श्री कल्पवृक्ष चालीसा - Shri Kalpavriksha Chalisa
'श्री कल्पवृक्ष चालीसा (Shri Kalpavriksha Chalisa)
सब देवन को सुमिर के, ले शारद का नाम
वेद पुराणों में निहित, तव महिमा तरुराज |
सकल जगत में गा सकूँ, यह आशिष दो आज ||
जय जय जय जय विटप विशाला, जय तरुवर जय निपट निराला |१|
जय सुर नर के पूजनहारी, जय जय कल्पतरू अति भारी |२|
जय सुरतरु जय मोहक रूपा, जय जय जय जय गाछ अनूपा |३|
जय जय कल्पलता वरदानी, तव महिमा ऋषि मुनिन बखानी |४|
जग के तुम ही हो तरुराजा, तुमको पूजत सकल समाजा |५|
ऋषि मुनि नारद तुमको ध्यावैं, देव सभी तुम्हरे गुण गावें |६|
वेद पुराणों में है गाथा, यति गंधर्व नवावहिं माथा |७|
तुलसी ने जब कलम चलाई, मानस में महिमा तव गाई |८|
देव दनुज जब जलधि मथाये, भांति चतुर्दश रत्नहिं पाये |९|
पहली बार हलाहल आवा, जो भोले की भेंट चढ़ावा |१०|
दूजे कामधेनु को पावा, जे ऋषियन को दान करावा |११|
अश्व तीसरा रतन निराला, दानवराज ताहि सम्हाला |१२|
फिर ऐरावत हाथी आये, तिनको इन्द्रलोक पैठाये |१३|
पंचम रतन मणी अनुरागी, जो भगवन को अति प्रिय लागी |१४|
षष्ठम रत्न कल्पतरु पाए, देव दनुज दोनों हर्षाये |१५|
सबहिं देवगण आयहु आगे, भांति विविध गुण वर्णन लागे |१६|
देवराज के अति मन भावा, कल्पलता को स्वर्ग भिजावा |१७|
मिल सबहिं देव तव स्तुति गाते, कर सेवा जल आदि चढ़ाते |१८|
सुंदर पुष्प रहें बड़ नीके, मनहुँ चकोर संग रजनी के |19|
ऋषि नारद धरती महँ आये, संग कल्पतरु मँजरी लाये |२०|
पावन पल्लव साथ समेटे, जाय कृष्ण भगवन को भेंटे |२१|
यह सतभामा को प्रिय लागे, कीन्ह लालसा प्रभु के आगे |२२ |
इन्द्रलोक श्री कृष्ण सिधाए, कल्पतरू धरती ले आये |२३|
पूजन करते जो नर नारी, तिनकी पीड़ हरहु सब भारी |२४|
जो श्रद्धा से माथ नवाते, उनके कष्ट सबहिं मिट जाते |२५|
वंध्या करै पाठ गर कोई, देवपुत्र निश्चय तेहि होई |२६|
जो पावहिं तरुवर की छाया, रोग न आवहिं तिनकी काया |२७|
जैसी करहि कल्पना जोई, फल पावहिं ते वैसे सोई |२८|
नित्त नेम जो भोग चढ़ाते, तुम उनकी सब पीर मिटाते |२९||
तुम्हरे ढिग जो विप्र जियावैं, धन वैभव व्यापार बढावें |३०|
कन्या भोज करावे लाई, रोजगार मह उन्नति पाई |३१|
जो बालक नित दीप जलावैं, अति कुशाग्र बुद्धि तेहिं पावैं |३२|
भक्त हजारों जय जय गाते, साधू आकर अलख जगाते |३३|
निर्धन के तुम घर भर देते, कष्ट सभी के तुम हर लेते |३४|
जो भी शरण आपकी आता, नहीं हाँथ खाली वो जाता |३५|
तुमने सबके भाग्य सँवारे, दुखियन के तुम कष्ट निवारे |३६|
जो करहिं स्तुती रख उपवासा, पावहिं ते नर ज्ञान प्रकाशा, |३७|
कलियुग में जो तुमकों ध्यावैं, उनके नेक काज बन जावैं |३८|
जो पढ़े कल्पवृक्ष चालीसा, मुदित होंहि तिनसे जगदीशा |३९|
चेतन कलम भयो शुभ काजा , कृपा करो हम पर तरुराजा |40|
कल्पतरू महिमा कही, रखो दास की लाज |
पाठ करे नित नेम जो, पूर्ण होंहि सब काज ||
बैठ तिहारी छाँव में, माँगें तेरा प्यार ||
नेक कल्पना जो करें, करना प्रभु साकार ||
By: Chetan Nitin