(Report) शौचालय के नाम पर पौ बारह
शौचालय के नाम पर पौ बारह
‘नंगे पैर चलती हूं खेत की पगडडिंयों पर, कहीं तो आड़ मिल जाये इज्जत छिपाने के लिये‘
इस पंक्ति की तह में उबलती है बुंदेलखंड की महिलाओं में दिशा मैदान जाने की टीस।
चैदह करोड खर्च होने के बावजूद बुंदेलखंड के बांदा जिले में संपूर्ण स्वच्छता अभियान का हाल सिफर है। शौचालय निर्माण के लिये जिला पंचायत राज्य विभाग में रेवडी की तरह शौचालयों का पैसा कागजो में बांटा है। दावा किया गया है कि 58 हजार ग्रामीण परिवारों को संपूर्ण स्वच्छता अभियान के तहत शौचालय मुहैया कराये गये है। हकीकत देखे तो तस्वीर इससे इतर है। बने शौचालयों में से अधिकतर ऐसे है जिन्हे बुंदेलखंड के वांिसंदे नित्य क्रिया के दौरान उपयोग ही नही करते है। आम गांव ही नही बांदा जिले के वर्ष 2012 तक चुने गये 20 निर्मल ग्राम पंचायतो में से किसी की भी गांव स्तर पर जाकर जांच नही करवायी गयी है। यकीनन अगर प्रदेश की सरकार और प्रशासनिक अमला सही जांच करवाये तो चयनित हुये सभी निर्मल गांव काली सूची मे ंचले जायेगे।
हालात ये है कि आंकडो की बाजीगरी मे जिले के 13,9,329 परिवार आज भी शौचालय विहीन है कागजी आंकडो में दर्ज बुंदेलखंड के सात जिले की 90 फीसदी जिले की आबादी आज भी खुले मैदान में शौच को जाती है संपूर्ण स्वच्छता अभियान खासकर ग्रामीण इलाकों के लिये चलायी गयी योजना है। इस योजना के तहत प्रदेश के सभी 72 जिलो के साथ साथ बुंदेलखड के सात जिलों में कही जिला पंचायती राज्य विभाग ने स्वयं तो कही स्वयं सेवी संगठनों के सहयोग से शौचालयों, सोख्ता टैंक का निर्माण करवाया है। योजना के मुताबिक 2200 रू0 प्रति शौचालय दिया जाता है। स्वच्छता कार्यक्रम के अन्तर्गत वर्ष 2009-10 में 1570.32 लाख रू0 की धनराशि जनपद बांदा में अवमुक्त की गयी। इसमे से 1438.41 लाख रू0 शौचालय निर्माण पर खर्च किये गये इस मोटी रकम मे से 58,290 शौचालयों का गांव स्तर पर निर्माण कराया गया। जिला प्रशासन की तरफ से दावा किया जा रहा है। बीस लाख की आबादी वाले जनपद बांदा में सिर्फ 1.40 लाख परिवार शौचालय विहीन है। जिला प्रशासन के लिये शायद ये आंकडा बीस लाख की आबादी के हिसाब से बहुत कम है। संपूर्ण स्वच्छता अभियान के अन्तर्गत वर्ष 2006-07 में जिले की 10 ग्राम पंचायतो को निर्मल ग्राम का दर्जा दिया गया। वहीं वित्तीय वर्ष 2010-11 के लिये निर्मल ग्राम के चयन की प्रक्रिया केन्द्र सरकार के पास भेज दी गयी है। ग्रामीण विकास मंत्रालय मे बुंदेलखंड के सभी जनपदो मे से निर्मल ग्राम के बावत सूचियां मांगी गयी है यहां पंचायती राज्य विभाग मे जनपद बांदा में वित्तीय वर्ष 2010-11 के लिये 47 ग्राम पंचायतो का प्रस्ताव ग्रामीण विकास मंत्रालय के पास स्वीकृति के लिये भेजा है। प्रस्ताव में शामिल विकास खंड महुआ से पांच बडोखर खुर्द से आठ नरैनी से आठ, बिसंडा से सात, कमासिन से सात, बबेरू से पांच, जसपुरा से दो, व विकास खंड तिंदवारी से पांच ग्राम पंचायतो को निर्मल ग्राम की सूची में प्रस्ताव के लिये भेजा है। पंचायती राज्य विभाग में इन ग्राम पंचायतो को निर्मल ग्राम का दर्जा दिलाने के लिये तैयार मसौदे के मुताबिक पिछले सालो में जिन निर्मल ग्रामो को चयनित किया गया था उनकी पोल खुलने के बाद हकीकत से वाकिफ जिला पंचायत राज्य विभाग द्वारा फूंक फूंक कर कदम उठाये गये है। ‘‘जिला पंचायत राज्य अधिकारी सुशील शर्मा ने बताया कि केन्द्र सरकार ने निर्मल ग्राम के लिये प्रस्ताव मांगे थे जिस पर ऐसी ग्राम पंचायतो को चिन्हित कर प्रस्ताव भेजना था जो कि निर्मल ग्राम के मानको को पूरा करती हो। सुशील शर्मा का कहना है कि पिछले चुने हुये निर्मल ग्रामों के प्रधानों के द्वारा उपलब्ध करायी गयी रिपोर्ट के अनुसार ही निर्मल ग्राम चयनित हुये थे।
