(Article) अप्रासंगिक नहीं हुआ है बुंदेलखंड राज्य का मुद्दा

अप्रासंगिक नहीं हुआ है बुंदेलखंड राज्य का मुद्दा

उत्तर प्रदेश के बंटवारे की धुर विरोधी समाजवादी पार्टी के सत्तारूढ़ होने से भले ही प्रदेश विभाजन का मसला कुछ वर्षों के लिए अटक गया सा मालूम पड़ता है . पर इतना तो तय है कि भविष्य में प्रदेश के चार टुकड़े हों या न हों किन्तु बुंदेलखंड राज्य देर सबेर बनेगा ही. हालाँकि बुंदेलखंड राज्य गठन के औचित्य के पीछे दर्जनों कारण हैं पर प्रमुख कारण है यहाँ की विषम भौगोलिक परिस्थितियां और इसका आर्थिक पिछड़ापन |

पिछले कुछ वर्षों के दौरान बुंदेलखंड एकीकृत पार्टी तथा अन्य स्थानीय संगठनों द्वारा किये गए आन्दोलनों की बात की जाये या राहुल गाँधी तथा मायावती द्वारा बुंदेलखंड राज्य के गठन के औचित्य को सार्वजनिक तौर से स्वीकारने की बात हो, यह मुद्दा प्रदेश तथा देश स्तर की राजनीति में चर्चा का विषय रहा, पर हाल ही में संपन्न विधान सभा चुनावों में बुंदेलखंड राज्य का मुद्दा गौण सा हो गया था.
यह विद्रूप ही है कि विस चुनाव के ऐन पहले तक बुंदेलखंड के प्रति छदम "प्रेम" दर्शाते रहे कांग्रेस तथा बसपा जैसे दलों ने चुनाव प्रचार के दौरान इस मुद्दे से काफी दूरी बनाये रखी. यद्यपि यहाँ के एक दो स्थानीय संगठनों ने विस चुनाव में कुछेक प्रत्याशी उतारे जरूर थे पर बुन्देली मतदाताओं ने इस मुद्दे को कोई तवज्जो नहीं दी . इन सब बातों से एकबारगी तो लगता है कि मानो बुन्देलखंडी लोगों ने ही अपनी मांग को नकार दिया है . किन्तु इतनी जल्दी में यह निष्कर्ष निकालना तार्किक नहीं होगा कि यह मुद्दा अब अप्रासंगिक हो गया है |

यदि सर्वेक्षण कराया जाये तो परिणाम सामने आएगा कि बुंदेलखंड की 90 फीसदी जनता बुंदेलखंड राज्य गठन की दिल से हिमायती है. बता दें कि चार वर्ष पहले 29 जुलाई 2008 को "बुंदेलखंड एकीकृत पार्टी " के आह्वान पर सम्पूर्ण "बुंदेलखंड बंद" के दौरान यहाँ के मोची और पान की दुकान लगाने वालों से लेकर क्रेशर मालिकों तक सभी ने अपने प्रतिष्ठान स्वेच्छा से एक दिन के लिए बंद कर प्रतीकात्मक हामी भरी थी कि वे बुंदेलखंड राज्य के पक्षधर हैं. उनका यह सहयोग स्वाभाविक भी था क्योंकि वे जानते है कि बुंदेलखंड राज्य का गठन उनके दीर्घकालिक विकास की गारंटी है |

पर प्रश्न उठता है कि यह मुद्दा चुनावों में राजनीतिक रंग क्यों नहीं ला पाता है? इसके पीछे प्रमुखतः दो कारण हैं . प्रथम कारण तो सुप्रसिद्ध प्रबंधकीय चिन्तक तथा दार्शनिक अब्राहम मास्लो के " आवश्यकता सिद्धांत" से स्पष्ट होता है कि जब तक मनुष्य की मूल शारीरिक आवश्यकताएं पूरी नहीं होतीं हैं तब तक वह अपनी सामाजिक तथा राजनीतिक आवश्यकताओं के प्रति नहीं सोचता है. बुंदेलखंड में बार बार सूखा तथा अकाल की त्रासदी से यहाँ का आम आदमी दशकों से भीषण गरीबी का दंश झेल रहा है . वह दिल से चाहता तो है कि बुंदेलखंड राज्य बने ताकि यहाँ विकेन्द्रित विकास हो और उसकी आने वाली पीढियां निर्धनता के अभिशाप से मुक्ति पा सकें . पर यह भी सच है कि परिवार के लिए दो जून की रोटी का जुगाड़ छोड़कर वह आन्दोलन के लिए समय नही दे सकता है. चुनावों के समय भी कहीं न कहीं उसकी गरीबी ही आड़े आती है जब राजनीतिक आकाओं द्वारा उसकी गरीबी का फायदा उठाते हुए कागज के चंद टुकड़े फेंक कर, ऋण बसूली का दबाव डालकर या भय दिखाकर उसका वोट हड़प लिया जाता है |

दूसरा कारण है, बुंदेलखंड राज्य की मांग करने वाले संगठनों में समन्वय का अभाव तथा प्रभावी केन्द्रीय नेतृत्व की कमी . यहाँ "बुंदेलखंड एकीकृत पार्टी" के अलावा "बुंदेलखंड मुक्ति मोर्चा" तथा "बुंदेलखंड कांग्रेस" जैसे अन्य छोटे संगठन भी है किन्तु सबकी अपनी अपनी ढपली तथा सबका अपना अपना राग है. मुक्ति मोर्चा के संस्थापक शंकर लाल मेहरोत्रा के निधन के बाद आन्दोलन छिन्न भिन्न सा हो गया था विशेषकर जब इसकी कमान सिने अभिनेता राजा बुंदेला के हाथ में आयी. दरअसल मुम्बई में बैठकर बुंदेलखंड की लड़ाई नहीं लड़ी जा सकती थी. मुद्दे में उत्पन्न निर्वात की स्थिति को भरने के लिए 2006 में गठित बुंदेलखंड एकीकृत पार्टी के जमीनी आंदोलनों से काफी हद तक जनांदोलन जैसी स्थिति बनने लगी थी पर अन्य स्थानीय संगठनो के असहयोगी रवैये से परिणाम अपेक्षानुकूल नहीं मिले |

राजा बुंदेला ने भारी भूल तब कर दी जब पिछले वर्ष मुक्ति मोर्चा छोड़कर जल्दबाजी में एक तीसरे संगठन " बुंदेलखंड कांग्रेस " का गठन कर चार दिन का होम वर्क किये बिना ही विधान सभा चुनाव में भाग ले लिया. इतने गंभीर विषय को मुद्दा बनाकर बिना पर्याप्त जनसंपर्क किये वि चुनाव में उतरना उनका बचपना साबित हुआ.इसलिए बुंदेलखंड राज्य के मुद्दे पर उन्हें मिला वोट प्रतिशत मुद्दे के प्रति जनाकांक्षाओं का अंश मात्र भी प्रतिनिधित्व नहीं करता है. लिहाजा उनके संगठन की बुरी पराजय को बुंदेलखंड राज्य की मांग को अप्रासंगिक का देना पूरी तरह गैर लाज़मी है |

By: Harvilas Gupta