता है जब ये परचा आप पढ़ रहे हो तब भी किसी एक और किसान के गले में फांसी का फंदा झूल रहा होगा।

(Article) सूखे बुंदेलखंड में 62 लाख से अधिक किसानो का पलायन मुद्दा नही !


सूखे बुंदेलखंड में 62 लाख से अधिक किसानो का पलायन मुद्दा नही !
 (नोट: यह आंकड़ा वर्ष 2014 - 15 का है)


आशीष सागर, किसान एवं पर्यावरण कार्यकर्ता/ संवाददाता बुंदेलखंड.इन, बाँदा  

बुंदेलखंड: उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश में विभाजित बुंदेलखंड इलाका पिछले कई वर्षो से प्राकृति आपदाओं का दंश झेल रहा है. भुखमरी और सूखे की त्रासदी से अब तक 62 लाख से अधिक किसान 'वीरों की धरती' से पलायन कर चुके हैं. वर्ष 2005 से माह नवम्बर 2015 तक चार हजार किसान कर्जखोरी में आत्महत्या किये है जिसमे अधिकतर फांसी के केस है.कुछ एक ट्रेन से कटकर और आत्मदाह में मरे. यहां के किसानों को उम्मीद थी कि अबकी बार के लोकसभा चुनाव में राजनीतिक दल सूखा और पलायन को अपना मुद्दा बनाएंगे, लेकिन ऐसा हुआ नहीं और एक बार फिर यह मुद्दा जातीय बयार में दब सा गया है.

'वीरों की धरती' कहा जाने वाला बुंदेलखंड देश में महाराष्ट्र के विदर्भ जैसी पहचान बना चुका है. बुंदेलखंड का भूभाग उत्तर प्रदेश के बांदा, चित्रकूट, महोबा, उरई-जालौन, झांसी और ललितपुर और मध्य प्रदेश के टीकमगढ़, छतरपुर, सागर, दतिया, पन्ना और दमोह जिलों में विभाजित है.

यह इलाका पिछले कई साल से दैवीय और सूखा जैसी आपदाओं का दंश झेल रहा है और किसान 'कर्ज' और 'मर्ज' के मकड़जाल में जकड़ा है. तकरीबन सभी राजनीतिक दल किसानों के लिए झूठी हमदर्दी जताते रहे, लेकिन यहां से पलायन कर रहे किसानों के मुद्दे को चुनावी मुद्दा नहीं बनाया गया. समूचे बुंदेलखंड में स्थानीय मुद्दे गायब हैं और जातीय बयार बह रही है.

जल संरक्षण को आगे आये दुर्गा सेवक


जल संरक्षण को आगे आये दुर्गा सेवक


बुंदेलखंड में भी उच्च न्यायलय के आदेश का असर देखने को मिला.हाई कोर्ट इलाहाबाद ने गंगा -यमुना में मूर्ति विअर्जन को रोक लगा रखी है.जिसको प्रभावी रूप में लागू करने की कवायद में चित्रकूट जनपद में गत वर्ष ही पीओपी की मूर्तियों का विसर्जन मंदाकनी में रोक दिया गया था.जिलाधिकारी नीलम अहलावत ने ये काम बखूबी किया था.बुंदेलखंड के चित्रकूट मंडल मुख्यालय में उच्च न्याययालय के आदेश आने के पूर्व ही ज़िला फतेहपुर में गंगा को सहेजने की अगुआई का समर्थन करते हुए वर्ष 2010 से ये काम हो रहा था लेकिन इसका व्यापक असर 2012 में तब हुआ जब यहाँ केन नदी में प्रथम बार स्थानीय जल प्रहरियों ' भूमि विसर्जन ' या अस्थाई तालाब में प्लास्टर आफ पेरिस की मूर्ति विसर्जित करने का अभियान चलाया था.शहर में ग्यारह मूर्तियाँ भूमि विसर्जित हुई जिसका कुछ सांप्रदायिक ताकतों और इस पर्व की आड़ में अपनी सियासी गोट बिछाने वालों ने विरिध किया.स्थानीय संस्था प्रवास सोसाइटी उच्च न्याययालय इस बात के लिए गई कि केन नदी भी चिल्ला घाट में यमुना में और मंदाकनी नदी राजापुर ( पहाड़ी ) में यमुना नदी में मिलती है जिस कारण मूर्तियाँ बहकर यमुना में ही जाएगी.कोर्ट की सख्ती के बाद इस साल चित्रकूट की तीन सैकड़ा और बाँदा की कुल 250 मूर्तियाँ केन नदी किनारे अस्थाई तालाब में विसर्जित की गई है.अस्थाई तालाब को अगले दिवस नगर पालिका ने साफ कराया जिससे ताजिये भी ठन्डे हो सके. गौरतलब है की मुस्लिम भाई भी इस प्रकृति सम्यक कार्य में आगे आये उन्होंने अपने ताजियें भी ऐसे ही तालाब में प्रवाहित किये है.सभी दुर्गा पंडालों को इस पहल के लिए ' आस्था एवं पर्यावरण मित्र सम्मान ' देकर उत्साह बढ़ाया गया है.केन नदी इस वर्श्ज मूर्ति विसर्जन के बाद होने वाले प्रदूषण से बाख पाई है .जल संकट से झुझ रहे इलाके में ये कार्य प्रेरणास्पद है |

