(News) भोजन के अधिकार से वंचित हैं जिला अस्पताल के कुष्ठ रोगी
भोजन के अधिकार से वंचित हैं जिला अस्पताल के कुष्ठ रोगी
- मरीजों को नहीं मिलती चादर, कम्बल और दवाएं
- रोगी कल्याण समिति में हो रहा करोड़ों का बन्दरबाट
बांदा ब्यूरो- केन्द्र सरकार हो राज्य सरकार आजाद भारत में समानता का अधिकार, सम्मान का अधिकार और जीने का अधिकार हर आम आदमी को मिलना चाहिए यह दावा भारतीय संविधान भी करता है। मगर बुन्देलखण्ड के बांदा जनपद में जिला अस्पताल की हनक से लुट रहा है सैकड़ों कुष्ठ रोगियों का भोजन का अधिकार। आंखो देखी इस आपबीती को बता रही है जंनज्वार की पड़ताल।
उम्र
60 वर्ष, निवासी बड़ोखर चन्द्रपाल यादव जिला अस्पताल बांदा में बीते 18.02.2012 को
भर्ती हुआ था। बेड नं0 13 में चन्द्रपाल यादव की हालत कुष्ठ रोगी से कहीं अधिक
असमानता को झेल रहे एक आम आदमी की है। चन्द्रपाल यादव को गुजरे सात दिन से जिला
अस्पताल की रोगी कल्याण समिति से खाना इसलिए नहीं दिया गया क्योंकि वह कुष्ठ रोगी
है। मरीज के तीमारदारों में शामिल रामसजीवन, हेमन्त ने बताया कि आज 25.02.2012 को
हम गांव से खाना लेकर आये हैं और मरीज को खिलाया है। जिला अस्पताल की आंखों देखी
तस्वीर और भी अधिक बद्तर तब हो जाती है जबकि एक दो नहीं तकरीबन सभी वार्डों के बेडों
में चादर से सूने गद्दे, कम्बल विहीन मरीज, मक्खियों से भिनभिनाते कमरे और प्रसव से
करा रही ग्रामीण, शहरी महिलाओं के लिए दवाओं का भी टोेटा दिखाई देता है। मुंह खोलने
को कोई तैयार नहीं कि केन्द्र और राज्य सरकार से मिलने वाले करोड़ों रूपये के बजट को
कौन सा प्रशासनिक दीमक चट कर जाता है। रोगी कल्याण समिति के रसोईये प्रहलाद ने बताया
कि प्रति मरीज की खुराक के मुताबिक खाना बनाया जाता है। मरीज को सुबह और शाम के खाने
में आठ रोटी, तीन से चार चम्चे दाल और मौसम के मुताबिक हरी सब्जियां मुहैया कराई
जाती हैं। हृदय व आंख रोगियों के लिए समिति की तरफ से खिचड़ी की व्यवस्था शासनादेश
के अनुसार की गई है। लेकिन राशन सप्लाई करने वाले ठेकेदार का नाम पूछते ही उसके
चेहरे पर बल पड़ जाता है। दबी जुबान से प्रहलाद ने कहा कि बाबू जी मैने तो साहब को
ठेकेदार की कारगुजारी से वाकिफ करा दिया है। लेकिन चुनावी तापमान और जिला अस्पताल
में नये टेण्डर मार्च में होने के चलते ठेकेदार की ठेकेदारी मरीजों पर भारी चल रही
है। जिला अस्पताल में भर्ती मरीज सावित्री जो आग से बुरी तरह जली हुई है का कहना है
कि अस्पताल में जले हुए मरीजों को भेदभाव की नजर से डाॅक्टर देखते हैं और सफाईकर्मी
उन्हें गाहे बगाहे बिस्तर पर शौंच कर लेने से जातिसूचक शब्दों से ताना मारते हैं।
अल्पसंख्यक बिरादरी से सम्बन्ध रखने वाली ग्राम गुसियारी निवासी गुड़िया (मरीज) की
सास तोफा की माने तो उसके बर्तन में सूखी हुई रोटी और सरकारी प्राइमरी पाठशाला में
बनने वाले मिड्डे मील की तरह आलू की पानी से उबली हुई सब्जी देखकर कौन मरीज जिला
