पूरे बुन्देलखण्ड मे पानी अकाल (Bundelkhand in grip of Water Scarcity)
पूरे बुन्देलखण्ड मे पानी अकाल (Bundelkhand in grip of Water Scarcity)
इत जमुना उत नर्मदा उत चम्बल इत टोस
छत्रसाल से लडन की रही न काहू होस ।
पानी दार नदियो की छत्र छाया के बाद भी बुन्देलखण्ड पानी के अकाल से क्योँ तडफ रहा ?
बुन्देलखण्ड मे एक उद्योग सडक उद्योग ही क्यो दिखता है?
बुन्देलखण्ड के कम्युनिटी वाटर की हत्या किसने की?
क्यो कॉरपोरेट वाटर आज गाँव गाँव मे एक सभ्यता की तरह फैल गया --जो गरीब परिवारो मे आपदा को बढा रहा है !
पूरे बुन्देलखण्ड मे पानी के अकाल से निपटने के लिए कही कोई समाज़ तैयार दिख रहा है जो बच्चो को भूख कुपोषण से बचा सके ! सरकार की ओर से आपदा प्रबंधन के काम बहुत कमजोर है ।सरकार राहत कामों तक दिखती किंतु आपदा निवारण पर उसके प्रयास कही नजर नही आते। लगातार 2005 से आज तक बुन्देलखण्ड के किसान मजदूर आत्म हत्या क्यो कर रहे है?इसका पहला कारण है बरसात का कम और असमय होना !दूसरा सबसे बडा कारण बच्चो की भूख को मिटाने के विकल्प परिवारों मे नही बचे।
उत्तर प्रदेश मध्य प्रदेश के 70000 वर्ग किलोमीटर वाले भूभाग को बुन्देलखण्ड माना गया।यहां औसत वर्षा राजस्थान से अधिक यानी 800-900 एम एम होती रही है।इधर 2005 से यह औसत घटा है। जिसका परिणाम है कि सूखा यहा हर साल दस्तक दे रहा है जो पहले 10- 11 वर्षो मे एक बार आता था।
पानी अकाल क्यो?
चारो तरफ पानी जब समाप्त दिखने लगता है।ऐसी स्थिति को सूखा कहते है।
मानव जीवन के लिए सूखा सबसे खराब आपदा है! जब सूखा एक निर्धारित समय अवधि मे एक दशक के बाद आता है तो यह आपदा प्राकृतिक मानी गयी है कितु जब सूखा 2 साल के अन्तराल मे आ रहा है तो इस आपदा को मानव निर्मित आपदा कहेगे।
सूखा बुन्देलखण्ड समाज कीसबसे बडी आपदा है!यह मानव निर्मित है।
मानव निर्मित आपदा इसलिए है कि मानव ने ही पानी बनाने की मशीन को खराब कर दिया।पानी बनाने की मशीन केवल जंगल पहाड जमीन ही है।बुन्देलखण्ड मे अंधाधुंध जंगल कटाई पहाड तुडाई यहाँ के बडे समाज और सरकारों द्वारा कराई गयी। परिणाम यह हुवा कि बरसात बुन्देलखण्ड से दूर हो गयी !बादल आते है मुंह चिढा के भाग जाते है !पानी भण्डार के बडे बडे तालाब समाज के लालची वर्ग और सरकारो ने बर्बाद करा दिए। नदियो मे चेकडेम बना कर उन्हे मार दिया।नदियो मे शीवर शौचालय डाल कर उनकी हत्या कर दी गयी ।नदियो के शुद्ध जल को बर्बाद कर दिया गया ।
अब गाँव गाँव तक मिनरल वाटर की सप्लाई है जो दूध के कीमत से अधिक है ।गरीबी मे जब पानी खरीद कर पीना पडता तब पता चलता है कि गाँव का सारा धन बाजार ले जाता है ।पानी पर समाज की आत्म निर्भरता को कॉरपोरेट पानी ने मार दिया ।
सूखा कब आता है ?
जब समय पर बरसात न हो या बरसात कम हो या न हो! आदि कारण पानी का अकाल लाते है ।लगातार दो वर्ष तक यदि बरसात ठीक से न हो तो तीसरे वर्ष बडा किसान टूट जाता है ।
सूखे ने बडे से बडे किसानो को सामाजिक आर्थिक रूप से कमजोर बना दिया है। आज स्थित यह है कि पूरे बुन्देलखण्ड मे खेती पर आश्रित परिवारो के अन्दर अकाल से सामना करने की क्षमता नही रही।
किसान बिज़ली का बिल और किसान क्रेडिट कार्ड बैंक ऋण के व्याज भुगतान करने की स्थिति नही है!किसान के पास जब सरकारी या साहूकार वसूली के लिए पहुंचते है तब वह मुंह दिखाने से कतराता है और अंत मे आत्म हत्या को समाधान मान लेता है ।
बुन्देलखण्ड मे किसान आत्म हत्या!
