(Interview) बुन्देलखंड एकीकृत पार्टी के संस्थापक : संजय पाण्डेय
पृथक बुन्देलखंड राज्य की मांग को लेकर संघर्ष कर रही बुन्देलखंड एकीकृत पार्टी के संस्थापक और राष्ट्रीय संयोजक संजय पाण्डेय छोटे राज्यों के गठन की मांग को क्षेत्रवाद से प्रेरित नहीं बल्कि विकासवाद से प्रेरित बताते हैं.
प्रस्तुत है बुंदेलखंड.इन के संवाददाता से उनसे हुई बातचीत के अंश...
बुंदेलखंड.इन : आप बुन्देलखंड को अलग राज्य का दर्जा क्यों दिलवाना चाहते है ?
संजय पाण्डेय : दर असल म.प्र. तथा उ.प्र. दोनों राज्यों के बीच बँटे बुन्देलखंड क्षेत्र की भौगोलिक संरचना ऐसी है कि न तो मध्य प्रदेश और न ही उत्तर प्रदेश सरकार इस क्षेत्र का विकास कर पा रहे है । हालाँकि दोनों ही राज्यों ने इस विषम इकाई के लिए "बुन्देलखंड विकास परिषद्" बना रखे है परन्तु वे खानापूर्ति तक सीमित है और परिणाम है कि आज बुन्देलखंड की बदहाली जग जाहिर है । मेरे अनुसार तो पृथक बुन्देलखंड राज्य ही इस बदहाली को दूर करने का एक मात्र उपाय है ।
बुंदेलखंड.इन : पृथक बुन्देलखंड राज्य की मांग कब से उठ रही है ?
संजय पाण्डेय : वैसे तो यह मांग स्वतंत्रता पूर्व से चली आ रही किन्तु सार्थक प्रयास तब किया गया जब फजल अली की अध्यक्षता में गठित "प्रथम राज्य पुनर्गठन आयोग १९५५" के एक सदस्य के.एम्.पणिक्कर ने संस्तुति की थी कि "यदि बुन्देलखंड राज्य का गठन नहीं किया गया तो यह क्षेत्र जल्द ही नष्ट हो जाएगा "किन्तु सरदार बल्लभभाई पटेल जिनके जिम्मे राज्यों का गठन था ,उन्होंने इस संस्तुति को नहीं माना और आज बुन्देलखंड की स्थिति देश के सामने है । इसके बाद तमाम संगठनों ने समय-समय पर इस मांग को बुलंद किया पर सफलता अब तक नहीं मिल सकी ।
बुंदेलखंड.इन : इस मांग को लेकर बुन्देलखंड एकीकृत पार्टी की अब तक क्या भूमिका रही ?
संजय पाण्डेय : पार्टी ने इस आन्दोलन को जनांदोलन में बदलने का प्रयास किया । बुन्देलखंड के लोगो को पृथक राज्य का औचित्य तो बताया ही साथ ही केंद्र तथा राज्य सरकारों पर दबाव बनाने के लिए बिभिन्न धरना -प्रदर्शन ,बंद आदि कार्यक्रम आयोजित होते रहते हैं। इसके अलावा राजनीतिक दबाव बनाने के लिए पार्टी ने लोक सभा चुनाव में भी भाग लिया था ।प्रात निर्माण के लिए बुन्देलखण्ड एकीकृत पार्टी ने उग्र आदोलनों की शुरुआत की है ,इन आदोलनों के पश्चात तेजी से सरकारों का ध्यान बुन्देलखण्ड की बदहाली पर गया . वर्तमान समय में बुन्देलखण्ड में अनेक कार्यक्रम प्रात निर्माण की लड़ाई के लिए चलाये जा रहे है।
बुंदेलखंड.इन : क्या बुन्देलखंड क्षेत्र अलग राज्य बन्ने की संवैधानिक पात्रता रखता है ?
