NGO Story : Loot Lo Bundelkhand
Bundelkhand
लूट लो बुंदेलखंड - एनजीओ !
सरकारी योजनाओं के समानान्तर चल रही एनजीओ की सत्ता बंदेलखंड से लेकर विदर्भ, कालाहांडी तक फैली है। ये गैर सरकारी संगठन उन इलाको में जहां खासकर मुफिलिसी, भुखमरी, कुपोषण और प्राकृतिक आपदायें मुंह बाये खडी रहती है सर्वाधिक पोषित हो रही है। एनजीओ के आन्तरिक चेहरो को बेनकाब करती रपट..
बंदेलखंड - गरीबी, सूखा और आपदाओ से घिरे बुंदेलखंड में ग्रामीण विकास योजनायें हासियें पर है। उन्हे लूटने और उनमे व्याप्त भ्रष्टाचार को बढाने में सरकारी मिशनरी हावी है। मनरेगा, संपूर्ण स्वच्छता कार्यक्रम, आईसीडीएस (आंगनबाडी), बालश्रम, उद्यान विभाग, एचआईवी एड्स, राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन से लेकर आवाम के लिये बनी निजामों की हर योजना भ्रष्टाचार में लिप्त है। लेकिन सरकारी योजनाओं के समनान्तर बुंदेलखंड जैसे अति पिछडे और विकास से अछूते क्षेत्रों में समाजिक संगठनों की बाढ़ आम जनमानस को लूटने में कमतर नही है।
एनजीओ का काला सच और गरीबो की आड़ में राज्य, केन्द्र, विदेशी अनुदान विभाग को गुमराह करने वाले आकडो़ में पेश करती हुयी तस्वीरे बंदेलखंड का एक और कड़वा स्याह सामने लाती है। जिनसे यह कहना मुनासिब लगता है कि भ्रष्टाचार के महाकुम्भ में बुंदेलखंड के समाजिक संगठन भी अपनी अपनी भारत माताओं के साथ सुख भोग की डुबकी लगा रहे है।
जनपद बांदा जिले में दो दशको सें काम कर रही स्वयं सेवी संस्था और उनके कारनामो को आम जनता के लिये बनाये गये सूचना अधिकार कानून ने उजागर किया है। बांदा क्षेत्र के नरैनी विधान सभा में 23 गांव की गरीबी को दूर करने और सर्वोदय के नारे के साथ समाज सेवा का संकल्प लेकर चली परागीलाल विद्याधाम समिति, अभियान संस्था अतर्रा, की कहानी भ्रष्टाचार के पन्नों को खोलने में अव्वल नजर आती है। जनसूचना अधिकार 2005 से मोहनपुर निवासी सीताराम श्रीवास ने विद्याधाम समिति से 2003 से 2012 तक किये गये तमाम विकास कार्यों और संस्था की गतिविधियों के बारे में सूचना मांगी थी।
सूचना देने से बचने के लिये संस्था संचालक राजा भैया यादव ने सीताराम श्रीवास के साथ साथ अन्य दो आरटीआई कार्यकर्ताओं से 2रू0 प्रति पेज फोटोकापी के हिसाब से 18000 रू0 शुल्क अदा करने के बाद सूचना देने की बात लिखित रूप से कही गयी। गरीब किसानो औैर दलित, शोषित, पदवंचित लोगो के मसीहा के रूप में खुद को प्रचारित करने वाली स्वयं सेवी संगठन विद्याधाम समिति द्वारा आरटीआई कार्यकताओं से 18000 रू0 की मांग करना अतिश्योक्ति पूर्ण बात है।
