(Article) पानीदारों के पलायन से वोटों में सुराख
पानीदारों के पलायन से वोटों में सुराख
ख्वाब सारे हम गरीबों के चुराकर रख लिए, खूब वाकिफ है जमाना इसमें शामिल कौन है। पिछले पांच-छः वर्षों में बुन्देलखण्ड में सूखे के कारण हताशा, कर्ज गरीबी के चलते सैकड़ों किसानों से आत्महत्या कर ली। हालात से जूझने में नाकाम तमाम लोग अपने घर छोड़ पलायन कर गये। पानी की कमी के कारण अनके इलाकों में बूढ़े बाप के सामने जवान होती बिटिया के ब्याह की दुश्वारियां आती हैं। खेती की जमीन खरीदने को आसानी से कोई तैयार नहीं होता। विरोधी पक्ष के लोगों ने विधानसभा में कई मर्तबा यह मुद्दा बड़े ही बनावटी और मार्मिक ढंग से उठाया। लेकिन किसी भी दल की सत्ता में आसीन सरकार के सामने दाल नहीं गली। किसानों की दर्दुशा पर वह संजीदगी दिखाई नहीं देती जो प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह, राहुल गांधी, मुख्यमंत्री मायावती, उमा भारती व मुलायम सिंह यादव सरीखे नेताओं के भाषण में होती है। पानी, पलायन और प्राणान्त की जद्दोजहद में उलझी है बुन्देलखण्ड की चुनावी तस्वीर।
बुन्देलखण्ड- राहुल गांधी के आने के बाद भी बुन्देलखण्ड की तस्वीर नहीं बदली। तीन साल पहले जब राहुल गांधी ने बांदा जनपद की नरैनी तहसील के नहरी गांव में रात गुजारी तो यहां के लोगों की खुशी का ठिकाना नहीं रहा। भूख से मरे लोगों का दिल बांटा और बुन्देलखण्ड के लिए कुछ करने का ख्याल आया। थोड़ी बहुत भुखमरी तो रूकी लेकिन पलायन, रोजगार की तलाश में शहरों की तरफ प्रवास करने वालांे के पांव नहीं रूक सके। हालात यह हैं कि नहरी, पैगम्बरपुर, सिंहपुर, दस्यु प्रभावित आदिवासी क्षेत्र गोबरी गुढ़रामपुर, बघेलाबारी तिन्दवारी के महुई, गोखरही, महोबा के डढ़हतमाफ और चित्रकूट की पाठा से जुड़ी बरगढ़ के तमाम गांवों के दर्जनों घरों में ताले लटके हैं।
इत यमुना उत नर्मदा, इत चंबल उत टौंस। छत्रसाल की लरनि सो रही न काहु हौंस। बुन्देलों की सुनो कहानी बुन्देलों की वाणी में, पानीदार यहां का पानी आग है इसके पानी में। चार बड़ी और दर्जनों छोटी नदियां, अतुल जलराशि वाले सुंदर झरने, सरोवर, हरे भरे पहाड़ों से आच्छादित बुन्देलखण्ड को जाने किसकी नजर लग गई है। यूं तो यहां नदियों का जाल बिछा है। बांदा मंे यमुना, केन (कर्णवती), बागै, रंज, चन्द्रायल, चित्रकूट में मंदाकिनी, महोबा-हमीरपुर में यमुना और उर्मिल मुख्य नदियां हैं। इधर विधानसभा चुनाव से ठीक पहले बसपा मुखिया की यू0पी0 को चार हिस्से बांटने की सियासत में बुन्देलखण्ड के राजनीति का तापमान भी गरमा गया। अलग राज्य बनाये जाने की पहली बार 1955 में आवाज उठायी गयी थी। बुन्देलखण्ड मुक्ति मोर्चा, स्थानीय संगठनों ने जब तब इस आवाज को नये सुर और साज दी है। इसके बावजूद यह मुद्दा तेलांगना और अन्य छोटे राज्यों की बनिस्बत ज्वलन्त नहीं हो सका। 