' चिंगारी में सिकी '- घास की रोटी
' चिंगारी में सिकी '- घास की रोटी !
'' एक वो है जो रोटी बेलता है,
एक वो है जो रोटी सेंकता है !
एक वो है जो न बेलता है,न सेंकता है,सिर्फ रोटी से खेलता है !
मै पूछता हूँ वो कौन है ? योगेन्द्र यादव और संसद मौन है ! -
नरैनी / बाँदा 29 दिसंबर - बुंदेलखंड में इन दिनों चर्चित घास की रोटी अहम मुद्दा है.मीडिया से लेकर विधानसभा और आम लोगो के बीच नाचती ये घास की रोटी ने केंद्र सरकार और सूबे की समाजवादी सरकार के साथ स्थानीय आला कमान की नींद भी हराम कर रखी है ! इस घास की रोटी का ताना-बाना बुंदेलखंड की वीरांगना धरती झाँसी में गत 27 अक्टूबर को रचा गया था.आमआदमी पार्टी के पूर्व नेता और स्वराज्य के संयोजक योगेन्द्र यादव एवं उरई(जालौन) की संस्था परमार्थ के संजय सिंह के मध्य हुए सूखे के सर्वे आंकलन की परती जमीन में ! इस सर्वे के बाद 25 नवम्बर को दिल्ली से प्रेसवार्ता और सोशल मीडिया के माध्यम से योगेन्द्र यादव और प्रशांत भूषण ने विज्ञप्ति ज़ारी करते हुए बुंदेलखंड में अकाल की दस्तक के साथ सूखे की विषम स्थति को रखते हुए ललितपुर,झाँसी(तालबेहट क्षेत्र),उरई की हरदोई ग्राम पंचायत में इस सर्वे के आंकड़े परोसे यह अलग बात है कि इस सर्वे में उत्तर प्रदेश के बुंदेलखंड के सात जिलों में सर्वे की बाते सार्वजनिक रूप में कही गई है.कमोवेश संवाददाता इस सर्वे की बुनयादी बैठक में झाँसी में मौजूद था इसलिए यह दावे से यह कह सकता है कि सर्वे चित्रकूट मंडल के चार जिलों में हुआ ही नही था !
सर्वे के आंकड़े आने के बाद नेशनल और स्थानीय मीडिया में आये दिन फिकारा के साथ घास के निवाले और घास की रोटी को परोसा जा रहा है ! इस घास की रोटी कैम्पेन में कौन किसान ये रोटियां खा रहे है यह आज भी रहस्य ही है !
टीकमगढ़,तालबेहट के बाद अब यह घास की रोटी 19 दिसंबर को बाँदा के
नरैनी तहसील के नौगवां ग्राम पंचायत (सुलखान का पुरवा) और घसराउट में भी खिला दी गई
है!
उल्लेखनीय यह है कि अबकी बार यह घास की रोटी एनजीओ कंसलटेंट एवं सुप्रीम कोर्ट के
पूर्व राष्ट्रीय सलाहकार सज्जाद हसन,हर्ष मंदर ने खाई है ! इस खबर से बिफरे अपर
जिलाधिकारी बाँदा 24 दिसंबर इस गाँव पहुंचे जहाँ मोटे अनाज और छद्म घास का सच देखकर
तमतमा गए ! उनके अपशब्दों पर इलेक्ट्रानिक मीडिया खाशकर ईटीवी के आनंद तिवारी ने
सबसे पहले ये ट्रायल चलाया ! देखादेखी सारे और आईडी माईक हो -हल्ला मचाने लगे ! उधर
नौगवां ग्राम पंचायत (सुलखान का पुरवा) में इस बार घास की रोटी को 'चिंगारी में
सेंकने ' का काम इस इलाके में एक दशक से एक्शन एड,एड इट एक्शन,टाटा ट्रस्ट के फंड
से काम कर रही संस्था विद्या धाम समिति (पूर्व नाम परागीलाल विद्या धाम
समिति,अतर्रा,बाँदा) ने किया है !नौगवां ग्राम पंचायत में मुझे घुसते ही संता
पटेल,रमापति हैण्डपम्प में गेंहूँ धुलते मिली ! तस्वीर लेने पर बोली ' भैया फोटू
खीचत हा,कुछ मिलय का हवे ' ! वही गहबरा मजरे के बाबु नरेश सिंह और नौगवां के
जगन्नाथ सिंह ने घास की रोटी का सच पूछने पर कहा कि साहेब इहाँ कोऊ घास नाही खात
है,कहे तफरी लेत हो ! उनसे सवाल हुआ कि इसके पीछे क्या है ? तब बाबु नरेश सिंह और
जगन्नाथ बेबाकी से कहते है कि ' राजाभैया यादव जादूगर है ! उन्होंने यहाँ न लिखने
काबिल शब्द बोलते हुए कहा ( मै माफ़ी के साथ लिख रहा हूँ) कि वा दस ठा राण मेहरिया
लेय फिरत हवे ! ' चक्कर म न पडे ! पगडण्डी में चलते हुए रस्ते में रजनू नाई और रज्जू
शेख पुत्र शोकत शेख गेंहू पिसाने ले जाते हुए मिले उनका कहना था कि 'घास खाने के
दिन अभी नही आये है ! हाँ गाँव में पशु चारे की किल्लत है,खेत में फसलें चौपट है
मगर घास जानवर खाते है इंसान नही ! इतना सुनते ही कदम आगे बढे !