अपनी गाढी कमाई को जोड़कर आरटीआई कार्यकताओं ने संस्था द्वारा मांगी गयी धनराशि एक मुश्त बैंक ड्राफ्ट के जरिये अदा की। रूपया लेने के बाद भी दी गयी सूचना में संस्था के पुराने पंपलेट, रद्दी कागज लपेट कर करीब 10 किलो का बंडल सूचना मांगने वालो को थमा दिया गया जिससे सूचना अधिकार के चक्रव्यूह में उलझकर फिर कोई सूचना मांगने की हिमाकत न कर सके। आरटीआई कार्यकर्ता संतोष श्रीवास ने केन्द्रीय सूचना आयोग के साथ साथ ग्रह मंत्रालय से लेकर हर उस आला अधिकारी की चैखट पर शिकायत की अर्जी विद्याधाम समिति के संदर्भ में लगायी जहां से उसे न्याय की उम्मीद थी। ग्रह मंत्रालय ने केन्द्रीय सूचना आयोग की नोटिस पर आरटीआई कार्यकर्ता को सूचना देने के लिये मजबूर किया। सूचना अधिकार से मिले तथ्यों के मुताबिक परागीलाल विद्याधाम समिति को एफसीआरए (विदेशी अनुभाग) से वर्ष 2004 से 2009 के बीच 7094399.00 रू. प्राप्त हुये थे। इस धनराशि में देशी अनुदान यथा जमशेद जी टाटा ट्रस्ट और अन्य फंडिग एजेन्सियों की तरफ से जारी की गयी अनुदान राशि समाहित नही है जो विद्याधाम समिति को दी गयी।
जनसूचना अधिकार का सामना न करना पड़े इसके लिए विद्याधाम समिति जैसे अन्य संगठन राष्ट्रीय स्तर के पत्रकारोें को भी बरगलाना बखूबी जानते है। बानगी के लिये भारत डोगरा एक नाम हो सकता है जिन्होने बंदेलखंड मे काम कर रही जीआरए ग्रुप (गोपाल राजा अशोक ) के लिये प्रशंसा परख लेख दैनिक समाचार पत्रों के संपादकीय पेज,सोशल चेन्ज पेपर्स में कई मर्तबा लिखे। हाल ही में एक दैनिक समाचार पत्र के संपादकीय पृष्ठ पर सूचना अधिकार से कौन डरता है ? शीर्षक से प्रकाशित लेख में विद्याधाम समिति की ईमानदारी और खूबियों का बखान किया गया। इस लेख में प्रमुखता से सूचना मांगने वालो को ब्लेकमेलर तक कहा गया है। शब्दो के कैनवास से गरीबी को खूबसूरत बनाना और पंचायती राज को कटघरे में खडा कर देने के साथ संस्थाओं के संदर्भ मे सजे हुये लेख लिखना इन राष्ट्रीय पत्रकारों की लेखनी से अच्छा कौन कर सकता है?
आरटीआई को कमजोर और ग्रामीणों की आवाज को दबाने के लिये विद्याधाम समिति ने अपने गैर पंजीकृत संगठन चिंगारी (महिला विंग) का भी गाहे बगाहे सहारा लिया। संगठन की संयोजिका गुड़िया पत्नी रामचरन के माध्यम से ग्राम किसनी पुरवा के प्राथमिक विद्यालय में कार्यरत प्रधानाध्यापक यशवंत कुमार पर फर्जी मुकदमे कायम कराये गये । 30 दिसम्बर 2012 को ऐसा ही मुकदमा छेडखानी का गुडिया की तरफ से लिखाया गया है। इसके पूर्व भी वर्ष 2008 में धारा 156 (3) के तहत इस संस्था की तरफ से अध्यापक के ऊपर मुकदमा दर्ज करवाया गया था जिस पर नरैनी थाने मे एफ आर लगायी जा चुकी है।
गौरतलब है कि यशवंत कुमार के पिता बुआराम उर्फ ब्रजगोपाल ने अपने दादा परागीलाल के नाम से 15 मार्च 2001 को बहलफ रजिस्ट्री 2 बीघा 15 बिस्वा बंजर जमीन संस्था को ग्राम मोहन पुरवा में विद्यालय संचालन के लिये दान की थी। गाटा सं0 820 की यह जमीन रजिस्ट्री के समय नरैनी तहसील में दर्ज करायी गयी थी जिसे परागी लाल की 13 दिसम्बर 2007 को मृत्यु के पश्चात संस्था ने अतर्रा तहसील स्थानान्तरित करा लिया है। शिक्षा के दान और परोपकार की बंजर जमीन पर विद्यालय तो संचालित नही हुआ लेकिन जमीन पा जाने के बाद राजाभैया यादव ने अपने पैंतरे जरूर बदल दिये।
