(Book) बुन्देल केसरी छत्रसाल : बुन्देली भाषा नाटक by कैलाश मड़्वैया

(Book) बुन्देल केसरी छत्रसाल : बुन्देली भाषा नाटक by कैलाश मड़्वैया

About Book:

दो शब्द-

छत्रसाल भारतीय मध्यकाल के मध्यदेश में अत्यन्त जाज्वल्यमान नक्षत्र थे ठीक वैसे ही जैसे महाराष्ट् में शिवाजी और राजस्थान में राणा प्रताप परन्तु इस ‘बुंदेल केसरी’ को वैसा स्थान नहीं मिल पाना हम बुंदेलखण्ड के साहित्यकारों का प्रमाद ही माना जायेगा भले हम कहने को औरो को जब तब दोष देते रहें। हालाॅंकि अब इस दिषा में सत्त काम हो रहा है। अखिल भारतीय बुंदेलखण्ड साहित्य एवं संस्कृति परिषद्, पन्ना और छतरपुर से छत्रसाल को बाहर निकाल कर विगत 30 वर्षों से भोपाल में ही नहीं वरन् दिल्ली,नेपाल और सिंगापुर तक में छत्रसाल पर कार्यक्रम संयोजित कर चुकी है और अब तो भोपाल में छत्रसाल की प्रतिमा भी स्थापित होने जा रही है जिसका षिलान्यास छत्रसाल की 350 वीं जयन्ती पर अखिल भारतीय बुंदेलखण्ड साहित्य एवं संस्कृति परिषद् ने ही भव्य स्तर पर कराया था। दिल्ली में तो छत्रसाल के नाम पर स्टेडियम बहुत पहले से है।

छत्रसाल पर बुन्देली में यह सम्पूर्ण नाटक लिख कर आदरणीय कैलाष मड़बैया जी ने सचमुच स्तुत्य कार्य किया है और बुन्देली में एक बड़े अभाव की पूर्ति की है। बुन्देली में निष्चित ही यह पहला समग्र नाटक है। श्री मड़बैया जी ने तो अपना सारा जीवन ही बुन्देली और बुंदेलखण्ड को समर्पित कर दिया है। बुन्देली गद्य के तो वे वास्तव में ‘जनक’ ही कहे जायेंगे। 1990 के पहले बुन्देली गद्य में कोई साहित्यिक कृति देखने में नहीं आई थी तब कैलाष मड़बैया ने ही ‘बाॅंके बोल बुन्देली के’ प्रकाषित कर तहलका मचा दिया था क्योंकि अब तक न केवल बुन्देली में वरन् भोजपुरी और ब्रज या अवधी जैसी बड़ी लोक भाषाओं में भी गद्य लगभग नगण्य या अनुपलब्ध रहा है। फिर तो मड़बैया जी ने पीछे मुड़कर नहीं देखा। बुन्देली मानकीकरण का आन्दोलन चलाया और बुन्देली कार्य शालायें जगह जगह संयोजित कीं।‘मीठे बोल बुन्देली के’एवं‘नीके बोल बुन्देली के’ग्रंथ प्रकाशित कर बुन्देली में गद्यलि खने वाले सैकड़ों लेखक उन्होंने तैयार ही नहीं किये वरन् इन्हें प्रकाषित भी    किया। बुन्देली में लोक कथायें,यात्रा वृतान्त,काव्य,आलोचना,इतिहास,अनुवादआदि    

