(News) बुंदेलखंड पान किसान : मालिक से बनते मजदूर
बुंदेलखंड पान किसान : मालिक से बनते मजदूर
बुंदेलखंड इलाके का अपना एक अलग अंदाज है , इस इलाके का पान भी अपनी एक अलग पहचान दुनिया भर में बनाये हुए है । अपने अलग खास स्वाद और तासीर के लिए पहंचाने जाने वाला साधारण सा पान का पत्ता अब समय के साथ -साथ असाधारण होता जा रहा है । जिस पान की फसल और व्यवसाय से हजारों लोगों को रोजगार मिलता था अब वह आंकड़ा धीरे धीरे सिमटने लगा है । कल तक जो मालिक होते थे आज मजदूरी करने को मजबूर हैं । काल का चक्र है कब कैसा घूम जाए कौन राजा बन जाए और कौन रंक कहा नहीं जा सकता ।
बुंदेलखंड इलाके में महोबा , ( उ प्र ) मध्य प्रदेश के छतरपुर जिला के महराजपुर , गढ़ी मलहरा , लवकुश नगर , बारीगढ़ , दिदवारा , पिपट और पनागर । देशी (महोबिया ) पान के नाम से विख्यात पान की खेती छतरपुर जिले में कैसे शुरू हुई इसका भी अपना एक अलग इतिहास है । 1707 ई में महराज छत्रसाल ने जब महराजपुर नगर बसाया उस समय यहां के लोगों को रोजगार के साधन के लिए ,पान की खेती शुरू कराई गई । पान की खेती के गुर और ज्ञान के लिए महोबा के पान किसानो का सहारा लिया गया । तभी से यह खेती इस जिले साथ, पन्ना , दमोह , सागर , और टीकमगढ़ जिले तक फैली । पर मुख्य तौर से देशी पान की खेती महोबा और छतरपुर जिले में ही होती है ।
रियासत काल में जिस पान की खेती को राजा का संरक्षण मिलता था । जिसका परिणाम यह था की यहां का पान देश ही नहीं दुनिया अनेको मुस्लिम देशों में जाता था । देश आजाद हुआ आजादी के बाद पान पर कर भी लगने लगा था । मध्य प्रदेश में पान की कोई बड़ी मंडी नहीं है किन्तु उत्तर प्रदेश के मुरादाबाद , अलीगढ , रामपुर , मेरठ , बदायूँ , सहारनपुर, मुजफ्फर नगर आदि स्थानो पर वहां की सरकार मंडी टैक्स लगा दिया था । जिसे बाद में उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्य मंत्री कमलापति त्रिपाठी ने समाप्त किया था । उत्तर प्रदेश से निपटने के बाद मध्य प्रदेश सरकार ने भी पान पर मंडी टैक्स ठोक दिया । मध्य प्रदेश के तत्कालीन मुख्य मंत्री मोतीलाल वोरा ने समाप्त किया । मध्य प्रदेश में मंडी टैक्स के पहले पान किसानो से सेल टैक्स भी वसूला जाता था , जिसे तत्कालीन मुख्य मंत्री प्रकाशचंद्र सेठी ने समाप्त किया था ।
आजादी के बाद से सरकारों ने सरकारी तरीके के पान अनुसंधान केंद्र खोले । जिन विशेषज्ञों को अनुसन्धान के द्वारा पान की खेती को और लाभ कारी बनाना था वो सिर्फ दफ्तरों तक सीमित रहे । परिणाम ये हुआ की पान की फसल जिन रोगों और समस्यायों का पहले सामना कर रही थी ,आज भी उन्ही से जूझ रही है ।पिछले बीस वर्षो से बुंदेलखंड इलाके की पान की फसल लगातार किसी ना किसी कारण से खराब होती रही है । कभी सूखा रोग , तो कभी प्रकृति का प्रकोप तो कभी कीटों का आघात । यह नाजुक फसल इस समय एक ऐसे रोग की गिरफ्त में है जिसका इलाज अब तक किसी को नहीं सूझ रहा । पान का चिकना हिस्सा काला हो जाता है और उसके उलट हिस्से पर सफ़ेद फफूंद सी जम जाती है ।यह रोग पान के पत्तों तक सीमित नहीं है बल्कि यह पान की बेलों पर भी सफ़ेद फफूंद लगने लगी है जिसके चलते पान के पत्ते झड़ने लगे हैं । ऐसे पानो को साफ़ कर बेचने का प्रयास भी बेमानी साबित हो रहा है । पान की खेती करने वाले इसे काली रोग कहते हैं । जब की इसे वैज्ञानिक भाषा में लीफ स्पॉट आफ विजीस वीटलवायन नामक रोग के नाम से जाना जाता है । दरअसल पान पर यह रोग तब फैलता है जब मौसम में अचानक उतार चढ़ाव होता है ।
बुंदेलखंड का यह इलाका समशीतोष्ण जलवायु लिए जाना जाता था , जो पान की फसल के लिए सर्वाधिक अनुकूल होता है । पिछले दो दशक पूर्व इस इलाके में बने एक विशाल उर्मिल बाँध बनने , जंगलों के अधाधुंद कटाई के बाद से इस इलाके के मौसम में भी बड़ा परिवर्तन आया है । जिसका परिणाम ये हुआ की जम कर सर्दी और तीव्र गर्मी का प्रकोप यहाँ रहने लगा । मौसम का यह परिवर्तन पान की फसल के लिए अनुकूल नहीं रहा जिस कारण हर साल पान फसल किसी ना किसी रूप में बर्बाद होती रही और यहां के लोगों बर्बाद करती रही ।
बुंदेलखंड इलाके के छतरपुर,पन्ना , टीकमगढ़ ,महोबा में देशी पान की खेती होती है | इनजिलों की तक़रीबन २५ हजार एकड़ में पान की खेती लगभग 20 हजार से ज्यादा किसान करतेहें | छतरपुर जिले के ही गढ़ी मलहरा ,महराजपुर ,बारिगढ़ ,पिपट ,पनागर , एसे गाँव हें जहां 90% लोग सिर्फ पान की खेती पर आश्रित हें | बुंदेलखंड की मंडी से जाने वाला पान कभी कभी पांच सौ करोड़ का कारोबार करता था , आज हालात दो -तीन करोड़ के सालान कारोबार पर सिमट गया है । लोग खेती से तौबा कर रहे हैं , और जिनके पास कोई विकल्प नहीं हैं वे मजदूरी करने को मजबूर हैं ।
यही हालात रहे तो वो दिन दूर नहीं जब अपने अलग स्वाद और तासीर के लिए पहचाना जाने वाला बुंदेलखंड का यह देशी पान समाप्त हो जाएगा । फिर नहीं मिलेगा पान के शौकीनों को मुंह में घुलने वाला पान । जरुरत है पान की इस फसल के संरक्षण और सही अनुसंधान की ।
By: Ravindra Vyas