सूत्र बताते है कि एक दशक पूर्व सामान्य व्यक्ति की तरह महुई कुलसारी के ढोढ़ाउहा पुरवा निवासी राजाभैया यादव जिनका बचपन अपने ननिहाल कोलावल रायपुर में बीता है जीवन यापन करते थे। मगर आज अतर्रा तहसील में दो मंजिला भवन संस्था कार्यालय के रूप में, अतर्रा नरैनी मार्ग में गर्गन पुरवा में निर्माणाधीन दो मंजिला भवन (फार्म हाउस) जो कि इनके जीआरए गु्रप के संचालक एवं अखिल भारतीय समाज सेवा संस्थान के न्यासी गया प्रसाद गोपाल उर्फ पिताजी की माता देवरती के नाम पर शिलान्यासित करवाया गया है, एक वैगेनार, एक इंडिका और दो पहिया वाहन सहित चल अचल संपत्ति बनायी गयी है। गोपाल भाई की संस्था संपत्ति या व्यक्तिगत प्रापर्टी का अनुमान लगाया जाये तो चित्रकूट बेडीपुलिया मार्ग पर रानीपुर भट्ट (भारत जननी परिसर) की लगभग 1 एकड़ जमीन, मानिकपुर क्षेत्र में संस्था निजी विशाल कार्यालय, पैतृक गांव सहित आसपास के क्षेत्र में कृषि जमीने, चारपहिया वाहन सहित अज्ञात बैंक बैलेंस मौजूद है। तीन दशक पूर्व साइकिल से समाज सेवा शुरू करने वाले इन पिताजी के एक पुत्र वर्तमान में मानिकपुर क्षेत्र से ब्लाक प्रमुख भी है। मिली जानकारी के अनुसार पूर्व बसपा सरकार के ग्राम विकास मंत्री दद्दू प्रसाद कभी अखिल भारतीय समाजसेवा संस्थान में बर्तौर सामाजिक कार्यकर्ता काम किया करते थे। सरकार बनने के पश्चात राज्य सरकार से मनरेगा सामाजिक अंककेक्षण, जागरूकता अभियान के लिये लाखो रू0 इस संस्था को दिया गया था। वर्तमान में टाटा ट्रस्ट, चाइल्ड लाइन, वाटर एड इंडिया, नाबार्ड सहित अन्य गैरसरकारी प्रोजेक्ट इस संस्था में संचालित है। जिनकी अनुदान राशि सालाना लाखो रू0 है। यह और बात है कि विद्याधाम समिति के हमकदम बनकर चलने वाली यह संस्था भी स्वसेवा में मशगूल है।
कुल मिलाकर देशी विदेशी अनुदान से गरीबो के कल्याण, सशक्तिकरण, सर्वागींण विकास और भुखमरी, पलायन, किसान आत्महत्याओं के मुद्दो पर करोडो रू0 प्रोजेक्ट के नाम पर लाना और धरातल में किये गये कार्याे का सिफर ंहोना इन संस्थाओ की कार्यशैली पर प्रश्न चिन्ह खड़ा करता है। इंडिया एलाइव की पड़ताल के दौरान विद्याधाम समिति के कार्यक्षेत्र के करीब आधा दर्जन गांव जिनमें नहरी, नरसिंहपुर, राजा का पुरवा (दलित बस्ती), देवली, धोबिन पुरवा, सहबाजपुर, पुकारी, मोहनपुरवा, गुढाकला के बाशिंदो का कहना है कि एनजीओ चलाने वाले चोर होते है। देवली गांव के चुन्नी लाल, अच्छेलाल, झल्लू, ललमा ने बताया कि विद्याधाम समिति की तरफ से उन्हे गूंज संस्था द्वारा कपडे दिये गये थे। कपडे देने के पहले संस्था द्वारा कहा जाता है कि कपडे उतारकर खडे हो जाओ, तुम्हारी फोटो खीचेंगे फिर तुमको कपडे, शौचालय, पेंशन और बिजली मिलेगी। देवली एक ऐसा गांव है जहां बीते दो वर्षो से बिजली नही है। बडी बात है कि अगर शहर में और सैफई में एक घंटे बिजली न रहे तो हडकंप मच जाता है। लेकिन वही बुंदेलखंड के इस पिछडे गांव मे फांकाकशी के बीच जीने वाले लोगो की जिंदगी दो साल अंधेरे में है। समाजसेवी, सरकार क्या कर रही है यह बताने की जरूरत नही।
