(कविता "Poem") मै जंगल हूँ by जीतेन्द्र 'चित्रकूटी'
(कविता) मै जंगल हूँ
क्या तुम में है ये दम कि तुम एक पेड़ लगाओगे।
जिस दिन लगा दिया, तुम मेरे मन में बस जाओगे ll
ये चाहत है मेरी कि मै पेड़ों से घिर जाओं।
पेड़ों के संग मैँ मिलकर पर्वत सा हो जाऊं ll
पेड़ों के संग पर्वत से नदियां का उदगम हो जाये।
मै खुश हो जाउंगा जब नए जंगल पेड़ नजर आये ll
पर्वत नदियां जंगल ये सब है, चित्रकूट की पावन आभा ।
पर बच जाएँ ये जंगल के चोरों से, ये है हम सब कि आशा ll
By जीतेन्द्र 'चित्रकूटी'
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