(Artical) गांधी का टूटा चरखा और बदहाल हुए बुनकर


गांधी का टूटा चरखा और बदहाल हुए बुनकर


बुंदेलखंड के महोबा जिले का जैतपुर ( बेलाताल ) कभी खादी के एक बड़े निर्माण केंद्र के तौर पर जाना जाता था । यहां की बुनकर बस्ती चरखा की मधुर ध्वनि से गुंजायमान रहती थी । आज यहां की यह बस्ती में मौत सी खामोशी है ,  बचे हैं तो सिर्फ बुजुर्ग और बच्चे । जवान तो अपनी और परिवार की पेट की आग बुझाने महानगरों की और पलायन कर गए हैं । बेलाताल बुंदेलखंड का ऐसा खादी निर्माण केंद्र था जिसकी खादी देश भर में मश्हूर थी । आज इस खादी केंद्र पर ग्रहण यहां के संचालकों और सरकार के उपेक्षित रवैये के कारण लग गया है ।

महत्मा गांधी ने कलकत्ता में देश का पहला खादी केंद्र खोला था । देश का दूसरा खादी केंद्र बुंदेलखंड जैसे इलाके के जैतपुर ( बेलाताल ) में शुरू किया था । 1920 में यहां खादी केंद्र शुरू करने का असर सम्पूर्ण बुंदेलखंड में हुआ । बेलाताल ही नहीं आसपास के सौ किमी के एरिया में बुनकरों को रोजगार का नया जरिया मिल गया । जिसका परिणाम यह हुआ की महोबा , छतरपुर ,हरपालपुर ,बिजावर ,सरसेड , राठ ,(मऊरानीपुर ) रानीपुर , मौदहा , आदि स्थानो पर बुनकर कपड़ा बंनाने लगे ।

एक समय ऐसा भी आया की बेलाताल की तरह , रानीपुर , और हरपालपुर सरसेड एक बड़े कपड़ा निर्माण के केंद्र बन गए । आधुनिकता की आंधी और पाश्चात्य प्रभाव कुछ ऐसा चला की यहां के बुनकरों को मालिक से मजदूर बनने को मजबूर होना  पड़ा । उनके चरखे की गूंज शांत हो गई , रह गई है तो सिर्फ अतीत की यादें ।  गाँधी जी का सपना था देश को सम्रद्ध और शक्तिशाली बनाना है, तो देश को बुनियादी मजबूती देनी होगी | उन्होने देखा अग्रेजों द्वारा देश के गाँव -गाँव में फैले कुटीर उद्योगों के कारोबार को एक योजनाबद्ध तरीके से समाप्त किया जा रहा है । गांधी जी ने इसे देश की  अर्थव्यवस्था की रीड माना और गाँव के कुटीर उद्योगो आवश्यक बताया । इसी योजना के तहत उन्होंने १९२०में बुंदेलखंड के बेलाताल  में यहाँ खादी केंद्र की स्थापना की थी |केंद्र खोलने के लिए महत्मा गांधी , अपने सहयोगी जे. बी. कृपलानी , प. जवाहर लाल नेहरू के साथ यहां आये थे । इतना ही नहीं केंद्र के पहले दिन की खादी की बिक्री के केश मेमो खुद गांधी जी के हस्ताक्षरों से खरीददारों को दिए गए थे । गांधी के हस्ताक्षर का बिल पाने के लिए यहां खरीददारों की इतनी भीड़ जमा हो गई थी की पहले दिन सबको बिल नहीं दिया जा सका , जो दूसरे दिन दिया गया । 1920 में इस खादी केंद्र से खुद गांधी जी पहले दिन 1185 रु की खादी बेचीं थी ।

