पृथक बुन्देलखण्ड राज्य निर्माण हेतु प्रयास जन आन्दोलन हैं, राजनीतिक स्टंट नहीं


पृथक बुन्देलखण्ड राज्य निर्माण हेतु प्रयास जन आन्दोलन हैं, राजनीतिक स्टंट नहीं


बुन्देलखण्ड क्षेत्र को उत्तर प्रदेश व मध्य प्रदेश से मुक्त कराकर पृथक राज्य निर्माण की वियार व मांग क्षेत्रीय संकीर्णता से ग्रसित भावावेश नहीं वरन यथार्थ एवं ठोस तर्कों पर आधारित लोकहित कारी व राष्ट्रहित कारी चिर चिंतन का परिणाम है।

पृथक बुन्देलखण्ड राज्य निर्माण की भावना कोरी कल्पना नहीं है। बुन्देलखण्डियो के उत्कर्ष हेतु पृथक बुन्देलखण्ड राज्य निर्माण की मांग एक जनआंदोलन हैं एवं यथार्थ में राजनीतिक स्टंट बिल्कुल नहीं है। बल्कि सर्वथा सम्भाव्य सफल होने वाला पुण्य प्रयास है।

भारत संघ व संविधान की जिन व्यवस्थाओं के अन्तर्गत एवं औचित्य के आधार पर देश की आजादी के बाद कर्नाटक, केरल, आन्ध्र प्रदेश, तमिलनाडु, महाराष्ट्र, गुजरात, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, त्रिपुरा, नागालैंड, मेघालय, मणिपुर, मिजोरम, उत्तराखंड, झारखंड, छत्तीसगढ़ व तेलंगाना राज्य बने । बुन्देलखण्ड राज्य की मांग उपरोक्त सभी राज्यों से पुरानी होने के बावजूद भी अपने अस्तित्व के लिए जूझ रहा है।

इन राज्यों की तरह बुन्देलखण्ड को पृथक राज्य का दर्जा क्यों नहीं मिलना चाहिए?

इन राज्यों की तरह अपनी भाषा ,बोली ,सांस्कृतिक विरासत ,परंपराओं ,भौगोलिक एकरूपता एवं आर्थिक आत्मनिर्भरता के सहारे अपना चहुंमुखी विकास करने की छूट केवल बुन्देलखण्ड की जनता को क्यों नहीं मिलना चाहिए ?

इस बुन्देलखण्ड राज्य की मांग को संकीर्ण मनोभावना की संज्ञा देने वाले न केवल इस भूभाग ,यहां की जनता ,यहां की भाषा ,संस्कृति व परंपराओं के प्रति अपनी किसी दुर्भावना के शिकार या किसी स्वार्थ भाव से प्रेरित लगते हैं ।बल्कि संपूर्ण भारत राष्ट्र की विभिन्नता में एकता रूपी राष्ट्र की भाव भूमि से अनभिज्ञ व अयथार्तवादी चिन्तन के शिकार भी है ।

बुन्देलभूमि की उ प्र एवं म प्र से मुक्ति और इस भूभाग का नये राज्य के रूप में एकीकरण लोकहित व राष्ट्रहित में सर्वथा उचित एवं एक अनिवार्य आवश्यकता है।
बुन्देलखण्ड की विभाजित स्थिति का पक्ष पोषण गैर बुन्देलखण्डी नेताओं द्वारा सुनियोजित ढंग से किया जा रहा है। कभी कभी विकास के सब्जबागो का जो दिखावा होता है वह एक तरफ उत्तर प्रदेश की तरह का होता है और दूसरी तरफ मध्य प्रदेश की तरह का होता है। इस दिखावेनुमा विकास में बुन्देलखण्ड की तरह का कुछ भी नहीं होता है। यही वजह है कि बहुत लंबे अर्से से घुटते और पिसते आ रहे इस भूभाग की परिस्थितियों को दृष्टिगत रखते हुए पिछड़ेपन को दूर करने के लिए पृथक बुन्देलखण्ड राज्य निर्माण ही कारगर साबित हो सकता है।

बुन्देलखण्ड राज्य निर्माण का विरोध करने वाले कुछ नेताओं का कुतर्क इस तरह के भी है ----

"हाशिये पर पडे कुछ नेता चर्चा में आने के लिए बार बार अलग बुंदेलखण्ड के नाम पर सिर्फ अपने स्वार्थ की रोटियाँ सेंकने लगते हैं और स्वार्थ सिद्धी होते ही चुप हो जाते हैं ।" "बुन्देलखण्ड राज्य का मुद्दा राजनीतिक स्टंट की तरह है। "

"बुन्देलखण्ड की आर्थिक आत्मनिर्भरता न के बराबर है, ऐसे में अलग राज्य निर्माण का औचित्य गलत है। "

"म प्र बुन्देलखण्ड के लोग बहुत खुशहाल एवं सम्पन्न हैं, इसलिए राज्य निर्माण में म प्र के हिस्से की दिलचस्पी नहीं है। "

उपरोक्त सभी कुतर्को में केवल एक बात सही है कि कुछ नेताओं ने इस मुद्दे को राजनैतिक सीढ़ी बनाया, अपने निजी स्वार्थ को पूरा करने के लिए इस मुद्दे का सहारा लिया।

व्यक्ति विशेष स्वार्थी या बुरा हो सकता है परन्तु बुन्देलखण्ड राज्य आज के बदहाल बुन्देलखण्ड के हालातों के हिसाब से कारगर साबित हो सकता है। यह मुद्दा गलत नहीं है न ही राजनैतिक स्टंट हैं। यह बुन्देलखण्ड क्षेत्र की जनता की समग्र मांग व एक जनआंदोलन है।

"इसलिए हमें पैकेज नहीं स्वराज्य चाहिए।
हमें बुन्देलखण्ड राज्य चाहिए।।"

राज्य निर्माण से लाभ एवं महत्व के तथ्यों को कोई भी झुठला नहीं सकता है। चहुंमुखी विकास की समस्त संभावनाये बुन्देलखण्ड राज्य निर्माण में ही निहित है। इस मुद्दे पर या इस आन्दोलन पर किसी नेता का पट्टा या एकाधिकार नहीं है अतः बुन्देलखण्ड राज्य निर्माण के इस महाअभियान में सबको आगे आना होगा।

जय जय बुन्देलखण्ड।

लेखक -
कुँवर विक्रम प्रताप सिंह तोमर
युवा राष्ट्रीय अध्यक्ष
बुन्देलखण्ड मुक्ति मोर्चा

संकलन -
मनेन्दु पहारिया