टीकमगढ में कागजो में बने शौचालय
बुंदेलखंड का एक आदिवासी गाँव है जहां कागजों में शौचालय बन गए | आदिवासियों ने बैंक का मुंह तक नहीं देखा पर उनके खाते भी खुल गए | यहां तक की उनसे लेंन देंन भी हो गया | कागजों में बने शौचालय की पोल तब खुली जब यहाँ अधिकारियों का एक दल शौचालय के हालात जानने पहुंच गया | समग्र स्वक्षता मिशन को किस तरह प्रशासनिक तंत्र द्वारा तहस नहस किया जा रहा है यह उसका एक छोटा सा ही उदहारण कहा जा सकता है | हालांकि टीकमगढ़ जिला 2015 तक प्रदेश के उन जिलों में शुमार था जहां शौचालय निर्माण की गति सबसे कम थी | यहां तक की कलेक्टर ने ऐसे लोगों के शस्त्र लाइसेंस निलंबित करने के निर्देश भी दिए थे जिनके घर पर शौचालय नहीं हैं | नवीन लाइसेंस के लिए भी स्वछता प्रमाण पत्र अनिवार्य किया गया था | वर्तमान में टीकमगढ़ भले ही प्रदेश में दूसरे नंबर पर हो , पर कागजों में बने शौचालय उसके दावे पर सवाल जरूर खड़े करते हैं |
टीकमगढ जिले की जनपद पंचायत जतारा की ग्राम पंचायत बेरवार के आदिवासी बाहुल्य घटिया हार गांव में शौचालय धरातल पर नही कागजों पर बनाये जा रहे है। इस गांव के करीब 60 आदिवासी परिवारो के यहां शौचालय
बनाने के नाम पर धन राशि हड़प ली गई | इस गाँव में पहुंचे अधिकारियों ने जब ग्रामीणों से पूछा कि आप लोगों के शौचालय कंपलीट हो चुके है और आप लोग शौचालयों का उपयोग कर रहे है, | अधिकारियों की बाते सुनकर वहा रहे आदिवासी हक्के बक्के रह गये कि कैसे शौचालय और कैसा उपयोग, हम लोगों के यहां किसी प्रकार के कोई शौचालय नही बने है और न ही हम लोगों को शौचालय बनाने के लिये कोई राशि मुहैया कराई गई है। ग्रामीणों की बाते सुनकर अधिकारी उल्टे पाव लौट गए | गाँव के इन आदिवासियों ने जनपद पंचायत कार्यालय और बैंक में जाकर जानकारी की तो पता चला कि मुहल्ले के करीब 60 लोगों के नाम पर सरपंच,सचिव और रोजगार सेवक द्वारा सरकारी दस्तावेजों में शौचालय निर्माण दिखाकर राशि निकाल ली गई है।
ग्रामीण न तो कभी खाता खुलवाने और न ही पैसा निकालने बैंक गये | कैसे उनके नाम पर खाते खुले और शौचालय निर्माण की लाखों रूपये की राशि बैंक से कैसे निकल गयी | जिला पंचायत के सीईओ अजय कटसारिया भी मानते हैं कि शौचालय घोटाले की शिकायत ग्रामीणों ने की थी | ग्रामीणों की शिकायत पर प्रारम्भिक जांच में ग्रामीणों के आरोपों को सही पाया गया | गांव के सरपंच और रोजगार सहायक द्वारा शौचालय निर्माण में हेराफेरी की गई है। और अब शीघ्र ही सरपंच और रोजगार सहायक को पद से हटाने की कार्यवाही की जा रही है।
इसी जिले के पृथ्वीपुर में 241 शौचालय का निर्माण होना था ,| आधे अधूरे निर्माण कर ठेकेदार ने राशि निकाल ली और लोग अब भी खुले में शौच जाने को मजबूर हैं | गड़बड़ी सामने आने के बाद यहां के नगर पंचायत के सीएमओ ठेकेदार को ब्लेक लिस्टेड करने की बात कहकर अपने दाग साफ़ करने का जतन कर रहे हैं |
पर शौचालय निर्माण और उनके उपयोग की जमीनी हालात में एक बड़ा विरोधाभास देखने को मिल रहा है | टीकमगढ़ के समीप के ही गाँवों में लोगों ने शौचालय का उपयोग अन्य कार्य में करने लगे | मामौन गाँव में तो लोग शौचालय का उपयोग कंडा रखने और अन्य घरेलु काम में उपयोग कर रहे हैं | यह हालात सिर्फ मामौन के ही नहीं जिले के अनेकों गाँवों में हैं | टीकमगढ़ जनपद पंचायत के कछिया खेरा गाँव में तो प्रशासन ने गजब किया था मई में इसे ओडीएफ घोसित कर दिया गया था | जबकि उस समय गाँव में अधिकाँश शौचालय बने ही नहीं थे | सागर रोड पर स्थित बड़ागांव धसान में तो लक्ष्य पूर्ण करने के नाम पर खेत में शौचालय बना दिए , जिनका उपयोग कोई नहीं करता | हालात ये हुए की निर्मित शौचालय खँडहर में बदल गए | अक्टूबर 2016 में जिले के 117 प्रेरको को सिर्फ इस कारण प्रशासन को बर्खास्त करना पड़ा था क्योकि उनके यहां शौचालय नहीं थे | पिछले दिनों स्वच्छ भारत मिशन के ज्वाइंट डायरेक्टर डॉ. राजेश राय ने जिले के कई गाँवों का दौरा किया उन्होंने एक सामान समस्या को हर गाँव में पाया की लोगों के शौचालय तो बन गए पर जल के अभाव में लोग उसका उपयोग नहीं करते | अब जो इलाका पिने के पानी के लिए परेशान हो वह भला शौचालय के लिए पानी की जुगाड़ कहाँ से करे
अधिकांश शौचालय नहीं हो रहे उपयोग : जिले के अधिकांश गांव में बन चुके शौचालयों का उपयोग नहीं हो रहा है। ग्रामीणों को कहना है कि पीने के लिए तो पानी नहीं मिल रहा है। शौचालय का उपयोग करने के लिए पानी कहा से लाएं। स्वच्छ भारत अभियान के ज्वाइंट डॉयरेक्टर डॉ. राजेश राय ने अधिकांश गांवों का निरीक्षण किया। जिसमें लोगों ने उनसे शिकायत करते हुए कहा था साहब शौचालय तो बनवा लिए है, अगर गांव में पानी की व्यवस्था हो जाए तो फिर कोई दिक्कत नहीं। टीकमगढ़ सागर मार्ग पर बड़ागांव धसान में सड़क किनारे बने शौचालय जर्जर अवस्था हालत में हैं। लक्ष्य पूरा करने के लिए खेतों में शौचालय बना दिए गए। यहां न तो कोई हितग्राही रहता है और न ही कोई शौचालय का उपयोग करता है। लक्ष्य पूर्ति के लिए अधिकारियों और कर्मचािरयों की मिलीभगत से इस तरह शौचालय पर पैसा खर्च किए जा रहे हैं।
BY: रवीन्द्र व्यास