विद्याधाम समिति पर गंभीर और संजीदा आरोप लगाने वाली धोबिन
पुरवा की बिट्टन निषाद का कहना है कि मुझसे और मेरी जैसी अन्य औरतो की कम कपड़ो
में तस्वीरे खीची जाती है , तस्वीरे बाहर जाती ह, उनका क्या होता है हमें नही
मालूम और उसके बदले हमें कपडे दिये जाते है। बकौल बिट्टन मै भी कभी चिंगारी
संगठन की सदस्य हुआ करती थी लेकिन आज नही हूं क्यों कि मै संस्था से बगावत कर
चुकी हूं।
कैमरे की रिर्काडिंग और एक घंटे की बयानी इस बात की तस्दीक करती है कि गांव से
निकले शिकायती पत्र, ग्रामीणों की आवाज जिला प्रशासन तक क्यों नही पहुंची
जिन्होने इन संस्थाओ को यह नारा दिया कि - चलो गांव की ओर।
‘‘मिट्टी के बुतो की अकड़ तो देखियें,
खुद अपनी मिट्टी को भूल गये है।
कोई जरा बताये इनको,
टूटने के बाद मिलना है इसी मिट्टी में।।’’
दोआबा क्षेत्र के रंज और बागै नदी की पट्टी में बसे अति पिछडे यूपी एमपी के सीमावर्ती गांव इन संस्थाओ के निशाने पर है। राजा का पुरवा ग्राम पंचायत पिपरा (नरसिंहपुर) निवासी युवा ग्रामीण नत्थू, चुनूबाद, दयाराम, बाबू, जयराम, पन्ने, राजकुमार, बसंतलाल, मुन्ना व बुजुर्ग भिम्मा सहित अन्य लोगो ने सूखा राहत, खाद बीज और कपडो के नाम पर इस संस्था पर भ्रष्टाचार के संगीन आरोप लगाये है। वहीं नरसिंहपुर के लोगो का कहना है कि हमारे गांव में एक बोरी अनाज आया था जिसमें से 2 - 2 किलो लोगो को दिया गया है। बताते चले कि जमशेद जी टाटा ट्रस्ट से विद्याधाम समिति को 9 लाख 84 हजार रू0 बागै नदी में डैम बनाने के लिये दिये गये थे। अकेले क्षमता वर्धन के नाम पर 1 लाख रू0 खर्च किया गया है। बमुश्किल पांच लाख रू0 के काम पर नौ लाख चैरासी हजार रू. कहां खर्च किया गया यह तकनीकी जांच का विषय है।
ग्राम पंचासत नहरी के गोपरा गांव के रहवासी भी संस्था से इस कदर खफा है कि छूटते ही कैमरा तोडने को दौड़ पडते है। उन्हे लगता है कि फिर से कोई एनजीओ वाला आ गया है जो फोटो खीचेगा और करोडो रू0 ग्रह मंत्रालय का डकार जायेगा। इसी गांव के लाले पुत्र शिवचरन ने आरोप लगाया कि उसके नाती भूपत व मिथला का कोई नही है। विद्याधाम समिति ने इनकी फोटो खीची और पंशन दिलाने का वादा किया लेकिन उन्हे मिला कुछ नही। यही पीड़ा गांव के बुजुर्ग हल्कू पुत्र सुखलाल की है जिसे गांव की उधड़ी पगडंडी में जर जर हालात के चलते मुफिलिसी को ढोते देखा जा सकता है।
बंुदेलखंड में एनजीओ की लूट विद्याधाम समिति पर ही खत्म नही होती अतर्रा क्षेत्र में कार्यरत अभियान संस्था के संचालक अशोक श्रीवास्तव भी वाटर एड इंडिया और जायका से लाखो रू0 कागजो पर खर्च कर चुके है। सूचना अधिकार में प्राप्त जानकारी से जो तथ्य हासिल हुये है वह अभियान के भ्रष्टाचार अभियान को कठघरे में खड़ा करते है।