1989 में शंकर लाल मेहरोत्रा ने एक बड़ा आन्दोलन शुरू कर अलग राज्य के लिए जय बुन्देलखण्ड नारा दिया। इधर बुन्देलखण्ड कांग्रेस बनाकर राजनीतिक दांव खेलने में अभिनेता राजा बुन्देला भी पीछे नहीं रहे। यू0पी0 के 7 व म0प्र0 के 6 जिले अलग बुन्देलखण्ड राज्य के प्रस्तावित नक्शे में आते हैं लेकिन एक तबका वह भी है जिसके जहन में छत्रसाल के 23 जिलों वाला बुन्देलखण्ड बसता है।
बृहद् बुन्देलखण्ड में यू0पी0 से बांदा, चित्रकूट, हमीरपुर, महोबा, झांसी, ललितपुर, जालौन तो म0प्र0 से जुड़े छतरपुर, पन्ना, दमोह, सागर, दतिया व टीकमगढ़ हैं।
बुन्देलखण्ड में संकट
प्रस्तावित बांध जिनका निर्माण नहीं हो पाया | पेयजल योजनाएं, जो बदहाल हैं |
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बुन्देलखण्ड के यू0पी0 वाले 7 जिलों में 19 विधानसभा सीटे हैं। 21 सीटंे परिसीमन से पहले थीं वर्तमान में 16 सीटें बसपा, 3 सपा, 2 कांग्रेस के खाते में दर्ज हैं। 19 विधान सभाओं में बांदा से 4, चित्रकूट 2, महोबा 2, हमीरपुर 2, ललितपुर 2, झांसी 4 व जालौन 3 सीटे हैं।
चित्रकूट मण्डल के 4 जिलों में कुल मतदाता बांदा में 11.49 लाख जिसमें युवा 3.86 लाख, चित्रकूट में कुल वोटर 5.65 लाख, युवा 1.10 लाख, महोबा कुल वोटर 5.34 लाख, युवा 1.25 लाख, हमीरपुर कुल वोटर 7.62 लाख, युवा 2.35 लाख और बुन्देलखण्ड के पांचवें समृद्ध जिले जालौन मंे 11.57 लाख मतदाता है जिसमें कि 3.22 लाख युवा वोटर है। अकेले बांदा जिले की सदर सीट में 2.77 लाख मतदाता है। जिसमें से 80 हजार एस0सी0, 28500 ब्राहम्ण, 27000 कुशवाहा, 28000 पाल, 22000 वैश्य, 23500 मुस्लिम, 18500 यादव शेष अन्य जातियों के हैं। यहां पलायन करने वालों की एक वीभत्स पगडण्डी है। न तो शिक्षा का स्तर बढ़ा और न ही बाहर जाने वालों के पांव थमे। राहुल गांधी अप्रैल 2008 में बांदा के नहरी पहंुचे। भूख से मरे भागवत प्रसाद के घर रूककर राहुल ने लोगों के लिए कुछ करने का वादा किया। राहुल गांधी के इसी दौरे ने 7266 करोड़ के बुन्देलखण्ड पैकेज को लाने का खाका तैयार किया। नहरी के तमाम रहवासियों को उम्मीद थी कि पैकेज से उनके हिस्से कुछ आयेगा लेकिन ऐसा हुआ नहीं। चित्रकूट से ही प्रतिवर्ष औसतन 30 हजार लोग पलायन करते हैं।
पिछले पांच सालों मंे अनुमानित 2.50 लाख लोग विंध्याचल और पाठा के बिहड़ों से पलायन कर चुके हैं। यह प्रवास का आंकड़ा बदस्तूर जारी है। इसमें सर्वाधिक संख्या उन पढ़े लिखे युवाओं की है जो बेरोजगारी के चलते परदेशी बाबू बने है। चिल्लीमल, राकस, देवारी, भदेहदू, बेराउर, राजापुर, कसहाई, इटरौर, भीषमपुर, इटखरी, तर्रांव, सरहट, सुखरामपुर, मड़ईयन आदि ऐसे गांव हैं जहां आज घरों में पल्स पोलियो रिपोर्ट के मुताबिक जर्जर काका-काकी हैं। घर में पिया की आस में बैठी घरैतिन उन्हें भर पेट खाना इसलिए नहीं देती कि कहीं ज्यादा खा लेने से बूढ़े सास-ससुर का हाजमा न खराब हो जाये। बटवारा, बटाई और बदहाली में उलझा है बुन्देलखण्ड का पलायन।
