Dr Hari Singh Gaur - डॉ. हरि सिंह गौर : Founder of Sagar University
डाॅक्टर हरीसिंह गौर ( संस्थापक : सागर विश्विद्यालय )
जन्म: 26 नवम्बर 1870
निधन: 25 दिसम्बर 1949
" सरस्वती-लक्ष्मी दोनों ने दिया तुम्हें सादर जय-पत्र,
साक्षी है हरीसिहं ! तुम्हारा ज्ञानदान का अक्षय सत्र! "
-- राष्ट्रक कवि स्व.मैथिली शरण गुप्त
डॉ॰ हरिसिंह गौर, (२६ नवम्बर १८७० - २५ दिसम्बर १९४९) सागर विश्वविद्यालय के संस्थापक, शिक्षाशास्त्री, ख्यति प्राप्त विधिवेत्ता, न्यायविद्, समाज सुधारक, साहित्यकार (कवि, उपन्यासकार) तथा महान दानी एवं देशभक्त थे। वह बीसवीं शताब्दी के सर्वश्रेष्ठ शिक्षा मनीषियों में से थे। वे दिल्ली विश्वविद्यालय तथा नागपुर विश्वविद्यालय के उपकुलपति रहे। वे भारतीय संविधान सभा के उपसभापति, साइमन कमीशन के सदस्य तथा रायल सोसायटी फार लिटरेचर के फेल्लो भी रहे थे।उन्होने कानून शिक्षा, साहित्य, समाज सुधार, संस्कृति, राष्ट्रीय आंदोलन, संविधान निर्माण आदि में भी योगदान दिया।
उन्होने अपनी गाढ़ी कमाई से 20 लाख रुपये की धनराशि से 18 जुलाई 1946 को अपनी जन्मभूमि सागर में सागर विश्वविद्यालय की स्थापना की तथा वसीयत द्वारा अपनी पैतृक सपत्ति से 2 करोड़ रुपये दान भी दिया था। इस विश्वविद्यालय के संस्थापक, उपकुलपति तो थे ही वे अपने जीवन के आखिरी समय (२५ दिसम्बर १९४९) तक इसके विकास व सहेजने के प्रति संकल्पित रहे। उनका स्वप्न था कि सागर विश्वविद्यालय, कैम्ब्रिज तथा ऑक्सफोर्ड जैसी मान्यता हासिल करे। उन्होंने ढाई वर्ष तक इसका लालन-पालन भी किया। डॉ॰ सर हरीसिंह गौर एक ऐसा विश्वस्तरीय अनूठा विश्वविद्यालय है, जिसकी स्थापना एक शिक्षाविद् के द्वारा दान द्वारा की गई थी।
डॉ. हरि सिंह गौर एक ऐसी शख्सियत हैं, जो किसी परिचय की मोहताज नहीं है। सागर विश्वविद्यालय की स्थापना डॉ सर हरीसिंह गौर ने सन् 1946 में अपनी निजी पूंजी से की थी। यह भारत का सबसे प्राचीन तथा बड़ा विश्वविद्यालय रहा है। अपनी स्थापना के समय यह भारत का 18वां तथा किसी एक व्यक्ति के दान से स्थापित होने वाला यह देश का एकमात्र विश्वविद्यालय है।
डॉ. गौड़ बचपन से ही कुशाग्र बुद्धि के थे। प्राइमरी के बाद इन्होनें दो वर्ष मेँ ही आठवीं की परीक्षा पास कर ली जिसके कारण इन्हेँ सरकार से 2रुपये की छात्र वृति मिली जिसके बल पर ये जबलपुर के शासकीय हाई स्कूल गये। लेकिन मैट्रिक में ये फेल हो गये जिसका कारण था एक अनावश्यक मुकदमा। इस कारण इन्हें वापिस सागर आना पड़ा दो साल तक काम के लिये भटकते रहे फिर जबलपुर अपने भाई के पास गये जिन्होने इन्हें फिर से पढ़ने के लिये प्रेरित किया।
डॉ. गौर फिर मैट्रिक की परीक्षा में बैठे और इस बार ना केवल स्कूल मेँ बल्कि पूरे प्रान्त में प्रथम आये। इन्हें 50 रुपये नगद एक चांदी की घड़ी एवं बीस रूपये की छात्रवृति मिली। आगे की शिक्षा के लिये वे हिलसप कॉलेज मेँ भर्ती हुये। पूरे कॉलेज में अंग्रेजी एव इतिहास मेँ ऑनर्स करने वाले ये एकमात्र छात्र थे।
1909 में उनकी भारतीय दंड संहिता की तुलनात्मक विवेचना प्रकाशित हुई जो 3000 पृष्ठ की दो भागों में विभाजित पुस्तक थी। अंग्रेजी भाषा में इस विषय पर लिखी ये सर्वप्रथम पुस्तक आज भी नवयुवक वकीलों के लिये कारगर है।
1921 में जब दिल्ली विश्वविधालय की स्थापना हुई तो डॉ. गौर इसके प्रथम कुलपति बने 1924 तक वो इस पद पर रहे। 1928 एवं 1936 में वह नागपुर विश्वविधालय के कुलपति रहे। इंग्लैंड में ब्रिटिश साम्राज्य के अंतर्गत आने वाले 27 विश्वविधालयों का महाधिवेशन भी उनकी अध्यक्षता में सम्पन्न हुआ।
Sir Hari Singh Gour (26 November 1870 – 25 December 1949) was a distinguished lawyer, jurist, educationist, social reformer, poet, and novelist.
Dr. Gour was the First Vice-Chancellor of the University of Delhi and Nagpur University, founder and Vice-Chancellor of the University of Sagar, Deputy President of the Central Legislative Assembly of British India, an Indian Delegate to the Joint Parliamentary Committee, a Member of the Indian Central Committee associated with the Royal Commission on the Indian Constitution (popularly known as the Simon Commission), and a Fellow of the Royal Society of Literature.
Source: Wikipedia