बुंदेलखंड : एक सांस्कृतिक परिचय - प्रतिमाओं में प्रयुक्त वस्र ( Clothes Used in statues)
बुंदेलखंड : एक सांस्कृतिक परिचय
प्रतिमाओं में प्रयुक्त वस्र ( Clothes Used in statues)
मूर्तियों में दर्शाये गये वस्रों के अध्ययन से खजुराहो के सामाजिक तथा आर्थिक जीवन को आकलन करने में सहायता मिलती है।
प्रायः देवी- देवता कभी भी ऊपरी वस्र नहीं पहनते हैं। सिर्फ सूर्य देवता ही ऊपरी वस्र पहनते हैं। खजुराहो की नारियों को भी ऊपरी भाग पर वस्र नहीं दिखाया गया है। ये कुछ विशेष अवसरों पर ही शरीर के ऊपरी भाग पर वस्र धारण करती थी। यहाँ ऊपरी शरीर पर पहना जाने वाला दुपट्टा, केवल सजावट के रुप में ही उपयोग किया है। दुपट्टा छोटे आकार का दिया गया है, जो प्रायः हवा में लहराते हुए है, परंतु यहाँ ऐसी भी कई नारियाँ दिखाई गई हैं, जिन्होंने दुपट्टे नहीं ओढ़े हैं। खजुराहो की नारी मूर्तियों को ऊपरी वस्र न पहनाना, संभवतः कलाकार द्वारा मूर्ति को विशेष आकार देना भी हो सकता है। प्रतिमाओं में नाभि से नीचे के वस्र एवं गहने विविध प्रकार के हैं और ये सारे मानवीय आकृतियों में भी कुछ परिवर्तन के साथ देखने को मिलते हैं। देवी- देवताओं के वस्र एवं आभूषण मध्ययुगीन नृपों और रानी- महारानियों के वस्रों व आभूषणों से मिलते- जुलते लगते हैं।
साड़ी नारी का प्रिय वस्र है। सुरा- सुंदरियाँ प्रायः टखनों पर साड़ी का उपयोग करती हैं। देवियों को भी साड़ी पहने हुए दिखाया गया है। इन साड़ियों को इस तरह बाँधा गया है कि उन्हें चलने- फिरने में कष्ट का सामना न करना पड़े। साड़ी को कसा हुआ, पजामें की तरह बंधे हुए दिखाया गया है। साड़ी पहनने का एक और अंदाज भी दिखाया गया है। जिसमें घुटनों से थोड़े ऊपर ही साड़ी को बांधा गया है और कहीं- कहीं तो साड़ी को जंघाओं के ऊपरी भाग तक ही सीमित कर दिया गया है, जैसे दूलादेव मंदिर में नृतकों द्वारा साड़ी का शरीर के साथ एक कसाव है।
खजुराहो की नारी प्रतिमाओं की तरह पुरुष भी ऊपरी शरीर के ऊपर, वस्र नहीं पहने हुए है, परंतु सर्वत्र उत्तरीय धारण करना पुरुष के लिए अनिवार्य है। उत्तरीय को गले की ओर से डालकर छाती पर लटकाने का प्रचलन दिखाया गया है।
इसका उपयोग उच्च जाति के पुरुष, सेवा- अधिकारी और अध्यापक वर्ग में अधिक प्रचलित दर्शाया गया है। देवताओं में कहीं- कहीं चीवर पहनने की भी प्रथा है। भगवान राम के प्रसंग में यह दर्शनीय है। यहाँ पुरुष धोती पहनते और कभी- कभी अंगोछा भी बांधे दिखाए गए हैं। सेवकों के लिए, प्रायः नेकरनुमा पहनना आवश्यक था। यहाँ भी सेवकों को यही पहने दिखाया गया है।
राजाओं में धोती के साथ- साथ पगड़ी भी पहनने का रिवाज था। जैकेटनुमा कोट भी राजघराने के लोग पहनते थे। कुछ सामान्य पुरुषों में धोती के स्थान पर चादर ओढ़ने का रिवाज था। सिपाहियों में धोती पूरे बाजू का कपड़ा और पगड़ी पहनते थे और उनके सिर पर टोपी भी होती थी। शिकारियों के पाँव में चप्पल जैसे जूते हुआ करते थे। बच्चों को प्रायः वस्र नहीं पहनाए गए हैं, पंरतु उनकी कमर में किंशज जरुर बंधी पाई गई है।
केशविन्यास (Hair style)
नारियों की केश- सज्जा (Feminine hairstyle) :
नारियों की सुंदरता और उसके आकर्षण के लिए बालों का सुसज्जित होना आवश्यक है। खजुराहो में भी बालों को बाँधना और उसको मोड़ना प्रायः प्रचलित था। यहाँ की नारियाँ बालों को पीछे की ओर बाँधकर तथा सिर के बीच ले जाकर मोड़कर बाँधती थी। इस प्रकार उनके बाल का कुछ खुला हुआ भाग पीठ पर फैल जाता था या उन्हें रुमाल से बाँधकर विन्यास किया जाता था। खजुराहों में नारियाँ प्रायः बालों को एक गाँठ देती है,पर इसके बाँधने का तरीका अलग- अलग है।
