झांसी में वीरांगना झलकारी बाई पुरातत्व संग्रहालय का अनावरण
संस्कृति मंत्री श्रीमती चंदे् कुमारी कटोच तथा ग्रामीण विकास राज्य मंत्री श्री प्रदीप जैन आदित्य ने संयुक्त रूप से झांसी उत्तर प्रदेश स्थित झांसी के किले में वीरांगना झलकारी बाई पुरातत्व संग्रहालय की पट्टिका सुंयक्त रूप से अनावरण किया।
वीरांगना झलकारी बाई झांसी की सेना में सिपाही थी और उन्होनें अंग्रेजों के साथ युद्ध के दौरान स्वयं रानी लक्ष्मीबाई का छद्मभेश धारण कर लिया और रानी लक्ष्मीबाई को किले से सुरक्षित निकाल दिया। श्रीमती चंदेश कुमारी कटोच ने 28 अगस्त 2013 को झांसी के किले के 400 वर्ष पूरे होने पर आयोजन के दौरान प्रस्तावित संग्रहालय की स्थापना की घोषणा की थी। स्वतंत्रता संग्राम में वीरांगना झलकारी बाई के योगदान की स्मृति में यह संग्रहालय स्थापित किया जा रहा है।
राष्ट्रीय संग्रहालय की पट्टिका का अनावरण के उपरांत श्रीमती कटोच ने बताया कि भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के स्वामित्व में 44 संग्रहालय है। इनमें से कुछ पुरातत्व स्थल के संग्रहालय है और कुछ ऐतिहासिक संग्रहालय है जैसे फोर्ट संग्रहालय, चेन्नई कांगड़ा फोर्ट संग्रहालय, कांगड़ा आदि। उन्होनें बताया कि ऐतिहासिक संग्रहालय की संकल्पना पर जोर देने के लिए वीरांगना झलकारी बाई पुरातत्व संग्रहालय के लिए स्थापित किया जा रहा है।
ग्रामीण विकास राज्य मंत्री श्री प्रदीप जैन आदित्य ने अपने भाषण में वीरांगना झलकारी बाई को भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित की। उन्होनें कहा कि झलकारी बाई का शौर्य आज भी बुंदेलखण्ड क्षेत्र में लोकप्रिय है और उनके बहादुरी कारनामे आज भी विभिन्न बुंदेली गीतों के माध्यम से सुनाये जाते हैं। श्री जैन ने कहा कि उन्होनें रानी लक्ष्मी बाई और वीरांगना झलकारी बाई की प्रतिमाएं संसद भवन परिसर में लगायी जाने के लिए लोकसभा अध्यक्ष से अऩुरोध किया है।
प्रस्तावित संग्रहालय झांसी किले में स्थित पंचमहल में पाँच मंजिला इमारत में स्थापित किया जाएगा। इस समय जिला ललित पुर (उत्तर प्रदेश) से संग्रह की गई विभिन्न पाषाण मूर्तियां रानी महल में रखी गयी है। जो झांसी किले के बाहर 18वीं शताब्दी के उतरार्द्ध की इमारत है। ऐसा प्रस्ताव है कि कुछ स्थापत्य कलाओं, कलाकृतियों के अवशेषों को इतिहास की झलक देते दृश्य सामग्री, रानी लक्ष्मीबाई जीवन के इतिहास इस परिक्षेत्र की पुरातत्व संबंधी जानकारी को यहां प्रदर्शित किया जाएगा। झांसी का किला बंगाडा के नाम से प्रसिद्ध पर्वत पर 1613 ई. में ओरछा के बुंदेला नरेश राजा बीर सिंह देव द्वारा बनवाया गया था। यह किला बुंदेला राजाओं, मुगलों, मराठाओं और अंग्रेजों के नियंत्रण में रहा। फरवरी 1857 में झांसी की रानी लक्ष्मीबाई ने अपनी प्रजा से अपील की वह स्वतंत्रता के पहले संग्राम में शामिल होंगे। रानी लक्ष्मीबाई अंग्रेजी फोजों से युद्ध करते हुए 18 जून 1958 को वीरगति को प्राप्त हुई। प्रथम स्वतंत्रता संग्राम से जुड़ा होने के नाते प्रत्येक भारतीय के दिल में यह किला विशेष स्थान रखता है।
Courtesy : PIB
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