प्रवासनामा: अनाज हर कोई खाना चाहता है मगर किसानी नही करना चाहता – निलय
अनाज हर कोई खाना चाहता है मगर किसानी नही करना चाहता – निलय
- गंगा विभाजन,गाद,प्रदूषण और बंधन से मर रही है
- किसान की रुचियों पर हमला किया जा रहा है
- बेल्जियम में अन्न उतना ही उत्पन्न करते है जितनी खपत
- एक करोड़ के फ्लैट में रहने वाला लोक कवि और जनवादी लेखक नहीं
बुंदेलखंड के चित्रकूट मंडल मुख्यालय जिला बाँदा में गत 7 जनवरी को किसान, साहित्य को समर्पित पत्रिका ‘प्रवासनामा’ और जनवादी लेखक संघ के तत्वाधान में एक दिवसीय परिचर्चा का आयोजन किया गया | परिचर्चा – संवाद का विषय ‘ किसान आन्दोलन में लेखको की भूमिका ‘ रहा |
संवाद का संचालन कर रहे जनवादी आलोचक उमाशंकर सिंह परमार ने मुंबई से आये लेखक और कवि निलय उपाध्याय को बतौर मुख्य अतिथि, विशिष्ट अतिथि चित्रकार कुंअर रवीन्द्र( रजिस्ट्रार छतीसगढ़ विधानसभा),युवा आलोचक साहित्यिक पत्रिका पाखी के संपादक अविनाश मिश्रा और कार्यक्रम का अध्यक्ष अनहद के संपादक संतोष चतुर्वेदी को बनाया गया |
कार्यक्रम की शुरवात 16 पेड़ एक जिंदगी अभियान की कड़ी में एक बरगद का पौधा रोपित करके हुई |
परिचर्चा के प्रथम सत्र में बाहर से आये अतिथियों का प्रतीक सम्मान किया गया | यहाँ जनवादी विचारधारा के अनुरूप फूल- माला,बैच अलंकरण से दूरी बनाये रखी गई | संचालन कर रहे उमाशंकर सिंह परमार ने इतिहास के कुछ पन्ने पलटते हुए मार्क्स के पूंजीवाद, मुसोलनी – हिटलर के तनाशाई रवैये और नवउदारवाद के अनछुए पहलुओ पर प्रकाश डालने का सार्थक विहान किया | संवाद के आयोजन सन्दर्भ का मूल कारण और किसान आन्दोलन में साहित्य,लेखक के सम्बन्ध को स्पष्ट किया | उन्होंने सामंतवाद – बुर्जुआ सभ्यता पर भी तीखे कटाक्ष किये | बाजार और किसान के उत्पाद को तुलनात्मक चश्मे से देखा | बुंदेलखंड सहित देश में घटे समसामयिक किसान आन्दोलन और विषय प्रवर्तन के लिए ‘ प्रवासनामा ‘ पत्रिका का संपादन कर रहे संवाददाता को इस संवाद की बुनियाद रखने के लिए बुलाया गया | उन्होंने वर्ष 1995 से 2002 तक सीआईएफए से प्राप्त आंकड़ो के मुताबिक 95225 किसान आत्महत्या कर चुके है | बताया कि उत्तर प्रदेश के बुंदेलखंड में वर्ष 2001 से 2006 तक 1275,वर्ष 2007 से 2010 तक 1351,वर्ष 2011 से 2012 तक 624 और वर्ष 2013 में 750 किसान आत्महत्या किये | वही 7 जनवरी 2014 से 14 नवम्बर 2014 तक 58 किसान कर्जखोरी में ख़ुदकुशी कर चुके है | को सूत्रधार में रखा | बकौल संवाददाता नेशनल क्राईम रिकार्ड ब्यूरो के आंकड़ो के अनुसार भी वर्ष 2009 से 2013 तक बुंदेलखंड में 2640 किसान आत्महत्या किये है | अगर बुंदेलखंड में किसान आन्दोलन के बीच हुई मौतों का हिसाब लगाया जाये तो अब 23 दिसंबर तक 3327 किसान आत्महत्या किये | उल्लेखनीय है कि अकेले बाँदा के 1,28,971 किसानो पर 11 जुलाई 2014 तक 11 लीड बैंको ने 83,28,28000 रूपये ऋण केसीसी में दिया है | बुंदेलखंड के बाँदा,चित्रकूट,महोबा,हमीरपुर,जालौन के 31,353 किसानो पर 3 अरब र्य्प्ये का कर्जा बकाया