प्रकाषन के साथ बुन्देली नायकों यथा छत्रसाल,जगनिक आदि पर पुरस्कार देना इन्होंने ही शुरु किया।बहुत कठिन लगता था कि किसी लोक भाषा में ललित निबंध कैसे लिखे जा सकंेगे? तब श्री कैलाष मड़बैया ने ‘बुन्देली के ललित निबंध’ लिखकर साहित्य जगत में सभी को चैंका दिया था और उस ग्रंथ का लोकार्पण भी धमाकेदार हुआ था नेपाल के राष्ट्पति द्वारा पहले बुन्देली के अन्तर्राष्ट्ीय सम्मेलन काठमाण्डु में,जिसे 50 हजार भारतीय रु.या कहें 80000 नेपाली रुपयों का वहाॅं अन्तर्राष्ट्ीय सृजन सम्मान भी प्रदान किया गया था।‘बुन्देली भक्तामर’संस्कृत भाषा से बुन्देली में रुपान्तरण कर श्री कैलाष मड़बैया ने,पहली कृति हिमालय पर्वत पर जाकर अष्टापद तीर्थ स्थित, ‘कृति-आराध्य’ प्रथम जैन तीर्थंकर आदिनाथ की निर्वाण भूमि,12000 फुट की उॅंचाई पर,सपत्नीक, 70 वर्ष की वय में चढ़कर समर्पित की थी और फिर ‘भारत भवन’ में देष के गृह मंत्री और गवर्नर आदि ने उनका एवं कृति का अभिनन्दन किया था। पद्य सहित तो श्री कैलाष मड़बैया ने हिन्दी के कुल मिलाकर, लगभग 26 ग्रंथ रचे हैं,जिनमें सचित्र बुन्देली काव्य ‘जय वीर बुंदेले ज्वानन की’ को तो वास्तव में अ़िद्वतीय माना जाता है।सृजन जारी है।अब इतना सृजन करने के बाद भी श्री कैलाष मड़बैया को बुन्देली का ‘भारतेन्दु हरिष्चद्र’तो कहा ही जायेगा क्योंकि तीस वर्षो से भोपाल में और अब ओरछा में अनवरत बुन्देली भाषा के राष्ट्ीय सम्मेलन कर बुन्देली का सत्त सृजन,संवर्धन और संरक्षण करना कराना,मडबैया जी के ही बूते की बात है। वरना बुन्देली मेलों के नाम पर राई नचाना,वार्षिक स्मारिकाये निकालना और पंगतें करने के राजनैतिक समारोह तो जगह जगह होते ही रहते हंै। इन्ही उपलब्धियों के कारण ही हिन्दी संस्थान ने श्री कैलाष मड़बैया को 2लाख रु.का ‘राष्ट्ीय लोक भूषण सम्मान-2016’और प्रयाग हिन्दी सम्मेलन ने अपनी स्वर्ण जयन्ती पर मानद ;डाक्टरेटद्धविद्या वारिधि की उपाधि से नवाजा था।दुनिया के दस देषों में रचना पाठ और देष-विदेष के अनेक सम्मान तो प्रथक हैं। यह वास्तविकता है कि हिन्दी के साथ बुन्देली में मौलिक सृजन के लिये ,साहित्यिक इतिहास में श्री कैलाष मड़बैया को सदैव स्मरण किया जाता रहेगा।            

प्रस्तुत कृति‘बुन्देली नाटक छत्रसाल’ अपने संवादों,एतिहासिक तथ्यों और बुन्देली बाॅंकपन के लिये निष्चित ही मील का पत्थर सिद्ध होगा। ऐसा हमारा द्रढ़ विष्वास है।

डाॅ0 परषुराम षुक्ल 

बंदेलखण्ड दिवस,25 जून 2017

वरिष्ठ साहित्यकार एवं पूर्व प्राध्यापक        

Book Details:

​​Book Chhatrsal Natak ISBN is-978-93-83899-25-8
Publisher- adivasi  lok kala evm boli akedmi, madhya pradesh sanskriti parishad,madhyapradesh jan jatiy sangrahalay, shyamla hillls ,Bhopal 462003 Phone-0755 2661948   
Writer- shri kailash madbaiya, 75 chitragupta nagar, kotra, 
Bhopal 462003 mp, mobile- 9826015643
Prize-- rs 50-00 only
Pages-- 144, cover page- coloured

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