जतन जल सरक्षण के
जतन जल सरक्षण के
सूखे से बदहाल और बून्द -बून्द पानी को तरशते बुंदेलखंड के लोग संकट के समाधान के प्रयास में जुट गए है । उन्हें अब ना सरकार का भरोषा रह गया है और ना ही प्रशासन का । पानी के नाम पर हुई लूट खशोट ने आम जन मानस को हिला कर रख दिया है । इन हालातों से निपटने के लिए लोग खुद गेंती फावड़ा लेकर मैदान में आ गए है । इस पर भी तंत्र की बेशर्मी देखिये वह ऐसे लोगों की मदद करने से भी परहेज कर रहा है । कम ही ऐसे प्रशासनिक अधिकारी हैं जो लोगों के इस अभियान में सहभागी बने हैं ।
नदी को जीवंत बनाने में जुटे नौजवान :
संस्कृति और सभ्यताओं को विकसित करने वाले जल श्रोत जब दम तोड़ने लगें तो मान लो की अब समाज सुरक्षित नहीं हैं । वर्षो की उपेक्षा का परिणाम आज सबके सामने है । खतरे की घंटी तो बहुत पहले बज चुकी थी , वो तो हम अपनी आदतों से मजबूर हैं जो इस खतरे को समझ कर भी बेफिक्र रहे । आज जब हालात बेकाबू हो गए तब हमें अपनी गलतियों का एहसास हुआ । और चल पड़े हैं मंजिल की तलाश में ऐसे ही हालात से जूझते बुन्देलखण्ड के लोग अब अपनी जल संरचनाओं को सहेजने में जुट गए हैं । नोगाँव में लोग नदी बचाने में जुटे हैं तो टीकमगढ़ जिले के चरी गाँव के लोग अपने बल पर नदी पर बाँध बनाने में जुटे हैं । लवकुश नगर में सूख चुके तालाब मान सागर का , वहीं महराजपुर तालाब का , बिजावर तालाब , टीकमगढ़ नगर के वृन्दावन तालाब , और पृथ्वीपुर के राधासगर तालाब में जमा सिल्ट हटाने , तालाब की साफाई के अभियान में जुटे हैं । इस सारे अभियान में पन्ना के धर्म सागर तालाब के गहरीकरण और लोगों की सहभागिता ने बुंदेलखंड के अन्य लोगों को भी प्रेरित किया है ।
ब्रिटिश शासन काल में पोलिटिकल एजेंसी के तौर पर नोगाँव नगर को 1942 के बाद अंग्रेजो ने बसाया था । जनवरी 1842 में बुंदेलखंड के बेला ताल रियासत के राजा को पकड़ने के लिए अंग्रेजों ने यंहा डेरा डाला था। इसके आसपास बहती कुम्हेड और भडार नदी के कारण अंग्रेजो को यह इलाका इतना भाया की बुंदेलखंड की रियासतों पर नियंत्रण के लिए यहां एक पूरा शहर ही बसा दिया । ब्रिटिश शासन काल में यहाँ सैन्य छावनी भी बनाई गई थी । यह सब यहां कल कल बहती नदी के जल के भरोषे किया गया था ।
तालाब विहीन इस नगर के भू जल श्रोत के मुख्य श्रोत कुम्हेड नदी नाला में बदल गई । नगर के लोगों को पानी देने वाली धसान नदी ने भी जबाब दे दिया । तब लोगो ने अपने श्रोतों से नगर को पानी की पूर्ति शुरू कर दी । फिर भी एक चिंता थी की भविष्य में क्या होगा , आज तो कुम्हेड नदी के किनारों पर लगे ट्यूब वेळ से पानी निकाल ले रहे हैं , पर कल इससे पानी मिलेगा भी या नहीं ।
