(Festival) बुन्देली उत्सव : Bundeli Utsav


बुन्देली उत्सव


एक सप्ताह तक चलने वाले बुन्देली उत्सव के दौरान बसारी गांव में सात दिनों तक इतनी चहल पहल रहती है जैसे मेला लगा हो। दिन में खेलकूद, रात में सांस्कृतिक कार्यक्रम होते है जिसमें नन्हें मुन्हें से लेकर बढे बूढे पुरुष महिलाएं सजे धजे स्टेडियक में पहले आकर अपना स्थान सुरक्षित कर लेते है। 50 हजार की क्षमता वला छत्रसाल स्टेडियम दर्शकों से खचाखच भरा रहता है। इस अनोखे आयोजन के समय जिला प्रशासन ने भी शासन की नीतियों, योजनाओं के प्रचार प्रसार के लिए विभिन्न विभागों की प्रदर्शनियां लगवाई है।

इस सात दिवसीय बुन्देली उत्सव समारोह में प्रारंभ नई पीढ़ी को बुन्देली सांस्कृतिक विरासत के प्रति आकर्षित करने तथा उन्हें उसमें रचने बसने हेतु प्रेरित करने के उददेश्य से स्कूली बच्चों के बुन्देली सांस्कृतिक कार्यक्रमों की प्रतियोगिताओं से होता है जिसमें ननहे मुन्ने बच्चे गायन वादन व नृत्य की बुन्देली विधाओं में बढ चढ कर तैयारी कर अपनी प्रस्तुतियां देते है। इसी के साथ बुन्देलखण्ड की परंपरागत वेशभूषाओं को प्रोत्साहित करने हेतु वरिष्ठ व कनिष्ठ वर्ग की बुन्देली पोशाक प्रतियोगिता होती है जिसके परिणाम काफी उत्साहजनक रहे है। इसी के साथ बुन्देलखण्ड के रंगमंचीय कलाकारों की अभिनय क्षमता को रंखांकित करने हेतु बुन्देली नाटक प्रतियोगिता का आयोजन होता है। इस प्रतियोगिता में नाटय दल को 30 से 40 मिनट का समय दिया जाता है जिसमे उसे अपने कथानक को समेटना होता है। नाटक की भाषा बुन्देली होती है। अभी तक अनेक नाटय मंडलियों ने भागीदारी करके बुन्देलखण्ड की संास्कृतिक विरासत के प्रस्तुतीकरण के साथ यहां के शोषण, अशिक्षा, अन्याय व अन्य समस्याओं को उठाकर जन जागरण करने का प्रयास किया है। दीपशिखा मंच दतिया के मंचे हुए कलाकारों ने हरदौल तथा सुन्दरिया जैसे नाटक का प्रदर्शन विशेष रूप से किया है। इसके अलावा निर्धारित तिथियो को दिवारी, रावला कछयाई, चमरयाई बैठक, ढिमरयाई, बधैयानृत्य, बरेदी, आल्हा, दल दल घोडी ख्याल, कहरवा, सोहरे, दादरे बिलवारी, गोटे, गारी लमटेरा कार्तिक गीत फाग तथा राई आदि जैसी विधाओं की प्रतियोगितायें सम्पन्न कराई जाती है। इसमें बुन्देलखण्ड के सभी कलाकारों व कलामंडलियों से नाम मात्र की पंजीयन शुल्क के साथ एक निश्चित तिथि तक पंजीयन कराया जाता है मंच पर प्रदर्शन के पूर्व स्क्रीनिंग कमेटी द्वारा उनका प्रारंभिक परीक्षण करने के उपरांत उन्हें मंच पर भेजा जाता है। गायन वाली विधाओं के कला साधकों को 5 से 8 मिनट तथा नृत्य वाली विधाओं के कलाकारों को 10 से 15 मिनट का समय दिया जाता है कलाकारों की कला को परखने हेतु क्षेत्र के ख्यातिनाम तीन विद्वान व कला साधको को निर्णायक के रूप् में बिठाया जाता है उनके द्वारा निर्णय को अंतिम माना जाता है बुन्देली विकास सस्थान प्रति विधा मे प्रथम व द्वितीय स्थान पर आने वाले दलों व कलाकारों को पुरस्कृत करता है इसके अलावा 25 किमी की अधिक दूरी से आने वाले खिलाडियों व कलाकारों को वास्तविक किराया मुफ्त आवास व भोजन व्यवस्था संस्थान द्वारा दी जाती है। इसी दौरान कुश्ती हेतु द ंगल व बैलगाड़ी दौड का आयोजन भी होता है। कुश्ती में भाग लेने हेतु न केवल बुन्देलखण्ड अंचल बल्कि पंजाव, हरियाण, उ0प्र0 आदि स्थानों से पहलवान भाग लेने आते है इसी तरह बैलगाडी दौड अत्यधिक रोमांचकारी होती है जिसको देखने हेतु बडी संख्या में जन समूह उमडता है। बैलगाडी दौड में भागीदारी हेतु छतरपुर महोबा हमीरपुर सागर दमोह पन्ना तथा टीकमगढ़ जिले के किसान अपनी बैलगाडियों जहा सजाने हेतु वर्षभर तैयार करते है वही बैलों को खिलापिलाकर तैयार रखते है इस बैलगाडी दौड को जीतने हेतु अंचल के किसानों में एक स्पर्घा भावना विकसित हो गयी है। बैलगाडी दौड के विजेता को एक बैलगाडी तथा नकद राशि दी जाती है ज्ञात हो कि बुन्देली उत्सव मं सागर दमोह टीकमगढ पन्ना बांदा महोबा झांसी दतिया उरई हमीरपुर छतरपुर तथा जबलपुर जिले के कलाकार व खिलाडी सक्रियता से हिस्सा लेते है।