बुंदेलखंड में गांव स्तर पर बने हुये शौचालय, स्नानघर के सम्बंध
में जब उनसे पूछा गया तो उन्होने हाथ खडे करते हुये कहा कि बुंदेलखंड मे जागरूकता
की कमी है। यह अलग बात है कि मार्च 2012 तक 508.53 लाख रू0 शौचालय निर्माण की धनराशि
पर खर्च किये जा चुके है।’’ वर्ष 2003-04 से 31 मार्च 2012 तक जिले के प्राथमिक
विद्यालयांे मे महज 1701 शौचालय बनाये गये है जबकि जनपद में कुल प्राथमिक विद्यालयों
की सं0 2100 है। प्राइमरी विद्यालयों के बालक बालिकाओं के लिये निर्मल ग्राम के
मुताबिक अलग अलग शौचालय निर्माण का मानक है। प्राथमिक विद्यालय के स्तर पर बनाये गये
बालक बालिकाओं के अलग अलग शौचालय की प्रति यूनिट 20,000 रू0 अनुदान दिया जाता है।
जनपद चित्रकूट के मारा चन्द्रा गांव और जनपद बांदा के नरैनी विकास खंड के ग्राम
उदयपुर बदौसा क्षेत्र, निर्मल ग्राम से पुरस्कृत लुकतरा गावं के शौचालय स्नानघर
भ्रष्टाचार की बानगी है। इंडिया एलाइव टीम द्वारा किये गये औचक भ्रमण, पडताल के
दरमियान सरकार को सबको आशियाना व शौचालय उपलब्ध कराने के सपने का लंगोट खोल दिया
है। बी0पी0एल कार्ड धारको की विडम्बना और उधडबुन में बुंदेलखंड के सातो जिलों मे आज
भी दिशा मैदान जाने की परंपरा बाखूबी हावी है। ग्रामीण भारत, जमीन के बुंदेलखंड को
अगर देखना हो तो नेशनल हाइवे के किसी भी सडक पर सुबह पांच बजे से लेकर सूर्योदय तक
और पूर्णमासी, अमावस्या के धार्मिक पर्व में जनपद चित्रकूट में लगी रेलम पेल भीड को
सुबह पांच बजे से सात बजे तक साइनिंग इंडिया के नाम पर देखा जा सकता है। निर्मल
गांव के मानक की बात करे तो चयनित गांव के चयन में तथ्यों को अमूमन छिपाया जाता है।
निजी शौचालयों को भी स्वच्छता अभियान मे शामिल करके दिखाना जिला पंचायत राज्य विभाग
के लिये अतिश्योक्ति पूर्ण नही है। जनपद बांदा में ब्लाक वार शौचालयों की स्थिति को
कागजी आकडो मे देखा जा सकता है।
ब्लाक | लाभान्वित परिवार | शौचालय विहीन |
बबेरू | 5781 | 20128 |
जसपुरा | 2442 | 12830 |
बिसंडा | 5735 | 14934 |
तिंदवारी | 8743 | 13163 |
कमासिन | 4956 | 11904 |
नरैनी | 9426 | 32561 |
वर्ष 2011-12 मे प्रस्तावित जनपद बांदा के निर्मल ग्राम
ब्लाक | गांव | जनपद |
जसपुरा | अमारा | बांदा |
बिसंडा | बिसंडी, कैरी | बांदा |
बांदा जिले के बीते वर्षो में बीस गांव को निर्मल ग्राम पंचायत का खिताब दिया गया
है। इनमे से छिबांव, लामा, लुकतरा, चन्द्रावल, पल्हरी, बेर्रांव, सुनहला, जंगरेही,
बगेहटा, कुचेंदू, सेगरा, बडोखरखुर्द, गौरी खुर्द, डिंगवाही, अर्जुनाह (अम्बेडकर
गांव), कनाय, खप्टिहां कला व साणी गावं केा निर्मल गांव से पुरस्कृत किया जा चुका
है। निर्मल गांव चुने जाने पर ग्राम पंचायत के प्र्रधान को राष्ट्रपति की ओर से
प्रशस्ति पत्र और 1 लाख रू0 की नगद धनराशि दी जाती है। निर्मल गांव की संच्चाई जानने
के लिये जब कोशिश की गयी तो चैकाने वाली तस्वीर सामने थी। निर्मल गांव से नवाजे जा
चुके ग्राम लुकतरा में आज भी अधिकतर शौचालय अधूरे है, किसी शौचालय का दरवाजा नही तो
किसी का छत नही। जनपद चित्रकूट के सीतापुर ग्रामीण गांव के हालात जागरूकता के अभाव
मे बद से बदतर हैै। यहां के एक दो शौचालयों में पड़ताल के दरमियान नीबू भरे पाये गये।
जिला पंचायत राज्य अधिकारी चित्रकूट का बयान है कि जनपद चित्रकूट बंुदेलखंड का
