(News) उत्तर प्रदेश विभाजन मुद्दे को ले कर पार्टियाँ आमने सामने

उत्तर प्रदेश को प्रशासनिक दृष्टिकोण से सुशासन कायम करने के लिये चार हिस्सों में विभाजित करने की बात प्रदेश की मुख्यमंत्री मायावती द्वारा करते हुये प्रधानमंत्री को चिट्टी लिखने के साथ प्रदेश की राजनीति में प्रदेश के विभाजन के पक्ष में और विभाजन को रोकने के लिये राजनैतिक दलों ने अपनी -अपनी तलवारें भांजना शुरू कर दिया है। बुन्देलखण्ड के बसपा विधायक राकेश कुमार गोस्वामी, अनिल कुमार अहिरवार, रामकुमार तिवारी आदि प्रदेश के विभाजन के पक्ष में खड़े होते हुये केन्द्र सरकार द्वारा अनुछेद तीन के अन्तर्गत प्रदेश के विभाजन के लिये पहल की बात कर रहे है। तो कांग्रेस के विवेक कुमार सिंह ने शुक्रवार से बात करते हुये कहा कि 22 माह पहले प्रदेश विधानसभा में प्रदेश के विभाजन के लिये कांग्रेस विधायकों द्वारा संकल्प प्रस्ताव लाया गया था वह आज भी विधानसभा में लम्बित है। उसे पास कराने या उस पर चर्चा करने के स्थान पर बार-बार चिट्टी लिखनेका प्रपंच किया जा रहा है। वहीं समाजवादी पार्टी के विधायक दीपनारायन यादव, विशम्भार यादव बुन्देलखण्ड राज्य बनने या प्रदेश विभाजन के विरूद्ध खड़े है लेकिन समाजवादी पार्टी के विधायक विशम्भर प्रसाद निषाद पार्टी लाईन के साथ-साथ बुन्देलखण्डीयों की भावनाओं के साथ भी खड़े है। उनका कहना है कि पहले हमारे लिये हमारे मतदाता है। जिनके बल पर हम विधानसभा पहुंचते है। उनकी राय बुन्देलखण्ड के पक्ष में है तो मै भी उनके साथ रहुॅगा। कांग्रेस के स्थानीय सांसद और अब केन्द्र में ग्रामीण विकास राज्य मंत्री प्रदीप जैन आदित्य बुन्देलखण्ड राज्य पर बात करने को तैयार नहीं है। इस संवाददाता द्वारा दो बार सम्पर्क करने पर लाईन पर भी नहीं आये। राजाबुन्देला कहते है कि बुन्देलखण्डीयों का सबसे बड़ा दर्द यही है जब तक सड़क पर रहते है तब तक बुन्देलखण्ड की बात करते है जैसे ही पद मिलता है तो बुन्देलखण्ड के बेबस लोगों को भूल जाते है। बुन्देलखण्ड राज्य के लिये पिछले 40 वर्षो से चल रही मुहिम में देखा जाये तो देव कुमार यादव (बांदा), राजा पटेरिया (दमोह), ओम रिछारिया (झांसी), बृजकिशोर पटेरिया (सागर), बादशाह सिंह (हमीरपुर), विवेक कुमार ंिसह (बांदा), प्रदीप जैन आदित्य (झांसी) ने बुन्देलखण्ड राज्य के लिये जब तक विधायक नहीं बने खूब संघर्ष किया। यही हाल कुछ सांसदों का रहा हैं। लेकिन बदलाव की बयार बहने के कारण आज बुन्देलखण्ड के राजनैतिक अपनी स्वार्थ नीति को भूल कर एक बड़े संघर्ष की तैयारी में है। जानकार सूत्रों का कहना है कि गंगा चरण राजपूत की अगुवाई में बहुजन समाज पार्टी एक बड़ा आन्दोलन बुन्देलखण्ड में छेड़ कर कांग्रेस से बुन्देलखण्ड बनाने का मुद्दा छीनने की कोशिश की जाने वाली है।

