‘बुंदेली भाषा’ को मिलना चाहिये भारत के संबिधान की आठवीं अनुसूची में स्थान - राष्ट्रीय बुन्देली भाषा सम्मेलन 2017
‘बुंदेली भाषा’ को मिलना चाहिये भारत के संबिधान की आठवीं अनुसूची में स्थान -
राष्ट्रीय बुन्देली भाषा सम्मेलन 2017
बुंदेलखण्ड साहित्य एवं संस्कृति परिषद, भोपाल के तत्वाधान में बुंदेली भाषा का राष्ट्रीय सम्मेलन ओरछा में 20 तथा 21 दिसम्बर को आयोजित हुआ।
उद्घाटन सत्र :
बुंदेली भाषा के राष्ट्रीय सम्मेलन का उद्घाटन करते हुये ओरछेश श्री मधुकर शाह जी, काशी हिंदू वि.वि. के प्रो. कमलेश कुमार जैन, बुंदेलखण्ड वि.वि. के कुलपति प्रो. सुरेन्द्र दुबे जी, जर्मनी के होमवर्ग वि.वि. की प्रो. तात्याना, बुंदेलखण्ड साहित्य एवं संस्कृति परिषद के राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री कैलाश मड़वैया जी आदि ने बुंदेली कवि श्री केशव जी के चित्र पर माल्यार्पण एवं दीप प्रज्ज्वलन कर कार्यक्रम शुभारंभ किया। लोक कलाकारों ने हमारी माटी बुंदेली गीत प्रस्तुत किया। श्रीमती कामिनी जी ने मंच संचालन किया।
अतिथियों के स्वागत के बाद उद्घाटन भाषण देते हुये बुंदेलखण्ड वि.वि. के कुलपति प्रोफेसर सुरेंद्र दुबे जी ने बुंदेली भाषा को पाठ्य क्रम में जोड़ने की आवश्यकता पर बल दिया तथा बुंदेलखण्ड यूनीवर्सिटी द्वारा इस दिशा में सार्थक कदम उठाने का आस्वाशन दिया।
पुस्तक विमोचन : श्री कैलाश मड़वैया द्वारा लिखित बुंदेली भाषा के नाटक ‘महाराजा छत्रसाल’ का विमोचन किया गया। इसी अवसर पर बुंदेली भाषा के काव्य संग्रह ‘लुक लुक की बीमारी’द्वारा श्री राजीव नामदेव ‘राणा लिधौरी’का भी लोकार्पण किया गया।
द्वितीय सत्र में लेख प्रस्तुतीकरण का संचालन डा. विवेकानंद जैन (काशी हिंदू वि.वि.) तथा राणा लिधौरी ने किया। इस सत्र में बुंदेलखण्ड की नदियों (धसान, नर्मदा, मंदाकिनी, बेतवा, चम्बल, केन, गुप्त गोदावरी आदि) तथा पहाड़ों पर लेख प्रस्तुत किये गये। इन लेखों के माध्यम से नदियों के जल संरक्षण, पर्यावरण प्रदूषण, पहाड़ों के अवैध उत्खनन पर भी ध्यान आकर्षित किया गया।
बुंदेली भाषा के शब्दों के संग्रह एवं मानकीकरण पर श्री कैलाश मड़्वैया जी ने प्रस्तावना रखी। प्रो. कमलेश कुमार जैन तथा डा. विवेकानंद जैन (काशी हिंदू विश्वविद्यालय, वाराणसी) ने लेख प्रस्तुत किये। प्रतिभागियों द्वारा लाये गये बुंदेली शब्दों पर गहन चर्चा हुयी। क्या बुंदेली भाषा शिक्षा का माध्यम बन सकती है? यह बात प्रोफेसर तात्याना ओ संसक्या (होम्वर्ग यूनीवर्सिटी, जर्मनी) ने वार्ता हेतु रखी।
बुंदेलखण्ड की नदियों तथा पहाड़ों पर लेख प्रस्तुत करते प्रतिभागीगण । बुंदेली भाषा, लोकगीत, गारी, भजन आदि का हमारे जीवन में महत्व पर प्रकाश डालते हुये उत्तर प्रदेश सरकार के राज्य मंत्री श्री हरगोविंद कुशवाहा जी । उन्होने इस दौरान अनेक लोक गीत भी सुनाये। लोक संगीत की प्रस्तुति : आल्हा का संगीतमय गायन, हरदौल आदि से सम्बंधित बुंदेली भजनों का आनंद लेते हुये महाराजा साहब एवं समस्त प्रतिभागीगण । इसके बाद बुंदेली कवि सम्मेलन हुआ जिसमें बुंदेली भाषा में गीत, भजन, गजल, गारी, हास्य व्यंग्य आदि की प्रस्तुति हुयी।
बुंदेली कलाकारों द्वारा लोक नृत्य की प्रस्तुति
निष्कर्ष : बुंदेली भाषा के दो दिवसीय सम्मेलन का समापन इस प्रण के साथ हुआ कि हम सभी प्रतिभागीगण एवं छ: करोड़ से अधिक बुंदेली भाषा के प्रेमी अपनी प्रिय ‘बुंदेली भाषा’को उसका उचित स्थान "भारत के संबिधान की आठवीं अनुसूची" में दिलाने के लिये सतत प्रयास करेंगे।
Courtesy: डा. विवेकानंद जैन, काशी हिंदू वि.वि.