उत्तरप्रदेश के महोबा जिला में भी है पौराणिक 'कल्पवृक्ष'
उत्तरप्रदेश के महोबा जिला में भी है पौराणिक 'कल्पवृक्ष'
उत्तर प्रदेश के महोबा जिले के कबरई थाना क्षेत्र के सिचौरा गाँव में लगभग २००० वर्ष से भी पुराना कल्पवृक्ष है | हाँ यह वही देववृक्ष है जो समुद्र मंथन के फलस्वरूप प्राप्त हुआ था और जिसे देवताओं के राजा इंद्र स्वर्गलोक ले गए थे | कल्पवृक्ष को कल्पतरु भी कहा जाता है | पुराणों में उल्लेख मिलता है कि इस वृक्ष के नीचे बैठकर सच्चे मन से जो भी कल्पना की जाती है वह अवश्य ही साकार होती है | यह वृक्ष भारत में गिने चुने स्थानों में ही पाया जाता है | भारत में कुल लगभग ९-१० कल्पवृक्ष ही हैं लेकिन जिन स्थानों में वन विभाग और सरकारी अमले की पहुँच है , वहाँ तो इनकी देखभाल और संरक्षण ठीक प्रकार से किया जा रहा है | किन्तु कुछ स्थान ऐसे भी हैं जहाँ इसकी देखभाल सिर्फ गाँव और आस पास के लोगों के द्वारा ही की जाती है |
ऐसा ही एक वृक्ष उत्तरप्रदेश के बुन्देलखण्ड के सिचौरा गाँव में है | गाँव के बड़े बुजुर्ग बताते हैं की यह वृक्ष २००० साल से भी अधिक आयु का है लेकिन इसकी सही सही आयु अभी तक कोई आंक नहीं पाया है | सरकारी अमले और वन विभाग की टीम का कभी इस तरफ ध्यान ही नही गया | जिसका नतीजा यह हुआ की आज से ८ वर्ष पहले इस वृक्ष के जोड़े में से एक वृक्ष क्षतिग्रस्त हो गया | जिसके बाद गाँव वालों ने इसके लिये ऐसी व्यवस्था की थी कि वृक्ष के क्षतिग्रस्त तने से इसके अंदर पानी न जाये | यदि शीघ्र ही वन विभाग व सरकार के द्वारा इस तरफ ध्यान नहीं दिया गया तो एक दिन यह वृक्ष भी अन्य स्थानों के वृक्षों की तरह गिर जायेगा | गाँव वालों का कहना है की यदि इस तरफ वन विभाग की टीम ध्यान दे तो निश्चित ही इस वृक्ष को बचाया जा सकता है |
भारत में रांची, अल्मोड़ा, काशी, नर्मदा किनारे, कर्नाटक आदि कुछ महत्वपूर्ण स्थानों में भी यह वृक्ष पाया जाता है ।इस तरह के वृक्ष झारखण्ड के रांची के दोरांडा क्षेत्र में ५ हैं तथा अन्य समाचारों के अनुसार ग्वालियर के पास कोलारस में भी एक कल्पवृक्ष है जिसकी आयु 2,000 वर्ष से अधिक की बताई जाती है। ऐसा ही एक वृक्ष उत्तरप्रदेश के ही हमीरपुर जिले में यमुना नदी के तट पर है, उत्तरप्रदेश के बाराबंकी के ही बोरोलिया में भी है जिसकी आयु वैज्ञानिकों ने ५००० वर्ष से भी अधिक बताई है , राजस्थान में अजमेर के पास मांगलियावास में है और पुट्टपर्थी के सत्य साईं बाबा के आश्रम में मौजूद है।ओलिएसी कुल के इस वृक्ष का वैज्ञानिक नाम ओलिया कस्पीडाटा है। यह यूरोप के फ्रांस व इटली में बहुतायत मात्रा में पाया जाता है। यह दक्षिण अफ्रीका और ऑस्ट्रेलिया में भी पाया जाता है। भारत में इसका वानस्पतिक नाम बंबोकेसी है। वैज्ञानिक द्रष्टिकोण से इसको फ्रांसीसी वैज्ञानिक माइकल अडनसन ने 1775 में अफ्रीका में सेनेगल में सर्वप्रथम देखा था, इसी आधार पर इसका नाम अडनसोनिया टेटा रखा गया। इसे बाओबाब भी कहते हैं।
वृक्षों और जड़ी-बूटियों के जानकारों के मुताबिक यह एक बेहद मोटे तने वाला फलदायी वृक्ष है जिसकी टहनी लंबी होती है और पत्ते भी लंबे होते हैं। दरअसल, यह वृक्ष पीपल के वृक्ष की तरह फैलता है और इसके पत्ते कुछ-कुछ आम के पत्तों की तरह होते हैं तथा सभी पत्ते पांच या सात के गुच्छे/समूह में रहते हैं । इसका फल नारियल की तरह होता है, जो वृक्ष की पतली टहनी के सहारे नीचे लटकता रहता है। इसका तना देखने में बरगद के वृक्ष जैसा दिखाई देता है। इसका फूल कमल के फूल में रखी किसी छोटी- सी गेंद में निकले असंख्य रुओं की तरह होता है।