इसके समाधान की दिशा में सामाजिक संस्था सोशल मीडिया फाउंडेशन के प्रमुख वा दैनिक प्रखर ज्ञान के सम्पादक राजेश अग्निहोत्री ने युवाओं से चर्चा की ,और तय किया की नगर से सट कर बहने वाली नदी को फिर से जीवित किया जाएगा । आम सहमति से नोगाँव विकाश मंच का गठन हुआ और इस अभियान का संयोजक भी राजेश अग्निहोत्री को ही बना दिया । राजेश बताते हैं की नाले में बदल चुकी यह कुम्हेड नदी नगर का तीन किमी का एरिया कवर करती है । आगे जा कर यह नदी भडार नदी में जा कर मिल जाती है । नदी को जीवंत बनाने के लिए नोगाँव के लोगों का जोश देखते ही बनता था । नदी के गहरी करण और उसके मूल स्वरुप 65 फिट चौड़ाई देने में पैसो की जरुरत थी । लोग खुद पहुँच कर दिल खोल कर दान देने लगे । दस दिन के इस अभियान में 42 से 46 डिग्री के तापमान में इन युवाओं ने लगभग दो किमी नदी का ना सिर्फ गहरी करण कर दिया बल्कि उसके मूल स्वरुप ६५ फिट चौड़ी कर दी लक्ष्य से सिर्फ एक किमी दूर है।
कलेक्टर मसूद अख्तर ने स्वयं कुम्हेड नदी पर पहुँच कर इस अभियान को सराहा । उंन्होंने यह भी भरोषा दिलाया था की जितना पैसा आप लोग जोड़ेंगे उतना ही पैसा जन भागीदारी से दिया जाएगा । स्थानीय लोगों और बीजेपी के बिजावर विधायक पुष्पेंद्र नाथ पाठक के एक लाख रु के सहयोग से अब तक सभी लोगों के प्रयास से चार लाख रु की राशि इस कार्य के लिए जोड़ी गई । नगर पालिका के कर्मचारियों ने अपना एक दिन का वेतन इस कार्य हेतु दिया । हालांकि स्थानीय विधायक और सांसद का अब तक इस कार्य में कोई सहयोग ना मिलने पर लोगो का नाराज होना स्वाभाविक है ।
आजादी के बाद बुंदेलखंड की राजधानी का गौरव प्राप्त नोगाँव नगर की जीवन रेखा कही जाने वाली इन दो छोटी छोटी नदियों के साथ सरकारी तंत्र और समाज ने जम कर खिलवाड़ किया । बुंदेलखंड पैकेज से इस नदी पर 8 स्टॉप डेम बने होने की बात कही जा रही है । पर नदी बचाओ अभियान से जुड़े इंजिनियर सी बी त्रिपाठी जिन्होंने वर्षो तक ग्रामीण यांत्रिकी सेवा में अपनी सेवाएं दी बताते हैं की इस नदी पर पहले 6 _7 स्टॉप डेम बने थे , जो बुंदेलखंड पैकेज के नहीं हैं ।
बाँध बनाने में जुटे बच्चे से बूढ़े तक
टीकमगढ़ जिले के चरी गाँव के लोगों ने जब देखा की जल संकट के नाम पर करोडो रु कागजो में खर्च हो गए और उनके सामने पानी का संकट जस का तस है । यहां तक की 2008 से बुंदेलखंड पॅकेज से गाँव की जल समस्या के समाधान की आस भी उनके लिए बेमानी साबित हुई । पॅकेज से मध्य प्रदेश के छतरपुर ,पन्ना , टीकमगढ़ , सागर ,दमोह और दतिया के लिए 3600 करोड़ की राशि मिली थी । इस राशि में से एक बड़ा हिस्सा जल सरचनाो , पर खर्च होना था । कागजो में खर्च हुए जमीनी लाभ ना के बराबर रहा । बनाये गए स्टॉप डेम के ठेके (पेटी कांट्रेक्ट पर ) जनसेवकों ने हथिया लिए थे । नतीजा घटिया निर्माण और गेट विहीन ये स्टॉप डेम पानी रोकने में मदद गार नहीं रहे । यही हाल नल जल योजनाओं का रहा ।
सरकार और जन सेवकों और प्रशासन के इस तमाशे को देखने के और
बून्द -बून्द पानी के लिए तरशने के बाद पलेरा विकाश खण्ड के चरी गाँव के लोग खुद
गेंती फावड़ा लेकर बाँध बनाने जुट गए । गाँव के पास से निकली सांदनी नदी जो पूर्णतः
सूखी पड़ी है । इस पर 150 फिट लम्बा ,15 फिट चौड़ा और 5 फिट ऊंचा बाँध बनाने में जुट
गए । गाँव के जमुना प्रसाद बताते हैं की इस अभियान में चरी के अलावा आसपास के चार
पांच गाँव के लोग भी सहयोग कर रहे हैं । दरअसल इन गाँव वालों की फसलें खराब हो गई ,