कभी- कभी नारियाँ लंबी वेणी को इकट्ठे करके एक बड़े गांठ बना देती थी और इस गाँठ पर बोरला नामक आभूषण पहनती थी। बोरला के अतिरिक्त विश्वनाथ मंदिर की एक महिला ने ताजनुमा गहने भी पहन रखा है। यहाँ बालों में पुष्प भी बांधने का रिवाज भी देखने को मिलता है। विश्वनाथ मंदिर में एक महिला का बांसुरी बजाते हुए देखाया गया है, जिसने गांठ द्वारा अपने बालों को पीछे की ओर बांध रखा है। इनके बालों में कीमती पत्थरों की वेणी है और आभूषण बालों के नीचे और ऊपर स्पष्ट दिखाई देते हैं। लंबे बालों वाली स्रियाँ बालों को घुंघराले बनाकर गर्दन पर छोड़ देती थी। झुमका या चारुलतिका जैसे आभूषणों का भी नारियाँ, बालों में उपयोग करती थी। माथे पर कहीं- कहीं कोमल घुंघराले बालों को लहराने दिया गया है। लंबी चुटियों का रिवाज नहीं था और न ही ढ़ीली चुटियों का। प्रायः बालों को बाँधकर कंधों के ऊपर ही सीमित कर दिया जाता था।
पुरुष की केश सज्जा (Man's hairstyle) :
खजुराहो की प्रतिमाओं को देखकर ऐसा लगता है कि पुरुष की सज्जा में बालों को ज्यादा महत्व नहीं दिया गया है। लक्ष्मण मंदिर के एक पुरुष के बालों से आधुनिकता की झलक मिलती है, क्योंकि इसके बाल छोटे- छोटे कटे हुए हैं। प्रायः साधुओं के बालों में गाँठ बाँधने का रिवाज देखने को मिलता है। खजुराहो की प्रतिमाओं में कुछ पुरुष प्रतिमा में दाढ़ी और मुँछ देखने को मिलती है। अग्नि देवता की दाढ़ी में गांठ बंधी हुई दिखाई देती है। यहाँ लंबी दाढ़ी रखने का रिवाज देखने को नहीं मिलता , जबकि लंबे बालों को अच्छी तरह से सजाने और संवारने का प्रमाण मिलता है।
प्रसाधन (dressing) :
खजुराहो की तत्कालीन महिलाओं में सौंदर्य- प्रेम खूब झलकता है। महिलाओं में चेहरे, माथे पर खुशबूएँ एवं पाउडर लगाना सामान्य बात थी। अधिकतर नारी प्रतिमाओं के माँग में सिंदूर भरना, आँखों में काजल लगाना, होंठों को रंगों से लाल करना, पाँव में और हथेलियों में रंग लगाना पाया गया है। बिंदी का प्रयोग सदैव महिलाओं द्वारा होता आ रहा है। खजुराहो के स्री एवं पुरुष दोनों के माथे पर बिंदी लगाने का रिवाज पाया
जाता है। दुलादेव की एक पुरुष प्रतिमा में माथे पर बिंदी का प्रयोग किया गया है। तत्कालीन महिलाएँ उसीरा घास तथा संदल की लकड़ी के अनुलेष बनाती थी और शरीर पर लगाती थी। मंशिला, फलों और हरितलाल के रस से तेल बनाया जाता था।
बालों को खुशबूदार करने के लिए महिलाएँ एवं पुरुष काले अगरु, लोधर धुली और धूप का प्रयोग किया करते थे। कस्तुरी का प्रयोग भी शरीर को सुगंधित करने के लिए किया जाता था। नारियाँ चंदन और कुमकुम का उपयोग चेहरा और वक्ष पर करती थी। इसके अलावा चेहरे को सजाने के लिए अनेक रंगों का उपयोग किया करती थी। नारियाँ होठों पर आल्तक लगाने और इसपर अधिक सुंदरता लाने के लिए आल्तक पर लोधर चूर्ण बिखेरती थी। पुरुषों के सिर और वेणी को सुंदर बनाने में काफी महत्व दिया जाता था। तत्कालीन खजुराहो में आरसी का प्रयोग वस्र- आभूषण और प्रसाधन में खुलकर किया जाता था।
नारियों में आँखों का विन्यास विशेष महत्व रखता है। तत्कालीन महिलायें भी पलकों, भौहों तथा बरौनी की सजावट में अधिक ध्यान देती थी। पलकों और भौहों को रंगने के लिए काले रंग का भी प्रयोग किया जाता था।