बुन्देलखण्ड ही नही पूरे भारत मे किसान व कृषि श्रमिक आत्महत्या कर रहे है । बीबीसी(BBC) की एक रिपोर्ट के अनुसार 2010 मे 583 किसानो तथा 2011 मे 519 किसानो ने आत्महत्याए की है।किसान आत्महत्या का इतिहास भारत मे 1990 से दिखता है ।
सरकार की NCRB की रिपोर्ट के अनुसार
पूरे भारत मे वर्ष 2014 मे 12360 तथा वर्ष 2015 मे 12602 किसानो ने आत्महत्या की थी ।सरकारी रिपोर्ट के अनुसार अबतक 1997 से 2006 तक 1लाख 66 हजार 300 किसान और कृषि मजदूर आत्म हत्या कर चुके है ।बुन्देलखण्ड मे किसान आत्म हत्या 2004 से
शुरू हुई है। सन 2018 मे महोबा जनपद के खन्ना थाना के किसान भीम सिंह फांसी मे झूले । इसी क्रम मे जनवरी 2019 मे एक किसान ने फासी लगाकर आत्म हत्या कर ली ।
बीबीसी ने 23 मई 2015 की अपनी रिपोर्ट मे बताया कि मध्य प्रदेश के जनपद खरगोन के मोहनपुरा गांव के लाल सिंह भिलाल ने अपने 2 बच्चो को एक गढरिया के यहा गिरवी इसलिए रखा दिया था ।यह घटना सच मे हृदयविदारक थी।किसान ने अपने बच्चे इसीलिए गिरवी रखे क्यो कि 2016 - 2017 मे उसकी मिरचे और गेहूं की फसल पूरी नष्ट तो हो गयी थी !जिसपर उसने 60 हजार का कर्ज लिया था ।उसके पास 3 एकड खेत है।वह अपने खेत मे ट्यूबवेल लगाने के प्रयास मे था। ताकि अगली बार पानी के आभाव मे उसकी खेती न सूखे।उसके पास ट्यूबवेल लगवाने के लिए रूपये कम पड रहे थे तब उसने अपने बच्चो को गिरवी रखा !
अकाल से कैसे बचे !
बुन्देलखण्ड के समाज मे भूख बदहाली चरम सीमा मे है ।ऐसी समस्याओं के समाधान के प्रति क्या कोई पहल सरकार की दिखती है जो स्थाई विकास की हो? क्या सरकार कुछ कर रही है ? कहीं कोई आशा की किरण दिख रही है जो बुन्देलखण्ड के अनदर सूखा से लडने की क्षमता समाज मे पैदा करने वाली हो और प्रेरक हो ?
तब उत्तर मिलेगा कि लोग आपदाओ से अकेले अकेले लड रहे है।सरकारी प्रयास स्थाई समाधान के नही है ।बल्कि सरकार की नीतियों ने तथा सरकारों योजनाओं ने समुदाय की संगठनात्मक क्षमता को मार दिया है।समाज की प्रतिरोधक क्षमता उसकी संगठनात्मक शक्ति होती है ।यदि वह मर गयी तो लोग केवल सरकार और भगवान भरोसे रहते है।बैंक और ब्लाक के सहयोग से स्वर्ण जयंती रोजगार योजना महिलाओं की संगठनात्मक शक्ति को मजबूत बनाते हुवे उनके आर्थिक विकास के लिए भारत सरकार ने चलाई। बरगढ की ग्राम पंचायत गुइया-भौटी मे रहने वाली सावित्री तथा उनके समूह की महिलाए कहती है कि बैक मैनेजर ने हमारा पैसा सब इधर उधर करा दिया दलालों को खिला दिया।अनपढ़ थे ठग गये ।बुन्देलखण्ड मे यह घटनाए सभी समूहों मे मिलेगी जिसमे बैक और ब्लाक के लोगो की मिली भगत से समूहों का पैसा निकल गया ।इस काम समूह के कुछ पदाधिकारियों को भी सामिल कर यह सब हुवा ।आज महिलाओ मे आपसी विश्वास नही रह गया ।विश्वाश की हत्या भी एक बडी आपदा को जन्म देती है ।सरकार आजीविका मिशन चला रही पर आज इस मिशन के पास केवल डाटा है पर कोई संगठनात्मक क्षमता को पैदा करने तथा पानी के अकाल से लड़ने की ताकत समाज मे स्थापित करने के कोई सार्थक पहल नही दिख रही ।
सरकार केवल राहत कार्य तक दिखती है
