(BLOG) "ना जीते आशा ना मरे निराशा " : रवीन्द्र व्यास

"ना जीते आशा ना मरे निराशा " : रवीन्द्र व्यास

बुंदेलखंड के लोगो की दशा इसी कहावत से मिलती जुलती है |इस दर्द को आजादी ६ दशक बीत जाने के बाद के बाद किसी ने समझा है ,वे है राहुल गाँधी |उनकी रणनीति एक सोची समझी राजनीती के तहत चल रही है |वे इस इलाके के गाव में रात बिताते है ,लोगो के दर्द को करीब से समझने का प्रयास करते है |और उसका समाधान तलाशते है ,ये अलग बात है की वे इस मामले पर उठते विरोधियो के बयानों पर ना कोई ध्यान देते ,ना कोई प्रतिक्रिया करते है |उन्होंने ने इस कार्य के लिए एक अलग टीम तेनात कर रखी है |उनकी यह टीम इस इलाके का दोरा करती है ,यहाँ की ग्रास रूट स्तर की समस्याओ को समझने का प्रयाश करती है | उनके इस दल के लोग गाव के लोगो के सामने अपनी पहचान पत्रकार,स्वयम सेवी कार्यकर्ता अथवा छात्र (रिसर्च स्कोलर ) के रूप में बताते है | ये सारे लोग एकत्र किए गए आकडो को राहुल गाँधी के सामने पेस करते है |ये आधुनिक राजनीत का वो कारपोरेट चेहरा है जो अपने विरोधियो को राजनीत की नई बिशात पर उन्ही के मोहरों से मात देने की तेयारी कर रहा है |
ये राहुल गाँधी की ही राजनीत है जिसने बुंदेलखंड से कांग्रेस के सफाए के बाद भी ७२६६ करोड़ का पैकेज बुंदेलखंड को दिलाया | उनके इस प्रयाश का शुरुआत में बीजेपी और बीएसपी ने जम कर विरोध किया था /यहाँ तक शिव राज और मायावती ने एक सुर में राग अलापा था | पर राहुल राजनीती की इस राग जुगल बंदी से दूर ही रहे ,और अपने काम में व्यस्त रहे ,उन्होंने एसे नेता की छवि भी बना ली जो वादा करके उस पर अटल रहता है |राहुल की यह राजनीती अगले चुनाव में कांग्रेस के लिए कितनी लाभदायक होगी यह वक्त ही बताएगा |