हाथ में पैसा है नहीं की मशीन से बाँध बनवा ले , प्रशासन सुनता नहीं ,नेता जी पांच
साल में एक बार दर्शन देते हैं , पर ये लोग हालात से हारे नहीं और खुद जुट गए ।
गाँव के बच्चे से लेकर बुजुर्ग तक रोजाना चना खाकर बाँध बनाने में जुटे हैं । उन्हें
भरोषा है की बरसात के पहले तक उनका बाँध बन जाएगा और बहने वाले पानी को वे सहेज
लेंगे । ४४-४५ डिग्री के तापमान पर जब शहरी लोगों को घर से बाहर निकलने का हौसला नहीं
होता तब ये बाँध बना कर अपना और समाज का भविष्य बचाने में जुटे रहते । यहाँ के
प्रशासन से इन्हे कोई सहयोग तो नहीं मिला , पर मीडिया के पूंछने पर जिला पंचायत सी
ई ओ इन लोगों के काम की सराहना करते नहीं थकते ।
जतन जल संरक्षण के
चंदेल कालीन लवकुशनगर,के मानसागर तालाब की खुदाई का कार्य जन सहयोग से किया है । राजा मानसिंह के द्वारा खुदाये गए इस तालाब की कभी खुदाई नहीं हुई । जब तालाब पूरी तरह से सूख गया तो एस.डी.एम धुर्वे ने बिना किसी बजट के जन सहयोग से उक्त तालाब की खुदाई का बीड़ा उठाया। तालाब के गहरी करण और सफाई में नगर के लोगों वा पत्रकारों बढ़ चढ़ कर हिस्सा लिया । ये अलग बात है जनसेवक अभियान से अपनी दूरी बनाये रखे हुए हैं ।
छतरपुर जिला के बिजावर कसबे का चंदेलकालीन तालाब को भी नागरिकों की पहल पर साफ़ सुथरा और गहरीकरण किया जा रहा है । बिजावर के इसी तालाब के कारण यहां इतना जल स्तर रहता था की लोग बगैर रस्सी के कुए से पानी ले लेते थे । आज से ही महराजपुर तालाब का गहरी करण और सफाई अभियान शुरू हुआ । विधायक मानवेन्द्र सिंह ने पहुँच कर अभियान शुरुआत कराई ।
टीकमगढ़ की नवागत कलेक्टर प्रियंका दास ने सूखे को देख कर नगर के वृन्दावन तालाब के गहरी करण का कार्य जलाभिषेक अभियान शुरू कराया । नगर पालिका परिषद इस कार्य को जन सहयोग से चला रही है । टीकमगढ़ जिले के पृथ्वीपुर नगर के राधासगर तालाब का भी जीर्णोद्धार सहयोग से किया जा रहा है ॥
पन्ना नगर के धर्मसागर तालाब के गहरीकरण के लिए लोगों ने ३० लाख से ज्यादा की राशि जन सहयोग से जोड़ी है । तालाब के कायाकल्प के लिए ये अभियान एक आंदोलन का रूप ले चुका है । इसी जिले के अजयगढ़ कसबे के खोय तालाब का गहरीकरण कार्य में समाज जुट गया है । ये अलग बात है की कसबे के बस स्टेण्ड के नष्ट होते तालाब की तरफ किसी का ध्यान नहीं है ।
बुंदेलखंड के एकलौते ऐसे सांसद प्रहलाद पटेल हैं जिन्होंने हटा (दमोह) के लुहारी तालाब को गोद लिया और तालाब के गहरीकरण में जुटे । बाकी सांसदों को शायद जल की इस विभीषिका से कोई सरोकार नहीं है ।
दरअसल बुंदेलखंड का इलाका अपने परम्परागत जल श्रोत तालाब , कुआ और बावड़ी पर निर्भर रहा है । प्रकृति के अनुकूल होने के कारण इससे उनकी आवश्यक जरूरतें पूर्ण होती रही । बढ़ती आबादी के बोझ और अधिक लाभ की लालशा ने लोगों ने पानी का दोहन शुरू कर दिया , परिणामतः भू-जल भी दूर हुआ और कम वर्षा होने से सरोवर भरे नहीं उस पर बढ़ते तापमान ने सरोवरों को सुखा दिया । विपत्ति में ही सही लोगों को अपने जल श्रोतो को सहेजने की चिंता तो हुई ।
By: रवीन्द्र व्यास