बुन्देलखण्ड मे सरकार ने केवल राहत काम चलाने वाले कार्य किये।यह होने चाहिए पर इसके साथ वह काम भी सरकार को करने चाहिए थे सूखा जैसे अकाल मे समाज इतना क्षमता वान होता कि अकाल आता तो गाँव मे मुंह लटकाय खडा रहता ।यह स्थित बुन्देलखण्ड मे थी जब बुन्देलखण्ड मे राजाओ का शासन था।
बुन्देलखण्ड के इतिहास मे यह भूभाग वीर भूमि के नाम से जाना जाता था।इसकी सीमा यहाँ की नदियो ने बना दी थी और यहाँ भाषा के आधार पर समाज एक साथ जीता था।यह वीर भूमि इसलिए कहा माना गया कि यहा कि समाज बडी से बडी समाजिक और प्रकृतिक आपदा को जीत लेता था।राजा छत्रसाल के जमाने मे सूखा गाँव मे आता था पर वह मुंह लटकाय खडा रहता था ।14वी शताब्दी मे बर्मन राजा जब बुन्देलखण्ड आए तो सबसे पहले राजा कीरत देव वर्मन ने एक बडा तालाब जो सागर की तरह दिखता है यानी कीरत सागर बनाया और इस नगर का नाम महोत्सव नगर रखा ।इसके बाद के शासक मदन देव वर्मन ने मदन सागर बनवाया।बुन्देलखण्ड मे जब भी अकाल आता था तो रहा के राजा केवल तालाब बनवाते थे ।इतिहास बताता है कि राजाओ ने बुन्देलखण्ड मे करीब 1600 खूबसूरत तालाब बनवाए।चरखारी का तालाबों का जोड़ तो बेजोड़ है !यह महोत्सव नगर बाद मे महोबा पडा जहा
2005 के बाद से किसानो के घर मे मातम है ।हर महीने कोई न कोई किसान आत्म हत्या कर रहा है और उसके मरने के बाद सरकार केवल कूछ राहत देकर आशू पोंछती है लेकिन पानी बनाने की मशीन को लगातार खराब करने मे नियंत्रण न लगा कर उनका दोहन कर रही है।
भारत की लोकतंत्रक सरकार जो संविधान की मूल भावना को शपथ लेकर जब देश चलाती है तो सायद वह आम आदमी के मौलिक अधिकारों को नही देखती ।आज़ादी के बाद से सबसे बडा सूखा 1967 -68 का है उसके बाद 80-81 का है और इसके बाद बुन्देलखण्ड मे 2000 से सूखा आया जो जाने का नाम नही ले रहा।
पानी के सभी अकालो मे सरकारों ने राहत काम ही कराए ।लेकिन बरसात के पानी को एकत्र करने वाली पारम्परिक धरोहरों को संहेजने के काम कही नही दिखे ।सरकार ने भूमि संरक्षण विभाग तथा सूखे से निपटने के लिए सूखा ग्रस्त ब्लाकों मे DPAP योजना भी चलाई ।यह सच है कि मिट्टी के संरक्षण के कामो मे सरकारी धन बडा खर्च हुवा ।मिट्टी के काम कितने प्रभावी हूवे नही मालुम पर जिले तैनात आफसर हर हफ्ते अटैची भर नोट भर कर लखनऊ ले जाता था ।तब सोचिए पानी तो सरकारी लोगो का संरक्षित हुवा और अकाल ने तो बुन्देलखण्ड मे अपना डेरा जमा लिया।
1985 मे भारत सरकार के सिंचाई विभाग ने अपनी रिपोर्ट मे बताया था कि बुदेलखंड मे बरसात का पानी हर साल 1लाख 31 हजार 21 लाख घन मीटर आता है सरकार केवल 14 हजार 355लाख घन मीटर ही उपयोग कर पाती है।यानी 1लाख 66हजार 66 लाख घन मीटर पानी बर्बाद होकर बह जाता है जो अपने साथ खेतो की कीमती मिट्टी बहा कर नदियों मे फेक देता।ऊपरो मिट्टी सबसे कीमती होती है जिसको प्रकृति वर्षो बाद तैयार कर पाती है।
