(News) बुन्देलखण्ड के ग्रमीणों नें बनाया अनूठा मूर्ति संग्रहालय

बुन्देलखण्ड के ग्रमीणों नें बनाया अनूठा मूर्ति संग्रहालय

जहाँ चाह वहाँ राह, जी हाँ वीरो की भूमि बुन्देलखण्ड के छतरपुर जनपद यूँ तो विश्व प्रसिद्ध खजुराहों के मन्दिरों के लिये जाना जाता है लेकिन जिला मुख्यालय से सत्तर किलोमीटर दूर लोड़ी चन्दरा मुख्य मार्ग से पाँच किलोमीटर अन्दर बसा ग्राम सिजई अपनी अनूठी पहल के लिये पूरे देश में जाना जा रहा है यहाँ के ग्रामीणों ने दसवीं शताब्दी चन्देल राजाओं द्वारा निर्मित प्राचीन तालाब से निकली बेस कीमती मूर्तियों को सजाये रखने के लिये अपने स्तर से जो प्रयास किया है वह बड़े-बड़े कला पारखियों और संग्राहलय प्रेमियों को उदाहरण बन गया है। ग्रामीणों ने पुरासम्पदा को सजोय रखने के लिये आठ वर्ष पहले एक-एक रूपये का आपस में चन्दा इक्टठा कर मठ के पास खुला संग्राहलय बनवाया, जो धीमे-धीमे विकास पथ पर अग्रसर है। तालाब से निकलने वाली मूर्तियों को यहाँ स्थापित किया जाता है।

यहाँ चन्देला राजाओं द्वारा सम्भवता नवमी से दसवी शताब्दी के बीच एक प्राचीन मठ व तालाब का निर्माण भी किया गया था। मठ में हिन्दू स्थापित कला की बेजोड़ मूर्तियाँ स्थापित की थी जो खजुराहों के विश्व प्रसिद्ध मन्दिर के समान्य अपनी शिल्प कला में बेजोड़ थी लेकिन मुगलों के आक्रमण के समय हिन्दू धर्म स्थलों को तोडऩे की प्रक्रिया के दौरान इस मठ की मूर्तियों को तोड़ -तोड़ कर तालाब में फेक दिया गया। इस तालाब से निकली मूर्तियों का शिल्प खजुराहों जैसा ही है। लेकिन दोनो के पत्थरों में काफी अन्तर है। खजुराहों के मन्दिरों का निर्माण बलुआ पत्थर से हुआ है जबकि यह मूर्तियां काले चमकीले ग्रेनाईट पत्थर से निर्मित है। शिल्प एवं कला की दृष्टि से यह मूर्तियाँ अद्वतीय है माना जाता है की बराह के सिर पर भगवान विष्णु की शेष नाग पर विराज मान वाली मुद्रा की मूर्ति सिर्फ यहीं है। हलांकि यह मूर्ति खण्डित हो चुकी है। वहीं द्रोपती के छीर हरण के समय भगवान कृष्ण के चक्र से निकलती साड़ी वाली मुद्रा की मूर्ति भी अद्वतीय है। यहां सफेद चमकीले पत्थर से निर्मित भगवान बुद्ध की मूर्तियाँ भी मिली है बुन्देखण्ड क्षेत्र में जैन मत से सम्बन्धित तो अनेक स्थलों पर मूर्तियाँ यत्र-तत्र मिलती रही है लेकिन साँची के बुद्ध स्तूप अलावा अन्य स्थानों पर बुद्ध की मूर्तियाँ नही मिलती है। मध्यप्रदेश के पुरातत्व विभाग के क्यूरेटर डा० ए.एल. पाठक ग्रामीणों द्वारा मूर्तियों के संरक्षण किये गये प्रयास को सराहनीय बताते हुये कहते है कि बुन्देलखण्ड के लेागों ने जिस तरह अपनी अतीत के विरासत को बचाने के लिये सामूहिक प्रयास किया है वह प्रेरणा प्रद है। शासन स्तर पर इस संग्राहलय में मौजूद मूर्तियों के संरक्षण हेतु हर सम्भव प्रयास किये जायेंगे। कवि अग्रिवेद के शब्दों में:

"सुरक्षित रखो कल के लिये, अपने अतीत की थाती,
पुरा-सम्पदा हो या, पूर्वजों की लिखी पाती
वरना कौन जान पायेगा खास, सिर्फ किताबों में रह जायेगा इतिहास"।

By: सुरेन्द्र अग्रिहोत्री