(News) फार्मेसिस्ट बैठते नही दुकानों में, मेडिकल स्टोर और नर्सिंग होम चलते झोपड़पट्टी-मकानों में


फार्मेसिस्ट बैठते नही दुकानों में, मेडिकल स्टोर और नर्सिंग होम चलते झोपड़पट्टी-मकानों में


सूबे के 75 जिलो का हाल हो या बेदम सरकारी स्वास्थ्य से घिरा बुंदेलखंड क्षेत्र सबके सब बिना फार्मेसिस्ट के चल रहे मेडिकल स्टोर,गैर पंजीकृत नर्सिंग होम और झोलाछाप डाक्टरों के आतंक से हलाकान है.

बुंदेलखंड के 6 जिलो में पुराने सरकारी वेबसाइट डाटा के मुताबिक (खाद्य एवं औषधी विभाग उत्तर प्रदेश)1807 पंजीकृत मेडिकल स्टोर है जबकि ये आंकड़ा करीब 5 साल पहले का है.औषधी विभाग के लिपिक धर्मेन्द्र की माने तो आज बाँदा में ही करीब 450 मेडिकल -रिटेल स्टोर और 250 थोक दवा विक्रेता है जिनके लाइसेंस बने है.वे कहते है कि वेबसाइट का डाटा कई साल से उपडेट नही है और प्रदेश के 75 जिलो में 52 जिलों के आंकड़े ही साईट में अपलोड है.

(News) किसान आत्महत्या पर खबर


किसान आत्महत्या पर खबर


केंद्रीय कृषि मंत्री राधा कृष्ण मोहन ने कहा कि देश में पिछले साल हुई 1400 किसानों की मौत के पीछे प्रेम-प्रसंग और नपुंसकता जैसे कारण रहे हैं। राज्य सभा में एक प्रश्न (पिछले साल किसानों की मौत के पीछे क्या कारण रहे) के लिखित जवाब में उन्होंने कहा, श्नैशनल क्राइम रिकार्डस ब्यूरो के आंकड़ों के मुताबिक किसानों की आत्महत्या के पीछे पारिवारिक कारण, बीमारी, नशा, दहेज, प्रेम-प्रसंग और नपुंसकता जैसे कारण हैं। उन्होंने देश में एक भी मौत को कर्ज से इंकार किया है! नेशनल क्राइम रिकार्ड ब्यूरों के अनुसार वर्ष 2009 में यहां 568ए 2010 में 583ए 2011 में 519ए 2012 में 745ए 2013 में 750 और दिसंबर 2014 तक 58 किसान आत्महत्या किए हैं। वहीं वर्ष 2015 अगुवाई ही किसान आत्महत्या के साथ हुई। ऐसे दोयम दर्जे के केन्द्रीय मंत्री को बुंदेलखंड और विदर्भ के गाँवो में लेकर आना चाहिए किसान संघठन के सभी साथियों को जहाँ किसानो का कफन और उनके अनाथ बच्चे , बेवाये मौजूद है. बानगी के लिए बाँदा के वो अनाथ बालक भी जो आज मुझे एक हफ्ते से इसलिए फोन कर रहे है कि भैया दो हजार रूपये दे दो बहन की स्कूल की ड्रेस ध् किताबे लानी है पंचमुखी उच्तर माध्यमिक,बघेलाबारी में अंतिमा यादव का दाखिला करवाना है छठवीं में मगर कमबख्त मै हूँ कि शर्म से मोबाइल नही उठा पा रहा...आये केन्द्रीय मंत्री इनके , इन जैसे दर्जन भर किसान के घर ले चलता हूँ ! फिलहाल ये केस रिपोर्ट की पेशगी ...

