बुन्देलखण्ड की कृषक महिलाओं हेतु उपयोगी उन्नत यंत्र : साधना पाण्डेय IGFRI, Jhansi
बुन्देलखण्ड की कृषक महिलाओं हेतु उपयोगी उन्नत यंत्र : साधना पाण्डेय IGFRI, Jhansi
कृष्षक महिलायें न केवल कृष्षि में बल्कि पषुपालन एवं घरेलू कार्यों में अपना महत्वपूर्ण योगदान देती हैं। अनुसंधानों से स्पष्ष्ट है कि एक कृषक महिला दिन भर में 16-17 घंटेकार्य करती है। यद्यपि कृष्षि के क्षेत्र में विकास हुआ है किन्तु महिलायें अभी भी कृष्षि संबंधित कार्य जैसे बीज बनाना, बुवाई निराई गुडाई, कटाई, मड़ाई एवं भण्डारण आदि कार्य करती हैं।जो न केवल ज्यादा समय लेते हैं बल्कि थकान उत्पन्न करते हैं एवं विभिन्न प्रकार की स्वास्थ्य संबंधी समस्यायें उत्पन्न करते हैं।
अतः अनुसंधान संस्थानों द्वारा कुछ ऐसे कृष्षि यंत्र बनाये गये हैं जो कि कृष्षक महिलाओं के लिये उपयुक्त हैं। ये यंत्र न केवल उनकी थकान को कम करते हैं बल्कि समय की बचत करते है एवं गुणवत्ता पूर्ण उत्पादन देते हैं। ऐसे प्रमुख यंत्र निम्न प्रकार हैं।
नवीन हंसिया:
फसलों की कटाई्र का कार्य बहुतायत में महिलाओं द्वारा ही किया जाता है। चाहे खरीफ हो, रबी हो या फिर गर्मी का मौसम चटकती धूप में महिलायें खेतों में फसलों की कटाई करती हुई दिखती है। प्रायः फसलों की कटाई वो परम्परागत हंसिया के द्वारा करती हैं यह हंसिया भारी होने के कारण लगातार प्रयोग से हांथों एवं उंगलियों में धाव कर देती है तथा कलाई व हाथों में दर्द भी होता है। अतः महिलाओं की इस समस्या के समाधान हेतु नवीन हंसिया का निर्माण किया गया है।
(1) इस हंसिया के मुख्य गुण इस प्रकार हैंः यह हंसिया आकार में बड़ी है ताकि अधिक
फसल की कटाई कर सके,
(2) दरातीदार होने के कारण कटाई आसानी से व शीघ्र हो जाती है।
(3) इसका भार भी कम है जिससे थकान कम होती है।
(4) इसका हैण्डिल उठा हुआ है जिससे जमीन के बराबर तक कटाई करने में भी हाथों में
रगड़ नहीं लगती है।
नलाकार मक्का छीलक यंत्रः
मक्के का दाना निकालने में भी महिलाओं की अहम भूमिका है प्रायः हंसिया के द्वारा या फिर भुटटे को डण्डे से पीट पीट कर वो दाना अलग करती है। हंसिया प्रयोग करने से समय अधिक लगता है तथा हाथों एवं उंगलियों के कटने का भय रहता है। डण्डे से पीटने से कमर एवं हाथों में दर्द तथा भुटटे पीटते समय उछलते हैं जिससे कि शरीर पर चोटें आ जाती है। दोनो ही तरीकों में दाने की गुणवत्ता भी उतनी अच्छी नहीं रहती क्योंकि टूट फूट भी जाते है। अतः नलाकार मक्का छीलक यंत्र का प्रयोग करके कम समय में उच्च गुणवत्ता वाले दाने प्राप्त किये जा सकते है इसे चलाना भी बहुत आसान है यह ष्षटकोणीय होता है तथा अंदर चाकू की भांति लगे फिन्स दानों को भुटटे से अलग करने में मदद करते हैं। भुटटे को इन फिन्स के बीच में रखकर घुमाया जाता है जिससे कि दाने आसानी से अलग हो जाते हैं। मक्का छीलक से 98.1 प्रतिषत बीज अलग हो जाता है जबकि हंसिया या डण्डे से मात्र 90 प्रतिषत।
बीज उपचार ड्रम:
