(Article) सोशल मीडिया अभियान (कैपेंन) से संपन्न हुए बिटिया के ब्याह का समाजिक प्रभाव
सोशल मीडिया अभियान (कैपेंन) से संपन्न हुए बिटिया के ब्याह का समाजिक प्रभाव
फेसबुक (सोशल मीडिया) कैपेंन के रचनात्मक उपयोग से संपन्न हुआ बिटिया का ब्याह अपने आप में अलहदा है। साथ ही न्यूज वेव पोर्टल मीडिया दरवार डाॅट काॅम, बुंदेलखंड डाॅट इन की भूमिका को भी नकारा नहीं जा सकता है। लेकिन सोशल मीडिया की पहल ने एक असंभव प्रतीत हो रहे कार्य को कारवां में बदल दिया।
बुंदेलखंड के जनपद बांदा में कर्ज और मर्ज से तंग आकर 18 जून 2011 को नरैनी तहसील के ग्राम बघेलावारी के किसान सुरेश यादव ने आत्महत्या कर ली थी। उस पर इलाहाबाद यूपी ग्रामीण बैंक फतेहगंज की शाखा का केसीसी से 21 हजार रुपए कर्ज बकाया था। उल्लेखनीय है कि वर्ष 2008 मे मृतक किसान की पत्नी सरस्वती की कैंसर के चलते मौत हो चुकी थी। पत्नी के इलाज में किसान ने अपनी 2 बीघा जमीन बंेच दी थी बावजूद इसके बच्चों के सर से मां का साया उठ गया। शेष बची 2 बीघा जमीन ही अब किसान और उसके तीन नाबालिग बच्चे विकास यादव, सगीता यादव और अंतिमा के अजीविका का एक मात्र साधन थी। मगर साल दर साल सूखे की चपेट में घिरा चटियल बुंदेलखंड इस 2 बीघा जमीन को मुंह चिढ़ा रहा था। किसान सुरेश यादव बेटे की पढ़ाई और जवान होती बिटिया को देखकर मानसिक अवसाद में जा चुका था। उधर कर्ज का चक्रवृद्धि ब्याज आंकड़ों में बढ़ रहा था और इधर फांकाकसी का यह आलम था कि किसान टीबी की चपेट में आ चुका था। उसके लिए अपना ईलाज और बच्चों का भरण-पोषण दो में से एक को चुनना था। इसी कड़ी में इस किसान ने 18 जून रात में बच्चों को सोता छोड़कर अपने ही खेत में खुदकुशी कर ली। लोकशाही ने भी इस किसान के बच्चों के साथ असंवेदनहीनता की हदें पार कर दी। नाबालिग बच्चों को प्रशासन की नाक के नीचे न सिर्फ अपने हक और हकूक के लिए चार दिन आमरण अनशन करना पड़ा बल्कि प्रमुख सचिव के सामने भीख तक मांगनी पड़ी। मीडिया के हल्ला मचाए जाने के बाद थक हार कर तत्कालीन जिलाधिकारी कैप्टन एके द्विवेद्वी का शासन को स्थानांतरण करना पड़ा और सरकारी मदद के नाम पर अनशनकारी बच्चों को परवारिक लाभ योजना, एक इंद्रा आवास, बीपीएल से अत्योदय कार्ड मुहैया कराया गया।
पिता के जाने के बाद मुखिया बने विकास यादव उम्र 16 वर्ष के सामने मुफलसी और जिम्मेदारी दो अहम प्रश्न पहाड़ की तरह खड़े थे। मगर उसने हिम्मत नहीं हारी और अपने निजी खर्चों में कटौती करते हुए स्वंय के साथ दोनों बहनों को पढ़ाना और उनकी भूख मिटाने का काम बखूबी किया। इधर बहन के ब्याह के लिए विकास की चिंता पिता से कमतर नहीं थी। उसने संगीता का विवाह सामाजिक लोकलाज और अपने घर से चले जाने के बाद दस्यू प्रभावित इलाके में बहन की सुरक्षा कारणों से तय कर दिया। जनपद चित्रकूट के ग्राम देवकली (दस्यू समा्रट ददुआ का गांव ) जहां केे वरिष्ठ समाजवादी पार्टी के नेता बालकुमार पटेल