(Article) अन्तराष्ट्रीय महिला दिवस -संकल्प दिवस के साथ मनाया जाना चाहिए by संतोष कुमार गंगेले
8 मार्च अन्तराष्ट्रीय महिला दिवस -संकल्प दिवस के साथ मनाया जाना चाहिए
प्रकृति की संचालन की आधारषिला महिला को ष्षक्ति रूप में स्वीकार किया गया हैं हिन्दू धर्म ग्रन्थ के अनुसार महिलाओं के अनेक रूप देखें जा सकते हैं कहा भी कहा गया है कि जहाँ महिलाओं का सम्मान किया जाता है महिलाओं की वहां पूजा होती, नारी के सम्मान से ही वहाँ देवता बास करते है । इसी प्रकार कुरान में कहा गया है की माँ के कदमों में जन्नत होती है । ममतामयी माँ के साथ महिलाओं के स्वरूप को माँ , चाची, बुआ, मौसी, बहन नानी, दादी, बहू, ननद, पत्नी आदि नामों से महिलाओं को सम्बोधन होता आ रहा है । महिलायें ष्षक्ति ही नही महाषक्ति के रूप में मानी गई हैं लेकिन महिलाओं को भी इस पद को पाने केलिए कितना कठिन तप करना होता है इसका ध्यान रखकर ही कार्य करने बाली महिलायें ही गृह लक्ष्मी, आदिषक्ति, महाषक्ति, सृष्टि रचियता की उपाधियों से सम्मानित हो आ रही है । आज हम अंतर राष्ट्रीय महिला दिवस पर महिलाओं के मान सम्मान के लिए सामाजिक सांस्कृतिक आयोजन तो करते है लेकिन इस आयोजन के बाद महिलाओं को कितना मान सम्मान बनाकर रखते है इस बात पर पर गहन चिंतन होना रह जाता है ।
भारतीय संस्कृति , संस्कार इस बात के साक्षी है कि जो भी प्रभु अवतार हुये या जो भी देवता है सभी परिवार बाले थें, ईष्वर, देवता दानव सभी सधर्मपत्नी बाले रहे हैं , है भी सच यदि व्यक्ति के ऊपर नियंत्रण करना हो या समाजिक देष प्रेम की ओर मोड़ना हो तो उसे परिवारिक बंधनों में रखने केलिए महिला ही पूरी तरह से उपयुक्त होती है । समाज के विकाष के साथ - साथ महिलाओं के उत्थान केलिए उनके सम्मान के लिए महिलाओं को बरावरी का दर्जा दिया गया । प्रत्येक देवता को प्रषन्न करने केलिए उनकी देवीओं की अराधना बंदना की जाती रही है । काम बासना की पूर्ति केलिए महिलाओं की सुन्दरता, सहजता, सरलता, सिंगार एवं कोमलवर्ण को महत्व दिया जाता रहा है, इसी कारण अनादि काल से युध्द का कारण पुरूष अपना काम बासना की पूर्ति के लिए महिलाओं को पाने के लिए ही घर, परिवार, समाज व राष्ट्र को दाँव पर लगाते आ रहे है । महाभारत जैसे महायुध्द का कारण महिला द्रोपती ही रही है । यदि महिलाओं को अपनी शाक्ति को जाग्रत करना है तो माता सती अनुसुईया जी व्दारा माता जानकी जी को दिये उपदेषों का जीवन में पालन करे , महिलायें इस तरह संस्कारों को अपने जीवन में उतारने का प्रतिदिन प्रयास करना जारी रखना चाहिये । सती अनुसुईया जी ने महिलाओं को अपने धर्म पालन के अनेक सुझाव दिये है यदि उनका पालन महिलाये करे तो भगवान की जगह आज उन्ही की पूरे परिवार में पूजा हो सकती है ।
विष्व की धरा पर महिलाओं के विकाष के साथ जब बिनाष की गति मिलने लगी , महिलाओं के
सम्मान को ठेस पहुॅचनी लगी तो विष्व की शक्तिओं ने तय किया कि महिलाओं की सुरक्षा,
उनके चरित्र रक्षा, उनके अधिकारों की सुरक्षा, महिलाओं के विकाष केलिए योजनाओं के
साथ साथ उन्हे अनादि काल से मिलने बाला सम्मान कम न हो इसके लिए 8 मार्च की तारीख
को अन्तराष्ट्रीय महिला दिवस का नाम देकर महिलाओं को गौरव व सम्मान के साथ बराबरी