अस्पताल के खाने को खा सकता है। जनसूचना अधिकार 2005 से छः माह पहले स्थानीय
सामाजिक कार्यकर्ता ने मुख्य चिकित्सा अधिकारी बांदा से जनपद बांदा में राष्ट्रीय
ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन में वर्ष 2007 से 2011 तक के वर्षवार का ब्यौरा मांगने के
साथ-साथ रोगी कल्याण समिति में पिछले पांच वर्षों में आये बजट और खर्च किए गये मदों
का ब्यौरा, कीटनाशक दवाओं के छिड़काव, अस्पताल में मरीजों के लिए क्रय किए गए चादर,
तकिये, कम्बल आदि की विस्तृत जानकारी मांगी गयी थी लेकिन मुख्य चिकित्सा अधिकारी ने
आज तक सूचनाएं उपलब्ध नहीं कराई हैं। भ्रष्टाचार की मांग में रोगी कल्याण समिति के
करोड़ों रूपये का बन्दरबाट जिला अस्पताल में किया जा रहा है। हालात ऐसे हैं कि मरीजों
को भरपेट खाना तो दूर भोजन का अधिकार भी कुष्ठ रोगियों को नहीं मिलता है। मुख्य
चिकित्सा अधिकारी बांदा से जब टीम ने वार्ता करनी चाही तो उनका मोबाईल स्विच आॅफ बता
रहा था। जनसूचना अधिकार से किए गये भ्रष्टाचार के खुलासों में तमाम सरकारी योजनाओं
की सच्चाई सामने आयी है। राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन में विश्व बैंक के पांच
हजार करोड़ के किए गए भारी भरकम घोटाले और बसपा के बागी नेता बाबूसिंह कुशवाहा इस
घोटाले में सी0बी0आई0 जांच की गिरफ्त में हैं। जिला अस्पताल समेत उत्तर प्रदेश के
सभी जनपदों में रोगी कल्याण समिति को मिलने वाली निधि की अगर जांच करवाई जाये तो
शायद उसमें किए गये घोटाले की राशि राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन से कहीं ज्यादा
होगी।
गौरतलब
है कि प्रत्येक जनपद में मरीजों के लिए एक रूपये के पर्चे पर सरकारी डाॅक्टरों
द्वारा देखने की व्यवस्था, दवाओं के वितरण और नियमानुसार एक्सरे फीस लेने के
निर्देश हैं। बावजूद इसके जिला अस्पताल के मरीजों को सरकारी डाॅक्टरों द्वारा
व्यक्ति विशेष फर्म, फाॅरमेशी, मेडिकल स्टोर से दवाएं लेने और जांच करवाने के लिए
कहा जाता है। डाॅक्टरों द्वारा लिखित रूप से मरीजों को दी गई पर्चियां इस बात की
बानगी हैं। जिला अस्पताल के अमूमन नामचीन डाॅक्टर अस्पताल की नौकरी कम और सरकारी
आवासों में व्यक्तिगत प्रैक्टिस अधिक करते हैं। इस कारनामे में जिला अस्पताल की
महिला चिकित्सक भी पीछे नहीं हैं। कुछ खास महिला चिकत्सक ऐसी भी हैं जो सरकारी
ड्यिूटियां कम सामाजिक गतिविधियों में, जाति विशेष के कार्यक्रमों में अधिक दिखाई
देती हैं। सरकारी आदेशों को धता बताकर महिला जांच से सम्बन्धित लाखों के उपकरण उनके
सरकारी आवासों में लगे हुए हैं। गांव की निरीह और गरीब मरीजों से मुंह मांगी कीमत
उनकी मजबूरी के नाम पर वसूल किए जाते हैं। इसे सरकारी डाॅक्टरों की दबंगई कहें या
फिर मरीजों को जिन्दगी बचाने का रास्ता। मगर हासिये में खड़ा है जिला अस्पताल बांदा
के अन्तिम लाइन में भूखा मरीज।
By: आशीष सागर
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