रहवासी है। बिटिया का ब्याह तो तय हो गया मगर विकास की चिंता यह थी कि डोली कैसे उठेगी। आए दिन बैंक मैनेजर का गरीब बच्चों के दरवाजे पर धरना और बढ़ा हुआ ब्याज सहित कर्ज 39 हजार रुपए अदा करना यक्ष प्रश्न आज भी है। ऐसे हालात में जब गांव का एक पटेल साहूकार 12 हजार रुपए पिता के कर्ज को न चुकाने पर जान से मारने की धमकी दे रहा हो भाई के लिए बहन की शादी किसी बड़े सपने के जैसी थी जो उसने खुली आंखों से देखा था। इन बच्चों के साथ मेरा एक आत्मिक रिश्ता पिता की मृत्यु के समय से ही बन चुका था। उनके हर अच्छे और बुरे दिनों का मैं साक्षी हूं। संगीता के विवाह की बात जब मेरे कानों तक पहुंची तो मैने उसे आशावादी रहने का रास्ता दिखाकर विवाह की तैयारी में जुटने को कह दिया। गांव से बांदा आकर सोशल मीडिया-फेसबुक पर मैने पूरे प्रकरण को बिटिया का ब्याह अभियान बनाकर सिलसिलेवार पोस्ट करना शुरू कर दिया। एक व्यक्ति से शुरू हुआ अभियान देखते ही देखते परिवार में बदला और स्थानीय मीडिया ने इसे हाथों-हाथ लिया। जिन लोगों को मैं सिर्फ आभासी दुनिया से जानता था उन्होंने बिना कुछ पूछे खुले हाथ से 45 हजार रूपए सिर्फ फेसबुक से दिए। इधर इस खबर को सुनकर बांदा शहर के लोग भी आगे आए और कर्जदार किसान की बेटी के नाम पर जिससे जो बन पड़ा उसने वो किया। विवाह में कुल 80 हजार रूपए नकद व अन्य सामान अलग से एकत्र हुआ। कुछ विचार में, कुछ श्रमदान में और कुछ आर्थिक मददगार बन गए। इस तरह से जो बिटिया का ब्याह विकास और मैं कभी नहीं कर सकते थे वो मुकम्मल हुआ। मेरे आर्थिक स्रोत भी सीमित रहे क्योंकि मैं स्वतंत्र रूप में लेखन और समाजसेवा का कार्य बिना वेतन लिए ही करता हॅू।
न्यूज वेब पोर्टल बुंदेलखंड डाॅट इन, मीडिया दरवार डाॅट काॅम के सुरेंद्र ग्रोवर, गाजियाबाद के साथी राजू यादव, अखिल भारतीय मातृभूमि ट्रस्ट, शैलेंद्र मोहन श्रीवास्तव बांदा, ये कुछ नाम हैं जो संगीता के पीहर से ससुराल तक की यात्रा में मुख्य किरदार में थे। इसके अलावा 6 सौ बारातियों का खाना बनाने वाले हलवाई पप्पू कुशवाहा ने भी बिना मजदूरी के योगदान किया। इस विवाह में लगी विवाह की चैपाल में वर और कन्या पक्ष के साथ शामिल हुए 6 सौ लोगों ने लोकसभा चुनाव 2014 में नोटा प्रयोग करने का संकल्प भी लिया। जिसका असर ये हुआ कि जनपद बांदा में 25 हजार लोगों ने खबर को सुनकर नोटा का प्रयोग किया। इसकी वजह ये भी रही कि लोकतंत्र के किसी भी जनप्रतिनिधि, ग्राम प्रधान ने बिटिया के ब्याह में एक रूपए की भी मदद नहीं की। वे तमाशा देख रहे थे कि किसान के बच्चों की बेबसी का और उनके लिए तो बंुदेलखंड वैसे भी किसानों की कब्रगाह ही है। इस विवाह में सीएनएन/ आईबीएन 7 की श्रेया डोनियाल भी उपस्थित रहीं उन्होंने इसका कवरेज किया। वहीं हिंदुस्तान टाइम्स अग्रेजी समाचार पत्र सहित अमर उजाला का विशेष योगदान रहा।
आषीष सागर
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