बतलाते चले कि सुलखान का पुरवा अल्पसंख्यक बस्ती के करीब बीस घरों का टोला है ! दोआबा की पट्टी में बसा यह मजरा माउं सिंह का पुरवा,करौला पुरवा,छिन्गरिया पुरवा (पटेल बिरादरी), सुखारी का पुरवा से घिरा है. यहाँ से 5 किलोमीटर की दुरी पर चित्रकूट मंडल का प्रसिद्द गुढ़ाकला गाँव है जो निकले हुए हनुमान जी के मंदिर के चमत्कार के लिए चर्चित है ! मंगलवार को यहाँ दस से पंद्रह कुंटल के घी-वनस्पति के भंडारे-लंगर और आम दिनों में मेले सी रवायत सजी रहती है ! यानी कोई गरीब या संत-फ़कीर भूखा नही रह सकता है ! आसपास के गांवों में पेयजल के साधन सीमित है बाघे-रंज नदी के किनारे यह क्षेत्र बसा है.सुलखान के पुरवा में अमूनन हर घर में हैण्डपम्प,तीन से दो मुर्रा भैस और प्रत्येक परिवार में बकरी पशु धन के रूप में दिखलाई देती है ! कुछ घरो में शौचालय भी है खाशकर उन घर में जहाँ हर्षमंदर और सज्जाद हसन ने 'चिंगारी में सिकी घास की रोटी' खाई है !
उक्त दोनों लोगो और घास की रोटी के मुखिया संस्था संचालक राजभैया यादव की महिला विंग 'चिंगारी' की कार्यकर्ता शकीला ( इनके पास पांच बकरी,तीन भैस,दो जोड़ी बैल,कृषि जमीन आंशिक ) संवादाता की टीम के पहुंचते ही अपनी घास की रोटी,ज़ारी वाले बेर,सूखे महुआ (मैले से) और कैथे की बुकनू थाली में लेकर उपस्थित थी ! शकीला के चार बेटे है जो मौसम के अनुसार काम करते है गाँव में मनारेगा या दिहाड़ी में ! उन्होंने घास की रोटी के बारे में पूछने पर बतलाया कि ' इस रोटी में मकुई,कैथे की पत्ती और पिसान(आटा) मिला है ! वे कहती है हम ने यही बतलाया था सबसे अधिकारी अब चाहे घास समझे या कुछ और ! वे उनके साथ इसी टोले पियरिया मंसूरी ( चार बेटे और 22 नातियों के परिवार के बाद भी अकेले रहने वाली) की माने तो मै पलकी,बथुआ और चौराई खाती हूँ ! जब कभी मूली मिलती है गाँव में ! अब हाथ पैर चलते नही,बेटे साथ नही है इसलिए बना खा लेती हूँ मगर घास नही खाती ! सुलखान के पुरवा में जब हम पियरिया मंसूरी से बाते कर रहे थे तभी बमुश्किल दस मीटर की दूरी पर बैठी मासूम जैनबनिशा ( बेटा) के हाथ में गेंहूँ की बिंदास सिकी रोटी,गुड़ की भेली और देशी गाँव का घी देखकर आँखे चमक गई ! उसके पास जाने का इशारा हुआ था कि बिटिया ने रोटी अपनी फ्राक में छूपाने की नकामयाब कोशिश की ! उससे पूछा तो हवा का किला ढेर हो गया ! जब उसके घर गए तो माँ तवे में ताज़ी मस्त गेंहूँ की रोटी सेंक रही थी और झोपडी में खाद खेत बोने के लिए और दो बोरी में गेंहूँ रखा था !...माँ से बात हुई तो उसने सूखे और गाँव में गरीबी की बाते स्वीकार की लेकिन घास की रोटी खाते है इस बात को सिरे से नकार दिया ! टोले में हर देहरी पर मुर्रा भैस और बकरी इस घास की रोटी की मुंह लजा रही थी और गाँव के छोटे बच्चे माचिस की टिक्की से तास के पत्ते खेलने की पूर्व रिहर्सल करते नजर आये ! सुलखान के पुरवा में प्राथमिक स्कूल नही है मानक के अनुसार एक किलोमीटर में प्राथमिक स्कूल मौजूद है लेकिन बेटियां पढने नही जाती है ये सच है ! उन्हें चुह्ला चौका तक माता - पिता ने सीमित कर रखा है ! ...गाँव से निकलते हुए अपने खेत जोतते किसानों के ट्रैक्टर भी कैमरे में कैद हुए ! खेत में में बैठे नत्थू गर्ग ने जब तक कैमरा नही खुला तब तक जी भरकर इस संस्था संचालक को देहाती शब्दों में नवाजा लेकिन जैसे ही कैमरा चमका उन्होंने सधे लहजे में कहा कि आस -पास के चार मजरों में कोई घास नही का रहा है,अकेले इसी पुरवा में कहे घास खाई जा रही है ! गुढ़ाकला की मिटटी को लजाने वाले अपनी सामाजिक दुकानदारी चमकाने को बुंदेलखंड में घास की रोटी सिकवा रहे है ! माना कि आपकी मंशा भले ही बुन्देली किसानो को सरकार से खाश राहत दिलाने की हो या अन्य प्रोजेक्ट हासिल करने की मगर यह देश के साथ प्रायोजित राजनीति और बदनामी करवाने का खाका मात्र है ! त्रासद है ये सब जब बुंदेलखंड की गरीबी और किसान आत्महत्या के बाद उपजी घाटे की खेती में ख़बरों का बजार तलाशा जाने लगे ! स्थाई विकास के लिए हमारे जल संसाधन सहेजने के बजाय सोशल सेक्टर के अगुआ अब ज़िल्लत में अपनी आजीवका खोज रहे है जो सरकार के समनांतर एक नई मुसीबत खड़ी करने लगी है ! खी हमारी बुह्ख्मारी अंतर्राष्ट्रीय एजेंसियों,फंडरों की मंडी न बन जाए !
By: आशीष सागर, बाँदा