का दर्जा दिलाने केलिए स्थापना महिला दिवस के रूप में की गई । किसी जाति व समाज में
महिलाओं की भागीदारी मानव सभ्यता से चली आ रही है । परिवार का संचालन पुरूष अकेले
नही कर सकता है । प्रकृति के संन्तुलन को बनाये रखने, व्यक्ति को समाज से जोड़ कर
रखने, बंष परिवार को आगे बढ़ाने में महिला पत्नी के बिना इस ष्षव्द को उपयोग करना
असंभव सा प्रतीत होता है । महिलाओं की कार्य क्षमता, बुध्दि ज्ञान बैराग्य ही उन्हे
समाज में सम्मान प्रदान कराती आ रही है । महिलाओं के पास चरित्र से बढ़कर कोई पुँजी
नही है, महिलाओं को विवेक, ज्ञान, संयम व त्याग-वलिदान का जीवन जीना आता है ।
विष्व में हजारों महिलाओं के ऐसे नाम हो सकते हैं जिन्होने आष्चर्यजन कार्य किये
होगें, अनेक खोज की होगी, लेकिन पुरूष प्रधानता के कारण उनके नाम इतिहास में नही आ
सकेगें होगे । लेकिन यह तय है कि पुरूष किसी भी क्षेत्र में विकाष करता है उसमें
महिलाओं का सहयोग हमेषा रहा होगा और रहेगा , हम यह नही कह सकते है कि वह महिलायें
सहयोग, मित्र, पत्नी या अन्य किसी भी रूप में व्यक्ति को प्रेरणादायी रही हो । हमारे
देष के पूर्व प्रधानमंत्री स्व0 श्री जवाहर लाल नेहरू की बहन बिजयलक्ष्मी पंडित,
पुत्री स्व0 श्री इन्द्रिरा गाधी ने विष्व की सषक्त होकर विष्व की महिलाओं का
सम्मान बढ़ाया । भारत रत्न से सम्मानित की गई । देष की सर्वोच्च पद राष्ट्रपति के
पद पर श्रीमती प्रतिभा सिंह पाटिल महिलाओं की ओर से प्रतिनिधित्व कर चुकी है । भारत
रत्न एवं शांति पुरूष्कार से सम्मानित मदर टेरेसा ने पूरा जीवन समाजसेवा में ही
व्यतीत किया ।
देश की राजनैतिक सत्ता में अनेक महिलाओं ने केन्द्रीय मंत्री के पद पर रहकर महिलाओं के उत्थान एवं विकाष को गति दी है । देष में अनेक महिलाये, बिजयलक्ष्मी मीरा कुमारी, ,सुश्री उमा भारती, मायावती, जयललिता, ममता बनर्जी ,किरन बेदी, प्रीती सेन गुप्ता, आदि हिन्दू महिलाओं के साथ साथ मुस्लिम महिलाओं में फातिमा बीबी, न्यायमूर्ति के पद पर पदस्थ किया गया था । आज सुनीता संतोष यादव, पी.टी. ऊषा जैसी हजारों महिलाओं ने देष की सुरक्षा की जुम्मेदारी लेकर यह सावित कर दिखया कि महिलाओं के कार्य करने की क्षमता पुरूष से अधिक ष्षक्तिषाली है लेकिन महिलाओं को आत्म ष्षक्ति, संयम एवं साधना के जरिये ही अपने गौरव को कायम रखा जा सकता है । जिस समाज में महिलाओं को घर-गृहस्थी के संचालन का दायित्व, बच्चा पैदा करने की मषीन या काम बासनाओं की पूर्ति केलिए ही योग्य समझा जाता हो वहां अन्याय, अत्याचार, अनादर, आंतक, आत्म हत्या, हत्या जैसे संगीन अपराधों को ही स्थान मिलता रहेगा ।
आज अन्तराष्ट्रीय महिला दिवस को मनाने केलिए विष्व के साथ साथ भारत में भी लाखों स्थानों पर महिलाओं के सम्मान की दुहाई देगें, उनका सम्मान करेगें, महिलाओं के यषगान, कीर्ति बुध्दि विवके, ज्ञान, त्याग, तपस्या, कर्मयोगी, षिक्षा, साहित्य संस्कारों की सराहना होगी उन्हे प्रोत्साहित करने सम्मान समारोह होगे । लेकिन भारतीय संस्कृति, संस्कारों के मर्यादाओं के पतन में किसका हाथ है ? इस बात का भी आज यहां चिन्तन होना आवष्यक हो गया है । भारत बर्ष महिलाओं के सम्मानों से भरा देष है यहा नारी की पूजा होती रही आज भी सौ में से पचास परिवारों में महिलायें अपनी अस्मिता, चरित्र लज्जा को आभूषण के रूप में