बीते पांच सालों में गैरसरकारी संगठनों की माने तो 1122 किसानों
ने और गरीबी से आत्म हत्या की है। जिसमें 122 मौते सीधे तौर पर भुखमरी से हुई बतायी
जाती हैं। यह सब उस इलाके में घटित हो रहा है जहां एक बार फिर 19 जनवरी 2012 को
राहुल गांधी के कदमों ने बदहाल बुन्देलखण्ड को दिल्ली और गाजियाबाद जैसा बनाने का
वादा किया है। सरकार का दावा है कि भूख व कर्ज से कोई मौत नहीं हुई। मरने वाले
बीमार थे या फिर घरेलू कलह से उन्हांेने जान दी। आंकड़े बताते हैं कि खुले बाजार में
बिकने वाली हेयरडाई से ही बुन्देलखण्ड में गुजरे 2011 के अन्त तक 250 से अधिक लोगों
ने मानसिक अवसाद के कारण खुदकुशी की है।
वर्ष 2011 के पलायन करने वालों में शहर बांदा से ही 21319 परिवार दूसरे बड़े शहरों
की तरफ कूंच कर गये। चित्रकूट में यह संख्या 50 हजार, हमीरपुर में 50 से 55 हजार
महोबा में 60 हजार बताई गयी है। बुन्देलखण्ड के 7 जिलों में 50-50 युवाओं के बीच
किये गये पायलट सर्वे के मुताबिक 4 लाख गरीब मतदाता दिल्ली, पंजाब, पटियाला,
गुड़गांव, चण्डीगढ़, सूरत पलायन कर गया है। पल्स पोलियो ड्राप सर्वेक्षण ने मई 2010
से फरवरी में हुए अपने अभियान की जो रिपोर्ट जारी की है। उसमें पलायन करने वालों की
संख्या बांदा से 18875 थी। तीन महीने बाद 2444 मकानों में और ताले पड़ गये। जहां
वर्ष 2010 में बांदा के नरैनी 3600, बबेरू 3007, जसपुरा 1405, महुआ 2135, जारी जौरही
2273, बिसण्डा 2708, कमासिन 2078, तिन्दवारी 1781, अतर्रा 533 और बांदा सदर में
1799 घरों के लोग रोजी रोटी की तलाश में पलायन कर गये थे।
मार्च माह के मध्य में चैत की फसल काटने के लिए बुन्देलखण्ड का छोटा किसान फसल काटने के लिए अपने घरों की ओर लौटता है लेकिन विधानसभा चुनाव 2012 की बयाार में हो रहे फरवरी माह के चुनावी चैपड़ में बुन्देलखण्ड का किसान घर लौटेगा या नहीं इस आपाधापी के बीच सियासी दलों ने पलायन करने वाले गरीब किसानों की वापसी के लिए भी जुगत भिड़ानी शुरू कर दी है। दारू की बोतल और बैलेट पर बुलेट भारी यह बुन्देलखण्ड की पांच वर्ष पहले की तस्वीर थी। 7 जिलों की साक्षरता दर में पुरूष 64 प्रतिशत और महिलायें 32 प्रतिशत के पायदान पर खड़ी हैं। मनरेगा योजना से जहां एक तरफ केन्द्र सरकार ने पहले 100 दिन के काम और अब 120 दिन के कामों की गारण्टी दी है। वहीं बुन्देलखण्ड में मनरेगा योजना से बनवाये गये माॅडल तालाब मैट और अधिकारियों के साझा अभियान में क्रिकेट का मैदान बन गये हैं। गरीबी दूर करने के लिए अगर केन्द्र सरकार की मनरेगा योजना से 100 दिन काम के बदले एक वर्ष में 10 हजार रूपये मिलने वाली सरकारी मदद को पांच सदस्यों वाले संयुक्त परिवार के बीच बांटा जाये तो 833 रूपये मासिक आमदनी होती है। जो कि साल के 365 दिन में प्रति व्यक्ति 166 रूपये आती है। काश कि बुन्देलखण्डियों को यह 166 रूपये ही भ्रष्टाचार से मुक्त होकर मिल पाते तो यकीनन सत्ता और सियासत के हाथों वोटरों की मण्डी में तब्दील पानीदारों को पलायन की मार नहीं झेलनी पड़ती।