सूखा से निपटने मे मनमोहन सरकार ने सोचा।2007-08 मे स्वयं प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह आए और वह राहुल गांधी के प्रयास का परिणाम था।केन्द्र ने सूखे से निपटने की एक बडी धनराशि यानी 7000करोण रूपये का पैकेज उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश को दिया ।प्रदेश सरकारो ने सारा रूपया सच मे बर्बाद कर दिया ।इस पैसे से बनी अनाज मण्डी तो बन गयी पर उनमे जंगल पैदा हो गये आज तक वह नही चली।हमारे बरगढ के इलाके मे कुवे वहा बनवाएं गये जहा पानी नही था ।बहुत सारे मजदूरों की मजदूरी आज तक नही मिली ।इसी प्रकार अगली सरकार ने राहत पैकेट अति गरीबों को बटवाए जिसमे देशी घी दूध पाउडर सामिल था ।यह सब काम केवल पैसा बनाने और वोट को आकर्षित करने का रहा ।इन्ही सरकारो ने पहाण जंगल को उद्योग मान कर अंधाधुंध नष्ट किया ।महोबा झाँसी ललितपुर चित्रकूट के पहाड़ जंगलों को जाकर देखिए सब नष्ट हो गये!तब बादल क्यो बरसेंगे बुन्देलखण्ड मे!
यह सच है कि बरसात के पानी को अपना बनाने का मन किसी भी सरकार मे नही रहा ।तब लगता है कि सरकारी नीतियां केवल पानी का अकाल बढाने वाली है !अकाल के समय जनता का विचार केवल जीवन की साँस जैसे मिले वह बात करो ।
सरकारों की पेय जल निति भी अकाल लाने वाली है।गांवो मे जल स्तर बढाने वाले काम सरकारें नही करती ।वह ट्यूबवेल और पाईप लाईन सप्लाई को ही महत्व देती है ।बरगढ मे पीने के पानी की समस्या नही थी वहां सिंचाई की समस्या थी पर सरकार ने 2011 मे बरगढ को पेयजल सप्लाई दी जो आज तक नही चल सकी करोडों रूपये खर्च हो गये ।सरकार ने जंगलों को पुनर्जीवित करने के लिए जायका प्रोजेक्ट चलाया जो सरकारी लोगो का चरागाह बन गया और इसमे NGO को भी थोडी चासनी चला दी ।आज शिक्षा व स्वास्थ के लिए NGO के साथ सरकारें जो काम कर रही वह केवल धन बर्बाद के अलावा कुछ नही ।
सरकारो ने गाँव के उद्योगों को पुनर्जीवित नही किया बल्कि मार दिया।आज हुनर वान लोग मजदूर हो गये।बुन्देलखण्ड की शिक्षाओ और सभ्यता को क्रेसर उद्योगों ने मार दिया ।सरकार के पास मात्र एक बडा उद्योग है वह है सडक मेट्रो और पानी।सरकार ने बुन्देलखण्ड मे नदी जोड़ क्यो सोचा क्यों कि इसमे बडा पैसा है ।
सरकार को चाहिए था -तालाब जोड़ या नदी तालाब जोड़ पर समुदाय के साथ बात करती।
बुन्देलखण्ड अभी भी वीरों से खाली नही है !
बुन्देलखण्ड मे गैर सरकारी प्रयासों जो सामुदायिक संगठनों ने समाज के साथ मिल कर चलाए वह जरूर लोगो की सोच बदलने मे रहे । बुन्देलखण्ड समाज मे कुछ लोग ऐसे भी है जो नगण्य शक्ति के बावजूद अकाल के प्रभाव को निस्तेज बना रहे है।टीकमगढ़ ललितपुर महोबा सहित सभी जिलों मे बेहतर उदाहरण होगे जिन्होने बरसात की बूंद को संजो कर जीवन मे रस भरने की कोशिश की गयी ।बरगढ की सिघाश्रोत नदी श्रमदान मे इलाहाबाद के सांसद से लेकर ब्लाक प्रमुख आदि ने आदिवासियों की नदी जगाने की भावना को अपने फावड़े चलाकर सम्मानित किया ।तत्कालीन पुलिस अधीक्षक तहसील दार सिंह स्वयं पहुंचे थे ।2011 मे जिलाधिकारी ने इन्हे जल भागीरथी से सम्मानित किया था।
कुछ ऐसे भी होगे जिन्होने अपनी सूखी नदी को पुनर्जीवित करने के लिए सोच बनाई होगी !चित्रकूट मण्डल के जनपद चित्रकूट मे लोगो ने अपने को पानीदार कैसे बनाया ?इस पर जरूर समझ विकसित कर ऐसे प्रयासों को मदद देने की पहल होनी चाहिए ।
सामुदायिक संगठन की भूमिका!
