अन्ना प्रथा से परेशान किसान
अन्ना प्रथा से परेशान किसान
बुन्देल खंड में अन्ना प्रथा अब किसी विपदा से काम नहीं रह गई है । सदियों से चली आ रही इस प्रथा में पहले चैत्र मॉस में फसल कटाई के बाद , गोवंश को खुला छोड़ा जाता था , पिछले दो दशको में इस प्रथा को किसानों ने हमेशा के लिए अपना लिया । हालात ये बने खुले छूटे जानवर सड़को पर घूमने लगे , फसलों को उजाड़ने लगे , किसानों में आपसी संघर्ष होने लगे , मसला सरकार के मुखियाओ तक पहुंचा , लोक सभा में भी इसकी गूंज सुनाई दी ,कुछ ने मसले के निपटाने के जातन किये पर कुछ ने इस पर ध्यान देना ही जरुरी नहीं समझ । देखा जाए तो समस्या के मूल में बुंदेलखंड के किसानों के आर्थिक हालात , सरकार की नीतियां ही मुख्य रूप से जिम्मेदार हैं ।
बुंदेलखंड इलाके में यह प्रथा थी की जब चैत्र मास में फसल कट जाती थी , और खेत खाली हो जाते थे ,उस समय जानवरो को खुला छोड़ दिया जाता था । इसके पीछे किसानों का एक कृषि ज्ञान काम करता था । खुले खेतों में इन जानवरो के विचरण करने और चरने से उन्हें अपने खेत की उर्वरा शक्ति बढ़ाने में मदद मिलती थी । खेत में इन जानवरों का गोमूत्र और गोबर खाद का काम करता था । हालात बदले और किसानों ने मशीनो से दोस्ती कर ली , गो वंश से नाता तोड़ लिया । नतीजा ये हुआ कि दूध देने वाले जानवरो के अलावा सभी को खुले मे छोड दिया गया । गोवंश को जब अधिकांश किसानों ने हमेशा के लिये खुला छोड़ा तो यही जानवर किसानों के लिए एक बड़ी समस्या बन गया है ।
इस लावारिश पशु धन को जहां पानी मिला वहां अपनी प्यास बुझा ली जो खेत मिला उसी से अपने पेट की आग बुझा ली । जब खेतो की फैसले उजड़ने लगी तो किसानों को ये समस्या किसी विपदा से कम नहीं जान पड़ी । किसान को अब अपनी फसलें बचाने के लिए दोहरी मेहनत करनी पड़ने लगी , पहले से ही नील गाय से परेशान किसान अब इस गो वंश पर लाठियाँ लेकर जुट पड़ा । एक गाँव से दूसरे गाँव भगाने लगा , इस का असर ये हुआ की गाँव के गाँव आपस में दुश्मन होने लगे । लोगों में लाठियां चलने लगी ,गाली गलौच होने लगी । छतरपुर जिले के खजुराहो के पास ललगुवाँ गाँव में ऐसा ही एक मामला कुछ दिनों पहले सामने आया था । जब एक किसान के खेत में गायों का जंद घुस गया ,। खेत मालिक इस पर इतना नाराज हुआ की अपने परिजनों के साथ गांव में निकालकर गाली गलौच करने लगा । गाँव के एक समझदार नेता और वकील रतन सिंह ने किसी तरह उसे समझाया तब कहीं जा कर मामला निपटा ।
फरवरी के पहले हफ्ते में हमीरपुर जिले के ऐंझी गाँव और महोबा जिले के बसौठ गाँव के लोगों के बीच जानवरो को लेकर जम कर संघर्ष हुआ । खरेला थाना पुलिस को जैसे ही इस संघर्ष की जानकारी लगी वह मौके पर पहुंची । पुलिस ने ऐझी गाँव के लोगों पर लाठियाँ बरसाई , इस संघर्ष में चार किसान घायल हो गए । खबर पाकर ऐझी गाँव की महिलाये भी संघर्ष के लिए मैदान में आ गई , किसी तरह मुस्करा थाना प्रभारी ने माले को निपटाया । बाद में घायल किसानों ने महोबा के पुलिस कप्तान से शिकायत कर खरेला थाना की पुलिस पर कार्यवाही की मांग की ।
