(Poem) गलियाँ बोली मैं भी अन्ना
गलियाँ बोली मैं भी अन्ना, कूचा बोला मैं भी अन्ना।
समय देखकर, काम छोड़कर-जनता बोली मैं भी अन्ना।।
भ्रष्टतन्त्र का मारा बोला, मंहगाई से हारा बोला।
बेबस और बेचारा बोला, मैं भी अन्ना-मैं भी अन्ना।।
जोश बोला, होश बोला, बेजुबान बोला मैं भी अन्ना।
युवा शक्ति का रोष बोला मैं भी अन्ना-मैं भी अन्ना।।
साधु बोला, योगी बोला मैं भी अन्ना-मैं भी अन्ना।
रोगी बोला मैं भी अन्ना, भोगी बोला मैं भी अन्ना।।
गायक बोला मैं भी अन्ना, नायक बोला मैं भी अन्ना।
दंगो का खलनायक बोला मैं भी अन्ना-मैं भी अन्ना।।
कर्मनिष्ट कर्मचारी बोला, लेखपाल पटवारी बोला।
घूसखोर अधिकारी बोला मैं भी अन्ना-मैं भी अन्ना।।
मुम्बई बोली मैं भी अन्ना, दिल्ली बोली मैं भी अन्ना।
नौ सौ चूहे खाने वाली बिल्ली बोली मैं भी अन्ना।।
डमरू बजा मदारी बोला, नेता खद्दरधारी बोला।
जमाखोर व्यापारी बोला मैं भी अन्ना-मैं भी अन्ना।।
अधिवक्ताओं की टोली बोली, किन्नर समाज की चुप्पी बोली।
शोषित किसान की आहें बोली मैं भी अन्ना-मैं भी अन्ना।।
भारत की सरकार है अन्ना, कालाधन व्यापार है अन्ना।
जागो भारत, करवट बदलों, यहां रिश्वत् का अधिकार है अन्ना।।
सिओ सिटी का ड़ण्ड़ा बोला, मथुरा वाला पण्ड़ा बोला।
एन0जी0ओ0 का पैसा बोला मैं भी अन्ना-मैं भी अन्ना।।
निर्धन जन की तंगी बोली, गरीबी भूखी-नंगी बोली।
हिरोइन अधनंगी बोली मैं भी अन्ना-मैं भी अन्ना।।
मिलकर सारे प्यारे बोलो मैं भी अन्ना, मैं भी अन्ना।
चन्दा, सूरज, तारें बोलो, खामोश और बेचारे बोलो।।
मैं भी अन्ना, मैं भी अन्ना।।
By: आशीष सागर
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