इत चंबल उत नर्बदा, इत यमुना टोस। के बीच वाला क्षेत्र को बुन्देलखण्ड मानने वाले बुन्देलीयों की पहचान बागी और बगावत के लिये इतिहास में दर्ज है। 1840 मेें पहली बार अंग्रेजों को रोकने का प्रयास करने वाले बुन्देली लोग देश आजाद होते हुये अखण्ड से खण्ड-खण्ड हो गये। शायद देश में यह पहला अवसर था कि जब अखण्ड लोगांे को दो क्षेत्रों में विभाजित करने की गहरी साजिश रची गयी। देश के बीमारू राज्यों में शामिल उत्तर प्रदेश के सात जिलों में फैला बंुदेलखंड आज भी जल, जमीन और जीने के बाद के लिए तड़पते लोगांे का केंद्र बना हुआ है। महिलाओं, दलितों और वंचितों की जिंदगियां मानवीय विसंगतियों की बेपनाह गाथाओं की पुनरावृत्तियों में समाती जा रही है। रोजी-रोटी और कहीं-कहीं पानी की विकट समस्या से त्रस्त लोग साल-दर-साल पलायन के लिए मजबूर होते रहते है। सामंती मानसिकता में जकड़े कुछ लोगों की मुटठी में इन गरीब बेबस लोगों के साथ कानून की सिसकिया भरता नजर आ रहा है। प्रदेश के कुल क्षेत्रफल का आठवां हिस्सा अपने में समेटे यह समूचा अंचल भूमि उपयोग व वितरण, कार्यशक्ति, जलवृष्टि, सिंचाई, उत्पादन, सूखा व बाढ़, आजीविका जैसे तमाम मसलों पर बहुत ही पीछे है। मानवाधिकारों का तो यहां कोई पुरूसाहाल नहीं है। झांसी और चित्रकूट मडलों मं विभाजित बुंदेलखंड में प्रदेश की कुल आबादी की लगभग पांच प्रतिशत जनसंख्या है। औसत से कम बरसात के कारण प्रत्येक दो-तीन वर्ष बाद बुंदेलखंड सूखे की चपेट मंे आ जाता है। कभी खरीफ तो कभी रबी और कभी दोनों फसलें चैपट हो जाती है। हर साल तकरीबन अठारह प्रतिशत बाल/आवस्यक विवाह होते हैं। लगभग सोलह प्रतिशत जमीन बंजर अथवा गैर कृषि योग्य कार्यो में है। बेसिक व हायर सेकंेडरी स्कूलों की स्थिति प्रदेश के अनुपात मंे कही दो, कही तीन तो कहीं एक प्रतिशत के लगभग ही है। विकास के तमाम कामों के बावजूद गरीबी रेखा से नीचे के परिवारों की संख्या लगभग चालीस प्रतिशत है, जो लोकतंत्र के मुंह पर एक करारा तमाचा है। बदहाल बुन्देलखण्ड के लिए केन्द्र सरकार द्वारा प्रस्तावित 7,266 करोड़ रूपये के पैकेज से बुन्देलखण्ड के 13 जिलों में सिंचाई एवं कृषि सुविधाएं दी जानी है। पैकेज की घोषणा के साथ उत्तर प्रदेश और मध्यप्रदेश की सियासी जमीन पर शह-मात का खेल फिर शुरू हो गया है। पहले पैकेज के लिये राहुल गाॅधी की पहल पर केन्द्रीय प्राधिकरण बनाने की बात हुई तो उत्तर प्रदेश और मध्यप्रदेश सरकार भले ही विचार धारा में एक दूसरे की पूरक रही हो लेकिन एक स्वर में अलाप लगाने लगी थी। अब फिर पैकेज मिलते ही बहुजन समाज पार्टी कांग्रेस के श्रेय को खारिज करने के लिये 80 हजार करोड़ की बात करने लगी है और भारतीय जनता पार्टी तो कह रही है कि जब सब बरवाद हो गया तो अब पैकेज देने से क्या फायदा सपा भी पीछे नही है। उसे इसमें भ्रष्टाचार की बू आ रही है। तो कांगे्रस के झांसी जिलाध्यक्ष सुधांशु त्रिपाठी कहते है कि बुन्देलखण्ड में धन की लूट हो इसके लिए सत्ताधारी दल और तैनात अधिकारी जरूरी है ताकि पैकिज लागू होने के बाद उनके ऊपर नजर रखी जा सके। डा0 आशीष पटैरिया का विचार है कि निर्माण कार्य शुरू होने के पहले केन्द्र सरकार 13 जिलों में पूर्व में बने तालाब,चैकडेम, डेम आदि का सर्वेक्षण और वीडियों ग्राफी कराले अन्यथा पूर्व में बने चेक डेम और बांधों के नाम पर पूरा पैसा डकार लिया जायेगा। बुन्देलखण्ड में नेताआंे की समृद्धि सत्ता मिलते ही इतनी बड़ जाती है कि जिनके पास अपनी साईकिल तक नहीं वे आज हेलीकाप्टर खरीद रहे है जो भी सत्ताधारी पार्टी में जिला कमेटी में तक आया उसका भूगोल बदल गया है। गरीब और गरीब होता गया नेता अमीर बन गया सरकारी अधिकारी ठेकेदारो और नेताओं की त्रयी से त्रस्त बदहाल बुन्देलखण्ड में सिर्फ केन्द्रीय योजना आयोग के सदस्यों की निगरानी से कुछ होने वाला नहीं है।