एलेक्सी रोमन ने चित्रकूट के अकाल ग्रस्त भू-भाग बरगढ मे कई साल बिताए! फ्रांस की अत्याधुनिक जीवन शैली को छोड बरगढ के 42-43 डिग्री तापमान मे रहना सीखा। उसने बरगढ की सूखती ज़वानी को बरसात बूंद से सहेजने की एक तरकीब बरसात के बूंद से खोजी ।बस निहत्थे युवा ने इस प्रयोग करने शुरु कर दिए।
उसने बरगढ की भाषा सीखी और गाँव गाँव जाकर लोगो को बादल और वृक्षो के बीच के रिश्तो को बताया।
उसने गाँव के सहयोग से करीब 12 तालाब 14-15 मे बनवाए ।बस गाँव के लोगो ने बरसात की बूंदों को सहेजने का अभ्यास शुरू कर दिया।वर्ष 15 -16 मे बरसात बहुत कम हुई ।तालाब नही भर पाए ।फिर भी जितना भी पानी मिला उससे उन्होंने खाद्यान्न पैदा किया जो कभी नही किया था !
इसी क्रम मे महरजा ,लसही केचुहट भारत पुरवा ढरकन पुरवा सत्यनारायण नगर आदि के गांवो मे रहने वाले समाज ने जब यह जान लिया कि पानी के अकाल से निपटने के लिए बरसात की जल बूंदो को सहेजने और बरसात को बुलाने के अलावा कोई रास्ता नही है तब से यहाँ के चुनिंदा लोगो ने सबसे पहले मेड बन्दी का का काम उन आदिवासियों ने शुरू किया जो खेती करना नही जानते थे ।
भारत पुरवा ढरकन पुरवा लसही महराजा आदि गाँव मे बरसात की एक एक बूँद को सहेजने के लिए एलेक्सी के मार्गदर्शन से प्रेरित सर्वोदय सेवा आश्रम के स्वयं सेवको ने गांवो को प्रेरित किया और 2014 से 2018 तक अपने अपने गावों मे किसानो ने अपने खेतो मे बिना सरकारी मदद के तालाबों को अपने श्रम से खोदा संवारा और गावों को पानी के अकाल से बचाने की सफल कोशिश की।इस काम मे IGSSS ने मार्गदर्शन दिया !
2019 फरवरी मे स्थित यह है कि बरगढ के जल श्रोत सूखने लगे। सिघाश्रोत और मोहना नदी सूख गयी है।
तालाबों मे पानी भी सूख चुका है।
इस समय पानी का अकाल पशुवो मे दिखने लगा है!
ढरकन पुरवा के राजकरन बंगाली धनेश तथा भारत पुरवा के बाल गोविंद बेल्ली सुनील तथा केचुहट के राम प्रताप और सूरज भान आदि किसानो ने बडे आत्म सम्मानित होकर बताया कि पहली बार हमारे गाँव मे अप्रैल-मई जून के महिने मे पानी उन तालाबों मे रहेगा जिन्हे हम लोगो ने बनाया है। अब हमारे गाँव के पुश पानी के आभाव मे नही मरेगे।
किसानो ने तालाब के पानी से हुवे लाभ के बारे बताया कि हम लोगो ने पिछले साल अच्छी फसल पैदा की क्योंकि सिंचाई के लिए पानी मिल गया था । इस साल भी फसल का अच्छा उत्पादन होगा।पानी मिल जाने से परिवारों मे खाद्यान्न की कमी बहुत कम हो गई है।
किसानो ने अपने पुरुषार्थ से सहभागी प्रयासों से अपने अपने गाँव को जल ग्राम बना दिया है।सूखे से जूझते पाठा मे जल ग्राम की कल्पना ही कठिन है !