बुवाई से पूर्ण यदि बीजो को उपचारित कर लिया जाये तो फसल में रोगों का प्रकोप कर होता है। प्रायः बीजोपचार के लिये रसायन जैसे बाविस्टीन, थीरम आदि का प्रयोग किया जाता है। ये रसायन प्रायः जल में मिलाकर प्रयोग किये जाते है किन्तु महिलायें इनमें बीज मिलाते समय हांथों का प्रयोग करती है। हाथों के सीधे इन रसायनों के सम्पर्क में रहने से प्रायः जलन, लालिया व सूजन आदि आ जाती है। अतः बीज उपचार ड्रम का निर्माण किया गया है। इस ड्रम में एक बार में लगभग 20 किलो बीज को 5 मिनट में उपचारित किया जा सकता है। बीजों को जल में मिश्रित रसायन को ड्रम में डालकर ड्रम का ढक्कन लगा दिया जाता है जिससे रसायन बीजों में पूरी तरह से मिल जाता है। इस ड्रम के प्रयोग से न केवल हाथों को रासायनिक क्षति से बचाया जा सकता है बल्कि बीजों का उपचार भी लगभग 98 प्रतिषत तक होता है जो कि हाथों द्वारा मात्र 80 प्रतिश् षत तक ही हो पाता है।
मक्का:
दाना ही अलग हो पाता है साथ ही मक्का छीलक से मात्र 1 प्रतिषत दाना के टूट फूट होती है जबकि परम्परागत विधि में 10 प्रतिषत दाने टूट फूट जाते हैं।
मूंगफली से दाना निकालने का यंत्रः
प्रायः मई जून के माह में कृष्षक महिलायें मूंगफली का दाना निकालती हैं यह काम आमतौर पर वो हाथों या दांतों से फली को फोड़कर करती हैं ऐसा करने से उनके हाथों एवं दांतों में दर्द व मुंह में छाले एवं कमर में दर्द की समस्या हो जाती है। ऐसा इसलिये क्योंकि जहां बुआई के लिये उन्हें क्विंटलों दाना चाहिए होता है वहां एक घण्टे में वो केवल 1 किलो दाना ही निकाल पाती हैं। अतः वे दाना निकालने के लिये घण्टों लगी रहती हैं।
महिलाओं की इन्हीं समस्याओं के समाधान हेतु मूंगफली का दाना निकालने के यंत्र का (डिक¨रटिकेटर) का निर्माण किया गया है।यंत्र का ढांचा लोहे का बना होता है, इसकी बनावट इस प्रकार की होती है कि ऊपरी हस्सों पर छलनी में मूंगफली भरी जाती है तथा ऊपर एक हैंडिल लगा होता है हैंडिल के निचले हिस्से पर जो तीन पट्टी लगी रहती हैं जब हैंडिल को आगे पीछे किया जाता है तो छलनी में रखी फल्यिां पट्ट्यि¨ं की रगड़ से फूट जाती हैं,छिले हुये दाने व छिलके छलनी के छिद्रों के माध्यम से नीचे गिर जाते हैंैं।मूंगफली दाना निकालने के यंत्र को अधिक सरलता से चलाया जा सके इस हेतु एक स्टूल यंत्र के साथ दिया जाता है ताकि उस स्टूल पर बैठकर मषीन चलाने से शरीर सही स्थिति में रहता है एवं घण्टों कार्य करने पर थकान का अनुभव नहीं होता है।
यंत्र के प्रमुख गुण:-
1. इससे 1 घण्टे में महिलायें लगभग 30 किलो मूंगफली फोड़ती हैं।
2. फलियों को फोड़ते समय दाने बहुत कम टूटते हैं।
3. विभिन्न माप की छलनियों से मूंगफली की भिन्न श्रेणियों की फलियों को फोड़ा जा सकता
है।
4. यंत्र का प्रचालन सुगम है एवं कार्य हेतु कम शक्ति की आवष्यकता होती है।
मूंगफली स्ट्रीपर