स्वीकार किये हुये हैं लेकिन वह भी तो भारतीय नारी है जिसको उसके पिता, दादा, भाई पत्नी अपनी परिवारिक समस्याओं को पूरा कराने केलिए धन जुटाने केलिए अपनी ही बेटी, बहू, पत्नी, माँ की सौदा कर उसे बैष्या बनाने केलिए होटलों में डास, बार गल्र्स, नृत्य-नौटंकी, केलिए मोटी रकम लेकर खुले बाजार में सौदा किया जाता है. । आज के युग में महिलाओं पर उत्पीड़न की घटनायें हो रही है उसके लिए महिलाओ में प्रलोभन, लालच, प्रतिस्पर्धा, आय से अधिक खर्च, ही पतन का कारण बना रही है । निजी इच्छाओं की पूर्ति केलिए जिन महिलाओ ने अपने चरित्र की कीमत लगा रखी है वही महिलाये समाज को कंलकित कर रही है । भारतीय नारी की अमर गाथायें इस बात का प्रमाण है कि वह अपने चरित्र को बचाने केलिए अपने प्राणों को न्यौछावर कर चुकी लेकिन चरित्र हनन नही होने दिया । आज आवष्यकता है प्रत्येक नारी को अपने चरित्र एवं संस्कार को बचाने केलिए संयम बनाये रखने की
भारतीय महिलायें बिलासता पूर्ण प्रतियोगिता का जीवन जीने केलिए भारतीय संस्कृति,
संस्कार, चरित्र को फिल्मी दुनिया के साथ साथ सीरियल, डास पार्टी, आके्र्रस्ट्रा के
माध्यम से बिक्रय कर रही है । महिलाओं को अपनी काम बासना की पूर्ति केलिए एक पुरूष
के अतिरिक्त अन्य पुरूषों से ष्षारीरिक संबंध नही बनाना चाहिये । भारतीय संविधान
में महिलाओं के उत्थान उनके विकाष, षिक्षा, स्वास्थ्य, जीवन रक्षा केलिए हजारों
योजनाओं को मूर्त रूप दिया गया लेकिन क्या सरकार नेता इस ओर ध्यान दे रहे है कि
आखिर भारत में सर्वाधिक महिलाओं की हत्या क्यो कि जा रही है, महिलाओं को आत्म हत्या
करने केलिए ऐसे क्या कारण है जिससे महिलाओं को मौत से बचाया जा सके । आज आवष्यकता
है कि प्रत्येक क्षेत्र में महिलाओं को जागरूकता के साथ साथ आत्म निर्भरता के साथ
साथ महिलाओं को भी महिला संगठनों, महिला आयोग, राजनैतिक दलों आदि में कार्यषाला के
माध्यम से उनके साहस एवं ष्षक्ति का अहसास कराने के साथ साथ चरित्र रक्षा के प्रति
प्रेरित किया जाना चाहिये । महिलायें पुरूषों की कामवाना का षिकार न बनकर राष्ट्र
प्रेम, देष के विकाष में नींव का पत्थर बनकर विकाष की गति में जुड़ने के संकल्प के
साथ आगे बढ़ें ।
बर्तमान समय में महिलाओं के चरित्र को खुले बाजार में बैचने बाले हम आप के बीच के कुछ ऐसे दरिन्दे लोग हे जो अपनी निजी स्वार्थ के कारण अपनी माँ , बहु , बेटियों, पत्नियों की इज्जत को दाव पर लगाकर अपनी इच्छा पूर्ति करते है , समाजमें ऐसे लोगों को कठोर कार्यावाही के लिए समय समय पर कानून बनाऐ जा रहे है लेकिन सभी बेअसर हो रहे है जिसका कारण यह सावित होता है कि व्यक्ति के मानसिकता समाज बिरोधी हो चुकी है , अपराध करने एवं अपराधों को संरक्षण देने बाले दोनो दोषी है । षिक्षण संस्थाओ में भारतीय संस्कृति एंव संस्कारों को बचाने के लिए मुहिम जरूरी हो गई है ।
