(लेख) बुंदेलखण्ड की फूल बानो और रामानद को कौन सम्मानित करेगा
बुंदेलखण्ड की फूल बानो और रामानद को कौन सम्मानित करेगा
बुंदेलखण्ड की फूल बानो और रामानद को कौन सम्मानित करेगा -जो भरतकूप और बरगढ मे बच्चो के अधिकारो को दिलाने मे अपने तरीको से लगे है | क्योकि सरकारो मे बच्चो की बात सुनने का साहस नही है | माननीय मुलायम पापा ने अपने बच्चे की बात सुनी और बेटा अखिलेश को मुख्यमंत्री बना दिया, पर फूल बानो को यह नसीब क्यो नही?
कल की शाम से भारत मे जन्मे कैलास सत्यार्थी और पाकिस्तान की बालिका मलाला को पूरा विश्व नमन कर रहा था क्यो कि इन्हे शांति के कामो के लिये नोबल शांति पुरुष्कार हेतु चुना लिया गया है -तब मुझे रामानंद और फूल बानो की शांति सेना के कामो मे वही दिखा जो कैलाश सत्यार्थी और मलाला के कामो मे था, पर इनको कौन प्रैजेक्ट करे ? लेकिन यह लोग पुरुषकारो के बारे मे न कुछ जानते है न इनका लेना देना है पर मलाला का सहास, बहुत माने रखता है | साहस को सलाम |
मलाला ने एक बिषम परिस्थितियो मे उस समुदाय मे जन्हा लडकियो को पढाना अपराध माना जाता है और पढाने वाले और पढने वाले को उस समुदाय के अगुवाकर्ता गोली मार देते है | ऐसी परिस्थितियो मे मलाला ने बडी बहादुरी के साथ लड्कियो को शिक्षा देने उन्हे पढने के लिये प्रेरित करने वाले कामो को पूरे विश्व ने एक मलाला के साहस को नमन किया जिसने अशांत समाज मे शिक्षा की रोशनी को शांति का प्रतीक माना यह अलग बात है कि विश्व मे शांति वाली शिक्षाये और अशांति वाली शिक्षाये क्या है इस पर मुहीम नही ?
इसी प्रकार भाई कैलाश सत्यार्थी ने भारत से बच्चो के बचपन को बचाने के काम जो शुरू किया और इसकी जबरदस्त मुहीम भारत के उस समाज मे चलाई जो बच्चो का इस्तेमाल बडी बेरहमी से कर रहा है जिसमे उनके प्रयासो से कमी आयी है | यह काम केवल भारत मे ही नही विश्व के कई देशो मे भी यही सस्कृति दिखती है -भारत के गरीब क्षेत्रो /समुदायो के बीच माता पिता गरीबी मे बच्चो को बडे घरो मे काम के लिये बेच देते है -वारणसी सहित भारत के कालिन उद्द्योगो मे बच्चो के हाँथ की कालीन उत्तम दामो मे बिकती थी | आज भी फिरोजाबाद मे बडी संख्या मे बच्चे अपने माता पिता के साथ चूडी बनाने वाले कामो लगे है ?
बुंदेलखंड बरगढ के किशोर जैसे रामानंद और मलाला की तरह काम कर रही फूलबानो जो शांति सैनिक की भूमिका मे बच्चो की आवाज को बडा करने के काम कर रहे है तथा अपने मित्रो की आवाज बाल धमाका मे निकालते है|यह अलग बात है कि स्थानीय अधिकारी और मीडिया के लोग इस अखवार को कूडे मे फेक देते हो पर यह बच्चे इस काम को बडी खूबी से कर रहे है -बाल धमाका टीम 15 अगस्त 014 से लेकर सितम्बर 014 तक बुंदेलखंड चित्रकूट जिले मे स्थित भरतकूप के आदिवासी बच्चो का अधय्यन उनके साथ किया |पता चला कि बडी संख्या मे बच्चे, क्रेसर की धूल पीने, पथरो को तोडने और उन्हे ट्रको मे भरने जैसे काम करने को मजबूर है ? टीबी से बीमार माता पिता के लिये द्वा जुटाना और भाई बहनो को भोजन का जुगाड करना उनकी मजबूरी है | इतना ही नही सरकार के पास उनके स्वास्थ्य परिक्षण की कोई व्य्वस्था नही है- बडी बडी क्रेसर मशीन है किंतु आंगन वाडी मे वजन मशीन तक नही है | बडी संख्या मे किशोरिया एनमिक है -बुंदेल खंड मे बडी संख्या मे बच्चे |कक्षा 5 के बाद् ड्राप आउट हो जाते है 26 सितम्बर 2014 को बरगढ की थर्मल पावर कम्पनी के समक्ष युवा शांति सैनिको ने जो जो मार्च किये | उससे प्रशासन को लगा कि बच्चो की बात सुननी चाहिये | लेकिन अभी भी सरकारी फोरमो मे बच्चो की भागादारी न हो इसके सारे प्रयास प्रशसन करता है |