प्रायः अक्टूबर,नवम्बर के माह में कृष्षक भाई मूंगफली को पौधो सहित खोदकर निकाल लेते हैं। इसके बाद इन्हें खुले में डाल देते हैं ताकि ये भली-भांति सूख जाएं। इनके सूख जाने के पष्चात् सूखे हुये पौधों का ढेर बनाकर इन्हें घंटों डंडों से पीटा जाता है। ऐसा करने से मंूगफली सूखे हुए पौधों से टूट कर अलग हो जाती है। यह कार्य प्रायः कृष्षक महिलाओं द्वारा ही किया जाता है। कुछ स्थानों पर पत्थर पर सूखे हुए पौधों को पटक कर भी दाना अलग किया जाता है। दोनों ही तरीकों में अत्यधिक श्रम लगता है। इस क्रिया में अधिक श्रम के साथ-साथ स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं जैसे कि हांथो, कंधों एवं कमर में दर्द उत्पन्न हो जाता है। इस प्रकार घंटों कठोर श्रम करने के पष्चात् महिलाएं मूंगफली को पौधों से अलग कर पाती हैं। इस प्रक्रिया के बाद भी दाना व पौधे के सारे भाग एक साथ मिले रहते हैं। जिसे उड़ाकर अलग किया जाता है। अतः सम्पूर्ण प्रक्रिया में समय भी बहुत व्यर्थ होता है।
महिलाओं की इन्हीं समस्याओं के निदान हेतु मूंगफली स्ट्रीपर यंत्र का निर्माण किया गया है।
यह पूरा यंत्र लोहे का बना होता है तथा इसका वजन लगभग 40 किलोग्राम होता है। यह चैकोर आकार का होता है तथा ऊपर की तरफ चारों ओर लोहे की मजबूत पट्टियां लगी रहती हैं। चारों कोनो पर चार लोहे के पाये लगे रहते हैं। जिससे समतल भूमि पर स्ट्रीपर को रखकर इसका उपयोग किया जा सके। ढं़ाचे के उपरी किनारे पर लगे रहते हैं। ये छल्ले त्रिकोणाकार होते हैं एवं मजबूत लोहे के बनाये जाते हैं। ताकि प्रयोग करते समय ये टेढे़ मेढे न हों।
इस यंत्र को चैकोर इसलिये बनाया जाता है ताकि चार व्यक्ति एक साथ इस पर काम कर सकें। इस यंत्र के लिये मूंगफली के पौधे को पूरा सुखाना आवष्यक नहीं है बल्कि हल्के सूखे पौधे से फली निकालने में यह मषीन अधिक कारगर है।
प्रयोग करने से पहले ध्यान रखें कि जहां मूंगफली के पौधों का ढेर लगा हो उसके पास ही मूंगफली स्ट्रीपर को रखें ताकि पौधों को उठाने के लिये बार-बार चलना न पड़ें। अब पौध वाले हिस्से को हाथ में रखा जाता है, तथा पौधे से निचले भाग पर जहां मूंगफली लगी होती है उसे छल्लों में फंसाकर खींचा जाता है। ऐसा करने से मंूगफली अलग होकर ढांचे के बीच में गिर जाती है। इस यंत्र से अलग की गयी मूंगफली को दो बार हवा में उड़ाने की आवष्यकता नहीं होती है, क्योंकि पौध पूर्णतः षुष्ष्क नहीं होते जिससे इस प्रक्रिया में उनकी पत्तियां व तने आसानी से टूटते या झड़ते नहीं है। बाद में पौधों को आसानी से अलग कर लिया जाता है।
मंूगफली स्ट्रीपर के प्रमुख गुण:
1. डंडे या पत्थर से मूंगफली अलग करने से अधिक श्रम लगता है जबकि मूंगफली
स्ट्रीपर के द्वारा आराम से बैठकर मूंगफली निकालने में बहुत कम श्रम लगता है और
थकान भी नहीं होती है।
2. पारम्परिक तरीके से एक कुन्तल मूंगफली अलग करने में 6 घंटे लगते हैं जबकि
स्ट्रीपर में मात्र 4 घंटे में ही एक कुन्तल मूंगफली अलग की जा सकती है।
3. डंडे या पत्थर से केवल 80 प्रतिषत मूंगफली ही पौध से अलग हो जाती है जबकि
स्ट्रीपर से 90 प्रतिषत मूंगफली को पौध से अलग किया जा सकता है।
4. स्ट्रीपर से हाथ, कमर व कंधों में दर्द कम होता है।क्योंकि महिलाएं बैठकर आराम
से कार्य कर सकती हैं।
By: Dr. Sadhna Pandey (Sr. Scientist - IGFRI,Jhansi)
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