बुन्देलखण्ड में महिलाओं की स्थिति सर्वाधिक खराब होने का कारण बेरोजगारी, मजदूरी व बेगार प्रथा है, औरत की मजबूरी का कामी मर्द फायदा उठाकर उनकाष्षरीरिक षोषण करते है । समाज में कुछ प्रथाऐ एवं परम्परयें भी महिलाओं को समाज बिरोधी बनाने में सहायक है । यदि एक पुरूष की व्याहता पत्नि का निधन हो जाता है और उसकी संतान है तो वह दूसरा विवाह करता है तो उसे माँ नही सौतेली माँ को स्थान दिया जाता है, घर परिवार व समाज के लोग ऐसी महिलाओं को सौतेली माँ से संबोधन करती है और उनके साथ सौतेला व्यपहार भी करती है । ऐसी स्थिति में दूसरी माँ या पत्नि बच्चों के साथ कुछ भी करती है तो उसे सम्मान जनक नही बल्कि अपमान जनक दृष्टि एवं घृणा से देखा -कहा जाता है । परिवार व समाज में इसके लिए महिलाओं को भी त्याग करना चाहिए साथ ही परिवार व समाज के लोगों को महिलाओं को समझा कर या सामाजिक दवाव के जरिये सौतेली माँ को सम्मान देकर समस्या का समाधान करना चाहिए ।
मध्य प्रदेष के छतरपुर जिला की तहसील नौगाॅव का एक छोटा सा ग्राम बीरपुरा है इस
ग्राम की आवादी भी बहुत छोटी होने के बाद भी इस प्रकार में भारतीय संस्कार एवं
संस्कृति के अनेक उदाहरण मिल सकते है । इस ग्राम में अषिक्षा का स्थान नही है भले
ही सामान्य, पिछड़ा व दलित वर्ग के लोग निवास करते है । इस ग्राम बीरपुरा में
भारतीय संस्कृति के अनुसार धार्मिक, सांस्कृतिक, षिक्षा, स्वास्थ्य, समरसता के अनेक
उदाहरण मिल जाते है । इस ग्राम बीरपुरा में एक परिवार ऐसा है जहां पत्नि के निधन के
बाद चार बच्चों को जन्म देने के बाद माँ के स्वर्गवास हो जाने पर दूसरी ष्षादी
करने के बाद सोतेली कहे जाने बाली माँ रंजना देवी ने समाज में एक उदाहरण ऐसा
प्रस्ष्तुत किया है जो समाज के लिए नजीर बन गया है । इस महिलाओं को छतरपुर भारतीय
जनता पार्टी महिला मोर्चा जिलाअध्यक्ष श्रीमती गीता पटैरिया ने श्रीमती रंजना देवी
का सम्मान करते हुये कहा था कि मुझे ऐसी बहन पर गर्व है जिसने समाज में सौतेलेपन को
दूर ही नही किया बल्कि समाज में ऐसा उदाहरण पैष किया जो हजारों में एक हो सकता है।
श्रीमती रंजना देवी एक गरीव ब्राम्हण परिवार की पुत्री है लेकिन भारतीय संस्कार से
परिपूर्ण होने के बाद उन्होने पहली माँ के बच्चों को अपनी कोख से जन्म देने
बाली माँ से ज्यादा प्यार व स्नेह देकर उनका पालन पोषण किया, षिक्षा दिलाई
साथ ही बेटी की षादी में भरपूर दान दहेज दिया, बेटी की पुत्री होने पर उसका पालन कर
रही है । आखिर ऐसी महिलाओं को समाज एवं प्रदेष में सम्मान देना हमारा कर्तव्य बनता
है । यदि मध्य प्रदेष सरकार विकाष की गति से कार्य कर रही है तो कम से कम 8 मार्च
अन्र्तराष्ट्रीय महिला दिवस पर जिला स्तर पर एक आयोजन को आयोजित कर समाज में अपने
परिवारिक जीवन को त्याग कर समाजसेवा करने बाली महिलाओं को भी सम्मान देने की पहल
करना चाहिए । श्रीमती रंजना देवी जैसी महिलाओं को समाज में नजीर के रूप में
प्रस्तुत करने के लिए उन्हे सामाजिक सम्मान देना हर नागरिक का कर्तव्य भी बनता है ।
आज के इतिहास में हजारों महिलाओं ने देष एवं राष्ट्र केलिए हर तरह से योगदान किया है लेकिन समाज में कुछ ऐसी गतिविधिया हो रही है जिससे महिला समाज दूषित, बदनाम, चरित्रहीनता के आरोपों से आये दिन घिर रही है । इसलिए महिलाओं के षारीरिक प्रर्दषन, अष्लील फिल्में, सीरियल, विज्ञापनों पर पूर्ण प्रतिबंध लगाने हेतू भारतीय संविधान में संषोधन आवष्यक रूप से किये जाना चाहिये अन्यथा इस प्रकार के महिला दिवस को मनाने का कोई सार्थक अर्थ नही निकलने बाला है ।
लेखक - संतोष कुमार गंगेले (प्रदेषाध्यक्ष गणेषषंकर विद्यार्थी पे्रस क्लब)
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