बुन्देली उत्सव क दौरान ही बुन्देलखण्ड के सांस्कृतिक साधकों इतिहासकारांे व विद्वानों की सेवाओं को रेखांकित करने के उददेश्य से इनका सम्मान किया जाता है । इतिहास के क्षेत्र मंे महत्वपूणर््ा काय्र करने वाले इतिहासकारों को बुन्देलखण्ड के प्रसिद्ध इतिहासकार स्व0 दीवान प्रतिपाल सिंह के नाम से सम्मान दिया जाता है यह सम्मान श्री महेन्द्र, प्रताप सिंह नई दिल्ली को दिया गया। जिन्होंनंे छत्रसाल प्रमाणावली का सम्पादन किया वे अस्वस्थता के कारण बसारी नही आ सके जिससे संस्थान के संरक्षक श्री शंकर प्रताप सिंह बुंदेला ने नई दिल्ली में उनके निवास पर जाकर उन्हें सम्मान पत्र व राशि प्रदान की। इसी तरह संस्कृति व भाषा के क्षेत्र में सृजनरत विभूतियेों को स्व0 रावबहादुर सिंह बुन्देली बसारी सम्मान दिया जाता है। यह सम्मान 2011 में बुन्देली के वरिष्ठ कवि श्री माधव शुक्ल मनोज सागर को रचनात्मक योगदान हेतु डां0 नर्मदा प्रसाद गुप्त छतरपुर एवं इतिहास में शोध परक कार्य करने हेतु श्री जयंत सिंह परमार बुडरक को प्रदत्त कियां। 2002 का यह सम्मान बुन्देली के वरिष्ठ कवि विंध्य कोकिल पं0 भैयालाल व्यास छतरपुर, रचनात्मक हेतु अयोध्या प्रसादगुप्त कुमुद उरई को, समीक्षा एवं संस्कृति हेतु, चैमासा के सम्पादक डा0 कपिल तिवारी भोपाल को व इतिहास के क्षेत्र में महत्वपूर्ण कार्य हेतु श्री लक्ष्मण सिंह गौर ओरछा को प्रदत्त किया गया। 2003 का यह सम्मान भाषा के क्षेत्र में महत्वपूर्ण कार्य करने वाले डां कैलाश बिहारी द्विवेदी टीकमगढ को , साहित्य के क्षेत्र में डा0 कन्हैया लाल शर्मा कलश, गुरसराय को एवं आलोचना के क्षेत्र में ईशुरी, के पूर्व सम्पादक डा0 कांतिकुमार जैन सागर को प्रदत्त किया गया।