पीपल की तरह ही कम पानी में यह वृक्ष फलता-फूलता हैं। सदाबहार रहने वाले इस कल्पवृक्ष की पत्तियां बिरले ही गिरती हैं, हालांकि इसे पतझड़ी वृक्ष भी कहा गया है।
यह वृक्ष लगभग 70 फुट ऊंचा होता है और इसके तने का व्यास ३०-35 फुट तक हो सकता है। 150 फुट तक इसके तने का घेरा नापा गया है। इस वृक्ष की औसत जीवन अवधि 2500-3000 साल है। कार्बन डेटिंग के जरिए सबसे पुराने फर्स्ट टाइमर की उम्र 6,000 साल आंकी गई है।औषध गुणों के कारण कल्पवृक्ष की पूजा की जाती है।
यह एक परोपकारी मेडिस्नल-प्लांट है अर्थात दवा देने वाला वृक्ष है। इसमें संतरे से 6 गुना ज्यादा विटामिन 'सी' होता है। गाय के दूध से दोगुना कैल्शियम होता है और इसके अलावा सभी तरह के विटामिन पाए जाते हैं।
इसकी पत्ती को धो-धाकर सूखी या पानी में उबालकर खाया जा सकता है। पेड़ की छाल, फल और फूल का उपयोग औषधि तैयार करने के लिए किया जाता है।
सेहत के लिए : इस वृक्ष की 3 से 5 पत्तियों का सेवन करने से हमारे दैनिक पोषण की जरूरत पूरी हो जाती है। शरीर को जितने भी तरह के सप्लीमेंट की जरूरत होती है इसकी 5 पत्तियों से उसकी पूर्ति हो जाती है। इसकी पत्तियां उम्र बढ़ाने में सहायक होती हैं, क्योंकि इसके पत्ते एंटी-ऑक्सीडेंट होते हैं। यह कब्ज और एसिडिटी में सबसे कारगर है। इसके पत्तों में एलर्जी, दमा, मलेरिया को समाप्त करने की शक्ति है। गुर्दे के रोगियों के लिए भी इसकी पत्तियों व फूलों का रस लाभदायक सिद्ध हुआ है।
इसके बीजों का तेल हृदय रोगियों के लिए लाभकारी होता है। इसके तेल में एचडीएल (हाईडेंसिटी कोलेस्ट्रॉल) होता है। इसके फलों में भरपूर रेशा (फाइबर) होता है। मानव जीवन के लिए जरूरी सभी पोषक तत्व इसमें मौजूद रहते हैं। पुष्टिकर तत्वों से भरपूर इसकी पत्तियों से शरबत बनाया जाता है और इसके फल से मिठाइयां भी बनाई जाती हैं।
विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के अनुसार हमारे शरीर में आवश्यक 8 अमीनो एसिड में से 6 इस वृक्ष में पाए जाते हैं।
पर्यावरण के लिए : यह वृक्ष जहां भी बहुतायत में पाया जाता है, वहां सूखा नहीं पड़ता। यह रोगाणुओं का डटकर मुकाबला करता है। इस वृक्ष की खासियत यह है कि कीट-पतंगों को यह अपने पास फटकने नहीं देता और दूर-दूर तक वायु के प्रदूषण को समाप्त कर देता है। इस मामले में इसमें तुलसी जैसे गुण हैं।
पानी के भंडारण के लिए इसे काम में लिया जा सकता है, क्योंकि यह अंदर से (वयस्क पेड़) खोखला हो जाता है, लेकिन मजबूत रहता है जिसमें 1 लाख लीटर से ज्यादा पानी की स्टोरिंग केपेसिटी होती है। इसकी छाल से रंगरेज की रंजक (डाई) भी बनाई जा सकती है। चीजों को सान्द्र (Solid) बनाने के लिए भी इस वृक्ष का इस्तेमाल किया जाता है।
पत्तों का उपयोग : हमारे दैनिक आहार में प्रतिदिन कल्पवृक्ष के पत्ते मिलाएं 20 प्रतिशत और सब्जी (पालक या मैथी) रखें 80 प्रतिशत। आप इसका इस्तेमाल धनिए या सलाद की तरह भी कर सकते हैं। इसके 5 से 10 पत्तों को मैश करके परांठे में भरा जा सकता है।
फल का उपयोग : कल्पवृक्ष का फल आम, नारियल और बिल्ला का जोड़ है अर्थात यह कच्चा रहने पर आम और बिल्व तथा पकने पर नारियल जैसा दिखाई देता है लेकिन यह पूर्णत: जब सूख जाता है तो सूखे खजूर जैसा नजर आता है।
अब ऐसे औषधीय और दैवीय गुणों वाले वृक्ष की देख भाल और संरक्षण निश्चित ही होना चाहिये | भारत में जहाँ जहाँ यह वृक्ष हैं , सरकार को चाहिये की उनकी देखभाल के लिये वन विभाग का ध्यानाकर्षण करे | जिससे ख़त्म हो रही ऐसी वानस्पतिक धरोहर को हम बचा सकें |
By: Chetan Nitin