सर्वाधिक पिछडा इलाका है। ऐसे मे ग्रामीण लोगो को शौचालय में ही शौच करने की बात
समझाना बीरबल की खिचडी है।
नरैनी विकास खंड के ग्राम बघेला बारी मे शौचालय निर्माण का एक और कडवा सच यह भी है कि यहां गरीब, अन्त्योदय कार्ड धारक किसानों के लिये शौचालय की बात करना बैमानी है। बघेलाबारी के विकास यादव पुत्र स्व0 श्री सुरेश यादव ने बताया कि उसके पिता की 18 जून 2011 को मात्र 21000 रू0 कर्ज न चुका पाने के कारण खुदकुशी से मृत्यु हो चुकी है। वर्ष 2008 मेें सुरेश यादव की पत्नी सरस्वती केंसर की बीमारी से जूझती हुयी मौत के मुह मंे समा गयी। माता पिता की वीभत्स तरीके से हुयी मौत, गरीबी से लाचार विकास यादव ने कहा कि मेरे ऊपर दो छोटी बहनों का भार है। 14 वर्षीय परिवार के इस नाबालिक मुखिया का तल्ख लहजे में कहना है कि डेढ माह के लम्बे संर्घष, चार दिन तक आमरण अनशन के बाद मुझे प्रशासनिक राहत के नाम पर एक इंदिरा आवास मिला है। जिसकी पहली किस्त 30,300 रू0 प्राप्त हुयी है। शेष दूसरी किस्त त्रिवेणी ग्रामीण बैंक मे ग्राम सचिव की सत्यापन रिपोर्ट का इंतजार कर रही है। इंदिरा आवास की अधूरी दीवारों और खुले आसमान की तरफ निहारती गरीबी की छत के लिये मेरे 11,000 रू0 स्वयं के खर्च हो चुके है। क्यों कि ग्राम सचिव ने हिदायत दी है कि इंदिरा आवास के लिये एक मुश्त दी गयी 45000 रू0 की धनराशि मे ंशौचालय भी बनवाना अनिवार्य है। इधर विकास का कहना है कि बाबू जी बडती हुयी मंहगाई, एक अनाथ, भूमिहीन किसान के लिये जिसके सिर पर 14 वर्ष मे दो छोटी बहनो का भार हो क्या ग्राम सचिव की बात पूरी कर पाना मुनासिब है ? आज भी विकास का इंदिरा आवास, शौचालय, स्नान घर का स्वप्निल अरमान आकडो की दुरूस्ती में पूरा नही हो सका है।
आइने में उत्तर प्रदेश
- प्रदेश के 3.62 करोड़ घरो में नही है शौचालय, स्नानघर
- कुल 3.29 करोड घरो में से 2.14 करोड घरो में आज भी नही बने शौचालय
- 148 करोड़ घर ऐसे है जिनमे की मांैजूद नही है स्नानघर
- वर्ष 2011 की जनगणना के मुताबिक प्रदेश की 65 फीसदी आबादी हैंडपंप से पानी पीेने के लिये आश्रित है।
- 64.4 फीसदी मकानों में शौचालय नही है।
- 53.8 फीसदी घरो में रसोई घर नही है।
- 47.7 फीसदी ग्रामीण तबका आज भी लकडी, उपले, जलावन से ही बनाता है रोटीयां
- 23.3 फीसदी लोग रहते है बांस, घास, छप्पर के नीचे।
- 5 फीसदी से ज्यादा लोग पीते है प्रदूषण जनित बावडी और पोखरो का पानी
- प्रदेश की 64 फीसदी आबादी के पास उपलब्ध है हाईटैक मोबाइल फोन
बुंदेलखंड में बांदा, चित्रकूट, महोबा, हमीरपुर, जालौन, झाांसी और ललितपुर मे गांव के लगभग हर दूसरे घर में आज भी खुले मे शौच जाने का चलन घर की जवान बिटियां आम बात है। संपूर्ण स्वच्छता अभियान के तहत शौचालय व स्नानघर देखने को प्रदेश सरकार व केन्द्र सरकार के लिये भले ही खबरिया न्यूज चैनलों में विकास की अफलातून जिंदगी का हिस्सा हो लेकिन बंुदेलखंड के पिछडे क्षेत्रों मे जिला प्रशासन सहित प्रदेश सरकार के लिये भी शौचालय, स्नानघर प्रत्येक गरीब परिवार को दिला पाना विकासशील भारत की बडी चुनौती होगी। हासिये पर शौचालय और स्वच्छता से जूझती बुंदेलखंड की ग्रामीण आबोहवा के लिये जरूरी है कि नीति निर्धारको को योजना के नाम पर करोडो रू0 लुटाने के पक्ष पर मानवीय दृष्टिकोण और संवेदनशीलता अपनानी चाहिये ताकि हर गरीब को इज्जत बचाने के आड मिले़, अधखुले बदन की महिला को दिशा मैदान जाने का रास्ता न इख्तयार करना पडे।
By: आशीष सागर
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