ऐ खुदा ! रुखसाना मरने पर आमादा क्यों है?

तुझे जीना होगा रुखसाना। बांदा के शेखनपुर गांव की रुखसाना खेती में नुकसान के बाद दाने-दाने को मोहताज।

दो पल को इस तस्वीर पर आपकी निगाहें टिकी रह जाएं, तो फिर इस रिपोर्ट के मायने खुद-ब-खुद खुलते चले जाएंगे। रुखसाना अपनी बेटियों के साथ न जाने किन चिंताओं में पड़ी है। बाँदा जिले के नरैनी तहसील के शेखनपुर गाँव की रुखसाना अकेली अपनी दुनिया को सहेजने और संवारने की कोशिशें कर रही हैं। पति इरशाद खां अल्लाह को प्यारे हो गए हैं। और अल्लाह ही जाने रमजान के पाक महीने में इबादत के बाद भी राहत की नेमत घर तक क्यों नहीं बरसी है।

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री साहेब, देखिये न रुखसाना अब इस समाजवादी दुनिया में नहीं रहना चाहती ! भूख-गरीबी और जवान बेटियों के ब्याह की चिंता उसको जीने नहीं दे रही! आलम ये कि रुखसाना के जेहन में ‘पूरे परिवार के साथ खुदकुशी’ जैसे नामुराद खयाल भी आने लगे हैं ! वो खुले आम अब इसे अपने गांव के लोगों के बीच बयां भी कर रही है।

ऐसी खबरें अखबार में छपी तो मेरे कदम गत 22 जुलाई को शेखनपुर की तरफ बढ़ चले। जेहन में एक ही सवाल था-क्या संवेदना और समाज का रिश्ता इतना बिखर चुका है कि एक बेवा अपने परिवार के साथ सिर्फ इसलिए मरना चाहती है कि आज उसका कोई रहबर नहीं है! गाँव से लेकर जिला मुख्यालय तक फैले समाजसेवा के कुनबे, ग्राम की महिला प्रधान और प्रशासनिक जमात में क्या किसी को इस ‘आवाज’ में लिपटा दर्द महसूस नहीं होता? क्या हमारा फर्ज बस इतना कि रुखसाना को खबर बनाकर छोड़ दिया जाये? तमाम तरह की आंतरिक जिरह के बीच उलझा मैं गाँव पहुंचा।

रुखसाना के शौहर इरशाद पत्नी और बूढ़े पिता के भरोसे किसानी छोड़कर गोवा मजदूरी के लिए चले गये। 2 बीघा जमीन में परिवार ने खेती की। इरशाद का सपना एक ही था- ”फसल बेहतर हुई तो अबकी समीम बानो और नसीन बानो का निकाह करूँगा!’ वो सपने गुनता मजदूरी करता रहा और इधर खड़ी फसल पर तेजाब बनकर ओला और पानी बरसा तो सपनों के साथ परिवार की खुशियाँ भी खाक हो गयीं! पूरी खेती में महज 6 मन (करीब 237 किलो) अनाज हुआ!

मुआवजा अभी तक मिला नहीं क्योंकि लेखपाल और पटवारी ने ऐसी रिपोर्ट ही नहीं लगाई! कहते हैं 500 रुपया जब तक इनकी जेब में न डालो, मुआवजे की रिपोर्ट न तो बनती है, न आगे खिसकती है।

रुखसाना ने फसल तबाही की बात दबे गले से इरशाद को बता दी। परदेस में मजदूरी कर रहे किसान को बड़ा झटका लगा, दिल का दौरा पड़ा और सब कुछ खतम ! इरशाद अल्लाह को प्यारा हो गया। पहले से 4 बेटियों और दो पुत्रों से लदी रुखसाना को जिस वक्त ये ख़बर लगी, उसके पेट में इरशाद की आखरी निशानी सांसें लेने लगी थी। एक और जिंदगी अपने अँधेरे आज और कल का इंतजार मानो गर्भ में ही कर रही हो। जब मैंने इस बारे में बात की तो शर्मिंदा होकर अपना पल्लू पेट से लगा लिया!

Subscribe to RSS - Ashish Sagar Dixit's blog