(News) विरासत में मिला अनाथ बच्चो को कर्ज

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विरासत में मिला अनाथ बच्चो को कर्ज

बुंदेलखंड में कर्जदार किसानो के आत्महत्या कि एक लम्बी फेहरिस्त है l लेकिन कुछ किसान कर्ज से ऐसे टूटे कि जिंदगी के छूटने के साथ सब कुछ बिखर गया है l बच्चे अनाथ हुए और खेती कि जमीन बैंक में गिरवी हो गई यही नही गाँव के  साहूकारों कि दबिस ने अनाथ बच्चो का जीना भी दुर्भर कर दिया l इनको माता – पिता का प्यार तो नसीब नही हुआ लेकिन इन्हे विरासत में कर्ज का दंश मिल गया l 2 बीघा बैक में गिरवी रखी जमीन पर तीन बच्चो का गुजारा कैसे होगा ये अब बड़ा सवाल है ? सबसे बड़े भाई के विकास के सामने दो छोटी कि परवरिस और रोटी खिला पाना भी एक वक्त में मुश्किल है  l उन हालात में बैंक का ब्याज सहित कर्ज अदा करना  और 2 बीघा बंधक रखी खेतिहर जमीन को मुक्त करा पाने कि कवायद में विकास संघर्षरत है l

बुंदेलखंड के किसानो के लिए ही नही बल्कि अन्य प्रान्तों के कर्जदार किसान परिवार के लिए भी जनपद बाँदा जिले के ग्राम बघेलाबारी दस्यु प्रभावित ( नरैनी ) के ये तीन बच्चे मिसाल हो सकते है l 18 जून 2011 को बघेलाबारी के किसान सुरेश यादव ने किसान क्रेडिट कार्ड से 21 हजार रुपया कर्ज के चलते अपने ही खेत में दम तोड़ दिया l मृतक किसान ने  2 बीघा जमीन त्रिवेणी ग्रामीण बैंक, फतेहगंज में गिरवी रख यह कर्ज लिया था और 13 हजार रूपये गाँव के साहूकार से भी l सुरेश यादव के पास कुल 4 बीघा जमीन थी जिसमे 2 बीघा जमीन उसने अपनी पत्नी सरस्वती के कैंसर इलाज में बेच दी थी पर विकास, संगीता और अन्तिमा कि माँ को न बचा पाया l

अब ये तीन बच्चे ही किसान का सपना थे पर शायद किस्मत को ये भी मंजूर नही था और गरीबी से कर्जदार किसान टी. वी. का शिकार हो गया l इलाज तो दूर कि बात है घर में बच्चो को रोटी खिला पाना भी उसके लिए बड़ी बात थी और सूखे बुंदेलखंड कि 2 बीघा जमीन में होता भी क्या है ?

अपने सपने को टूटता देख कर सुरेश यादव 18 जून को बच्चो को रात में सोता हुआ छोड़ कर गया कभी न वापस आने के लिए l अब उसके तीन बच्चो के पास पिता के अंतिम संस्कार का भी रुपया नही था लेकिन गाँव वालो के चंदे से ये सब मुनासिब हुआ l जिंदगी के असली संघर्स कि कहानी तो विकास के सामने ( उम्र तात्कालिक समय में 16 वर्ष ) कि अब शुरू हुई थी l जब उसको अपने अधिकारों , बहनों के लालन – पालन के लिए शासन कि देहरी में नतमस्तक होना पड़ा और 5 दिवस आमरण अनशन तक में बैठना पड़ा l तब जाकर उसको आधा – अधूरा एक इंद्रा आवास बिना छत का और 20 हजार रूपये कि सरकारी मदद मिली l लेकिन उसकी बहनों को ममता का आसरा नही मिला, जीवन जीने कि गारंटी नही मिली , स्कूल में दाखिला भी नही मिला सामाजिक ताना – बाना नही मिला l

ग्राम के प्रधान ने साथ छोड़ा तो अपनों कि बात ही क्या है l आज विकास पिता कि म्रत्यु के दो साल बाद अपने साथ दो बहनों कि पढाई का खर्च, बहन संगीता की शादी (16 वर्ष ) के सपने आँखों में पाल कर छोटी अन्तिमा को पूरी इमानदारी से जीवन के मायने समझाता है l इसके लिए वो 12 कि पढाई करने के साथ खुद से खेती करता है और एक स्कूल में पार्ट टाइम पढ़ाता भी है ( श्री शिवशरण कुशवाहा बिरोना बाबा समिति , छितैनी ) l इसके लिए वो प्रतिदिन 20 किलोमीटर साईकिल से यात्रा करता है l विकास खुद वो बिना कोचिंग , अध्यापक के घर पर शाम को ही पढता है lकोचिंग के लिए उसके रुपया और इंटर तक के उसके सरकारी स्कूल में बच्चों को पढ़ाने के लिए अध्यापक नही है l

उसकी बड़ी बहन संगीता 9 वी कि और अन्तिमा 3 कि छात्रा है l पर पिता का कर्ज अब 30 हजार रूपये ब्याज के कारण हो गया है और 13 हजार साहूकार का बकाया भी देना है इन कठिन पलो में उसके लिए अपने और बहनों के सपने अभी भी एक अनबूझ पहेली ही है जिंदगी कि तरह l

By - आशीष सागर दीक्षित