खनन के खेल में मनी, मीडिया, माफिया का गठजोड़
खनन के खेल में मनी, मीडिया, माफिया का गठजोड़
खनिज की रायल्टी से होगा विकास
बिना सत्यापन बालू खरीदने वालों को डीएम की चेतावनी
नदी की धार बांध कर हो रहा अवैध खनन
बुंदेलखंड
की खनिज संपदा के दोहन पर आये दिन किसानों, समाजसेवियों का धरना-प्रदर्शन और ज्ञापन
मंडल मुख्यालय में आम सी बात है। बांदा, चित्रकूट समेत हमीरपुर, झांसी, जालौन और
ललितपुर में केन, यमुना, रंज, बेतवा, मंदाकिनी से लगे सैकड़ों गांव में बालू खनन का
खेल चलता है। खबरों में बार-बार लिखा जाना भले ही आम आदमी के लिए पुरानी बात हो,
लेकिन जब इस बालू खनन के खेल में दो पक्ष के बालू का धंधा करने वाले आमने-सामने
विरोध दर्ज करें तो मामला और भी गंभीर हो जाता है। माफिया और पुलिस के साथ खनन
गठजोड़ में दो बालू ठेकेदारों का विवाद एमएम 11 रवन्ने को लेकर है। 24 दिसंबर को
बांदा के अछरौड़ ग्राम के फूल मिश्रा, निरंजन, इंद्रजीत, रवींद्र मिश्रा आदि आधा
सैकड़ा किसानों ने केन नदी में अवैध पुल बनाकर बालू खनन की शिकायत मंडलायुक्त
मुरलीधर दुबे, जिलाधिकारी सुरेश कुमार प्रथम, पुलिस अधीक्षक पियूष श्रीवास्तव से
ज्ञापन देकर की थी। मगर कुछ देर बाद पट्टेधारक अपने समर्थक किसानों के साथ केन में
हो रहे खनन से किसानों की रोजी-रोटी में बाधक बने फूल मिश्रा और अन्य पर जीटी (गुंडा
टैक्स), बिना रवन्ना एमएम 11 प्रपत्र के बालू निकासी किए जाने के आरोप लगवा रहा था।
मालूम रहे कि कनवारा खदान बांदा के पट्टेदार कम राजस्व देकर अधिक खनन करते हैं, वहीं
फूल मिश्रा जैसे छुटभैये ठेकेदार बिना रवन्ना के दबंगई से खनन करते हैं। पट्टेदार
ने रवन्ना नहीं दिया तो अगले पक्ष ने विरोध का झंडा उठा लिया। बुंदेलखंड का खनन
माफिया सुप्रीम कोर्ट के आदेश को ताक में रखकर पुलिस प्रशासन की शह पर नदी की धारा
बांधकर पोकलैंड, लिफ्टर मशीनों से खनन करता है। किसानों की जमीन पर अवैध खनन यूं तो
ग्राम खपटिहा कला, पैलानी, नरैनी के खलारी, गिरवां के मऊ में भी चल रहा है। खपटिहा
कला के किसानों ने 13 नवंबर 2014 को पैलानी घाट में गाटा संख्या 525/1 में 6.30
हेक्टेयर की अवैध बालू निकासी की शिकायत डीआईजी बांदा से की थी। खपटिहा कला के
राममनोहर, रामसजीवन, अंगद सिंह सहित आधा दर्जन किसान इसी मुद्दे को लेकर गत वर्ष
2013 में बांदा मुख्यालय में अशोक लाट पर एक सप्ताह तक आमरण अनशन किया था। अनशन के
बाद इन किसानों ने खनन माफियाओं की सांकेतिक शव यात्रा निकालकर अपना विरोध दर्ज किया
था, लेकिन इस बार खनन पट्टेदार और छुटभैये ठेकेदार छद्म विरोध के बाद समझौता कर लिये।
उन्हें पर्यावरण की फिक्र नहीं थी दरअसल मामला तो ये है कि ‘धंधा तुम भी करते हो,
धंधा हम भी करते हैं, मगर विरोध तो सिर्फ इतना है कि हमें तुमसे रवन्ना मिलता नहीं’
यही तस्वीर चित्रकूट के राजपुर पहाड़ी में यमुना नदी की है, जहां से नांव और मशीनों
से बालू की ढुलाई बेखौफ बिना पट्टे के की जाती है।
प्रदेश के मुखिया ने बदल दिए मानक
खनिज से मिलने वाले रायल्टी से क्षेत्र का विकास किए जाने का दावा प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने किया है। नई खनिज नीति में संशोधन करते हुए खनिज नियामावली 2014 में यह व्यवस्था की गई है कि खनिज रायल्टी में अब 50 फीसदी उसी क्षेत्र के विकास में खर्च होगा, जहां से खनन किया जा रहा है। पट्टा धारक का चयन टेंडर से होगा। इसमें रायल्टी/डेड रेट के अलावा अधिक्तम संतोषजनक धन देने वाले आवेदक को चयनित किया जाना है। दूसरे शब्दों में कहें तो जो जितनी बड़ी बोली लगाएगा, टेंडर उसी के नाम निकाला जाएगा।
बुंदेलखंड की खनिज संपदा पर विदेशी कंपनियों की नजर