है | सैकड़ो किसान डिफाल्टर घोषित किये जा चुके है जिनकी आरसी जारी की गई है | ये रोजमर्रा की आत्महत्याए केसीसी से लिए गए ऋण का दूसरा भयावह चेहरा है | महोबा से आये समाजसेवी पुष्पेन्द्र भाई ने साल 2006 में बाँदा के पडुई गाँव में किशोरी लाल साहू की आत्महत्या के बाद समुदाय और गाँव के ‘ चुहला बंदी आन्दोलन ‘ की चर्चा करते हुए कहा कि इसका असर विधर्भ तक हुआ | आन्दोलन गाँव ने तय किया था | गाँव में सामूहिक रूप से किसानो ने अपने चुह्ले की रख को ठंडा करके मृतक या गरीब किसान को एक दिन का राशन दिया | सरकार के लिए इससे अधिक शर्म की बात क्या हो सकती है ? यह सामंतवादी और लालफीता शाही की बानगी नही तो और क्या है ? इस आन्दोलन का अगुआकार युवा राजेन्द्र सिंह केंसर से असमय मर गया लेकिन ये आन्दोलन आज भी बुंदेलखंड के किसी न किसी गाँव में कर्ज से लदे किसान की मौत पर ताजा होता रहता है | किसान की बेटियों के ब्याह आखत मांगकर किये जाते है | इसकी नजीर गत 21 अप्रैल को ग्राम बघेलाबरी के मृतक किसान सुरेश यादव के तीन बच्चो की कहानी को ध्यान किया जाना चाहिए जिनके माता – पिता दोनों ही कर्ज के निवाले पर अपने बच्चो को ममता न दे सके | आज भी उनकी 2 बीघा जमीन बैंक के पास बंधक है | यह तस्वीर आन्दोलन के अलग – अलग परिद्रश्य में नजर आती है |
जल-जंगल और पानी को बंधक बनाने वाली परियोजना का किसान को खुलकर विरोध करना पड़ेगा | नया भूमि अधिग्रहण कानून किसानो की बर्बादी का परिचायक है | ये कार्पोरेट,लीज की खेती को आगे लायेगा | युवा आलोचक अविनाश मिश्रा ने कहा कि मै दिल्ली, बड़े शहरो में पला हूँ | जब वहां एक करोड़ के बंगले में रह रहे उस लेखक या कवि को देखता हूँ जो खुद को लोक का कवि या किसान का लेखक होने का दावा करता है तो कृत्रिम पर्यावरण का अहसास होता है | क्या ये संभव है कि वातानुकूलित कमरे में बैठा लेखक गाँव के दर्द और किसान आन्दोलन की विभिषका को समझ पाए ? उसमे आन्तरिक मर्म के साथ उतर कर खबर लिख सके ? बाँदा के प्रगतिशील किसान प्रेम सिंह ने कहा कि मैंने सजीव, आवर्तन शील खेती से एक काम किया है | बाग़ लगाया है | अपनी पुरखो की दी खेती में अपने तरीके से उपज पैदा की है | किसान सरकारी सुविधा का मुंह त्याग कर नए प्रयोग करे और मुद्त्खोरी से परहेज करे | संवाद में बेल्जियम से आये किम और पीटर ने अपने अनुभव बांटे | उन्होंने ने बताया कि हमारे देश में अनाज बेहद मंहगा है | वहां किसान उतना ही उत्पन्न करता है जितनी खपत हो | हमारे यहाँ अभी भी जीएम, संकर बीजो के प्रयोग को सरकार ने रोक रखा है | ज्यादातर किसान युवा ही है | वही गाँव में रह रहा है , जो पढ़े – लिखे है वे शहरो की तरफ आ चुके है | कृषि का संकट पूरी दुनिया में तेजी से पनपा है | किम ने कहा कि मंगोलिया ने अपने हरे पेड़ो को काटकर किसानो को पशुपालन का काम दे रखा है | वही चीन में खेती करने वाले कंक्रीट के ऊँचे बिल्डिंग में शिफ्ट किये जा चुके है | किम और पीटर बेल्जियम में किसानो को प्रेरक खेती की सलाह देते है | दोनों ने बिना