ग्राम पंचायत उदयपुर निवासी ब्रजमोहन यादव ने संस्था से गांव में संपूर्ण स्वच्छता कार्यक्रम के तहत बनाये गये शौचालय, हैंड पंप व अन्य के सम्बंध में जानकारी मांगी थी। जो सूचना दी गयी उसमें लिखा गया कि संस्था को वाटर एड इंडिया से 2 करोड़ 99 लाख रू0 प्राप्त हुआ हं। संपूर्ण स्वच्छता कार्यक्रम के तहत संस्था ने गांव में कोई शौचालय नही बनवाया है जब कि सूचना से इतर संस्था के कार्य क्षेत्र में लगे हुये बैनर दर्शाते है कि वर्ष 2004 से 2007 के बीच 64 शौचालय बनाये गये है। प्रति शौचालय 2250 रू0 अनुदान राशि की जगह ग्रामीणो को 500 रू0 व दो बोरी सीमेंट व कुर्छ इंटे देकर मामला चलता कर दिया गया । उदयपुर में वाटर एड के सहयोग से बनाये गये किचन गार्डन, वर्मी कम्पोस्ट और संस्था द्वारा संचालित कर्मयोग विद्यापीठ विद्यालय संस्था के किये गये कारनामों की पोल खोलता है। कर्मयोग विद्यापीठ 2007 तक चलाया गया इसके पश्चात संस्था के संचालक अशोक श्रीवास्तव के करीबी व्यक्ति का उसमें कथित कब्जा है। विद्यालय भवन के अंदर कटाई मशीन, ग्रहस्थी का सामान इस बात का प्रमाण है। बडा सवाल यह है कि यदि संस्था ने इस गांव में शौचालय नही बनवाये थे तो उसके कार्य क्षेत्र बैनर व गांव वालो के बयानों को क्या समझा जाये। स्वयं सेवी संगठनों के बारे में बांदा जिले के समाजिक कार्यकर्ता उमाशंकर पांडेय (सूचनाअधिकारी श्री रामभद्राचार्य विकलांग विश्वविद्यालय, चित्रकूट) बेबाकी से कहते है कि इन संस्थाओं को राज और केन्द्र सरकार द्वारा अनुदान राशि जारी करने से पहले इनकी तफ्तीश करना चाहिये आयकर और एफसीआरए में पंजीकृत एनजीओ को जो पैसा दिया जा रहा है वह धरातल पर क्यों नही खर्च किया जाता इसकी जांच होनी चाहिये। जांच एजेन्सी निश्पक्ष व राज्य व केन्द्र सरकार के दायरे से बाहर हो सीबीाआई जैसी एजेन्सी नही जो केन्द्र सरकार के इशारे पर काम करती है।
बहरहाल बुंदेलखंड मे स्वयं सेवी संस्थायें पंचायती राज विभाग, राज्य और केन्द्र सरकार के मंत्रालयों, विदेशी अनुदान विभाग से करोडो रू0 लाकर गरीबी और विकास के नाम पर अति पिछडे क्षेत्रों को सिर्फ प्रोजेक्ट मंडिया बना रही है। हाल वही है कि यदि मर्ज नही होगा तो डाक्टर का काम क्या है। गरीबी, भुखमरी, लाचारी और बेकारी बुंदेलखंड के लिये अभिशाप है लेकिन समाज सेवा के नाम पर धंधा चलाने वाले लोगो को यह मान लेना चाहिये कि आने वाली नस्ले एनजीओ के नाम से नफरत की फसल पैदा करेगी जिन्हे काटने वाले वे लोग ही होगे जो समाज सेवा का चोला चढायें बैठे है।
विद्याधाम समिति को दिया गया एफसीआरए रूपया
वर्ष | प्राप्त विदेशी धनराशि (लाख रू0) |
2004-05 | 786433.00 |
2005-06 | 575185.00 |
2006-07 | 498652.00 |
2007-08 | 311793.00 |
2008-09 | 15122.00 |
By : - आशीष सागर
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