(Article) गौरवशाली बुन्देलखण्ड


(Article) गौरवशाली बुन्देलखण्ड


भारत देश के मध्य भाग में स्थित क्षेत्र बुन्देलखण्ड के नाम से जाना जाता है। बुन्देलखण्ड भारत का हृदय स्थल है जिसका अपना अलग इतिहास एवं अलग भूगोल है। भाषा, संस्कृति, आचार, विचार में भी अपनी एक अमिट छवि रखता है। जहां एक ओर इतिहासकारो ने बुन्देलखण्ड क्षेत्र को अति प्राचीन बताते हुए बुन्देलखण्ड की धरती को वीर भूमि का दर्जा दिया, वहीं भूगर्भ शास्त्रियों ने बुन्देलखण्ड के मुकुट विन्ध्याचल पर्वत को हिमालय पर्वत से भी पहले का पर्वत बताकर इस क्षेत्र के अस्तित्व की प्राचीनता का परिचय दिया है। यमुना, नर्मदा, चम्बल और टौंस नदियों के मध्य स्थित भूभाग बुन्देलखण्ड है। परशुराम, विश्वामित्र, नल, दमयंती, यमदंग्न, अत्रि, दत्तात्रेय, ज्वालि आदि महर्षि इसी भूमि की देन है। महाभारत के रचयिता वेदव्यास, राम चरित मानस के रचयिता गोस्वामी तुलसीदास, व गुरू द्रोणाचार्य बुन्देलखण्ड के ही लाल है।बुन्देलखण्ड में चांदी,कलचुरी, जयशक्ति, चंदेल आदि वंशो ने राज्य किया।

बुन्देलखण्ड को पहले चेंदि देश, जैजाक मुक्ति धार्मिक,कर्णावति कालिन्जर प्रदेश, एवं मध्य देश के नामों से जाना जाता था। इस क्षेत्र का नाम बुन्देलखण्ड कैसे हुआ इसके अनेक मत प्रस्तुत किये जाते हैं। बताया जाता है कि अनेक स्थानों पर पुलिंद नरेशो का शासन होने के कारण इसका नाम पुलिंद बोलिन्द हुआ और बाद में बुन्देलखण्ड कहलाने लगा। कुछ विद्वानों का मत है कि विन्ध्य की उपत्यकाओ में बसे होने के कारण विन्ध्येल क्षेत्र कहलाया और बाद में यही बुन्देलखण्ड कहलाया। अनेक विद्वानों का मत बुन्देलखण्ड नाम की उत्पत्ति का इस प्रकार भी है __

काशी के शासक गहरवार क्षत्रिय वंश में जन्मे राजकुमार हेमकरण सिंह पर उनके शत्रुओं ने चढाई कर जब काशी का राज्य छीन लिया तो वे निराश हो अपना महल राज पाठ छोड़कर विन्ध्याचल पर्वत पर माँ विन्धयवासिनी देवी की आराधना करने चले गये थे। उन्होंने विन्ध्याचल पर्वत पर माँ विन्धयवासिनी देवी की आराधना करने की। देवी माँ विन्ध्यवासिनी को प्रसन्न करने के लिए राजकुमार हेमकरण सिंह ने अपने गले व शरीर से रक्त निकाल कर देवी को चढाया। भयंकर कठोर साधना से प्रसन्न हो माँ विन्ध्यवासिनी प्रकट होकर बोली "हे राजन!तूने अपने शरीर को भयंकर पीङा देकर जो रक्त की बूँदें चढाकर मुझे प्रसन्न किया अतएव मैं तुझे वरदान देती हूँ कि रक्त की बूँदों को अर्पण कर मेरी सिध्दी पाने के कारण तू बुन्देला कहलायेगा, अपने शत्रुओं को पराजित कर अखण्ड राज्य का सुख भोगेगा तथा विन्ध्य के जिस अखण्ड राज्य में तेरा शासन होगा वह भूभाग बुन्देलखण्ड कहलायेगा।"

बुन्देलखण्ड क्षेत्र की गौरव गाथा से पूरा इतिहास भरा हुआ है। महान योद्धा आल्हा ऊदल, महाराजा छत्रसाल, झांसी की रानी लक्ष्मीबाई, प्रतापी वीर सिंह जू देव, रणचंडी दुर्गावती, चन्द्र शेखर आजाद, पं.परमानन्द, गुलाम गौस खां, आदि की यही भूमि रही है। महाराजा खेत सिंह व लाला हरदौल की जन्मभूमि बुन्देलखण्ड है। वीर कवि जगनिक, गोस्वामी तुलसीदास, केशव, बिहारी, राष्ट्रकवि मैथिली शरण गुप्त, एवं डॉ बृन्दावन लाल वर्मा इसी भूमि की देन है। संगीतकार तानसेन, गायक बैजू, मृदंग बाजक कुदऊ, उस्ताद आदिल खां, विश्व विजयी गामा पहलवान, हाकी के जादूगर दद्दा ध्यान चन्द्र, चित्र कार कालीचरण जैसे महान व्यक्तित्व की धरती"बुन्देलखण्ड "हैं।

आज कुछ सूक्ष्म मानसिकता के लोगों को बुन्देलखण्ड के नाम से परहेज है एेसे लोगों का मानना है कि बुन्देला ठाकुरों के नाम से बुन्देलखण्ड राज्य का नामकरण है। जबकि एेसा नहीं है बुन्देला, बुन्देले, बुन्देली की परिभाषा बहुत व्यापक है। बुन्देलखण्ड भूभाग में कई वर्षो एवं पीढियों से निवास कर रहे लोगों के समुदाय को जिन्हें यहां की मिट्टी से प्रेम है जिनका जीना, मरना तथा भविष्य आदि सब कुछ इसी भूभाग में निहित है। बुन्देलखण्ड की वीर भूमि की आन, वान व शान की रक्षा करने में तत्पर रहने वाला हर एक व्यक्ति बुन्देलखण्डी या बुन्देला हैं।बुन्देला या बुन्देलो द्वारा बोली जाने वाली भाषा बुन्देली भाषा है । जिस प्रकार महाराष्ट्र में रहने वाले लोग मराठा कहलाते हैं उसी प्रकार बुन्देलखण्ड में रहने वाला हर व्यक्ति बुन्देला या बुन्देले या बुन्देलखण्डी है।

लेखक - कुँवर विक्रम प्रताप सिंह तोमर

मऊरानीपुर, केन्द्रीय अध्यक्ष युवा, बुन्देलखण्ड मुक्ति मोर्चा