(ARTICLE) बुंदेलखंड की संग तराश कला बर्बादी के कगार पर

(ARTICLE) बुंदेलखंड की संग तराश कला बर्बादी के कगार पर

बांदा। प्रशिक्षण, प्रोत्साहन और बाजार के अभाव में बुंदेलखंड की संग तराश चौपट होने की कगार पर पहुंच गई है। दक्ष हाथी से पत्थरों को सुघड़ स्वरूप देने वाले तथा छेनी, हथौड़ी से अनपढ़ खंडों को सजीव मूर्तियों में बदल देने वाले शिल्पकार आर्थिक दुर्दिन देखने के लिए बाध्य हो गए हैं।

मंडल के बांदा, कालिंजर, भौंरी, कर्वी, मानिकपुर, कालूपुर, सरैया, रैपुरा, महोबा आदि क्षेत्रों में बलुआ पत्थर की भरमार हैं। हजारों वर्ष पहले से यहां के ग्रामीण संग तराश पत्थर खदानों से निकाल कर तरासते थे और विभिन्न आकार के पत्थरों अनेक तरह की मनमोहक बेलबूटों, पशु-पक्षियों की आकृतियों से सजे पत्थर जमींदारों राजाओं के भवनों व महत्वों को संवारते थे।

प्राचीन भवनों, किले के दरवाजे, झरोखों, कुओं, बावरियों, छतरियों, मंदिरों में अभी भी यह शिल्प कला देखने को मिल जाती है। कालिंजर मड़फा, बिलरिया मठ कर्वी का मराठों का किला, गणेश बाग, जयदेव, वैष्णव संस्कृत महाविद्यालय चित्रकूट के दर्जनों मंदिरों और इस क्षेत्र के दर्जनों मंदिर आज भी पुराने कलाकारों की कला के प्रत्यक्ष उदाहरण है।

कर्वी-चित्रकूट क्षेत्र के पत्थर कारीगरों की अब दो श्रेणियां ही बची हैं। प्रथम श्रेणी में वह सकुशल कारीगर हैं। बल्लियां ढोका पत्थर तथा छतों के काम आने वाली लंबी पटिया निकालते हैं। पत्थर खदानों में काम करने वाले पत्थर कारीगरों को दिन भर मेहनत के बाद तीस से पचास रुपए के बीच मजदूरी मिलती है। इसी अल्पराशि से उनकी गृहस्थी का बोझ चलता है।

पत्थर तोड़ने वाले इन मजदूरों को खदान के ठेकेदार की मर्जी पर निर्भर रहना पड़ता है। जान जोखिम के काम के बावजूद शारीरिक क्षति होने पर किसी तरह का मुआवजा आदि नहीं मिलता। दूसरी श्रेणी के वह पत्थर तराशने वाले कलाकार हैं जो अभी भी कवी-चित्रकूट में मूर्तियों का निर्माण करते हैं।

सैंड स्टोन व ग्रेनाइट स्टोन पर आधारित उद्योग, उद्यमियों व बाजार के लिए अनंत संभावनाएं हैं। लेकिन यह सरकारी उपेक्षा के शिकर हैं। इस मामले में मुख्य विकास अधिकारी समीउल्ला अंशारी कहते हैं कि पत्थर कलाकारों की आर्थिक स्थिति सुदृढ़ करने, हजारों बेरोजगार युवकों को कुशल प्रशिक्षण देकर रोजगार उपलब्ध कराने, स्थानीय स्तर पर उपलब्ध पत्थर की विविध उपयोगी वस्तुओं का निर्माण व स्थानीय आवश्यकताओं के अनुरूप विकास योजनाएं बनाने के निर्देश उद्योग विभाग को दिये गये हैं।

Courtesy: Jagran News