मध्य प्रदेश के सागर, दमोह, दतिया, छतरपुर, पन्ना, सतना और रीवा से पर्यावरण की लूट करके अपनी झोलियां भरने वाले अमेरिकी कंपनी रियोटिंटो, भारतीय कंपनी वेदांता की नजरें अब उत्तर प्रदेश के बुंदेलखंड पर भी टिक चुकी हैं। गौरतलब है कि बुंदेलखंड के उत्तर प्रदेश वाले हिस्से से सालाना 510 करोड़ राजस्व 1311 खनन क्षेत्र के पट्टों से होता है। समाजवादी सरकार की बदली हुई खनिज नियमावली में टेंडर प्रक्रिया इन रसूखदार कंपनियों को न्योता देने की कवायद है। बानगी के लिए पूर्व बसपा सरकार ने प्रदेश में आबकारी विभाग के ठेकों से पैदा किया पोंटी चड्ढा और उसका जलजला मगौड़े की दुकान से शराब के ठेकों और रियल स्टेट तक फैला दिया था। सरकार चलाने में परोक्ष धन का निवेश ये रसूखदार करते हैं। अगर टेंडर प्रक्रिया कारगर हुई तो रूतबे वाली कंपनी और बड़े ठेकेदार बालू पत्थर के खेल में मालामाल हो जाएंगे। इससे छुटभैये ठेकेदारों की हैसियत महज पेटी कांटैक्टर की रह जाएगी। मध्य प्रदेश के बुंदेलखंड में टीकमगढ़, पन्ना और छतरपुर में बालू पत्थर की खदानें इसकी गवाह हैं। यहां रियोटिंटों और वेदांता ने दुर्दांत मशीनों से पर्यावरण को तार-तार किया है। लोग कहते तो यह भी हैं कि मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री के करीबी इस लाल सोने के खेल में सहभागी रहे हैं।
क्या है बालू खनन के मानक
- खनन क्षेत्र का सीमांकन किया जाता है।
- खनन कार्य गांव के मजदूरों द्वारा कराया जाता है जिससे उनको रोजगार मिले।
- बहती हुई नदी की जलधारा नहीं मोड़ी जाती।
- खनन कार्य जलधारा के अंदर नहीं किया जाता।
- खनन में मशीन का प्रयोग नहीं किया जाता।
- खनन केवल तीन मीटर की गहराई में ही किया जाएगा।
- नदी की जलधारा रोककर पुल का निमार्ण अवैध है।
- खनन पट्टे धारक को वन विभाग, खनिज विभाग, प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, पर्यावरण विभाग से अनापत्ति प्रमाण पत्र लेना आवश्यक है।
- नदी में पोकलैंड और लिफ्टर जैसी मशीनों का खुलेआम होता है प्रयोग। लिफ्टर के प्रयोग से नदी की जलधारा के बीच से 50 फिट अंदर से जिंदा बालू की होती है निकासी। जिससे जिससे पूरी नदी में जगह जगह सैकड़ों फिट हो जाते हैं गड्ढे। गांव के लोगों, बच्चों की डूबने से होती हैं मौतें।
- लीज से कई गुना क्षेत्र में करते हैं खनन। जैसे 40 एकड़ के स्वीकृत पट्टे में आस पास के 400 से 500 एकड़ में करते हैं खनन। जिला प्रशासन और खनिज विभाग सबको होती है जानकारी।
- नदी की जलधारा को मोड़कर अवैध रूप से पूरी नदी में पुल बनाकर करते हैं खनन।
- दिन और रात धड़ल्ले से होता है खनन।
- पर्यावरण के नियमों को ठेंगा दिखाते हुए करते हैं खनन।
- पुल के ठीक नीचे पोकलैंड मशीनों से होता है खनन।
- खनिज विभाग एक एम एम-11 (रवन्ना या रॉयल्टी) पट्टाधारकों को 2500 रूपये में देता है जबकि पट्टाधारक अपनी मनमानी और गुंडा टैक्स के चलते एक रवन्ना के 10 से 12 हजार तक वसूलते हैं।
- पूरे जनपद में गुंडा टैक्स (सिंडिकेट) वसूलने की जिम्मेदारी शासन द्वारा किसी व्यक्ति विशेष को दी जाती है जिसकी शासन को करोड़ों की कीमत चुकाने के बाद हर वैध और अवैध खदानों से गुंडा टैक्स लेने का खेल शुरू हो जाता है। प्रति ट्रक 3.5 से 4 हजार रूपये गुंडा टैक्स वसूला जाता है जिसके चलते आम जनता जो बालू की कीमत दाम से दोगुनी तक चुकानी पड़ती है।
बांदा जिलाधिकारी सुरेश कुमार प्रथम ने हाल ही में 34 सरकारी विभागों को आंख मूंदकर बालू और पत्थर खरीदने वालों का फटकार लगाई है। जिलाधिकारी ने भेजे पत्र में शासनादेश का हवाला देकर कहा है कि यह विभाग अपने यहां निर्माण कार्याे के लिए उपखनिज बिना वैध परिवहन और बिना सत्यापन के ठेकेदार से ले रहे हैं, जिनका प्रमाण पत्र प्रस्तुत नहीं किया गया है। किस परियोजना में कितना खनिज प्रयोग हो रहा है, क्रय वैध परिवहन से किया गया है कि नहीं यह सत्यापन के बाद ही ठेकेदार को भुगतान किया जाए। अकेले बांदा ही नहीं बुंदेलखंड के सभी जिलों में सरकारी विभाग अवैध बालू निर्माण कार्यों में लगाकर राजस्व की चोरी करते हैं। सीएजी की रिपोर्ट 2011 में बुंदेलखंड से 200 करोड़ से ज्यादा का राजस्व चोरी किया गया है। जाहिर है कि मनी, मीडिया, माफिया और सरकारी तंत्र के मजबूत गठजोड़ में चलता है, लाल सोने का काला खेल।
By: आषीश सागर