आभूषण (Jewelery) :
खजुराहो काल की महिलाएँ, अनेकानेक प्रकार के आभूषणों का उपयोग करती थी। वे अपने सौंदर्य के प्रति इतनी सतर्क थी कि समय व स्थान के अनुसार ही इनका उपयोग करती थी। इनमें सिर से लेकर पैर तक के आभूषणों का पता चलता है। बोरला सिर पर बांधे जाने वाला आभूषणों में प्रमुख है। सिर को सजाने के लिए अलग- अलग प्रकार के मनकों को मालानुमा बनाकर लटकाने का रिवाज पाया जाता था। इसके अतिरिक्त राजगृहों की नारियाँ मुकुट पहनती थी तथा अमीर घराने की नारियाँ मोतियों का जाल बिछाकर मुक्तजाल आभूषण शरीर में बांधती थी।
खजुराहो की प्रतिमाओं पर पाये जाने वाले आभूषणों में कुंडल, बालियाँ, फूल, झूमके, कर्णफूल, कुंडल, मनकें, नेकलेस, हंसली, कैयूर, अंगत, अंगूठियाँ, मेखला, पांजेब, मंजीरा, तुलाकोटी, नुपूर, हंसक, बेंदा, चक्र, कंकण, हस्तफूल, कंगन तथा पायल प्रमुख आभूषण हैं।
खजुराहो की मूर्तियों के गले में पाये जाने वाले प्रमुख आभूषण
मनके (Manke) :
यह मोतियों का एकहरी या दोहरी या तिहरी पंक्ति का आभूषण है, जो गले में पहना जाता है।
नेकलेस (Neckless) :
यही गले से चिपकने वाले छोटे आकार के तथा वक्ष तक फैले हुए लंबे आकार के आभूषण हैं, जो मोतियों या इस जैसी दूसरी वस्तुओं के बने होते हैं। खजुराहो की प्रतिमाओं में स्री और पुरुष दोनों के गले में दो लड़ियों वाले नेकलेस देखे जा सकते हैं। चार लड़ियों वाले नेकलेस प्रायः नारियों के गले में ही देखा गया है।
हंसली (Hansli) :
कंदरिया महादेव की नारी प्रतिमाओं में यह आभूषण देखने को मिलता है।
केयूर अंगत (Keyut Angat) :
नारियाँ भुजाओं में केयूर अंगत पहनती थी। केयूर अंगत भारी तथा हल्के दोनों देखने को मिले हैं। भारी भुजावंद्य वृताकार डिजाइन या फूलों के डिजाइन से युक्त पाया गया है। यह आभूषण प्रायः नारी प्रतिमाओं में देखा जा सकता है।
कड़े या कंगन (Bracelet) :
यह नारी का प्रिय आभूषण है। नारी प्रतिमाओं के हाथ में यह पाया गया है। कहीं- कहीं एक ही हाथ में दो कड़े पहने देखा जा सकता है। सामान्यतः मोती जड़े कंगन देखने को मिले हैं।
अंगूठी (Ring) :
यह नारियों के मध्यम अंगूली में पहनी हुई स्पष्ट दिखाई देती हैं। नारियों में तर्जनी और कनिष्ठिका पर भी अंगूठियाँ पहनने का रिवाज पाया जाता है।
मेखला (Mekhla) :
मेखला एक पेटी के रुप में कमर में बाँधी पायी जाती है। स्थानीय लोग इसे काँची भी कहते हैं। नारी प्रतिमाओं में जंघाओं और नितंबों पर बंधी मेखलाएँ दर्शनीय हैं। जवारी मंदिर की एक मूर्ति की मेखला में घंटियाँ भी लगी हुई है।
पाजेब, तुलाकोठी, मंजीरा, नुपूर तथा हंसक पावों में पहने जाने वाले प्रमुख एवं प्रसिद्ध आभूषण हैं। दो- दो या तीन- तीन पंक्तियों की पाजेब पहनने का रिवाज दृष्टिगत होता है। तत्कालीन नारियों में किनकिनी युक्त पाजेब पहनने का रिवाज देखने को मिलता है।
सिर पर बाँधने वाले आभूषण नारी और देवियों के लिए अलग- अलग था। देवियों के सिर पर प्रायः क्रीट मुकुट पहनने का रिवाज था। फूल झूमका कानों में पहनने का सर्वप्रिय आभूषण था। खजुराहो की प्रतिमाओं में नाक बींधे जाने का निशान नहीं है। इससे यह तात्पर्य निकलता है कि यहाँ नाक में आभूषण पहनने का रिवाज नहीं था।
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Courtesy: इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केन्द्र