दूसरी ओर सत्ताधारी प्रदेश सरकार उत्तर प्रदेश के बुन्देलखंड कें गांवों में मनरेगा का दायित्व मंत्री दद्दू प्रदसाद को सौपे है तो केन्द्रसरकार ने प्रदीप जैन आदित्य को केन्द्रीय राज्यमंत्री बनाया है यही कुछ हाल मध्य प्रदेश के बुन्देलखण्ड का है वहां कबीना मंत्री गोपाल भार्गव सागर मध्य प्रदेश के निवासी है। लेकिन बुन्देलखंड के उत्तर प्रदेश तथा मध्यप्रदेश के भू-भाग मंे आज जनता के पास दो वक्त खाने का अनाज नहीं है। और न कोई रोजगार उपलब्ध है। सिंचाई, स्वास्थ्य और शिक्षा की सारी योजनाएं अपना व्यापक असर नहीं डाल पायी है। सरकारी वायदें और नीतियों ने ऐसें चैराहे पर लाकर खड़ा कर दिया है। जहां से लौटना कठिन है समाजवादी विचारक राजेन्द्र रजक कहते है कि सत्ता के दलालों का बुन्देलखण्ड मंे बोलबाला है। मजदूरों की मजदूरी हड़पना इनकी नीति बन गयी है। महात्मा गांधी रोजगार गारंटी योजना बेरोजगारी की समस्या का हल नहीं कर पायी। लाखों लोग गांव छोड़कर छह से आठ मास के लिए पलायन कर जाते है। सामाजिक सुरक्षा योजना द्वारा गरीबों को मिलनेवाले अनाज डीलरों द्वारा खुले बाजार में बेच दिया जाता है।

असंवेदनशील अफसरों की सामन्ती मानिकसता के कारण कई दिशा-निर्देशों का अनुपालन नहीं किया जाता। गरीब आदिवासी अपने पेट की आग शांत करने के लिए सामा घास की रोटी खाने को मजबूर है। स्थानीय प्रशासन भूख की समस्या को सामने नहीं आने देता चाहता है क्यांेकि उनकी कलई खुलने का खतरा रहता है। सकरा का सच सामने आने के बाद ललितपुर के मड़ावरा ब्लाक मंे स्थानीय प्रशासन की नींद थोड़ी टूटी है, लेकिन सामंतो का यहां भी शासन है। ललितपुर जनपद में ग्रामविकास मंत्री ने खाॅदी बिजरौठा में जाॅब कार्ड की गड़बड़ी पकड़ी लेकिन सीडीओ की उदाशीनता के चलते मामला जस का तस बना हुआ है। कांग्रेस के ललितपुर नगर अध्यक्ष सुनील शर्मा कवि अग्निवेद की यह कविता कोड करते है

‘ऊचे बंगले और घर
तभी तक रहेगे कायम
जब तक झोपड़ियों में
जलते दीपक में है दम!’