बुन्देली उत्सव के दौरान अभी तक झांसी की श्रीमती मधु श्रीवास्तव, कुण्डेश्वर के पंडित गुणसागर सत्यार्थी तथा छतरपुर के श्री नीरज सोनी के लोकचित्रों व कार्टूनों आदि की प्रदर्शनी के साथ बुन्देलखण्ड की मूर्तिकला के कला साधक बालचन्द्र कुम्हार धमना की कलाकृतियों की प्रदर्शनी लगायी गयी। इसी उत्सव के साथ राष्ट्रीय बाल साहित्य केन्द्र नई दिल्ली के सहयोग से बच्चों में कहानीलेखन, चित्रांकन, कविता लेखन तथा पुस्तक समीक्षा लेखन हेतु महत्वपूर्ण कार्यशाला का आयोजन पंकज चतुर्वेदी के सहयोग से किया गया।
बुन्देली उत्सव के दौरान बुन्देली व् ंयंजन प्रतियोगिता का भी महत्वपूर्ण आयोजन होता है।

जिसमें विलुप्त हो रहे बुन्देली व्यंजनों से लेकर आज के लोकप्रिय बुन्देली व्यंजनो का प्रदर्शन किया जाता है। इसमें खजुराहों के 5 स्टार होटलों से लेकर ग्रामीण महिलाए बढ चढ कर भागीदारी करती है। तथा क्षेत्र के आम जन मानस के साथ विशिष्ट व्यक्ति भी इनका स्वाद चखकर अभिभूत होते है।

विगत वर्ष म0प्र0 आदिवासी लोक कला परिषद के सहयोग से गणगौर, ढिडिया व राजधानी लोकनृत्य कालबेलिया की महत्वपूर्ण प्रस्तुतिया दी गयी। इसी तरह उ0प्र0 संस्कृति विभाग के जन जातीय एवं लोक कला संस्कृति संस्थान लखनऊ के सहयोग से दीवारी पाई डण्डा, कछयाई, राई, एवं सैरा, तथा ब्रज का प्रसिद्ध लोकनृत्य चरकुला प्रस्तुत किया गया। बुन्देली विकास संस्थान व म0प्र0 आदिवासी लोक कला परिषद ने यह प्रस्तुतियां इस मंशा से दी जिससे बुन्देलखण्ड के कलाकार अंचल से बाहर की कला साधाना को देख परख सके। इस अवसर पर बुन्देली साहित्य के बुक स्टाल भी लगाये जाते है जिसमें लोग अपने क्षेत्र के रचनाकारों की रचनाओं को खरीदकर पढते है।

बुन्देली विकास संस्थान द्वारा प्रतिवर्ष एक पत्रिका बुंदेली बसंत का प्रकाशन आलेख लेखक के संपादन में डा0 के एल पटेल तथा हरीसिंह घोष के सहयोग से किया जाता है जिसमें महत्वपूर्ण शोधात्मक आलेखों के अतिरिक्त बुन्देली की रचना शीलता को प्रस्तुत करने का प्रयत्व किया जाता है। बुन्देली विकास संस्थान इसके अलावा अन्य साहित्यिक पुस्तकों का प्रकाशन भी कर रहा है। तथा बुन्देली रचनाकारों को आर्थिक सहायता प्रदत्त कर साहित्य प्रकाशन में सहयोग कर रहा है।

बुन्देली उत्सव के दौरान म0प्र0 उ0प्र0 के महत्वपूर्ण राजनेताओं के साथ साहित्यकार व संस्कृतिकर्मी इस आयोजन में पधारकर उत्सव को सफल बनाते है। यह आयोजन आज बुन्देलखण्ड का महत्वपूर्ण उत्सव बन गया है। जिसमें सम्पूर्ण अंचल की झांकी देखी जा सकती है। इसकों सफल बनाने हेतु अंचल के अनेक कार्यकर्ता व पदाधिकारी दिनरात परिश्रम करते है।

Bundeli Utsav is Organised by:

Bundeli Vikas Sansthan
Mahal Parisar, Chhatarpur 471001
Contact Person : Shri Atindra Mani Tripathi
Mobile Number : +91 8851436932, 9406921795
Landline : 07682 241310
Website: http://bundeliutsav.com