हवाई मार्ग के 15 माह में सात देशो की यात्रा साईकिल से तय की है | इस यात्रा में वे 15000 किसानो से मिले,उनके ही घरो में रुके और अभियान जारी है | बेल्जियम में एक जैविक खेती की यूनिवर्सिटी भी खोली गई है जिससे आशा बंधी है | मुख्य अतिथि निलय उपाध्याय ने अपने संबोधन में कहा कि अन्न सभी खाना चाहते है मगर किसानी कोई नही करना चाहता | किसान की बाते अख़बार कम ही करते है | क्या कोई पत्रकार गाँव,बीहड़ से निकलकर मेनस्ट्रीम मीडिया में है ? लेखक और किसान आज दोनों एक ही दौर से गुजर रहे है | चूहा चिल्लाता है और चुप रहने वाली बिल्ली का ग्रास बन जाता है | यही आज समाज में हो रहा है | जो चुप है वो सबसे घातक वार करता है | निलय ने अपनी गंगोत्री से गंगासागर तक की यात्रा का ज़िक्र करते हुए बताया कि गंगा को मैंने यात्रा में चार समस्या से ग्रसित पाया है...गाद,बंधन,प्रदूषण और विभाजन | जो गंगा बनारस में महादेव के दर्शन को पवित्र करती है वही मगहर में नर्ख कैसे प्रदान कर सकती है | एक नदी के ये दो चेहरे किसने बनाये है ? गंगा की तरह आज साहित्य,किसान और लेखक के चिंतन में गाद जमी है | साहित्य में परिवर्तन की क्षमता है | अंततः मनुष्य और प्रकृति आपसी सम्बन्ध से ही बचेंगे | किसान आत्महत्या से विचलित निलय ने रुंधी आँखों से किशोरी साहू के गाँव में नत्थू कुशवाहा के तारे पर सुने गीत और चुन्बद्दी पाल के लिखे गीतों का उल्लेख करते हुए कहा कि ‘ नत्थू को आज भी ये दुःख है कि 6 जुलाई की रात अगर मै खाना खाने नही जाता, यूज़ रात भर गीत सुनाता रहता तो शायद वो बच जाता ! ‘ किशोरी साहू के मित्र नत्थू किसान की मौत में कुछ गीत लिखे जो चुहला बंदी आन्दोलन में तेजाब का काम करते थे | वो लिकता है कि – ‘ दो हजार सन साल 6 और 6 जुलाई की रात, फांसी गले लगाय किशोरी कीहनो आतमघात |
‘मालूम रहे कि बुंदेलखंड में हो रही किसान आत्महत्या में ये ख़ुदकुशी इसलिए भी जानी जाती है क्योकि तत्कालीन नगर मजिस्ट्रेट नंदन चक्रवती ने किसान की बेटी की बदचलनी को उसकी म्रत्यु का कारण माना था | इससे पनपे आक्रोश का नतीजा ही था वो किसान आन्दोलन | अपनी अस्मिता के संघर्ष की आवाज पर | आयोजन के अध्यक्ष रहे संतोष चतुर्वेदी ने अंत में कहा कि किसान के दुर्दिनो में साहित्य की टूटन पर ये संवाद समसामयिक है | किसान की रूचि पर हमला किया जा रहा है | विदेशी मिटटी में टेस्ट किया हुआ खाद भारत का किसान प्रयोग करेगा तो उसका मरना स्वाभाविक है | हर जगह की प्राकृतिक भूमि अलग है | किसान को अपनी रूचि की खेती तय करनी पड़ेगी | जो चला गया उस पर मातम से बेहतर हिया जो बचा है उसको बचाए | इस परिचर्चा में चीत्कार कुंअर रवीन्द्र के किसान कविताओ पर बनाये गए पोस्टर की प्रस्तुति भी की गई | आयोजन में बाँदा के कवि केशव तिवारी, कामरेड सुधीर सिंह, नारायण दास गुप्ता, पीके सिंह, प्रमोद दीक्षित, डाक्टर राहुल मिश्र, राम गोपाल गुप्ता सहित तमाम लोग मौजूद रहे | -
आशीष सागर, प्रवासनामा पत्रिका
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