सिंघा श्रोत नदी पुनर्जीवन
अविरल जलधारा सिघाश्रोत का समाज तब विचलित हुवा जब 2011 मे पहली बार उसकी नदी उसके जीवन मे सूखी।
समाज ने अपनी जलधारा को अपने सामूहिक श्रम से सिल्ट हटा कर निकाला और फिर नदी बहने लगी ।उस समय सत्य नारायण नगर मे बडा उल्लास था ।क्योकी उनके गाँव मे मुसकान आ गयी थी।श्रमदान के काम को सरकार ने रुकवा दिया कहा कि मनरेगा से खुदवाएगे ।आज तक सरकार ने इस काम को नही किया ।नदी आज भी सूखी है !
2018 मे चित्रकूट के युवा जिलाधिकारी जैसे ही चित्रकूट आए और उन्होंने मन्दाकिनी नदी के सूखने और सूखी नदी के किनारे गावों मे पानी की त्राहि त्राहि देखी।48 किमी तक मन्दाकिनी नदी का लगातार सूखना समाज को परेशान किए है।चित्रकूट नदी समाज के लोग मन्दाकिनी बचाने के लिए सूखी नदी के किनारे गाँवो मे नदी संवाद करने लगे।मकरी गांव मे नदी मे श्रमदान से नदी बचाने के लिए समाज को प्रेरित किया ।
सूखी नदी मे जल धाराएं खोजने के लिए चित्रकूट के युवा जिलाधिकारी मिशन के साथ लगे ।मई 2018 से मनरेगा के द्वारा पंचायत और गावों के सहयोगी से सूखी मन्दाकिनी नदी के गावों मे नदी ख़ुदाई काम शुरू हो गया ।करीब 2 फिट सिल्ट जैसे हटी वैसे ही जलधाराए निकल पडी ।मन्दाकिनी फिर बहने लगी।नदी बहने से सूखी नदी समाज मे मुस्कान आ गयी।नदी पुनर्जीवन अभियानों से समाज़ का दूर रहना जल श्रोत पुनर्जीवन मे बडी चुनौती हो ।
by: अभिमन्यु भाई (Abhimanyu Bhai)
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Comments
धन्यवाद भाई अभिमन्यु
धन्यवाद भाई अभिमन्यु बुंदेलखंड के लगातार सूखे के कारणों की तह में जाने के लिए । समाज अभी हवा में जी रहा है, सूखे की मार सबसे अधिक गांव और किसान पर पड़ती है जिनकी आवाज उठती भी है तो गोली से और कभी कभी खैरात देकर दबा दी जाती है।
पहाड़ों और जंगल को सरकार तो नष्ट कर ही रही है, समाज मे भी उनकी उपयोगिता और बिना उनके प्राणिमात्र के जीवन मे आने वाले सर्वनाशी संकट के प्रति कोई जागरुकता नही है। उनके विनाश को आय का साधन मानने वालों की संख्या करोड़ों में है ।
आज की भवन निर्माण की तकनीक जिसमे गिट्टी, बालू, सीमेंट की प्राथमिक मांग है, व्यावसायिक तथा सरकारी आवास की स्कीमें भी इन्ही घटकों पर आधारित हैं । सबसे अधिक चिंता तो यह है कि बड़े हाईवे तथा गांव की गलियां भी आर सी सी की बनने लगी हैं। वे ही घटक और अधिक मात्रा में स्तेमाल होंगे । पहाड़ , उसके पहले जंगल तथा नदियां इन्ही घटकों की पूर्ति में बर्बाद हो जाएंगे। केवल बुन्देलखण्ड साथ साथ सीमेंट आपूर्ति में बघेलखण्ड भी सर्वनाश का शिकार होंगे।
केवल सिल्ट हटाकर नदियां जागृत नही होंगी। पानी का एकमात्र श्रोत वर्षा है , पहाड़ पर के जंगल बादलो को आकर्षित करते हैं, वर्षा का पानी मैदान के जंगलों द्वारा ठहरा कर भूश्रोत भरता है और शेष निर्मल जल नदियों में आता है , सिल्ट नही आती। नदियों की सिल्टिंग जंगलों के अभाव का ही द्योतक है।
मूल कारणों पर ही चोट करनी होगी और यह एक जागरूक समाज ही कर सकता है क्योंकि राजनेता केवल वोट बैंक की ही परवाह करते हैं, न जनजीवन की, न पर्यावरण की और न भविष्य के परिदृश्य की।
पहाड़, जंगल नदी सबका बचाव एक बड़े सशक्त आंदोलन और उससे निर्मित सत्ता के माध्यम से ही होगा, अन्य कोई विकल्प नही है।
विचार सभी को करना चाहिए। समाज का सुदृढ़ संकल्प ही भावी सर्वनाश से बचा सकता है।
----भारतेन्दु प्रकाश