पलायन की एक वजह यह भीः-
बेकार भूमि | क्षेत्रफल (वर्ग किलोमीटर) |
वर्षा कटाव से बेकार जमीन | 859 |
झाड़-झंखाड़ वाली भूमि | 997 |
बिना झाड़-झंखाड़ वाली भूमि | 50 |
क्षारीय भूमि | 08 |
नोटीफाइड वन भूमि | 274 |
अनुपयोगी वन भूमि | 77 |
खनन से बेकार भूमि | 08 |
पथरीली बेकार भूमि | 198 |
कुल बंजर भूमि | 2471 वर्ग किलोमीटर |
बुन्देलखण्ड में गरीबी तो दूर करना दूर की बात, गरीबों की असली संख्या भी सार्वजनिक करने से सरकार को गुरेज है। केन्द्र सरकार द्वारा चलायी जा रही योजनाओं में यहां के मात्र 31 फीसदी के लोगों को ही गरीबी रेखा के नीचे माना गया है। यही वजह है कि 20 लाख राशन कार्डों में से मात्र 6 लाख राशन कार्ड बी0पी0एल0 और अन्त्योदय परिवारों को जारी हुए हैं। उत्तर प्रदेश की सूरत बदल देने का वादा करने वाले राहुल गांधी केन्द्रीय योजनाओं में गरीबों की इस अनदेखी से शायद ही वाकिफ हों। बुन्देलखण्ड के सातों जिलों में 19 लाख 2 हजार 1 सौ उनसठ राशन कार्ड बनाये गये हैं। इनमें गरीबी रेखा के नीचे जीवन यापन करने वालों के राशन कार्डों की संख्या मात्र 6 लाख है। चुनावी बिसात पर बुन्देलखण्ड के वोटों को हर कोई अपनी तरफ खींचना चाहता है। वहीं कुछ गैर सरकारी संघठन भी ऐसे हैं जो कि सियासी दलों के लिए सोशल एजेण्ट का काम कर रहे हैं। गांव के भोले भाले किसान परिवारों के बीच उनकी सीधी घुसपैठ है और वे आसानी से गरीब किसान को अपने पाले में कर सकते हैं। स्थिति जो पांच साल पहले थी वही आज है और शायद सरकार बदलने के बाद भी बुन्देलखण्ड के हालात नहीं सुधर पायें। पलायन, पानी की जंग में कमोवेश आज भी बुन्देलखण्ड का मूल मतदाता फांकाकशी, 2 जून की रोटी के लिए पलायन को मजबूर है जिससे 2012 के महासमर में वोटों पर सुराख कहा जा सकता है।
By: आशीष सागर
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Comments
bundekhand mai aaj bhi atmik
bundekhand mai aaj bhi atmik bhaichara hai humara bundelkhand aisi kalao se pari poord hai jo hamare samne ubhar kar a rahi hai. lekin siyasi logo ki bajah se sirf unka jise hum hindi mai majak kahte hai jo badi aasani se hota raha hai .mai bundelkhand ke har bhai se kahnachahta hoo kiham jyada se jyada pade likhe ho aur jisse muhtod jawab de sake. apni abaz buland karo aur kaho ki ham bundelkhandi hai jai hind jai bharat.
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ravindra kumar vishwakarma