संजय पाण्डेय :जी हाँ ,बुन्देलखंड क्षेत्र की एक भाषा, एक बोली और एक जैसी संस्कृति है जो कि एक राज्य बनने के लिए जरूरी होती है .साथ ही बुन्देलखंड क्षेत्र खनिज संसाधनों से परिपूर्ण है जो आर्थिक ढांचे की जरूरत पूरी करने को काफी है ।
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बुंदेलखंड.इन : इसका मतलब बुन्देलखंड क्षेत्र में इतने संसाधन है जो आत्म निर्भरता ला सके?
संजय पाण्डेय :बुन्देलखंड क्षेत्र में बालू ,संगमरमर से लेकर सोना, यूरेनियम और हीरा तक के भण्डार हैं. मानव संसाधन तथा पशु संसाधन ,कृषि संसाधन तथा वन संसाधन यहाँ पर्याप्त है ,सात सात नदियाँ भी बुन्देलखंड क्षेत्र से होकर गुजरती हैं जरूरत है तो सिर्फ उचित जल संचय प्रणाली की और बहुद्देशीय नदी जल परियोजनाओ के गठन की .
बुंदेलखंड.इन : फिर दिक्कते क्यों आ रही है ?
संजय पाण्डेय :असल में राज्य निर्माण को लेकर सिर्फ राजनीति की जा रही है. यह मुद्दा राष्ट्रीय नेताओं की लफ्फाजी का शिकार हुआ है। बीते वर्ष इस मुद्दे को लेकर जिन नेताओं ने बयानबाजियां की वही नेता एन वक्त पर इस मुद्दे को नज़र अंदाज कर गए । पिछले साल की शुरुआत में ही मायावती और राहुल गाँधी ने बुन्देलखंड में हुई अपनी अपनी सभाओं में कहा था कि वे पृथक बुन्देलखंड के हिमायती हैं पर लोक सभा चुनाव में न तो कांग्रेस ने और न ही बसपा ने इस मुद्दे को अपने चुनावी घोषणा पत्र में स्थान दिया .
बुंदेलखंड.इन : क्या आपको नहीं लगता कि छोटे राज्यों के गठन से देश की अखंडता प्रभावित होगी?
संजय पाण्डेय :नहीं, यह धारणा गलत है। देखा जाये तो आज़ादी के समय भारत में 14 प्रदेश थे आज 35 हैं तो क्या इतने सारे नए प्रदेशों के बनने से देश खंडित हुआ? नहीं । तब भी भारत अखंड था ,आज भी अखंड है और कुछ नए राज्य बने तो भी भारत अखंड ही रहेगा।
बुंदेलखंड.इन :क्या जरूरी है कि छोटे राज्य बनने से देश का विकास हो ही ?
संजय पाण्डेय :छोटी इकाइयों में कार्य क्षमता अधिक होती है ।तथ्य बताते है कि छोटे प्रदेशों में विकास की दर कई गुना अधिक है।उदाहरण के लिए बिहार की प्रति व्यक्ति आय आज मात्र 3835 रु है जबकि हिमाचल जैसे छोटे राज्य में यही 18750 रु है । छोटी इकाइयों में कार्य क्षमता अधिक होती है । सिर्फ आर्थिक मामले में ही नहीं बल्कि शिक्षा,स्वास्थ्य जैसे विभिन्न मामलो में भी छोटे प्रदेश आगे हैं। जैसे कि शिक्षा के क्षेत्र में यूपी का देश में 31 वां स्थान है (साक्षरता दर -57%) जबकि इसी से अलग होकर नवगठित हुआ उत्तराँचल प्रान्त शिक्षा के हिसाब से भारत में 14 वां स्थान रखता है (साक्षरता दर -72 %)।. अमेरिका का उदाहरण ले लीजिये , अमेरिका पचास छोटे राज्यों का संघ है इसलिए उसकी सम्पन्नता आज जगजाहिर है।
Staff Reporter
New Delhi
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