बुंदेलखंड में विकल्प एवं पहल की संभावनाएं पर ध्यान देने के लिए ठोस पहल की आवश्यकता है क्योंकि पिछले लगभग एक दशक मंे चित्रकूट मंडल के बांदा, महोबा, हमीरपुर, चित्रकूट जिलों में औसत वर्षा होती रही है। लेकिन जरूरत के समय एक-एक महीने तक लगातार बारिश न होने से फसले सूख जाती है। बेतवा,केन, धसान, सहजाद, मंदाकिनी जैसी नदियांे के बावजूद सिंचाई के संसाधनों का समुचित विकास नहीं किया गया। फलतः सिंचाई के अभाव में यह क्षेत्र लगातार सूखा झेलता आ रहा है। समाजसेवा की आढ़ में अनेक स्वयंसेवी संस्थाऐं बुन्देलखंड को चारागाह के रूप में इस्तेमाल कर रही है उन्हें इस क्षेत्र के गरीबांे से कोई मतलब नहीं है। खादी का कुर्ता और जीन्स पहनकर बुद्धिजीवी बने तथा कथित लोग पुरूस्कार पाने की होड़ में सेवा का का नाटक करते हुये करोड़ों रूपये का अनुदान हड़प रहे है। इन स्वयंसेवी संस्थाओं ने एक भी कार्य ऐसा नहीं किया है जिसका उल्लेख किया जा सके। फर्जी सेमीनार और गोष्ठीयों के बल पर बिल बावचर बनाकर मालामाल हो रहे है। झांसी मण्डल तथा चित्रकूट मंडल से जुड़े ललितपुर एवं चित्रकूट जिले में खासतौर से प्राकृतिक संसाधनों के समतामूलक स्वामित्व और उपयोग को गरीबी अन्मूलन के प्रमुख हथियार के रूप मंे इस्तेमाल किया जा सकता है। बुन्देलखण्ड का एक ही हल राज्य हो अलग यह बात बुन्देलखण्ड राज अन्दोलन से जुड़े लोगों के अलावा आम बुन्देलियों की है। उनका कहना है कि हमारी खनिज सम्पदा हमारी बिजली हमारा पानी हमें ही जो प्रदेश न दे सके उसके साथ रहने से क्या फायदा फिर 1948 में भारत सरकार ने तत्कालीन स्वतंत्र राजा रजवाड़ों से एक मसौदे पर (सन्धि पत्र) पर हस्ताक्षर किये थे कि अंग्रेजों द्वारा खण्ड-खण्ड किये गये बुन्देलखण्ड को एक कार्यपालिका, एक न्यायपालिका देकर बुन्देलखण्ड राज्य दिया जायेगा। भारत सरकार की ओर से इस सन्धि पत्र पर तत्कालीन सचिव मिस्टर मेनन ने किया है।

बुन्देलखण्ड राज्य के लिये 16 दिसम्बर से बुन्देलखण्ड मुक्ति मोर्चा तथा बुन्देली सेना राजा बुन्देला की अगुवाई में खजुराहों तक 300 किमी की जनजागरण यात्रा निकाल रही है तो वहीं दूसरी ओर कांगे्रस के विधायक विवेक कुमार सिंह आमरण अनशन जैसे विकल्प पर विचार कर रहे है। डा0 विश्वनाथ शर्मा पूर्व सांसद बुन्देलखण्ड आन्दोलन से जुड़े सभी संगठनों को एक ध्वज के नीचे लाने की कोशिश में लग गये है।

सुरेन्द्र अग्निहोत्री
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