हास्य कवि “कान्ह बुन्देला”: चप्पल (Chappal)
चप्पल (Chappal)
चप्पल में रंग रूप है, चप्पल में आब है ।
चप्पल पड़ी जो सर पै, हुआ सिर ख़राब है ॥
चप्पल में इनायत है चप्पल में इबादत ।
चप्पल से उतर जाती है, सिर की शराब है ॥
खाते थे कुछ मुंगौड़े, पीते थे कुछ शराब ।
मय खाने के कोने में चप्पल चली जनाब ॥
किसी की टूटी शीशी किसी की टूटा जाम ।
कोई वहां से भगा दाबे हुए नक़ाब ॥
--
“कान्ह बुन्देला”, बाँदा - बुंदेलखंड