बरगढ मे जन्हा 1995-96 मे आदिवासियो के बीच शिक्षा प्राथमिकता ही नही थी | माताये -बच्चे को सबेरे उठते ही कुल्हाडी पकडा देती थी | स्वर्गीय उर्मिला -सवित्री कमलेश -रानी -देवकली शांति जैसी सैकडो महिलाओ ने अपने गांवो मे बाल वाडिया चलाई और स्वास्थ्य शिक्षा से कुपोषण को नियंत्रित कर महिलाओ ने यह महसूस किया किया था कि गरीबी मिटाने का रास्ता केवक शिक्षा है | बरगढ की आदिवासी माताये पहले अपने बच्चो को बालवाडी स्कूल के लिये तैयार करती है | और उन्हे स्कूल भेज कर फिर काम मे जाती है|लडकियो की शिक्षा के प्रति मातये सजग है | पर उनका सपना अधूरा है क्योकि सरकारी विद्द्यालयो मे शिक्षक नही है | लडकियो के लिये स्कूल दूर है |और तब उनकी पढाई छूट जाती है | बडी संख्या मे बच्चे कक्षा 5 के बाद से|पढाई छोड देते है | सरकार ने समाज को शिक्षा की अगुवाई मे रोक दिया है | क्यो कि वह समाज के लोगो को मान्यता देने के पक्ष मे नही है| इसलिये स्कूल खोलने के लिये इतनी बडी -बडी शर्ते लगादी है कि कोई सपर्पित व्यक्ति इस काम को नही कर सकता | केवल पूजी पति ही कर सकता है आज सारे पूंजि पति केवल पैसा कमा रहे है |
भारत के प्राथमिक विद्द्यालयो से लेकर विश्विध्यालयो तक बच्चो को आत्म निर्भर और जीवन के प्रश्नो को समाधान मे बच्चे को कुशल बनाने वाली शिक्षाये नही है | भारत मे जब माता पिता बच्चो को अच्छी शिक्षा देने को तैयार तब सरकार के पास बच्चो को शिक्षित बनाने के न तो संसाधन है और न ही नियत -शिक्षा स्वास्थ्य और रोजागार जैसे सारे काम कम्पनियो और पूंजिपतियो से कराने का मन मना चुकी है जिसमे न तो समाज की भागीदारी है और न समाज स्कूल -अस्पताल आंगंवाडीयो मे रुची लेता है अब तो वह इन मुद्दो मे किसी सरकारी लोगो के साथ बात ही नही करना चाहता | इन मुद्दो मे रजनैतिक इच्छा शक्ति यह है | अधिकांश राजनैतिक नेता अवसर पाते ही | अपना स्कूल -अस्पताल -डेरी खोल लेते | सरकारी प्राथमिक विद्द्यलयो के भोजन चोरी को सुन लेते है किंतु जाते तक नही | बरगढ के भौटी प्राथमिक विद्द्यालय मे बच्चो के समान की चोरी हो गयी -लेकिन पुलिस ने गांव की रिपोर्ट नही लिखी | किसी बडे नेता का मामला होता तो जरूर रिपोर्ट लिखी जाती |
भारत के प्रधान मंत्री और मुख्य मंत्री जब किसी भी बालक को किसी क्षेत्र मे चैम्पियन /स्वर्ण पदक प्राप्त होता देखते है तो तुरंत -बडे-बडे खजाने देने और बधाई के ट्वीट देना शुरू कर देते है तब मुझे बडी बेचैनी होती है ? कभी यह नही देखते कि हमने अपने सामर्थ्य से बच्चो की आवाज सुनने का काम कितना किया ? क्या बच्चो के विकास के वह अवसर दिये जो संवैधानिक तरीके से एक इमांदार सरकार को देने चाहिये ? यह स्वर्ण पदक पाने वाले कौन है इन बच्चो को किसने तैयार किया ? बम्बई का एक मवाली अपराधी बच्चा अखिलेश वर्ड चेम्पियन बना -सरकार की पुलिस तो उसे अपराधी बना रही थी ?
बुंदेल खंड के अधिकांश विधायको औए सांसदो ने एक काम किया कि अपने अपने महाविद्द्यालय |बीएड कालेज खोल लिये किंतु अपनी सांसद विधायक निधीयो से आंगंवाडी सवारने का कोई प्रयास नही किया | इनका काम बंदूक दिलाना | खनिज के पट्टे दिलाना और सरकारि स्कूलो मे बच्चो के समानो की चोरो को अस्पतालो मे दवाई चोरो को मूक संरक्षण देने के आलावा कुछ नही दिखा | जिसमे बच्चो की गरीबी दूर होती दिखे -चित्रकूट बादा से भारतीय जनता पार्टी के वर्तमान सांसद भाई भैरो प्रसाद जी ने भरकूप की आदिवासी बस्ती मे समुदाय से सांसद के रूप मे मिले | जिसे यहा की सरकार ने आजादी के बाद से आज तक एक नागरिक की सुविधाये गरीबी रेखा के कार्ड देने से वंचित कर रखा है | तब बच्चो के अधिकार बेजान माता पिता भी नही दे सकते |
By :अभिमन्यु
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