बुंदेलखंड इलाके में भटकते पशुधन के कारण हर साल औसतन 25 से 35 फीसदी फसल नष्ट होती है । किसानों के सामने यह समस्या इतनी जटिल है की वे इसके लिए कई बार सूबे के मुखिया , अपने इलाके के नेता विधायक और सांसद ,प्रशासन तक से गुहार लगा चुके हैं । बांदा के सांसद ने लोकसभा में और इसी जिले के तिंदवारी विधायक ने विधान सभा में अन्ना जानवरो का मुद्दा उठाया था, पर हालात जस के तस बने रहे । इस गंभीर समस्या के जनक किसानों की मज़बूरी ये है की बढ़ते परिवार और बटवारे के कारण उनकी खेती की जमीन तो घटती गई । प्रकृति के प्रकोप ने भी उनकी समस्याओ को और बढ़ाया खुद के अनाज और जानवरों के लिए भूसे की समस्या उत्पन्न हो गई । , खुद उनके और उनके परिवार के लिए दो जून की रोटी की जुगाड़ मुश्किल हो गई , मजदूरी के लिए पलायन करना पड़ा सो अलग ऐसे में जानवरो को खुला छोड़ने के अलावा और कोई विकल्प उन्हें नहीं समझ आया । किसानों के सामने इसके अलावा एक और भी समस्या थी गाँव की चरनोई भूमि के पट्टा वितरण की जिसके कारण गाँव की चरनोई भूमि समाप्त हो गई और जानवरो के लिए खेत ही सहारा रह गए ।
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने बुंदेलखंड इलाके में इस समस्या से निपटने के लिए हमीरपुर और बांदा जिले में अभियान शुरू करवाया है । दिसंबर में कनकुआ में अपनी चुनावी सभा में सी एम् अखिलेश यादव ने महोबा जिले के किसानों को भरोषा दिलाया था की हमीरपुर जिले की तरह महोबा जिले के किसानों को अन्ना पशुओं की समस्या से जल्द से जल्द छुटकारा दिलाया जाएगा । इस समस्या के निराकरण के लिए झाँसी के भारतीय चारागाह एवं चारा अनुसंधान संस्थान के अधिकारियों से चर्चा की जाएगी ।
हालांकि कुछ इलाको में इसके लिए प्रयास किये जा रहे हैं । बांदा जिले के बबेरू क्षेत्र के पिंडारण गाँव में किसानों ने १२ बीघा में एक गौशाला बनाई , किसानों ने चन्दा जोड़कर गाँव के प्रधान को ६० हजार रु दिए , उसने भी पंचायत निधि और मनरेगा से ढाई लाख रु जुटाकर गौशाला तैयार की है । छतरपुर जिले के बारीगढ़ नगर पंचायत और नगर वासियों ने मिलकर एक अनुकरणीय पहल की है। इन गौवंश के लिए नगर पंचायत और नगर वासियों ने मिलकर इनके चराने की और भोजन की व्यवस्था की है। पार्षदों, अध्यक्ष और ,उपाध्यक्ष ने अपना मानदेय इन गौवंश के लिए समर्पित कर दिया है । इनके लिए 7 चरवाहे नियुक्त किये गये है जो दिन में इनहे चराने का काम करते है । नपा ने जन सहयोग से लगभग 2 हजार गौवंश के दाना पानी की भी व्यवस्था कर एक मिसाल कायम की है। नपा की इस पहल से किसान भी खुश हैं,की उसकी फसल जानवरो से बच गई ।,
मध्य प्रदेश सरकार इस मसले पर मौन व्रत धारण किये है , इसके पीछे तर्क दिए जाते हैं की इस समस्या से निपटने के लिए प्रदेश सरकार ने पहले ही गौशालों की व्यवस्था कर रखी है । पर मध्यप्रदेश के बुंदेलखंड इलाके में बनी ये गौशालाएं किसी अभिशाप से कम नहीं हैं । सरकार के जिन कृपा पात्रों के हाथो इन गौशालों की जिम्मेदारी है वे सिर्फ कागजी ज्यादा हैं यथार्थ में कम । कुछेक गौशालों को छोड़ दिया जाए तो अधिकांश गौशालाएं लोगों के कमाई का जरिया बन गई हैं । पिछले साल पन्ना के पवई इलाके की अहिंसा गौशाला इसका जीता जागता प्रमाण था । जहां मौत के बाद भी गौ माता को गौशाला में सड़ने के लिए छोड़ने का और दो दर्जन से ज्यादा गायों का मामला सामने आया था ।
इसे बदलते दौर की विडम्बना ही कहेंगे की जहां गौ वंश की पूजन से वर्तमान और भविष्य को सुरक्षित बनाया जाता था वहीँ आज गौ वंश को किसान आज मुसीबत के तौर पर देखने लगा है । जरुरत है इस समस्या के सकारात्मक समाधान की ,। मध्य प्रदेश के मुख्य मंत्री की पहल पर मालवा इलाके में दॆश का पहला गौ अभ्यारण्य शुरू किया गया है \ 2017 तक इस अभ्यारण्य से गौ मूत्र से बने कॉस्मेटिक उत्पादों का काम शुरू करने की योजना भी है । सवाल बुंदेलखंड के लोगों का सिर्फ यही है क्या बुंदेलखंड में इस तरह के अभ्यारण्य नहीं खोले जा सकते जिससे लावारिश गौ धन के नस्ल सुधार का अभियान भी जुड़ा हो । पर शायद सियासत के संख्या बल की कमी के कारण उसकी आवाज नहीं सुनी जाती ।
By: रवीन्द्र व्यास