(बांदा : NEWS) 80 हजार गरीबों ने घर-बार छोड़ा.

(बांदा : NEWS) 80 हजार गरीबों ने घर-बार छोड़ा.

बांदा। स्थानीय प्रशासन और सूबे की सरकार के दावे भले ही कुछ हों लेकिन भुखमरी और गरीबी से त्रस्त लगभग 80 हजार लोग काम के अभाव में जिले से पेट की आग बुझाने के लिये दो माह के अंदर महानगरों की ओर पलायन कर गये हैं। इसमें दलित और पिछड़ी जातियों के लोग ज्यादा हैं। राष्ट्रीय ग्रामीण गारंटी योजना की कामयाबी का ढिंढोरा पीटने वाला जिला प्रशासन कुछ ठोस कर पाने में लाचार है।
नरैनी, बबेरू, अतर्रा एवं सदर तहसील बांदा के गांवों से पलायन का ग्राफ बढ़ता जा रहा है। अधिकतर भूमिहीन तथा कम जोत वाले किसान हैं। लगातार दैवी आपदा एवं सूखे की चपेट ने गरीबों के घर के चूल्हे ठंडे कर दिये। बाध्य होकर पेट की ज्वाला बुझाने के लिये लोगों ने घरों में ताला डाल दिया है तथा भूख से तड़पते परिवारीजनों को लेकर महानगरों को कूच कर गये हैं।
भुखमरी और पलायन रोकने के लिये केंद्र सरकार के तत्वावधान में संचालित राष्ट्रीय ग्रामीण गारंटी योजना भी यहां विफल है और पलायन रोकने में असहाय साबित हुयी है।
नरैनी तहसील के ग्राम माखनपुर, कनाय, नहरी, बड़ेहा, गोरेपुरवा, गुढ़ा, पंचमपुर आदि गांवों में सामूहिक तौर पर पलायन की स्थिति है। उदाहरण के तौर पर पंचमपुर के सुदामा सरमन, भूरा, जयराम, जग्गू, सोना, रामऔतार, संतू, कालका, सीताराम का परिवार दिल्ली, बउरा, हुलासी, रामचरण, स्वामीदीन, चुन्नू, कल्लू, रज्जू का परिवार मथुरा, पूर्व प्रधान नत्थू, राजकिशोर, संतोष, लल्लू, रामरतन, गया, रामकिशोर, रामकिशोर के परिवार गुड़गांव रोजी-रोटी के लिये पलायन कर गये हैं।
इसके अलावा रामबिहारी, रामजस, चुन्नू, राजकुमार, रामचरण, गामा, लखन, राकेश, विजय बाबू, इंद्रपाल आदि सूरत कूच कर गये हैं। इनमें से अधिकांश भूमिहीन हैं, जिनके पास कुछ कृषि भूमि भी है तो एक बीघे से लेकर पांच बीघे से ज्यादा नहीं है। पंचमपुर के सुंदर रैदास, दुर्जन रैदास, प्रमोद गोस्वामी बताते हैं कि पेट चलाने के लिये सब परिवार पलायन कर गये। हम जैसे बूढ़े और बच्चे बचे हैं। गांव में काम का अभाव है। गरीबी रेखा से नीचे कुछ लोगों के कार्ड भी बने तो उसमें खाद्यान्न नहीं मिलता। राष्ट्रीय ग्रामीण गारंटी योजना पूरी तरह से फ्लाप है। पलायन की स्थिति बबेरू, अतर्रा, तहसीलों में भी काफी बदतर है। पलायन कर रहे लोगों ने बताया कि गरीबी से तंग आकर पंजाब जा रहे हैं। वहां भट््ठों में ईट पाथेंगे। गरीबी और काम के अभाव में लगभग 25 हजार लोग अकेले बबेरु तहसील से ही जा चुके हैं। ग्राम मझीवां सानी का राजा भइया, खंभौरा का भोला रैदास, शंभू, जगमोहन, कोदाराम, बबेरु तहसील का भुराने पुरवा निवासी दीपक जमादार आदि का परिवार भी पलायन कर गया है। बिसंडा के रामाधार रैदास का दुख यह है कि उसके परिवार का गुजर-बसर नहीं होता। गांव में काम नहीं मिल पा रहा। बच्चों को भूखे पेट देखा नहीं जाता। परिणामस्वरूप वह दोनों लड़के भगवानदीन और शिवकुमार को साथ लेकर पंजाब काम की तलाश में चला गया।
विद्याधाम समिति जिले से पलायन रोकने और मजदूरों को काम मिले इसके लिये संघर्षरत है लेकिन उसकी आवाज भी प्रशासनिक नक्कारखाने में तूती बनकर रह गयी है। समिति के मंत्री राजाभइया का कहना है कि जिले में राष्ट्रीय रोजगार गारंटी योजना की धज्जियां उड़ रही हैं। पलायन की भयावह स्थिति उत्पन्न हो गयी है और प्रशासन उसे खामोशी से निहार रहा है।
अपर जिलाधिकारी जीसी पांडेय जो मुख्य विकास अधिकारी के भी चार्ज में हैं, से राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना के कारगर ढंग से क्रियान्वयन न होने तथा जिले में बड़े पैमाने पर पलायन के बारे में जब चर्चा की गयी तो उनका कहना था कि रोजगार गारंटी योजना के तहत हर गांव को धन दिया जा रहा है। जो प्रधान दुष्ट हैं, जनता उनकी शिकायत करे। कार्रवाई होगी। जहां तक पलायन का प्रश्न है यह इस जिले के लोगों की फितरत बन चुका है। हर साल यह मजदूरी के लिये पलायन कर जाते हैं तथा जुलाई तक इनकी वापसी होती है।

Courtesy: Dainik Jagran