Kalinjar Shodh Sansthan - कालिंजर शोध संस्थान
Kalinjar Shodh Sansthan - कालिंजर शोध संस्थान
Kalinjar Soadh Sansthan
अजेय दुर्ग कालिंजर की धार्मिक व ऐतिहासिक गाथाओं का वर्णन उन शिलालेखों में है जो आज दुर्ग के चारों तरफ वीरान नजर आ रहे हैं। प्राचीन काल से लेकर नौवीं शताब्दी तक के इन शिलालेखों में हजारों वर्ष पुरानी गाथाएं लिखी हैं। जिनमें भगवान राम के दुर्ग आगमन का भी उल्लेख पाया गया है।
ऐतिहासिक कालिंजर दुर्ग मध्य प्रदेश की सीमा से सटे विंध्याचल घाटियों की गोद में स्थित है। इस किले की अनेकों खासियत है। धार्मिक महत्व का वर्णन जहां हजारों वर्ष पुराने काल से संबंध रखता है। वहीं इसका गौरवशाली इतिहास भी है। दुर्ग में अति प्राचीन काल से लेकर तीसरी से छठीं शताब्दी में गुप्त काल, नौवीं शताब्दी में चंदेलकालीन वर्णन चारों तरफ फैले शिलालेखों में विद्यमान हैं। फैले शिलालेखों में विद्यमान हैं। कालिंजर दुर्ग के कोटि तीर्थ में करीब 20 हजार वर्ष पुरानी शंख लिपि है जिसमें वनवास के दौरान भगवान राम के कालिंजर आने का उल्लेख है और श्रीराम सीता कुंड के पास सीता सेज में रुके।
कालिंजर शोध संस्थान के निदेशक अरविंद छिरौलिया बताते हैं कि पद्म पुराण व बाल्मीकि रामायण में भी इसका उल्लेख है। इसके अलावा बुड्ढा-बुड्ढी तालाब व भगवान नीलकंठ मंदिर में नौवीं शताब्दी की पांडुलिपियां हैं। जिसमें चंदेलकालीन समय का वर्णन पाया गया है। दुर्ग के प्रथम प्रथम दरवाजे में 12वीं शताब्दी में औरंगजेब द्वारा लिखाई गई प्रशस्ति की लिपि है। वहीं किले से लगी काफिर घाटी में शेरशाह सूरी के भतीजे इस्लाम शाह ने 1545 में शेरशाह की प्रशस्ति लिखवाई थी। दुर्ग का चाहे ऐतिहासिक महत्व का स्थल हो या धार्मिक सभी जगह शिलालेख विद्यमान हैं और बहुत से लेख हजारों वर्ष पूर्व अति प्राचीन काल के हैं लेकिन रखरखाव के अभाव में इनका क्षरण हो रहा है। शोध संस्थान के निदेशक ने बताया कि किले में बहुत ही दुर्लभ पांडुलिपियां हैं। यदि इनका रखरखाव नहीं किया गया तो आने वाले समय में ज्यादातर पांडुलिपि विलुप्त हो जाएंगी।
Contact
Shri Arvind Kumar Chhirouliya (President)
Kalinjar Town, Uttar Pradesh
India