बुंदेलखंड में मौत की खेती पर भूमिहीन किसान की गरीबी में मौत
'' बुंदेलखंड में मौत की खेती पर भूमिहीन किसान की गरीबी में मौत '' !
ताबड़
- तोड़ किसान की सदमे . आत्महत्या ,गरीबी और आधे पेट रोटी खाकर अपने खेत की सूखी
मिटटी को नम करने की जद्दोजहद में आज एक और अन्नदाता ने अपने ही खेत में दोपहर 12
बजे दम तोड़ दिया ! गाँव के किसान इंद्रजीत सिंह के खेत में दिहाड़ी मजदूरी करने वाला
ये किसान भूमिहीन है जिससे इसको सरकारी योजना का लाभ भी मिलना मुश्किल है ! न इसका
कृषक बीमा है और न ये किसान परिवार लाभ योजना में शामिल होगा क्योकि इसके नाम पर
खेती की जमीन नही है ! जीवन की आपा--धापी से मुक्त हुआ ये बाँदा जिले का युवा चालीस
वर्षीय किसान गौरीकला गाँव के जसपुरा क्षेत्र का रहवासी था !
देश की आजादी के आधी शताब्दी में एक माकूल जनसख्या नीति न होने से उबा ये किसान भी हम दो हमारे दो की एलओसी पारकर तीन बेटों और पांच बेटियों का पिता था !
उसे गुमान रहा होगा कि आठ गरीब संतानों को पैदा करके मै इस लुटे
- पिटे मुल्क में एक सुनहरा सबेरा दूंगा ! ...मगर नियति की मार और बुंदेलखंड के सूखे
में मचे किसान
आत्महत्या ,सदमे की मौतों में वो भी शामिल हो गया ! बुंदेलखंड के सात जिलों में अब
तक चार हजार से अधिक किसान आत्महत्या और सदमे की तपिश में मर चुके है ! तिंदवारी
विधान सभा से ये किसान मतदाता की लाश आज इतनी लचार थी कि गाँव का दबंग - चटरी माफिया
ग्राम प्रधान दिनेश गुप्ता उर्द साधू गुप्ता उसको देखने भी न आया खबर लिखे जाने तक
! सूत्र कहते है कि अपने पंचवर्षीय कार्यकाल में विकास का एक पत्थर न लगवा पाने वाला
ये प्रधान अपना ही घर भरता रहा है ! इसने अपने चटरी की तस्करी का जाल नेपाल तक फैला
रखा है और अफसरों को उनकी कीमत देकर चुप कराता है ! ...मृतक किसान राममिलन वर्मा
पुत्र सुखदेव वर्मा के पास मनारेगा कार्ड होने के बाद भी उसको रोजगार नही मिला था !
...बतलाते चले कि गाँव के बिखरते ताने - बाने के बीच उलझी इस किसान की सांसे भी
परवारिक रिश्तो की टूटन में नितांत मुफलिसी की शिकार हो गई है ! पिता ने बीस बीघा
खेती की जमीन में एक बिस्वा भी इसको नही दी थी ! ये बुंदेलखंड के गाँवो की क्रूर
परंपरा है कि जिंदा रहते पिता अपने बेटों को अपने सामने मजदूरी करवाते है ! उन्हें
कृषि की हिस्सेदारी नही देते ये भुलाकर कि ब्याह के बाद बढ़ता हुआ परिवार क्या खायेगा
? ...मृतक किसान के नाम एक भी ज़मीन नही है ! ये खेतिहर मजदूर आधे / बटाई में खेती
लेकर परिवार को पालता रहा है ! ...किसान क्रेडिट कार्ड से महरूम ये मजदुर किसान
बुनयादी साधन से बेदखल था ! ...आज उसके आठ मासूम बच्चो को बिलखता देख के मुझे अदम
गोंडवी का वो लफ्ज याद आया कि '' तुम्हारी फाइलों में गाँव का मौसम गुलाबी है, मगर
ये आकडे झूठे है - ये दावा किताबी है '' !
इस मृतक अन्नदाता को आगामी बीस दिसंबर को ' अन्नदाता की आखत '
चेरटी शो में हम सब यथा संभव मदद देने का संकल्प करते है ! लेकिन हमारे हुक्मरान कब
जागोगे देखो ये किसान की लाश तुम्हारे कुर्ते के गुलबंद और महकते मलमली बिस्तर पर
कोढ़ है ! माना कि तुम लोकसेवक हो मगर हम आज भी गुलाम ही रह गए !...लाल फीताशाही में
ये मौतों की हरियाली बुंदेलखंड को वीरान कर देगी !
किसान का वीडियो और बाकी तस्वीरे बीस दिसंबर को पूरा बाँदा देखेगा लाइव !साथ ही
आगामी 18 और 19 दिसंबर को हम समाज और ब्युरोक्रेस्ट्स से अन्नदाता की आखत में चादर
फैलाकर उसकी हिस्सेदारी शहर में मांगेंगे !
By: आशीष सागर,बाँदा