बुंदेलखंड के इस सबसे बडे केंद्र से बुंदेलखंड के बुनकरों का जुड़ाव ठीक वेसा ही था जैसे जीवन का सांसों से | बुंदेलखंड इलाके के बुनकरों को ये केंद्र कच्चा सूत उपलब्ध कराते उससे ये लोग बारीक सूत बनाकर खादी का कपड़ा बनाते थे | आज यहाँ रायबरेली के केंद्र से कपास के मोटे सूत ही आते हें , यहाँ संचालित कुछ चरखों से सिर्फ महीन सूत ही बनता है | इस एक किलो सूत बनाने की कीमत मात्र ६० रुपये है |

दिन भर में सिर्फ पाव भर से आधा किलो ही सूत बन पाता है | मतलब साफ़ है मजदूरी हुई सिर्फ १५ से ३० रुपये रोजाना | खादी केंद्र से बुनकरों को काम नहीं मिल पाने की बड़ी वजह सरकार का असहयोगात्मक रुख हें | प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी लोगों से अपील तो करते हैं की कम से कम एक खादी का वस्त्र अवश्य खरीदें इससे बुनकरों को रोजगार मिलेगा।

८० के दशक तक बेलाताल की बुनकर बस्ती आबाद रहती थी| बेलाताल ही नहीं आस पास के 11 गाँवों में भी बुनकर खाड़ी केंद्र के लिए खाड़ी का निर्माण किया करते थे । जिससे यहां के ५ हजार से ज्यादा परिवारों रोजी रोटी चलती थी । यहाँ के बुनकर गाँधी जी द्वारा स्थापित खादी उत्पत्ति केंद्र में खादी के कपडे बना कर बेचते थे |८० के बाद से यहाँ की ये बस्ती जो वीरान होना शुरू हुई तो अब तक होती ही जा रही है | अतीत में यहाँ दो सौ से ज्यादा बुनकर परिवार यहाँ खादी के कपडे बनाते थे | आज ये सिर्फ किस्से- कहानियों की बात हो गई है | यहाँ के बुनकरों ने हाथ करघा से तौबा कर लिया है | यहाँ तक की अपने करघे उन्होने कबाड़ में फेंक दिए हें | वजह साफ़ है की उनके श्रम का इतना भी मूल्य नहीं मिलता था की वो अपना और अपने परिवार का पेट पाल सकें | हालातों से हताश हो कर मजदूरी की तलाश में यहाँ के लोग पलायन कर गए | बुनकर बस्ती का हर जवान पेट की आग बुझाने दिल्ली ,पंजाब ,गुजरात में मजदूरी करने को मजबूर है | बस्ती में बचे हें तो सिर्फ लाचार वृद्ध | जिनकी आँखें हमेशा तलाशती रहती हें अपनों को |

सपने को किसी और ने नहीं बल्की उनके ही अनुयायियों ने तोड़ डाला| जिन बुनकरों को गाँधी के चरखा और हथकरधा ने जीवन का आधार दिया था वो अब टूट गया है | खादी केंद्र के सम्बन्ध में यहां के लोगों का मानना है की पहले इस खादी केंद्र के कर्ता धर्ता पूर्वांचल के लोग हुआ करते थे , उन्होंने इस केंद्र को जब अपने इलाके में ले जाने का प्रयास किया था तो लोगों ने इसके लिए एक बड़ा आंदोलन छेड़ा था । कई दिनों तक चले अनशन के बाद लोगों ने पूर्वांचल के लोगों से इस केंद्र को मुक्त कराकर अपनों को सौंप दिया । अपनों ने इसकी ऐसी दुर्दशा की बुनकर बदहाल हो गए । इस खादी केंद्र की ख्याति का लाभ लेने के लिए यहां के आज के प्रबंधकों ने अपने स्वजनो के नाम पर समानांतर खादी केंद्र की समिति बना ली । खादी केंद्र के नाम पर अब इनकी खादी भी बाजार में बिकने लगी है । खादी केंद्र आज करोडो के कर्जे में है ,। ये सब उन लोगों का कृत्य है जो बात तो गांधी के उसूलों की करते हैं और कर्म दलालों से भी बदत्तर हैं ।

By: रवीन्द्र व्यास