(कविता "Poem") बुंदेली शिक्षा गीत by श्री बाबू लाल जैन सुधेश
बुंदेली शिक्षा गीत by श्री बाबू लाल जैन सुधेश
रचयिता : श्री बाबू लाल जैन दिगौडा (टीकमगढ)
पढ़ लो पढ़ लो सभी नर-नार, अपढ़ कोउ न कहवे।
खुल गए पुरवन मदरसा यार, निरक्षर कोउ न कहवे।।
चार माह में खेती होती, फल फूलन को वढ़वो।
मन लगाव तो कठिन कछू ना, रामायण को पढ़वो। पढ लो ...........................।।
भैंसें गैंयाँ जाव चराबे, ले लो खरिया मिट्टी।
चार चार अक्षर के सीखत, लिखन लगोगे चिट्ठी। पढ़ लो...................।।
मैं मैं करती कहती बकरी, मैं भी साथ पढ़ूँगी।
गल-गल मिट्ठू मैना कहती, मैं ना पीछे रहूँगी। पढ़ लो ..........................।।
औपचारिकेत्तर शिक्षा से, भूले बिगरे सुधरे।
नई रोशनी उन्हें मिली है, ज्ञान बीज उर उग हे। पढ़ लो .......................।।
पौढ़ पाठषालाऐं खुल गईं, दिन अरू रात पढ़ावत।
जब जी को मन लगे तभी वे घर-घर जा समझावत। पढ़ लो...................।।
लरका बिटियाँ बाप-मताई, पढ़वें ओलम गिनती।
घर में कोउ निरक्षर न रहे, यह ‘सुधेश’ की विनती ।। पढ़ लो ...................।।
पुत्री-शिक्षा
अपनी लली पढ़ा लो री। जी की कली खिला लो री।।
पढ़ी लिखी जो होती बेन, उनके रहें सदा सुख चैन।
रामायण को पाठ करें नित प्रभु के भजन गवा लो री।
जी की कली खिला लो री। अपनी लली ................।।
जो तिरियाँ होती अज्ञान, पंडित मूरख एक समान।
आदर मान जानती बे ना, उनसे तो लरवा लो री।
जी की कली खिला लो री। अपनी लली...............।।
पारवती, सावित्री-सीता, नचतीं गाती राधा-गीता।
मात शारदा बीन बजाती, इनके संग लगा लो री।
जी की कली खिला लो री । अपनी लली ...........।।
पढ़ना-लिखना खाना-पीना, स्वेटर बुनना कपड़े सीना।
नई कलाऐं कई भाँति की, बिटियन को सिखला लो री।
जी की कली खिला लो री । अपनी लली...............।।
पढ़ लिखकर सब करवें काम, देश की उन्नति, जग में नाम,
कहत ‘सुधेष’ पढ़ाकर बेटी, उन्नति शिखर चढ़ा लो री ।
जी की कली खिला लो री। अपनी लली .................।।
महिला-शिक्षा
सब कोउ कहत सुनो सइयाँ। गुरू बिन ज्ञान मिलत नइयाँ।।
नहीं मायके में स्कूल, मोरी ई में का रइ भूल।
खेलत कूँदत सब दिन कढ़ गय, फिरती रही, चराउत गइयाँ।
गुरू बिन ज्ञान मिलत नइयाँ।। सब कोउ ................।।
जब से मैं इस घर में आई, दिन के रोटी राते ब्याई।
चक्की-पानी झारा-फूँकी। फुरसत तनक मिलत नइयाँ।
गुरू बिन ज्ञान मिलत नइयाँ। सब कोउ ...................।।
मोरी अब देवरानी आई, पढ़ी लिखी सब करें बढ़ाई।
बिना पढ़ी अब मैं ना रहों, देव पढ़ाय परों पइयाँ।
गुरू बिन ज्ञान मिलत नइयाँ। सब कोउ ...............।।
देखो शोभा की भौजाई, अफसर बनी कार में जाई।
पढे लिखे के बड़े ठाट हैं, देख छिपाय अपन मुइयाँ।
गुरू बिन ज्ञान मिलत नइयाँ। सब कोउ.............।।
महिला शिक्षा केन्द्र खुल गए, सिलवो, बुनबो सवै चल गए।
कवि ‘सुधेश’ तिय ‘केशर’ कहती।
पढ़ो-लिखो इनमें गुइयाँ। गुरू बिन ज्ञान मिलत नइयाँ। सब कोउ..............।।
By: Dr. Vivekanand Jain